Thursday, March 23, 2023

युवावस्था में भक्ति करें या career सम्भालें? Bhagavad Gita Part 32 (Shlok 9.27) by Swami Mukundanand

युवावस्था में भक्ति करें या career सम्भालें? Bhagavad Gita Part 32 (Shlok 9.27) by Swami Mukundanand


https://www.youtube.com/watch?v=H0NuPjWD_5c

Full Text  1  श्लोक नंबर 9.27: जब भक्ति की बात आती है तो लोगों को लगता है कि भक्ति अलग है, और हमारा सांसारिक पारिवारिक जीवन, कर्तव्य, यह अलग है, या तो भक्ति करो या कर्म करो, इसलिए लोग अपने जीवन को partition कर देते हैं, आधा घंटा भक्ति करनी है, ड्यूटी पूरी हो गई, उसके बाद कर्म करना हैं,  तो भक्ति मन लगा के करो लेकिन उसके बाद चालाकी, 420, मक्कारी दम लगा के करो, यह दोनों का कोई संबंध नहीं है, ऐसा नहीं है, यह भक्ति का संबंध हमारे जीवन के प्रत्येक कर्म से है,  हमको कुछ partition करने की आवश्यकता नहीं है, स्वामी विवेकानंद ने कहा था no work is secular, all work is devotion & worship, तुमको कोई कार्य को सांसारिक नहीं समझना है अपने प्रत्येक कार्य को भक्तिमय बना दो तो फिर प्रत्येक कार्य से भक्ति होगी  https://www.youtube.com/watch?v=H0NuPjWD_5c&t=70  2  तो यह विडंबना (irony) जो होती है लोगों के मन में स्वामी जी, वो भक्ति तो retire होकर करनी होती है, अभी थोड़ी कोई age है भक्ति करने की ? अच्छा, retire होकर तुम कर पाओगे, इसकी कोई गारंटी है ? जब शरीर में ही शक्ति नहीं रहेगी, तो भक्ति क्या करोगे ? “verse”  यह कहा गया है कि अगर घर में आग लग गई उस समय कुँआ खोदने का लाभ नहीं, पहले खोदना चाहिए था, ऐसे ही जब शरीर में बुढ़ापा रूपी आग लग गई, तो तब हम कल्याण के लिए try करें ? तुम ज्यादा late कर दिए, भक्ति पहले शुरू करना चाहिए था  https://www.youtube.com/watch?v=H0NuPjWD_5c&t=171  3  प्रहलाद महाराज ने कहा था “verse” ये भक्ति बाल काल में ही शुरू कर दो क्योंकि Hirankashypu ने प्रहलाद से प्रश्न किया था कि तुम पाँच साल के हो, यह कोई आयु है भक्ति करने की ? जब व्यक्ति बूढ़े हो जाते हैं, कुछ करने धरने को नहीं होता है, सब शरीर बेकार हो जाता है, उस समय भगवान का नाम लो, यह कोई time है क्या ?  तो प्रहलाद ने कहा, पिताजी, बुढ़ापे की परिभाषा क्या है ? किस को हम वृद्ध कहें ? जो मृत्यु के निकट है उसको वृद्ध कहा जाएगा, अब मेरी मृत्यु कब निर्धारित है यह तो ना आप जानते हैं ना मैं जानता हूं,  हो सकता है कि मैं कल ही मर जाऊं तो हो सकता है मैं भी मृत्यु के निकट हूं, उस दृष्टिकोण से मैं भी वृद्ध ही हूं, तो प्रहलाद ने कहा था कि बाल्यावस्था में ही भक्ति शुरू कर दो  https://www.youtube.com/watch?v=H0NuPjWD_5c&t=253  4  यह भक्ति बुढ़ापे के लिए postpone नहीं करनी है, बल्कि नींव तो बचपन में डलती है, उस समय अगर आप लापरवाह रहे, बाद में कहें, स्वामी जी, हमारे बच्चे को कुछ समझाइए, अरे आपका बच्चा है, आप समझाओ, कुछ नहीं समझता, यह कलयुग के बच्चे ऐसे ही हैं, अच्छा तो आपका बच्चा नहीं है, कलयुग का बच्चा है ?  