भगवान ने हमें मोह - माया में क्यों डाला है | Why has God put us in illusion by Swami Mukundanand
https://www.youtube.com/watch?v=PJ_FJRTVM3g Full Text 1 मान लो कि स्त्री पति का झगड़ा हो गया, भाई भाई का धोखा हो गया, कारोबार धंधे में घाटा हो गया, स्वास्थ्य हानी हो गई, ये सब जब माया झापड़ लगती है, जीव कहता है, भई ये संसार तो बेकार है, वह महात्मा जी कह रहे थे, एक भगवान है, वही ठीक होगा https://www.youtube.com/watch?v=PJ_FJRTVM3g&t=16 2 तो यह माया नौकरानी बड़ी कमाल की है, यह माया भी भगवान की शक्ति होने के करण उनसे अभिन्न है, वेदांत दर्शन ने सूत्र बनाया है “verse” देखो भगवान आलोक का स्रोत हैं, वह “हैलोजन (Halogen)” वहां जल रहा है, लेकिन उसकी light यहां तक पहुंची हुई है https://www.youtube.com/watch?v=PJ_FJRTVM3g&t=41 3 इसी प्रकार से आत्मा निवास तो एक जगह करती है, लेकिन अपनी चेतना को शरीर में फैलाया हुआ है, तो पूरा आपका शरीर चेतन बन गया, यहां पर कांटा चुभा, क्या हो गया ? दर्द हो रहा है, चेतना है यहां पे, क्यों जी, आत्मा हृदय में, चेतन यहां तक कैसे फेल गई ? वो आत्मा एक जगह होते हुए सर्वत्र चेतना फैला देती है, लेकिन फिर कोई प्रश्न करे कि आत्मा एक जगह से पूरे शरीर को कैसे चेतन कर देती है ? https://www.youtube.com/watch?v=PJ_FJRTVM3g&t=76 4 वेद व्यास ने एक दूसरा वेदांत सूत्र लिखा है इसी का उत्तर देने के लिए “verse“, आप ललाट (माथा) पर चंदन लगाइए, पूरे शरीर में शीतलता आ जाएगी चंदन एक जगह लगाया, पूरे शरीर में शीतलता फैल गई, देखो, जैसे सुगंध फूल में होती है, किंतु यदि बगीचे में बढ़िया फूल लगे हों पूरा बगीचा महक जाता है, वो फूल अपनी सुगंधी को बगीचे में भी transfer कर देता है, तो इस प्रकार से हमारी आत्मा चेतन है, तो चेतन होने के नाते हम, महा चेतन भगवान के सजातिय हैं दोनों की एक जाति है तो हम क्या भगवान से अभिन्न हैं ? बिल्कुल यह भेद-आभेद वाला संबंध है, हम भगवान हैं ? ऐसा नहीं, मगर भगवान से अभिन्न हैं, जैसे सूर्य और उसकी किरणें, तो किरण को भी सूर्य में ही मान लेते हैं इसका मतलब सूर्य की किरणों को हम सूर्य से अभिन्न मानते हैं, और एक ही हैं, तो ऐसे ही, जीव भगवान की शक्ति का अंश होने के नाते, जीव भी भगवान से अभिन्न है https://www.youtube.com/watch?v=PJ_FJRTVM3g&t=124 5 और माया को देख लें, यह माया शक्ति जो है यह भगवान की विजातीय है, विजातीय मतलब अब ये विपरीत जाति वाली हो गई क्योंकि भगवान महा चेतन और माया जड़ है, कोई कहे साहब माया तो इतना कमाल करती है ये जड़ है ? वही चिमटे वाला सिद्धांत, प्रेरणा भगवान की पाकर माया ऐसा कमल करती है, “verse”, सब को माया ने परेशान किया हुआ है भगवान की प्रेरणा से, लेकिन स्वयं माया जड़ शक्ति है, तो यह जड़ शक्ति भगवान से पृथक हो गई, यानी अब यह अलग चीज हो गई, लेकिन शास्त्र कहते हैं कि माया भी भगवान से अभिन्न है, क्यों, क्योंकि उनकी शक्ति है, भगवान की शक्ति ही माया है https://www.youtube.com/watch?v=PJ_FJRTVM3g&t=238 6 Verse, ज्ञानी लोग कहते है की माया मिथ्या है, मन का ब्रह्म है, वास्तव में माया मन का भ्रम नहीं है, भगवान की दासी है उनकी शक्ति है और जब तक भगवान कृपा नहीं करेंगे, ये माया नहीं जाने वाली, आप बोलते जाओ “अहम ब्रह्मास्मि”, कुछ नहीं होने वाला, भगवान के दो प्रकार के servant (सेवक) हैं, एक को कहते हैं संत