10 लक्षण दिखने लगे तो भगवान पक्का मिल जाएँगे by Premanand ji
https://www.youtube.com/watch?v=Bn5WJmugFtw Full Text 1 यह 10 लक्षण भगवत प्राप्ति करने वाले उपासक के हृदय में जागृत हो जाते हैं बहुत ध्यान से सुनना, यह 10 लक्षण जब प्रकट होने लगे तो जान लेना कि अब हमारा परम सौभाग्य उदय होने जा रहा है, बस हम भगवत साक्षात्कार के नजदीक हैं, जब तक इन 10 लक्षणों में कमी दिखाई दे, तो संभालो इन 10 लक्षणों को अपने जीवन में इन 10 का पूर्ण होना मतलब भगवत साक्षात्कार होना “verse”(see text 1 below) https://www.youtube.com/watch?v=Bn5WJmugFtw&t=0 2 पहला है धृति (धैर्य) माने किसी भी प्रकार का कोई भी अपमान, तिरस्कार, निंदा परिस्थिति विपरीतता आपके मार्ग में आवे पर आपकी स्वीकृति पर अंतर नहीं होना चाहिए, इसे धृति कहते हैं धृति बहुत आवश्यक है भगवत मार्ग के पथिक को जो स्वीकृति की हुई है, उस पर कोई विक्षेप (hurdle) नहीं पड़ना चाहिए, जो होना सो हो जाए, स्वीकृति नहीं बदलनी चाहिए, बस तुम्हारा था, (तुम्हारा रहूँगा) https://www.youtube.com/watch?v=Bn5WJmugFtw&t=62 3 ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् https://vedabase.io/en/library/bg/4/11/ As all surrender unto Me, I reward them accordingly. Everyone follows My path in all respects, O son of Pṛthā. कोई भी परिस्थिति, कोई भी विपरीतता, कोई भी अपमान हमारी स्वीकृति में अंतर नहीं डाल सकता, मृत्यु स्वीकार करना अच्छा है पर स्वीकृति पर अंतर नहीं आना चाहिए, वही स्वीकृति भगवत प्राप्ति करा देगी, https://www.youtube.com/watch?v=Bn5WJmugFtw&t=99 4 गोस्वामी जी बाद में सब बातें कह रहे हैं, पहले कह रहे हैं "बिगड़ी जनम अनेक की अबही सुधरे आज" ("The sins of many births have to be rectified today – simply by surrender to God.") हमारी धृति इतनी कमजोर है कि प्रतिकूलता के आभास मात्र में हम छोड़ देते हैं (यानी हार मान लेते हैं) प्रतिकूलता तो है ही नहीं, प्रतिकूलता के आभास, शायद प्रतिकूलता आ जाए, इससे हम भाग पड़ते हैं, ये कायरों का मार्ग नहीं है, भगवत प्राप्ति, अज्ञान को छोड़िए, https://www.youtube.com/watch?v=Bn5WJmugFtw&t=116 5 क्या तुम प्रभु को छोड़ दोगे तो दुखों से बच जाओगे क्या ? “जो कुछ लिखा लिलाट दुख सुख (see text 2 below) देह संग भुगतेगो, जहां जाएगो, या सिद्धांत अभंग, तजत क्यों धीरज प्राणी, वृंदावन परिहरे प्रिया प्रीतम रजधानी”, स्वामिनी जी के महल को, स्वामिनी जी के चरण आश्रय को छोड़कर, तुच्छ कुछ विषयों की तरफ कदम बढ़ा देना, यानी स्वीकृति आपकी बहुत कमजोर है, बिगड़ जाएगा यह जन्म बिगड़ जाएगा, पता नहीं किस युग में स्वीकृति का अवसर मिलेगा कि नहीं मिलेगा, कितना भी संकट आवे धैर्य नहीं छोड़ना, सब कुछ सहना है, राधा राधा कहना है https://www.youtube.com/watch?v=Bn5WJmugFtw&t=145 6 नियम बना लो, जीत