अरे भाई, तुमको उसको समझाना चाहिए था, तुमने कितना समय निकाला उसको आध्यात्मिक ज्ञान देने के लिए, उस समय तो kitty party etc. में व्यस्त थे, और बाद में कहती हो हमारा बच्चा आवारा हो गया तो इसलिए हमें भक्ति अभी करनी है  https://www.youtube.com/watch?v=H0NuPjWD_5c&t=329  5  एक व्यक्ति अमावस में समुद्र स्नान के लिए गया, उसने सुना था कि अमावस के समय समुद्र स्नान करें विशेष लाभ मिलेगा, अब वह बैठ गया समुद्र के सामने तो बैठे बैठे चार घंटे हो गए, एक साधु ने कहा आप किस लिए बैठे हैं ? स्नान करने के लिए, तो फिर प्रवेश क्यों नहीं करते,  नहीं, मैं प्रतीक्षा कर रहा हूं कि समुद्र शांत हो जाए फिर मैं स्नान करूं, साधु ने कहा यह समुद्र कभी शांत नहीं होगा, इसी में डुबकी लगानी होगी,  “न कभी रुकेंगीं हवाएं, न कभी बुझेगें चिराग, चलते रहो, यह तमाशा तो रात भर का है”  https://www.youtube.com/watch?v=H0NuPjWD_5c&t=385  6  यह जीवन में ऐसा ही होता है, आप कहे कि अनुकूल परिस्थिति आए, तब भक्ति करें, अरे एक प्रतिकूलता से दूसरी से तीसरी से चौथी, यही जीवन है, हमको अभी वर्तमान में भक्ति करनी है और कैसे करनी है ? श्री कृष्ण बता रहे हैं कि प्रत्येक कर्म से भक्ति करो, प्रत्येक कर्म भगवान की खुशी के लिए करो, उनको समर्पित करो, यह विचार करने की बात है  https://www.youtube.com/watch?v=H0NuPjWD_5c&t=436  7  मैं भोगता हूं, अगर यह चेतना है, तो प्रत्येक कर्म स्वयं को समर्पित होगा मगर यदि मैं सेवक हूं, यह चेतना है, तो प्रत्येक कर्म भगवान की खुशी के लिए किया जाएगा  https://www.youtube.com/watch?v=H0NuPjWD_5c&t=472  8  जैसे छत्रपति शिवाजी का आख्यान (किस्सा) बताया जाता है कि उनके गुरु उनकी राजधानी से निकल रहे थे, “भिक्षाम देही, भिक्षाम देही”, छत्रपति शिवाजी ने अपने महल के verandah से गुरुजी को देखा, उन्होने कहा, यह शोभा नहीं देता, मैं राजा और मेरे गुरु इस प्रकार से भिखारी बनकर घूम रहे हैं, तो उनको एक विचार आया एक पर्ची लिख दी और नीचे उतर के गुरुजी सड़क पर जा रहे थे उनके कमंडल में पर्ची डाल दी,  गुरु जी ने पर्ची को खोला, उसमें लिखा हुआ था कि “मैं अपना संपूर्ण राज्य भिक्षा में आपको समर्पित करता हूं, आपका शिष्य शिवा” तो समर्थ रामदास पढ़ के मुस्कुराए, उन्होंने कहा, बेटा मैं तो सन्यासी हूं, यह राज्य से मैं क्या करूंगा, मैं इसलिए भिक्षा करता हूं कि गृहस्थियों से मिलने का अवसर मिल जाता है, इसी बहाने उनके कल्याण का समय मिलता है, इसीलिए मैं भिक्षा करने के लिए निकलता हूं,  अब तुमने अपना संपूर्ण राज्य मुझको सौंप दिया, तो ठीक है, अब यह मेरा हो गया लेकिन मैं इस पर शासन नहीं करूंगा, तुम ही शासन करना मगर इस भावना से