Thursday, March 23, 2023

कौन सा अपराध है जो क्षमा योग्य नहीं होता? | by Shri Premanand ji

कौन सा अपराध है जो क्षमा योग्य नहीं होता? | by Shri Premanand ji

https://www.youtube.com/watch?v=iRXNwNkyLWY Full Text 1  श्री हरिवंश महाराज जी महाराज जी, मुझे हमेशा यह डर बना रहता है कि बड़ी मुश्किल से मनुष्य शरीर प्राप्त हुआ है, कोई गलती होगी तो फिर 84 लाख योनियों में घूमना पड़ेगा. महाराज जी किस प्रकार का अपराध क्षमा योग्य नहीं होता ?  https://www.youtube.com/watch?v=iRXNwNkyLWY&t=0  2  भगवान से विमुख होना सबसे बड़ा अपराध है ! जितनी भी गलतियां हैं जितनी भी दुर्गतियां है, वो जीव को भगवान से विमुखता के कारण प्राप्त होती है, 

इसलिए हमें चाहिए कि भगवान की शरण में होकर शास्त्रों का स्वाध्याय करें, संतों का संग करें, खूब नाम जप करें और जीवन में एक एक मिनट सावधानी पूर्वक काटें,  https://www.youtube.com/watch?v=iRXNwNkyLWY&t=16  3  हमारी मन और इंद्रियों का प्रवाह भोगों की तरफ स्वतः है, जैसे पानी को कहीं छोड़ो वो जहां ढलान होगी वहीं जाएगा, नीचे,  ऐसे ही मन और इंद्रियां भोगों की तरफ हमारी जाती हैं, उनको परमात्मा की तरफ करना ही सन्मुख होना है, भगवान के सन्मुख हुआ जीव तो अनंत जन्मों की मलिनताओं का नाश करके भगवान उसको परम पद प्रदान करते हैं,  https://www.youtube.com/watch?v=iRXNwNkyLWY&t=40  4  एक मार्ग यह है और एक मार्ग है ब्रह्म ज्ञान, वह सबके बस की बात नहीं है, वह तो बहुत अच्छे कोई उच्च कोटि के मुमुक्ष (one who has strong curiosity to know God) साधक का मार्ग है तो इसलिए सहज सरल भक्ति का जो मार्ग है उसके द्वारा हम भगवान की प्राप्ति का उपाय करें,  https://www.youtube.com/watch?v=iRXNwNkyLWY&t=69  5  भगवान के सन्मुख होते ही ““सन्मुख होए जीव मोहे जबही, जन्म कोटि अघ नाशत तब ही”, तभी करोड़ों जन्मों के पाप भगवान नष्ट कर देते हैं, जब जीव भगवान की शरण में होता है,  इसलिए भगवान की शरण में हो जाओ और सत्संग सुनो, सत्संग से बुद्धि पवित्र होती है बुद्धि में विवेक जागृत होता है और विवेक के द्वारा ही हम भोगों के राग का नाश कर सकते हैं,  भोगों का राग यदि नष्ट नहीं हुआ तो सब पाखंड चलता रहता है, भोग भोग रहे हैं, और मनमानी आचरण हो रहे हैं, हम भगत भी कहलाते हैं, साधक भी कहलाते हैं, उपासक भी कहलाते हैं, वो सब नौटंकी हैं, उसमें कोई आध्यात्मिक उन्नति नहीं हो सकती, वो केवल मान्यता है कि हम साधक हैं, हम उपासक हैं,  https://www.youtube.com/watch?v=iRXNwNkyLWY&t=86  6  साधक वही है जो अपनी चित्तवृत्ति को एकमात्र परमात्मा में लगाने का प्रयत्न कर रहा है और जितने भोग हैं,  मृत्य लोक से लेकर ब्रह्मलोक तक, सब भोगों से उदासीनता हो, “ब्रह्मादिक के भोग सब विषम लागत ताहे, नारायण ब्रज चंद की लगन लगी है जाये”,  तभी जीव का कल्याण होता है, बहुत दुरंत (extremely difficult to cross over) माया है, “दैवी है सागुणमय मम माया दुरत्या” दुरतया जल्दी तरने में नहीं आती है, जीव को फंसा के गिरा लेती है,  https://www.youtube.com/watch?v=iRXNwNkyLWY&t=137  7  “मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते”  https://www.holy-bhagavad-gita.org/chapter/7/verse/14/hi  जो मेरी शरण में आ गया वो माया से तर गया, भगवान की शरण में हो जाओ, नाम जप करो सत्संग सुनो, पवित्र भोजन भगवान को अर्पित करके पाओ, गंदे आचरणों से बचो, तो यह जन्म सार्थक हो जाएगा,  https://www.youtube.com/watch?v=iRXNwNkyLWY&t=175  8  सबसे बड़ा अपराध है भगवत विमुखता “कह हनुमंत बिपति प्रभु सोई | जब तव सुमिरन भजन न होई” (see text 1 below), अगर सुमिरन भजन हो रहा है तो कोई भी अपराध बन गया हो, अब चिंता करने की जरूरत नहीं, सब पाप नष्ट हो जाएंगे, 

“सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।, अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः”,  https://www.holy-bhagavad-gita.org/chapter/18/verse/66/hi  मैं तुम्हें समस्त पापों से मुक्त कर दूंगा भगवान कह रहे हैं तुम भगवान की शरण में होकर नाम जप करो  https://www.youtube.com/watch?v=iRXNwNkyLWY&t=194  (see text 1 above)  “कह हनुमंत बिपति प्रभु सोई | जब तव सुमिरन भजन न होई”  हनुमान इस बात पर जोर देते हैं कि सच्ची विपत्ति भगवान की भक्ति और स्मरण का अभाव है। वह राक्षसों के खतरे को कम करके आंकते हैं, और कहते हैं कि उनकी हार और सीता का बचाव अपरिहार्य है। इससे पता चलता है कि सबसे बड़ी पीड़ा आध्यात्मिक संबंध की कमी से उत्पन्न होती है, जबकि भौतिक चुनौतियाँ गौण हैं। मुख्य संदेश दुख के खिलाफ एक ढाल के रूप में भक्ति का महत्व है।  Hanuman emphasizes that true adversity is the absence of devotion and remembrance of God. He downplays the threat of the demons, asserting that their defeat and the rescue of Sita are inevitable. This suggests that the greatest suffering stems from a lack of spiritual connection, while material challenges are secondary. The core message is the importance of devotion as a shield against suffering.  Transcript 0:00 श्री हरिवंश महाराज जी महाराज जी, मुझे 0:06 हमेशा यह डर बना रहता है कि बड़ी मुश्किल 0:08 से मनुष्य शरीर प्राप्त हुआ है, कोई गलती 0:09 होगी तो फिर 84 लाख योनियों में घूमना 0:11 पड़ेगा. महाराज जी किस प्रकार का अपराध 0:13 क्षमा योग्य नहीं होता ? 0:16 भगवान से विमुख होना सबसे बड़ा अपराध है ! 0:20 जितनी भी गलतियां हैं जितनी भी दुर्गतियां 0:23 है वो जीव को भगवान से विमुखता के कारण 0:27 प्राप्त होती है, इसलिए हमें चाहिए कि 0:29 भगवान की शरण में होकर शास्त्रों का 0:32 स्वाध्याय करें, संतों का संग करें, खूब नाम 0:36 जप करें और जीवन में एक एक मिनट सावधानी 0:40 पूर्वक काटें, हमारी मन और इंद्रियों का 0:44 प्रवाह भोगों की तरफ स्वतः है जैसे पानी 0:47 को कहीं छोड़ो वो जहां ढलान होगी वहीं 0:50 जाएगा, नीचे, ऐसे ही मन और इंद्रियां भोगों 0:56 की तरफ हमारी जाती हैं, उनको परमात्मा की 0:59 तरफ करना ही सन्मुख होना है, भगवान के सन्मुख 1:02 हुआ जीव तो अनंत जन्मों की मलिनताओं का 1:06 नाश करके भगवान उसको परम पद प्रदान करते 1:09 हैं, एक मार्ग यह है और एक मार्ग है ब्रह्म 1:13 ज्ञान, वह सबके बस की बात नहीं