महात्मा, भगवान की सेवा कैसे करते भगवान की Personality लोगों को समझाते हैं और समझा कर लोगों को उनकी तरफ आकर्षित करते हैं वहां जाओ देखो वो अकारण करूण हैं, देखो अनंत सौंदर्य माधुर्य से युक्त हैं लेकिन संतो की बात कोई सुनेगा ही नहीं, एक महात्मा जी आए हैं, बड़े आए, मैं सब कुछ जानता हूं, कोई नहीं सुनेगा, अब जब कोई सुनेगा ही नहीं, तो कोई संत कल्याण कैसे करेगा ? इसलिए भगवान ने एक दूसरी नौकरानी रखी हुई है, उसका नाम है माया, ये माया नौकरानी क्या करती है, ये ना सुनने वालों को झापड़ लगाती है, जूते चप्पल https://www.youtube.com/watch?v=PJ_FJRTVM3g&t=320 7 अब उसके प्रकार अनेक हैं मान लो कि स्त्री पति का झगड़ा हो गया, भाई भाई का धोखा हो गया, कारोबार धंधे में घाटा हो गया, स्वास्थ्य हानी हो गई, यह सब जब माया झापड़ लगाती है, जीव कहता है, भई ये संसार तो बेकार है, वह महात्मा जी कह रहे थे, एक भगवान हैं, वही ठीक होगा, अर्थात माया हमारा वैराग्य करती है और वैराग्य करके इशारा करती है, उधर जाओ, भगवान की तरफ जाओ, मेरे पास मत आओ, दासी के पास नहीं, स्वामी के पास जाओ, तो यह माया नौकरानी बड़ी कमाल की है, अगर माया नौकरानी न होती, तो कोई भगवान के पास जाता ही नहीं, https://www.youtube.com/watch?v=PJ_FJRTVM3g&t=438 8 इसलिए तो कबीर जी ने कहा ना, “verse” जहां सांसारिक सुख बहुत हो जाता है, व्यक्ति कहता है फिर भगवान की क्या आवश्यकता है ? ये सब छोड़ो, चलो अब संसार में ही चलें, लेकिन “बलिहारी वो दुख की, जो पल पल नाम रटाए” वह दुख जो हमको भगवान की तरफ ले जाता है, वह बहुत परोपकारी है, इसीलिए तो कुंती देवी ने वरदान मांगा था, भगवान आप मुझे कष्ट दो, परेशानी दो, https://www.youtube.com/watch?v=PJ_FJRTVM3g&t=496 9 कई लोग जब जुंझला कर पूछते हैं, स्वामी जी, अरे क्या हो गया ? हमारे परिवार में यह मर गया, मेरा तो भाग्य फूट गया, भाग्य फूटा नहीं, भगवान कह रहे हैं, मेरी कृपा है, “verse” जब मैं किसी पर कृपा करता हूं, तो उसका संसार छीन लेता हूं, ऐसा क्यों करते हैं आप ? अरे इसलिए करते हैं ताकि वह संसार से विमुख होकर भगवान की तरफ चले https://www.youtube.com/watch?v=PJ_FJRTVM3g&t=544 10 अब बच्चा खिलौने से खेल रहा है और मां को भूल हुआ है, मां का interest है, उसको भजन कराए, बच्चे का खिलौने में ही interest है, वो नासमझ माँ झगड़ते रहती है कि खिलौने से प्रेम नहीं कर, मुझसे कर, समझदार माँ कहती है नौकर से, कि खिलौना छीन लो, खिलौना छिन गया अब बच्चे को माँ की याद आई, ऐसे ही हम भी संसार के पांच प्रकार के खिलौनों में आसक्त हैं, शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध बच्चों के लिए भी ऐसे खिलौने होते हैं ना, एक चट्टू गुनगुना इत्यादि अलग-अलग, हमने देखा है बच्चे को वहां लेटाए हुए हैं, उसके ऊपर कुछ रख के और वो हिलता जा रहा है, बच्चा देखता जा रहा है, बढ़िया entertainment हो रहा है, इंद्रियों का मनोरंजन हो रहा है, https://www.youtube.com/watch?v=PJ_FJRTVM3g&t=582 11 इसी तरह ये संसार में विभिन्न प्रकार के इंद्रियों के सुख और इसी करण से हम अपने असली संबंधी को भूले हुए हैं तो भगवान कृपा करके उसको छीन लेते हैं, भगवान कहें या माया कहें, तो ये माया भी भगवान की शक्ति होने के करण उनसे अभिन्न है https://www.youtube.com/watch?v=PJ_FJRTVM3g&t=637 Transcript 0:16 मान लो कि स्त्री पति का