कि यह राज्य मेरा नहीं है यह तो भगवान का और मेरे गुरु का है और मैं उनका दास बनके उनकी सेवा के रूप में ये राज कार्य संभाल रहा हूँ, यानी यद्यपि तुम राज सिंहासन पर तो बैठोगे, लेकिन भीतर की भावना सेवक की होगी  https://www.youtube.com/watch?v=H0NuPjWD_5c&t=486  9  यही वार्तालाप हुआ था चंद्रगुप्त और चाणक्य के बीच में, चंद्रगुप्त ने पूछा चाणक्य से कि वैदिक दृष्टिकोण से राजा की प्रजा के सामने क्या स्थिति है ? तो चाणक्य ने कहा, राजा प्रजा के सेवक के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है, यानी वह कोई भी हो उसका धर्म सेवा ही है  https://www.youtube.com/watch?v=H0NuPjWD_5c&t=610  10  आजकल जो लोग Management Theory जानते हों, आजकल यह servant leadership की theory विकसित हो रही है, कोई बड़ी कंपनी का CEO, President, Chairman जो भी हो, उसको यह नहीं सोचना है कि मैं इतने सारे लोगों का अध्यक्ष हूं, उसको सोचना है कि इस पदवी पर बैठ के मैं दूसरों की सेवा कर रहा हूं,  गुरु भी सेवा करते हैं, उनका यह लक्ष्य होता है कि कैसे हम अपने शिष्यों की सेवा करें, अब सेवा के लिए उनको ऊपर बैठना पड़ता है ताकि शिष्य लोग सम्मान करना सीखें, वह बात अलग है बाहर से कैसे भी हो, भीतर सेवा भाव ही रहता है, तो वह सेवा भाव भगवान के प्रति हो जाए फिर हम प्रत्येक कार्य उनकी खुशी के लिए करें  https://www.youtube.com/watch?v=H0NuPjWD_5c&t=645  Transcript 1:10 श्लोक नंबर 9.27  जब भक्ति की बात आती 1:32 है तो लोगों को लगता है कि भक्ति अलग है 1:37 और हमारा सांसारिक पारिवारिक जीवन कर्तव्य 1:43 यह अलग 1:45 है या तो भक्ति करो या कर्म करो इसलिए लोग 1:51 उसको अपने जीवन को partition कर 1:55 देते हैं आधा घंटा भक्ति करनी है ड्यूटी पूरी 2:00 हो गई उसके बाद कर्म करना हैं तो भक्ति मन लगा 2:04 के करो लेकिन उसके बाद चलासी चालाकी 420 2:07 मक्कारी दम लगा के 2:11 करो यह दोनों का कोई संबंध नहीं 2:15 है ऐसा नहीं है यह भक्ति का संबंध हमारे 2:21 जीवन के प्रत्येक कर्म से 2:25 है हमको कुछ partition करने की आवश्यकता नहीं 2:30 है स्वामी विवेकानंद ने कहा था no work is secular, all work is devotion & worship  तुमको 2:41 कोई कार्य को सांसारिक नहीं समझना है अपने 2:45 प्रत्येक कार्य को भक्तिमय बना दो तो फिर 2:51 प्रत्येक कार्य से भक्ति होगी तो यह 2:54 विडंबना जो होती है लोगों के मन में 2:58 स्वामी जी वो भक्ति तो retire होकर करनी 3:01 होती है अभी थोड़ी कोई age है 3:03 भक्ति करने 3:04 की अच्छा retire होकर तुम कर पाओगे इसकी 3:08 कोई गारंटी है 3:11 क्या जब शरीर में ही शक्ति नहीं 3:15 रहेगी तो भक्ति क्या 3:18 करोगे “verse”  3:50  यह कहा गया कि अगर घर में आग लग 3:56 गई उस समय कुँआ खोदने का लाभ नहीं पहले खोदना 4:03 चाहिए ऐसे जब शरीर में बुढ़ापा रूपी आग लग 4:07 गई अब