है, वह तो 1:16 बहुत अच्छे कोई उच्च कोटि के मुमुक्ष साधक 1:20 का मार्ग है तो इसलिए सहज सरल भक्ति का जो 1:23 मार्ग है उसके द्वारा हम भगवान की 1:26 प्राप्ति का उपाय करें, भगवान के सन्मुख होते 1:29 ““सन्मुख होए जीव मोहे जबही,  जन्म कोटि अघ नाशत तब ही”, 1:33 तभी करोड़ों जन्मों के पाप भगवान नष्ट 1:37 कर देते हैं, जब जीव भगवान की शरण में होता 1:40 है, इसलिए भगवान की शरण में हो जाओ और सत्संग 1:44 सुनो, सत्संग से बुद्धि पवित्र होती है 1:47 बुद्धि में विवेक जागृत होता है और विवेक 1:50 के द्वारा ही हम भोगों के राग का नाश कर 1:54 सकते हैं, भोगों का राग यदि नष्ट नहीं 1:57 हुआ तो सब पाखंड चलता रहता है, भोग भोग रहे 2:00 हैं, और मनमानी आचरण हो रहे हैं, हम भगत भी 2:04 कहलाते हैं, साधक भी कहलाते हैं, उपासक भी 2:07 कहलाते हैं, वो सब नौटंकी हैं, उसमें कोई 2:10 आध्यात्मिक उन्नति नहीं हो सकती, वो केवल 2:14 मान्यता है कि हम साधक हैं, हम उपासक हैं, 2:17 साधक वही है जो अपनी चित्तवृत्ति को 2:23 एकमात्र परमात्मा में लगाने का प्रयत्न कर 2:27 रहा है और जितने भोग हैं, मृत्य लोक से 2:30 लेकर ब्रह्मलोक तक, सब भोगों से 2:33 उदासीनता हो, “ब्रह्मादिक के भोग सब विषम 2:37 लागत ताहे, नारायण ब्रज चंद की लगन लगी है 2:41 जाये”, तभी जीव का कल्याण होता है, बहुत दुरंत 2:45 माया है, “दैवी है सागुणमय मम माया 2:49 दुरत्या” 2:51 दुरतया जल्दी तरने में नहीं आती है, जीव को 2:55 फंसा के गिरा लेती है, “मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते” https://www.holy-bhagavad-gita.org/chapter/7/verse/14/hi 2:59 जो मेरी शरण में आ गया वो माया 3:03 से तर गया, भगवान की शरण में हो जाओ, नाम जप करो 3:07 सत्संग सुनो, पवित्र भोजन भगवान को अर्पित 3:10 करके पाओ, गंदे आचरणों से बचो, तो यह जन्म 3:14 सार्थक हो जाएगा, सबसे बड़ा अपराध है भगवत 3:17 विमुखता “कह हनुमंत बिपति प्रभु सोई | जब तव सुमिरन भजन न होई” (see text 1 below), 3:21 अगर सुमिरन भजन हो रहा 3:25 है तो कोई भी अपराध बन गया हो, अब चिंता 3:27 करने की जरूरत नहीं, सब पाप नष्ट हो जाएंगे, 3:30 सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।, अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः,  https://www.holy-bhagavad-gita.org/chapter/18/verse/66/hi मैं 3:34 तुम्हें समस्त पापों से मुक्त कर दूंगा 3:37 भगवान कह रहे हैं तुम भगवान की शरण में 3:39 होकर नाम जप करो

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