झगड़ा हो गया, 0:19 भाई भाई का धोखा हो गया, 0:24 कारोबार धंधे में घाटा हो गया, स्वास्थ्य 0:27 हानी हो गई, ये सब जब माया झापड़ लगती है, 0:32 जीव कहता है, भई ये संसार तो बेकार है, वह 0:37 महात्मा जी कह रहे थे, एक भगवान है, वही ठीक 0:40 होगा, 0:41 तो यह माया नौकरानी बड़ी कमाल की है, यह 0:46 माया भी भगवान की शक्ति होने के करण उनसे 0:51 अभिन्न है, 0:59 वेदांत दर्शन ने सूत्र बनाया है “verse” 1:08 देखो भगवान आलोक का स्रोत हैं, वह “हैलोजन (Halogen)” वहां जल रहा है, 1:11 लेकिन उसकी light यहां तक पहुंची हुई है 1:16 इसी प्रकार से आत्मा निवास तो एक जगह करती है, 1:20 लेकिन अपनी चेतना को शरीर में फैलाया हुआ 1:24 है, तो पूरा आपका शरीर चेतन बन गया, 1:30 यहां पर कांटा चुभा, 1:33 क्या हो गया ? दर्द हो रहा है, 1:37 चेतना है यहां पे, 1:40 क्यों जी, आत्मा हृदय में, 1:43 चेतन यहां तक कैसे फेल गई ? 1:46 वो आत्मा एक जगह होते हुए सर्वत्र चेतना 1:51 फैला देती है, 1:53 लेकिन फिर कोई प्रश्न करे 1:56 कि आत्मा एक जगह से पूरे शरीर को कैसे 2:01 चेतन कर देती है ? 2:04 वेद व्यास ने एक दूसरा वेदांत सूत्र 2:07 लिखा है इसी का उत्तर देने के लिए “verse“, आप ललाट (माथा) पर चंदन लगाइए, 2:21 पूरे शरीर में शीतलता आ जाएगी 2:25 चंदन एक जगह लगाया, पूरे शरीर में शीतलता फैल गई, देखो, जैसे सुगंध फूल में होती है, 2:38 किंतु यदि बगीचे में बढ़िया फूल लगे हों 2:42 पूरा बगीचा महक जाता है, 2:47 वो फूल अपनी सुगंधी को बगीचे में भी 2:51 transfer कर देता है, 2:54 तो इस प्रकार से हमारी आत्मा चेतन है, 3:01 तो चेतन होने के नाते हम, महा चेतन भगवान 3:06 के सजातिय हैं 3:09 दोनों की एक जाति है 3:12 तो हम क्या भगवान से अभिन्न हैं ? 3:18 बिल्कुल यह भेद-आभेद वाला संबंध है, हम भगवान 3:23 हैं ? ऐसा नहीं, मगर भगवान से अभिन्न हैं, जैसे 3:29 सूर्य और उसकी किरणें, 3:34 तो किरण को भी सूर्य में ही मान लेते हैं 3:38 इसका मतलब सूर्य की किरणों को हम सूर्य से 3:43 अभिन्न मानते हैं, 3:45 और एक ही हैं, तो ऐसे ही, जीव भगवान की शक्ति का अंश होने के नाते, जीव भी भगवान से अभिन्न है 3:58 और माया को देख लें, 4:01 यह माया शक्ति जो है यह भगवान की विजातीय है, 4:08 विजातीय मतलब अब ये विपरीत जाति वाली हो 4:11 गई क्योंकि भगवान महा चेतन और माया जड़ है, 4:18 कोई कहे साहब माया तो इतना कमाल करती है ये 4:21 जड़ है ? वही चिमटे वाला सिद्धांत, 4:26 प्रेरणा भगवान की पाकर माया ऐसा कमल 4:30 करती है, “verse”, सब को माया ने 4:40 परेशान किया हुआ है भगवान की प्रेरणा से, 4:45 लेकिन स्वयं 4:49 माया जड़ शक्ति है, 4:52 तो यह जड़ शक्ति भगवान से पृथक हो गई, 4:59 यानी अब यह अलग चीज हो गई, लेकिन शास्त्र कहते हैं कि माया भी भगवान से अभिन्न है, 5:11 क्यों, क्योंकि उनकी शक्ति है, 5:16 भगवान की शक्ति ही माया है 5:20 Verse, ज्ञानी लोग कहते है की माया मिथ्या है, मन का ब्रह्म है, वास्तव में माया मन का भ्रम नहीं है, 5:50 भगवान की दासी है उनकी शक्ति है और जब तक 5:55 भगवान कृपा नहीं करेंगे, ये माया नहीं जाने वाली, आप बोलते जाओ “अहम ब्रह्मास्मि”, कुछ नहीं होने वाला, भगवान के दो प्रकार के servant (सेवक) हैं, एक को कहते हैं संत महात्मा, 6:20 भगवान की सेवा कैसे करते भगवान की 6:24 Personality लोगों को समझाते हैं और समझा कर 6:29 लोगों को उनकी तरफ आकर्षित करते हैं वहां जाओ 6:33 देखो वो अकारण करूण हैं देखो अनंत सौंदर्य 6:38 माधुर्य से युक्त हैं 6:41 लेकिन संतो की बात कोई सुनेगा ही नहीं, 6:46 एक महात्मा जी आए हैं, 6:49 बड़े आए, मैं सब कुछ जानता हूं, 6:53 कोई नहीं सुनेगा, 6:55 अब जब कोई सुनेगा ही नहीं, तो कोई संत 6:58 कल्याण कैसे करेगा ? 