हम कल्याण के लिए try करें तुम 4:12 ज्यादा late 4:13 कर दिए पहले शुरू करना चाहिए था ना प्रहलाद 4:17 महाराज ने कहा था “verse” 4:26 ये भक्ति बाल काल में ही शुरू कर दो क्योंकि Hirankashypu 4:31 ने प्रश्न किया था प्रहलाद से कि 4:35 तुम पाँच साल के हो यह कोई आयु है भक्ति 4:39 करने की जब व्यक्ति बूढ़े हो जाते हैं कुछ 4:43 करने धरने को नहीं होता है सब शरीर 4:47 बेकार हो जाता है उस समय भगवान का नाम लो 4:50 यह कोई टाइम है 4:52 क्या तो प्रहलाद ने कहा पिताजी बुढ़ापे की 4:57 परिभाषा क्या है किस को हम वृद्ध कहें जो 5:02 मृत्यु के निकट है उसको वृद्ध कहा 5:07 जाएगा अब मेरी मृत्यु कब निर्धारित है यह 5:11 तो ना आप जानते हैं ना मैं जानता 5:15 हूं हो सकता है मैं कल मर जाऊं तो हो सकता 5:20 है मैं भी मृत्यु के निकट हूं उस 5:23 दृष्टिकोण से मैं भी वृद्ध ही हूं तो वो 5:27 प्रहलाद ने कहा बाल्यावस्था 5:29 में भक्ति शुरू करो तो यह भक्ति जो है यह 5:33 बुढ़ापे के लिए postpone नहीं करनी 5:37 है बल्कि नींव तो बचपन में डलती है ना उस समय 5:43 अगर आप लापरवाह रहे बाद में कहें स्वामी जी 5:49 हमारे बच्चे को कुछ 5:52 समझाइए अरे आपका बच्चा है आप समझाओ कुछ 5:57 नहीं समझता यह कलयुग के बच्चे ऐसे ही हैं 6:01 अच्छा तो आपका बच्चा नहीं है कलयुग का 6:05 बच्चा है अरे भाई तुमको उसको समझाना चाहिए था 6:11 तुमने कितना समय निकाला उसको आध्यात्मिक 6:14 ज्ञान देने के लिए उस समय तो kitty party etc. 6:18 में व्यस्त थे और बाद में कहती हो 6:21 हमारा बच्चा आवारा हो गया तो हमें भक्ति 6:25 अभी करनी है, एक व्यक्ति अमावास में समुद्र 6:30 स्नान के लिए 6:32 गया उसने सुना था कि अमावास के समय 6:36 समुद्र स्नान करें विशेष लाभ मिलेगा अब वह 6:39 बैठ गया समुद्र के सामने तो बैठे बैठे चार 6:44 घंटे हो गए एक साधु ने कहा आप किस लिए 6:48 बैठे हैं स्नान करने के लिए तो फिर प्रवेश 6:52 क्यों नहीं करते नहीं मैं प्रतीक्षा कर 6:55 रहा हूं कि समुद्र शांत हो जाए फिर मैं 6:58 स्नान करूं साधु ने कहा यह समुद्र कभी शांत 7:02 नहीं होगा इसी में डुबकी लगानी होगी ना 7:06 कभी रुकेंगीं 7:08 हवाएं न कभी बुझेगें चिराग चलते रहो यह तमाशा 7:14 तो रात भर का 7:16 है” यह जीवन में ऐसा ही होता है आप कहे अनुकूल 7:20 परिस्थिति आए तब भक्ति करें अरे एक 7:23 प्रतिकूलता से दूसरी से तीसरी से चौथी यही 7:27 जीवन है हमको अभी वर्तमान में भक्ति करनी 7:32 और कैसे करनी है श्री कृष्ण बता रहे हैं 7:37 प्रत्येक कर्म से भक्ति 7:41 करो प्रत्येक कर्म भगवान की खुशी के लिए 7:46 करो उनको समर्पित करो यह सोचने की बात 7:52 है मैं भोगता हूं अगर यह चेतना है तो 7:57 प्रत्येक कर्म स्वयं को समर्पित होगा मैं 8:02 सेवक हूं यह चेतना है तो प्रत्येक कर्म 8:06 भगवान की खुशी के लिए किया जाएगा जैसे 8:10 छत्रपति शिवाजी का