जाओगे, काल पर भी विजय प्राप्त कर लोगे, विश्वास करो, यह मंत्र मान लो, सब कुछ सहना है राधा राधा कहना है राधा राधा आपको सराहेंगे, आपको चाहेंगे, आप जो मर्जी आवे सो करो, सराहेंगे आपको, कोसेंगे नहीं, आपको सराहेंगे और आपको ही चाहेंगे, हम आपसे तन मन प्राण सर्वस्व समर्पित करके प्रेम करते हैं, ये प्रेम मार्ग की बात, भगवत प्राप्ति करना है, तो पहली बात है ये धृति, धैर्य रखो, https://www.youtube.com/watch?v=Bn5WJmugFtw&t=199 7 धैर्य नहीं दिखाई देता, धैर्य नहीं, जरा सी विचिलता (distraction)हुई, भाग पड़े, कहां भागोगे, जिधर भाग के जा रहे हो उधर तो विचिलता का समुद्र है यहां तो विचिलता तुम्हें अविचल (to make you stable, focussed) स्थिति प्रदान करने के लिए है, यहां का भय तुम्हें निर्भय पद प्रदान करने के लिए है और इस भय को स्वीकार करके भाग रहे हो तो महा भयावह प्रवाह है संसार का, बहते चले जाओगे, "अभय होइ जो तुम्हहि डेराई" ("becomes fearless who is afraid of You (God)" or "one who fears You (God) becomes fearless) https://www.youtube.com/watch?v=Bn5WJmugFtw&t=239 8 धृति, जो धृतिवान है, लौकिक पारलौकिक सारी संपत्तियां उसके चरणों में झुकने लगती है, देख लो शब्द पर ध्यान दो, जो धृतिवान है, धैर्यवान है, हर कष्ट सहता है, तो आगे जो मार्ग है, लौकिक और पारलौकिक, सारी संपत्तियां उसके चरण चूमती हैं क्योंकि वो धैर्यवान है, अगर धृति नहीं है तो परमार्थ का भेष भले हो, परमार्थ की स्थिति नहीं होगी, https://www.youtube.com/watch?v=Bn5WJmugFtw&t=277 9 दूसरा लक्षण है क्षमा अपने साथ बुराई करने वाले को दंड देने या दिलाने की पूरी शक्ति होने पर भी, दंड देने या दिलाने की आज्ञा करते ही विध्वंस मच जाएगा, ऐसा होने पर भी ना तो शरीर से दंड दें, ना वचन से दंड दें, ना किसी को प्रेरित करके दंड दें, हम तो नहीं करेंगे पर तुम देखो, तुम हमारे शिष्य हो हम तो सह गए मगर तुम्हें नहीं सहना चाहिए, जाओ, बात तो एक ही हो गई, आप उसको दंड देना चाहते, तो आपके अंदर क्षमा बल नहीं है, “करत जे अनसहन निंदक, तनहु पे अनुग्रह”, (see text 3 below) ना इस लोक में तुम्हें दंड मिलेगा और ना परलोक में दंड मिलेगा, मेरे अपमान, मेरे निरादर, मेरी निंदा, मेरे तिरस्कार का, तुम्हें कहीं दंड ना मिले तुम्हारी बुद्धि शुद्ध हो, स्वस्थ रहो और भगवान प्रसन्न हों, यह है परमार्थ के पथिक का हृदय, https://www.youtube.com/watch?v=Bn5WJmugFtw&t=314 10 विचार करो जो अनसहन निंदा कर रहा है, अपमान कर रहा है, तिरस्कार कर रहा है, उसके लिए ठाकुर हरिदास जी के कोड़े पे कोड़े वो बरसा रहे हैं, निर्दयी, और ठाकुर हरिदास कह रहे हैं कि हरि बोल, हरि बोल कहता है ? तब ऐसी पीड़ा में भी मुस्कुरा के कहते हैं भगवान बड़े कृपालु हैं, तुम्हारा मंगल करेंगे, क्योंकि तुमने भी कहा हरि बोल, हरि बोल, तो ये दो अक्षर हरि नाम तुम्हारी जिवहा (tongue) पे आया, अब मुझे विश्वास हो गया कि भगवान तुम्हारा मंगल कर देंगें, यह है महा भागवत की स्थिति, कितना भी अपमान, कितना भी क्लेश या निंदा करे, उसके लिए ना मन से अमंगल भाव हो, ना वचन से हो, https://www.youtube.com/watch?v=Bn5WJmugFtw&t=377 11 देखो पूरी शक्ति है पर ऐसे ऐसे महापुरुष हैं, अगर वो संकल्प कर लें, तो क्या ना हो जाए, इतना उनके पास भजन बल है, तप बल है, साधारण आदमी उनका अपमान करके पीट के चला जाता है, वो बताते भी नहीं कि किसने पीटा है, कभी नहीं, वो कभी लौट कर भी नहीं देखते कि इसने ऐसा क्यों किया है, क्यों, क्योंकि अगाध बोध संपन्न महात्मा जैसे अपने दांत से अपनी जिवहा, अपने द्वारा कोई चेष्टा जो अपने को पीड़ा पहुंचा दे, किसको दंड देंगे ? ऐसे आत्म स्वरूप सर्वत्र अनुभव करते हैं, इसलिए राग द्वेष रहित महात्मा के हृदय में यह आता ही नहीं है कि इसको दंड दिया जाए https://www.youtube.com/watch?v=Bn5WJmugFtw&t=424
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1# 0:00 यह 10 लक्षण भगवत प्राप्ति करने वाले 0:04 उपासक के हृदय में जागृत हो जाते हैं बहुत 0:08 ध्यान से सुनना, 0:12 यह 10 लक्षण जब प्रकट होने लगे तो जान 0:18 लेना कि अब हमारा परम सौभाग्य उदय होने जा 0:22 रहा है, बस हम भगवत साक्षात्कार के नजदीक 0:26 हैं, जब तक इन 10 लक्षणों में कमी दिखाई दे, 0:31 तो संभालो इन 10 लक्षणों को अपने जीवन में 0:35 0:37 इन 10 का पूर्ण होना मतलब भगवत 0:40 साक्षात्कार होना “verse”(see text 1 below) https://www.youtube.com/watch?v=Bn5WJmugFtw&t=0 2# 1:02 पहला है धृति (धैर्य) माने किसी भी 1:07 प्रकार का कोई भी अपमान, तिरस्कार, निंदा 1:11 परिस्थिति 1:13 विपरीतता आपके मार्ग में आवे पर आपकी 1:16 स्वीकृति पर अंतर नहीं होना चाहिए, इसे धृति 1:20 कहते हैं 1:21 धृति बहुत आवश्यक है भगवत मार्ग के पथिक 1:27 को जो स्वीकृति की हुई है, उस पर कोई 1:31 विक्षेप (hurdle) नहीं पड़ना चाहिए, जो होना सो हो 1:34 जाए, 1:35 स्वीकृति नहीं बदलनी चाहिए, बस तुम्हारा था, (तुम्हारा रहूँगा) https://www.youtube.com/watch?v=Bn5WJmugFtw&t=62 3# 1:39 ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् https://vedabase.io/en/library/bg/4/11/ As all surrender unto Me, I reward them accordingly. Everyone follows My path in all respects, O son of Pṛthā. 1:41 कोई भी परिस्थिति, कोई भी विपरीतता, 1:46 कोई भी अपमान हमारी स्वीकृति में अंतर 1:48 नहीं डाल सकता, मृत्यु स्वीकार करना अच्छा 1:51 है पर स्वीकृति पर अंतर नहीं आना चाहिए, 1:54 वही स्वीकृति भगवत प्राप्ति करा देगी, https://www.youtube.com/watch?v=Bn5WJmugFtw&t=99 4# 1:56 गोस्वामी जी बाद में सब बातें कह रहे हैं, पहले 1:59 कह रहे हैं "बिगड़ी जनम अनेक की अबही सुधरे आज" ("The sins of many births have to be rectified today – simply by surrender to God.") 2:04 हमारी धृति इतनी कमजोर है कि प्रतिकूलता के 2:08 आभास मात्र में हम छोड़ देते हैं (यानी हार मान लेते हैं) 2:10 प्रतिकूलता तो है ही नहीं, प्रतिकूलता के 2:13 आभास, शायद प्रतिकूलता आ जाए, इससे हम भाग 2:17 पड़ते हैं, ये कायरों का मार्ग नहीं है, 2:19 भगवत 2:21 प्राप्ति, अज्ञान को छोड़िए, https://www.youtube.com/watch?v=Bn5WJmugFtw&t=116 5# 2:25 क्या तुम प्रभु को छोड़ दोगे तो दुखों से 2:28 बच जाओगे क्या ? “जो कुछ लिखा लिलाट दुख सुख (see text 2 below) 2:33 देह संग भुगतेगो, जहां जाएगो, या सिद्धांत 2:37 अभंग, तजत क्यों धीरज 2:41 प्राणी, 2:45 वृंदावन परिहरे प्रिया प्रीतम 2:48 रजधानी”, स्वामिनी जी के महल को, स्वामिनी जी 2:51 के चरण आश्रय को छोड़कर, तुच्छ कुछ विषयों 2:55 की तरफ कदम बढ़ा देना, यानी स्वीकृति आपकी बहुत 2:58 कमजोर है, बिगड़ जाएगा यह जन्म बिगड़ 3:03 जाएगा, पता नहीं किस युग में स्वीकृति का 3:06 अवसर मिलेगा कि नहीं 3:08 मिलेगा, कितना भी संकट आवे धैर्य नहीं 3:14 छोड़ना, सब कुछ सहना है, राधा राधा कहना है https://www.youtube.com/watch?v=Bn5WJmugFtw&t=145 6# 3:19 नियम बना लो, जीत जाओगे, काल पर भी विजय 3:22 प्राप्त कर लोगे, विश्वास करो, यह मंत्र मान 3:26 लो, सब कुछ सहना है राधा राधा कहना है राधा 3:31 राधा आपको सराहेंगे, आपको चाहेंगे, आप जो 3:36 मर्जी आवे सो करो, सराहेंगे आपको, कोसेंगे 3:40 नहीं, आपको सराहेंगे और आपको ही चाहेंगे, हम 3:47 आपसे तन मन प्राण सर्वस्व समर्पित करके 3:51 प्रेम करते हैं, ये प्रेम मार्ग की बात, 3:55 भगवत प्राप्ति करना है, तो पहली बात है ये 3:59 धृति, धैर्य रखो, https://www.youtube.com/watch?v=Bn5WJmugFtw&t=199 7# 3:59 धैर्य 4:03 नहीं दिखाई देता, धैर्य नहीं, जरा सी 4:06 विचिलता (distraction)हुई, 4:09 भाग पड़े, कहां भागोगे, जिधर भाग के जा रहे 4:12 हो उधर तो विचिलता का समुद्र है यहां तो 4:16 विचिलता तुम्हें अविचल (to make you stable, focussed) स्थिति प्रदान करने 4:19 के लिए है, यहां का भय तुम्हें निर्भय पद 4:22 प्रदान करने के लिए है और इस भय को 4:25 स्वीकार करके भाग रहे हो तो महा भयावह 4:28 प्रवाह है संसार का, बहते चले जाओगे, "अभय होइ जो तुम्हहि डेराई" ("becomes fearless who is afraid of You (God)" or "one who fears You (God) becomes fearless) https://www.youtube.com/watch?v=Bn5WJmugFtw&t=239 8# 4:37 धृति, 4:38 जो धृतिवान 4:41 है, लौकिक पारलौकिक सारी संपत्तियां उसके 4:46 चरणों में झुकने लगती 4:48 है, देख लो शब्द पर ध्यान दो, जो धृतिवान है, 4:52 धैर्यवान है, हर कष्ट सहता है, तो आगे जो 4:57 मार्ग है, लौकिक और पारलौकिक, सारी 5:00 संपत्तियां उसके चरण चूमती हैं क्योंकि 5:04 वो धैर्यवान है, अगर धृति नहीं है तो 5:09 परमार्थ का भेष भले हो, परमार्थ की स्थिति 5:14 नहीं