7:00 इसलिए भगवान ने एक दूसरी नौकरानी रखी हुई है, 7:05 उसका नाम है माया, 7:08 ये माया नौकरानी क्या करती है, ये ना सुनने वालों को झापड़ लगाती है, जूते चप्पल 7:18 अब उसके प्रकार अनेक हैं 7:21 मान लो कि स्त्री पति का झगड़ा हो गया, भाई 7:25 भाई का धोखा हो गया, 7:28 कारोबार धंधे में घाटा हो गया, स्वास्थ्य 7:31 हानी हो गई, यह सब जब माया झापड़ लगाती है, जीव कहता है, भई ये संसार तो बेकार है, वह 0:37 महात्मा जी कह रहे थे, एक भगवान हैं, वही ठीक 0:40 होगा, 7:46 अर्थात माया हमारा वैराग्य करती है और 7:51 वैराग्य करके इशारा करती है, उधर जाओ, 7:55 भगवान की तरफ जाओ, मेरे पास मत आओ, दासी के 8:01 पास नहीं, स्वामी के पास जाओ, तो यह माया 8:05 नौकरानी बड़ी कमाल की है, अगर माया नौकरानी 8:10 न होती, तो कोई भगवान के पास जाता ही नहीं, 8:16 इसलिए तो कबीर जी ने कहा ना, “verse” 8:34 जहां सांसारिक सुख बहुत हो जाता है, 8:39 व्यक्ति कहता है फिर भगवान की क्या आवश्यकता 8:42 है ? ये सब छोड़ो, चलो अब संसार में ही चलें, 8:46 लेकिन “बलिहारी वो दुख की, जो पल पल नाम रटाए” 8:52 वह दुख जो हमको भगवान की तरफ ले जाता 8:56 है, वह बहुत परोपकारी है, 9:01 इसीलिए तो कुंती देवी ने वरदान मांगा 9:04 था, भगवान आप मुझे कष्ट दो, परेशानी दो, 9:04 कई लोग जब जुंझला कर पूछते हैं, स्वामी जी, अरे 9:12 क्या हो गया ? हमारे परिवार में यह मर गया, 9:15 मेरा तो भाग्य फूट गया, 9:17 भाग्य फूटा नहीं, भगवान कह रहे हैं, मेरी कृपा है, “verse” 9:21 जब मैं किसी पर कृपा 9:26 करता हूं, तो उसका संसार छीन लेता हूं, 9:32 ऐसा क्यों करते हैं आप ? अरे इसलिए करते हैं 9:35 ताकि वह संसार से विमुख होकर भगवान की तरफ 9:40 चले 9:42 अब बच्चा खिलौने से खेल रहा है और मां को भूल 9:47 हुआ है, 9:48 मां का interest है, उसको भजन कराए, बच्चे 9:52 का खिलौने में ही interest है, वो नासमझ माँ झगड़ते रहती है कि खिलौने से प्रेम नहीं कर, मुझसे कर, समझदार माँ कहती है नौकर से, कि खिलौना छीन लो, खिलौना छिन गया अब बच्चे को माँ की याद आई, ऐसे ही हम भी संसार के पांच प्रकार के खिलौनों में आसक्त हैं, शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध 10:19 बच्चों के लिए भी ऐसे खिलौने होते हैं ना, 10:22 एक चट्टू गुनगुना इत्यादि अलग-अलग, 10:25 हमने देखा है बच्चे को वहां लेटाए हुए हैं, 10:27 उसके ऊपर कुछ रख के और वो हिलता जा रहा है, 10:31 बच्चा देखता जा रहा है, बढ़िया entertainment हो 10:34 रहा है, इंद्रियों का मनोरंजन हो रहा है, 10:37 इसी तरह ये संसार में 10:40 विभिन्न प्रकार के इंद्रियों के सुख और इसी 10:44 करण से 10:45 हम अपने असली संबंधी को भूले हुए हैं तो भगवान 10:51 कृपा करके उसको छीन लेते हैं, भगवान कहें या माया 10:56 कहें, तो ये माया भी भगवान की शक्ति होने के 11:01 करण 11:02 उनसे अभिन्न है Standby link (in case youtube link does not work): भगवान ने हमें मोह - माया में क्यों डाला है Why has God put us in illusion Swami Mukundananda.mp4