आख्यान बताया जाता है 8:13 कि उनके गुरु उनके राजधानी से निकल रहे थे 8:17 भिक्षाम देही भिक्षाम 8:21 देही छत्रपति शिवाजी ने अपने महल के verandah 8:25 से देखा गुरुजी को उन्होने कहा यह शोभा 8:28 नहीं देता 8:29 मैं राजा और मेरे गुरु इस प्रकार से 8:32 भिखारी बनकर घूम रहे 8:34 हैं तो उनको एक विचार आया एक पर्ची लिख दी 8:41 और नीचे उतर के गुरुजी सड़क पर जा रहे थे 8:45 उनके कमंडल में पर्ची डाल दी गुरु जी ने 8:48 पर्ची को 8:50 खोला उसमें लिखा हुआ 8:53 था मैं अपना संपूर्ण राज्य भिक्षा में 8:58 आपको समर्पित करता हूं आपका शिष्य 9:04 शिवा तो समर्थ रामदास पढ़ के मुस्कुराए 9:09 उन्होंने कहा बेटा मैं तो सन्यासी हूं यह राज्य 9:14 से मैं क्या 9:15 करूंगा मैं इसलिए भिक्षा करता हूं कि 9:18 गृहस्थियों से मिलने का अवसर मिल जाता है इसी 9:22 बहाने उनके कल्याण का समय मिलता है इसीलिए 9:26 मैं भिक्षा करने के लिए निकलता हूं 9:31 अब तुमने अपना संपूर्ण राज्य मुझको सौंप 9:35 दिया तो ठीक है अब यह मेरा हो गया लेकिन 9:41 मैं इस पर शासन नहीं करूंगा तुम ही शासन 9:45 करना इस भावना से कि यह राज्य मेरा नहीं 9:49 है यह तो भगवान का और मेरे गुरु का है और 9:53 मैं उनका दास बनके उनकी सेवा के रूप में ये  9:58 राज कार्य संभाल रहा हूँ तो यद्यपि तुम राज 10:03 सिंहासन पर तो बैठोगे लेकिन भीतर की भावना 10:08 सेवक की 10:10 होगी यही वार्तालाप हुआ था चंद्रगुप्त और 10:14 चाणक्य के बीच 10:16 में चंद्रगुप्त ने पूछा चाणक्य से कि 10:20 वैदिक दृष्टिकोण से राजा की प्रजा के 10:26 सामने क्या स्थिति है 10:30 तो चाणक्य ने कहा राजा प्रजा के सेवक के 10:35 अतिरिक्त और कुछ भी नहीं 10:38 है यानी वह कोई भी हो उसका धर्म सेवा ही 10:45 है आजकल जो लोग Management Theory जानते हों 10:50 तो आजकल यह  10:54 servant leadership की theory विकसित हो रही है कोई 10:59 बड़ी कंपनी का सीईओ प्रेसिडेंट चेयरमैन जो 11:03 भी हो उसको यह नहीं सोचना है कि मैं इतने 11:07 सारे लोगों का अध्यक्ष हूं उसको सोचना है 11:11 कि इस पदवी पर बैठ के मैं दूसरों की सेवा 11:15 कर रहा 11:17 हूं तो गुरु भी सेवा करते हैं उनका यह 11:22 लक्ष्य होता है कैसे हम अपने शिष्यों की 11:25 सेवा 11:26 करें अब वो सेवा के लिए उनको ऊपर बैठना 11:30 पड़ता है ताकि शिष्य लोग सम्मान करना सीखें 11:34 वह बात अलग है बाहर से कैसे भी हो भीतर 11:38 सेवा भाव ही 11:40 रहता है तो वह सेवा भाव भगवान के प्रति हो 11:45 जाए फिर हम प्रत्येक कार्य उनकी खुशी के 11:50 लिए करें


कौन सा अपराध है जो क्षमा योग्य नहीं होता? | by Shri Premanand ji

कौन सा अपराध है जो क्षमा योग्य नहीं होता? | by Shri Premanand ji