होगी, https://www.youtube.com/watch?v=Bn5WJmugFtw&t=277 9# 5:14 दूसरा लक्षण है क्षमा 5:20 अपने साथ बुराई करने वाले को दंड देने या 5:25 दिलाने की पूरी शक्ति होने पर भी, दंड देने 5:30 या दिलाने की आज्ञा करते ही विध्वंस मच 5:33 जाएगा, ऐसा होने पर भी ना तो शरीर से दंड 5:38 दें, ना वचन से दंड दें, ना किसी को प्रेरित 5:41 करके दंड दें, हम तो नहीं करेंगे पर तुम देखो, 5:44 तुम हमारे शिष्य 5:46 हो हम तो सह गए मगर तुम्हें नहीं सहना चाहिए, 5:49 जाओ, बात तो एक ही हो गई, 5:52 आप उसको दंड देना चाहते, तो आपके अंदर 5:55 क्षमा बल नहीं है, “करत जे अनसहन निंदक, तनहु 5:59 पे अनुग्रह”, (see text 3 below) ना इस लोक में तुम्हें दंड 6:02 मिलेगा और ना परलोक में दंड मिलेगा, मेरे 6:05 अपमान, मेरे निरादर, मेरी निंदा, मेरे 6:08 तिरस्कार का, तुम्हें कहीं दंड ना मिले 6:11 तुम्हारी बुद्धि शुद्ध हो, स्वस्थ रहो और 6:14 भगवान प्रसन्न हों, यह है परमार्थ के पथिक 6:17 का हृदय, https://www.youtube.com/watch?v=Bn5WJmugFtw&t=314 10# 6:17 विचार करो जो अनसहन 6:22 निंदा कर रहा है, अपमान कर रहा है, 6:25 तिरस्कार कर रहा है, उसके लिए 6:29 ठाकुर हरिदास जी के कोड़े पे कोड़े वो बरसा 6:32 रहे हैं, 6:33 निर्दयी, और ठाकुर हरिदास कह रहे हैं कि हरि बोल, हरि बोल 6:36 कहता है ? तब ऐसी पीड़ा में भी मुस्कुरा के 6:40 कहते हैं भगवान बड़े कृपालु हैं, तुम्हारा मंगल 6:43 करेंगे, क्योंकि तुमने भी कहा हरि बोल, हरि 6:46 बोल, तो ये दो अक्षर हरि नाम तुम्हारी 6:48 जिवहा (tongue) पे आया, अब मुझे विश्वास हो गया कि 6:51 भगवान तुम्हारा मंगल कर देंगें, यह है महा 6:55 भागवत की 6:56 स्थिति, कितना भी अपमान, कितना भी क्लेश या 7:00 निंदा करे, उसके लिए ना मन से अमंगल भाव हो, 7:04 ना वचन से हो, https://www.youtube.com/watch?v=Bn5WJmugFtw&t=377 11# 7:04 देखो पूरी शक्ति है पर 7:11 ऐसे ऐसे महापुरुष हैं, अगर वो संकल्प कर लें, 7:16 तो क्या ना हो जाए, इतना उनके पास भजन बल 7:19 है, तप बल है, साधारण आदमी उनका अपमान 7:23 करके पीट के चला जाता है, वो बताते भी नहीं कि 7:27 किसने पीटा है, कभी नहीं, वो कभी लौट कर भी 7:30 नहीं देखते कि इसने ऐसा क्यों किया है, क्यों, 7:34 क्योंकि अगाध बोध संपन्न महात्मा जैसे 7:37 अपने दांत से अपनी 7:40 जिवहा काटेंगे? , अपने द्वारा कोई चेष्टा जो अपने को 7:42 पीड़ा पहुंचा दे, किसको दंड देंगे ? ऐसे आत्म 7:46 स्वरूप सर्वत्र अनुभव करते हैं, इसलिए राग 7:49 द्वेष रहित महात्मा के हृदय में यह आता ही 7:52 नहीं है कि इसको दंड दिया जाए https://www.youtube.com/watch?v=Bn5WJmugFtw&t=424 (see text 1 above) यह श्लोक धर्म के दस लक्षणों को बताता है। ये लक्षण हैं: धृति (धैर्य), क्षमा (क्षमा), दम (संयम), अस्तेय (चोरी न करना), शौच (पवित्रता), इन्द्रियनिग्रह (इन्द्रियों को वश में रखना), धी (बुद्धि), विद्या (ज्ञान), सत्य (सत्य) और अक्रोध (क्रोध न करना)। धृति (धैर्य): धर्म का पालन करने के लिए धैर्य बहुत ज़रूरी है। क्षमा (क्षमा): दूसरों की गलतियों को क्षमा करना और उनसे बदला न लेना। दम (संयम): इंद्रियों और मन को नियंत्रित करना। अस्तेय (चोरी न करना): किसी की संपत्ति या धन को चोरी न करना। शौच (पवित्रता): शारीरिक और मानसिक रूप से पवित्र रहना। इन्द्रियनिग्रह (इन्द्रियों को वश में रखना): इंद्रियों को गलत कार्यों से रोकना और उन्हें धर्म के रास्ते पर लगाना। धी (बुद्धि): ज्ञान और विवेक का उपयोग करना। विद्या (ज्ञान): ज्ञान प्राप्त करना और उसे दूसरों के साथ साझा करना। सत्य (सत्य): हमेशा सत्य का पालन करना। अक्रोध (क्रोध न करना): क्रोध पर नियंत्रण रखना और शांति बनाए रखना (see text 2 above) जो कछु लिख्यौ ललाट में, दुख सुख देही संग ।
भुगतैगौ जहँ जाइगौ, यह सिद्धांत अभंग ।। [1]
यह सिद्धांत अभंग, तजत क्यों धीरज प्रानी ।
वृन्दावन परिहरे, प्रिया प्रीतम रजधानी ।। [2]
भगवत नित्यबिहार, स्याम स्यामाँ को गैलछु ।
भूख प्यास सहि रहे, आनि बीते सिर जो कछु ।। [3]
- श्री भगवत रसिक, श्री भगवत रसिक की वाणी, निर्विरोध मनरंजन (18) भाग्य में जो कुछ दुःख सुख लिखा है वह इस शरीर के साथ जुड़ा है। तुम जहाँ कहीं भी जाओगे, वहीं वह भोगना पड़ेगा । यह सिद्धांत अटल है। [1] इसलिए हे प्राणी, तुम धीरज क्यों खो रहे हो और क्यों प्रिया प्रियतम की राजधानी इस वृन्दावन का परित्याग कर रहे हो ? [2] भगवत रसिक जी कहते हैं कि भूख प्यास या जो कुछ आपदा विपदा तुम्हारे ऊपर आ पडे, उस सबको सहकर तुम निरंतर यहीं रहो और प्रिया प्रियतम के नित्य बिहार को देखो और गाओ (see text 3 above) "करत जे अनसहन निंदक, तनहु पे अनुग्रह" का अर्थ है, "जो निंदक की निंदा को सहन करते हैं, उनके प्रति भगवान की कृपा होती है।" इसका शाब्दिक अर्थ निंदा को सहन करना है। निंदा करने वाले की निंदा सहन करने का अर्थ है, उस निंदा को स्वीकार करना और उस पर प्रतिक्रिया नहीं करना। निंदा को सहन करने वाला व्यक्ति अपने आप को ऊँचा करता है और भगवान की कृपा प्राप्त करता है। निंदा को सहन करने वाला व्यक्ति निंदक से भी ऊपर उठता है। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति आपकी निंदा करता है, तो आप उस निंदा को सहन कर सकते हैं। आप प्रतिक्रिया नहीं दे सकते, आप क्रोधित नहीं हो सकते, और आप उस व्यक्ति को निंदा करने से रोक नहीं सकते। इसके बजाय, आप निंदा को स्वीकार कर सकते हैं और अपनी आत्मा को शांत कर सकते हैं। निंदा को सहन करने से आप एक अच्छा उदाहरण स्थापित करते हैं। आप निंदक को एक सबक सिखाते हैं। आप अपनी आत्मा को मजबूत करते हैं। निंदा को सहन करने से भगवान की कृपा प्राप्त होती है।
इसलिए, जब भी कोई आपकी निंदा करे, तो निंदा को सहन करें। अपनी आत्मा को शांत करें। निंदा को स्वीकार करें और भगवान की कृपा प्राप्त करें।