https://www.youtube.com/watch?v=iRXNwNkyLWY Full Text 1  श्री हरिवंश महाराज जी महाराज जी, मुझे हमेशा यह डर बना रहता है कि बड़ी मुश्किल से मनुष्य शरीर प्राप्त हुआ है, कोई गलती होगी तो फिर 84 लाख योनियों में घूमना पड़ेगा. महाराज जी किस प्रकार का अपराध क्षमा योग्य नहीं होता ?  https://www.youtube.com/watch?v=iRXNwNkyLWY&t=0  2  भगवान से विमुख होना सबसे बड़ा अपराध है ! जितनी भी गलतियां हैं जितनी भी दुर्गतियां है, वो जीव को भगवान से विमुखता के कारण प्राप्त होती है, 

इसलिए हमें चाहिए कि भगवान की शरण में होकर शास्त्रों का स्वाध्याय करें, संतों का संग करें, खूब नाम जप करें और जीवन में एक एक मिनट सावधानी पूर्वक काटें,  https://www.youtube.com/watch?v=iRXNwNkyLWY&t=16  3  हमारी मन और इंद्रियों का प्रवाह भोगों की तरफ स्वतः है, जैसे पानी को कहीं छोड़ो वो जहां ढलान होगी वहीं जाएगा, नीचे,  ऐसे ही मन और इंद्रियां भोगों की तरफ हमारी जाती हैं, उनको परमात्मा की तरफ करना ही सन्मुख होना है, भगवान के सन्मुख हुआ जीव तो अनंत जन्मों की मलिनताओं का नाश करके भगवान उसको परम पद प्रदान करते हैं,  https://www.youtube.com/watch?v=iRXNwNkyLWY&t=40  4  एक मार्ग यह है और एक मार्ग है ब्रह्म ज्ञान, वह सबके बस की बात नहीं है, वह तो बहुत अच्छे कोई उच्च कोटि के मुमुक्ष (one who has strong curiosity to know God) साधक का मार्ग है तो इसलिए सहज सरल भक्ति का जो मार्ग है उसके द्वारा हम भगवान की प्राप्ति का उपाय करें,  https://www.youtube.com/watch?v=iRXNwNkyLWY&t=69  5  भगवान के सन्मुख होते ही ““सन्मुख होए जीव मोहे जबही, जन्म कोटि अघ नाशत तब ही”, तभी करोड़ों जन्मों के पाप भगवान नष्ट कर देते हैं, जब जीव भगवान की शरण में होता है,  इसलिए भगवान की शरण में हो जाओ और सत्संग सुनो, सत्संग से बुद्धि पवित्र होती है बुद्धि में विवेक जागृत होता है और विवेक के द्वारा ही हम भोगों के राग का नाश कर सकते हैं,  भोगों का राग यदि नष्ट नहीं हुआ तो सब पाखंड चलता रहता है, भोग भोग रहे हैं, और मनमानी आचरण हो रहे हैं, हम भगत भी कहलाते हैं, साधक भी कहलाते हैं, उपासक भी कहलाते हैं, वो सब नौटंकी हैं, उसमें कोई आध्यात्मिक उन्नति नहीं हो सकती, वो केवल मान्यता है कि हम साधक हैं, हम उपासक हैं,  https://www.youtube.com/watch?v=iRXNwNkyLWY&t=86  6  साधक वही है जो अपनी चित्तवृत्ति को एकमात्र परमात्मा में लगाने का प्रयत्न कर रहा है और जितने भोग हैं,  मृत्य लोक से लेकर ब्रह्मलोक तक, सब भोगों से उदासीनता हो, “ब्रह्मादिक के भोग सब विषम लागत ताहे, नारायण ब्रज चंद की लगन लगी है जाये”,  तभी जीव का कल्याण होता है, बहुत दुरंत (extremely difficult to cross over) माया है, “दैवी है सागुणमय मम माया दुरत्या” दुरतया जल्दी तरने में नहीं आती है, जीव को फंसा के गिरा लेती है,  https://www.youtube.com/watch?v=iRXNwNkyLWY&t=137  7  “मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते”  https://www.holy-bhagavad-gita.org/chapter/7/verse/14/hi  जो मेरी शरण में आ गया वो माया से तर गया, भगवान की शरण में हो जाओ, नाम जप करो सत्संग सुनो, पवित्र भोजन भगवान को अर्पित करके पाओ, गंदे आचरणों से बचो, तो यह जन्म सार्थक हो जाएगा,  https://www.youtube.com/watch?v=iRXNwNkyLWY&t=175  8  सबसे बड़ा अपराध है भगवत विमुखता “कह हनुमंत बिपति प्रभु सोई | जब तव सुमिरन भजन न होई” (see text 1 below), अगर सुमिरन भजन हो रहा है तो कोई भी अपराध बन गया हो, अब चिंता करने की जरूरत नहीं, सब पाप नष्ट हो जाएंगे, 

“सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।, अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः”,  https://www.holy-bhagavad-gita.org/chapter/18/verse/66/hi  मैं तुम्हें समस्त पापों से मुक्त कर दूंगा भगवान कह रहे हैं तुम भगवान की शरण में होकर नाम जप करो  https://www.youtube.com/watch?v=iRXNwNkyLWY&t=194  (see text 1 above)  “कह हनुमंत बिपति प्रभु सोई | जब तव सुमिरन भजन न होई”  हनुमान इस बात पर जोर देते हैं कि सच्ची विपत्ति भगवान की भक्ति और स्मरण का अभाव है। वह राक्षसों के खतरे को कम करके आंकते हैं, और कहते हैं कि उनकी हार और सीता का बचाव अपरिहार्य है। इससे पता चलता है कि सबसे बड़ी पीड़ा आध्यात्मिक संबंध की कमी से उत्पन्न होती है, जबकि भौतिक चुनौतियाँ गौण हैं। मुख्य संदेश दुख के खिलाफ एक ढाल के रूप में भक्ति का महत्व है।  Hanuman emphasizes that true adversity is the absence of devotion and remembrance of God. He downplays the threat of the demons, asserting that their defeat and the rescue of Sita are inevitable. This suggests that the greatest suffering stems from a lack of spiritual connection, while material challenges are secondary. The core message is the importance of devotion as a shield against suffering.  Transcript 0:00 श्री हरिवंश महाराज जी महाराज जी, मुझे 0:06 हमेशा यह डर बना रहता है कि बड़ी मुश्किल 0:08 से मनुष्य शरीर प्राप्त हुआ है, कोई गलती 0:09 होगी तो फिर 84 लाख योनियों में घूमना 0:11 पड़ेगा. महाराज जी किस प्रकार का अपराध 0:13 क्षमा योग्य नहीं होता ? 0:16 भगवान से विमुख होना सबसे बड़ा अपराध है ! 0:20 जितनी भी गलतियां हैं जितनी भी दुर्गतियां 0:23 है वो जीव को भगवान से विमुखता के कारण 0:27 प्राप्त होती है, इसलिए हमें चाहिए कि 0:29 भगवान की शरण में होकर शास्त्रों का 0:32 स्वाध्याय करें, संतों का संग करें, खूब नाम 0:36 जप करें और जीवन में एक एक मिनट सावधानी 0:40 पूर्वक काटें, हमारी मन और इंद्रियों का 0:44 प्रवाह भोगों की तरफ स्वतः है जैसे पानी 0:47 को कहीं छोड़ो वो जहां ढलान होगी वहीं 0:50 जाएगा, नीचे, ऐसे ही मन और इंद्रियां भोगों 0:56 की तरफ हमारी जाती हैं, उनको परमात्मा की 0:59 तरफ करना ही सन्मुख होना है, भगवान के सन्मुख 1:02 हुआ जीव तो अनंत जन्मों की मलिनताओं का 1:06 नाश करके भगवान उसको परम पद प्रदान करते 1:09 हैं, एक मार्ग यह है और एक मार्ग है ब्रह्म 1:13 ज्ञान, वह सबके बस की बात नहीं है, वह तो 1:16 बहुत अच्छे कोई उच्च कोटि के मुमुक्ष साधक 1:20 का मार्ग है तो इसलिए सहज सरल भक्ति का जो 1:23 मार्ग है उसके द्वारा हम भगवान की 1:26 प्राप्ति का उपाय करें, भगवान के सन्मुख होते 1:29 ““सन्मुख होए जीव मोहे जबही,  जन्म कोटि अघ नाशत तब ही”, 1:33 तभी करोड़ों जन्मों के पाप भगवान नष्ट 1:37 कर देते हैं, जब जीव भगवान की शरण में होता 1:40 है, इसलिए भगवान की शरण में हो जाओ और सत्संग 1:44 सुनो, सत्संग से बुद्धि पवित्र होती है 1:47 बुद्धि में विवेक जागृत होता है और विवेक 1:50 के द्वारा ही हम भोगों के राग का नाश कर 1:54 सकते हैं, भोगों का राग यदि नष्ट नहीं 1:57 हुआ तो सब पाखंड चलता रहता है, भोग भोग रहे 2:00 हैं, और मनमानी आचरण हो रहे हैं, हम भगत भी 2:04 कहलाते हैं, साधक भी कहलाते हैं, उपासक भी 2:07 कहलाते हैं, वो सब नौटंकी हैं, उसमें कोई 2:10 आध्यात्मिक उन्नति नहीं हो सकती, वो केवल 2:14 मान्यता है कि हम साधक हैं, हम उपासक हैं, 2:17 साधक वही है जो अपनी चित्तवृत्ति को 2:23 एकमात्र परमात्मा में लगाने का प्रयत्न कर 2:27 रहा है और जितने भोग हैं, मृत्य लोक से 2:30 लेकर ब्रह्मलोक तक, सब भोगों से 2:33 उदासीनता हो, “ब्रह्मादिक के भोग सब विषम 2:37 लागत ताहे, नारायण ब्रज चंद की लगन लगी है 2:41 जाये”, तभी जीव का कल्याण होता है, बहुत दुरंत 2:45 माया है, “दैवी है सागुणमय मम माया 2:49 दुरत्या” 2:51 दुरतया जल्दी तरने में नहीं आती है, जीव को 2:55 फंसा के गिरा लेती है, “मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते” https://www.holy-bhagavad-gita.org/chapter/7/verse/14/hi 2:59 जो मेरी शरण में आ गया वो माया 3:03 से तर गया, भगवान की शरण में हो जाओ, नाम जप करो 3:07 सत्संग सुनो, पवित्र भोजन भगवान को अर्पित 3:10 करके पाओ, गंदे आचरणों से बचो, तो यह जन्म 3:14 सार्थक हो जाएगा, सबसे बड़ा अपराध है भगवत 3:17 विमुखता “कह हनुमंत बिपति प्रभु सोई | जब तव सुमिरन भजन न होई” (see text 1 below), 3:21 अगर सुमिरन भजन हो रहा 3:25 है तो कोई भी अपराध बन गया हो, अब चिंता 3:27 करने की जरूरत नहीं, सब पाप नष्ट हो जाएंगे, 3:30 सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।, अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः,  https://www.holy-bhagavad-gita.org/chapter/18/verse/66/hi मैं 3:34 तुम्हें समस्त पापों से मुक्त कर दूंगा 3:37 भगवान कह रहे हैं तुम भगवान की शरण में 3:39 होकर नाम जप करो

Standby link (in case youtube link does not work) Premanand ji maharaj कौन सा अपराध है जो क्षमा योग्य नहीं होता.mp4