Devotion can be only for GOD (Who is ONE) - भक्ति केवल भगवान की होती है
भक्ति केवल भगवान की होती है, और भगवान केवल एक ही हैं, भगवान कभी दो न थे, न हैं, न कभी हो सकते हैं, जिसने उसे जाना, सभी सयाने एक मत हैं (devotion can only be towards God & He is only ONE, can never be 2 Gods, as also declared by all great souls in unison)
नानक जी को जब निर्वान की प्राप्ति हुई,जब समाधी का अनुभव हुआ , तो पहला शब्द उनके मुख से निकलता है (when Nanak ji attained salvation, the first word that came out from his mouth was...)
"इक औंकार, सत्य नाम,करता पुरुख निर्भव, निर्बैर अकाल अमूर्त अजूनि साहिबम गुरु प्रसाद" (इक औंकार (one God), (सत्य नाम) the Truth , (करता) The actual Doer, (पुरुख) The Person (निर्भव)transcending above 3 gunas (Satguna (Good), Rajoguna (passion), Tamas (ignorance), (निर्बैर) having no enemy , अकाल -Timeless ,i.e., controller of Time, अमूर्त - Non-manifest, अजूनि -without birth, साहिबम-The Boss, गुरु प्रसाद -can be obtained only through grace of the guru
We are mere puppets (or servants) in His hands, constitutionally. The sooner we realise, the faster we get out of this worldly birth death cycle, old age & disease.
भगवान केवल एक ही हैं, दो जीवन में होते ही भय आता है, दो होते ही जीवन में कष्ट है, दो होते ही जीवन में पीड़ा है और एक होते ही विश्राम है
आप अपने जीवन में भी देखें, आप जब एक से दो होते हो, तो चिंता बढ़ती है, कार्य बढ़ता है ,बोझ बढ़ता है, सम्बन्ध बढ़ते हैं, बंधन बढ़ते हैं
संसार माने जो एक से अनेक करे, और भक्ति माने जो अनेक से एक करे
और भक्ति के अलावा किसी और में सामर्थ नहीं है जो विश्राम दे सके, और कृपा से प्राप्त है, अपने प्रयत्न से नहीं फ़िर प्रश्न ये उठ सकता है कि फ़िर तो कुछ करें ही नहीं, समझने का विषय है
जो कुछ करना है, जो भजन, जो साधन, जो सेवा, जो सुमिरन आप हम करते हैं ये वास्तव में भक्ति नहीं है, ये सब साधन ह्रदय की पात्रता तैयार करने के लिए हैं
भगवान और भक्त की कृपा तो सहज है, कब हो जाएगी, किस पर हो जाएगी, क्यूँ हो जाएगी, इसका कोई उत्तर किसी के पास नहीं है "न जाने कौन सी बात पे दयानिधि रीझ जाते हैं" लेकिन होता क्या है की जौहर (technical skill) न हो, तो रत्न मिलने पर भी उसको पहचाना नहीं जाता, हाथ से चला जाता है, खो जाता है
भक्ति केवल कहने को भक्ति है पर होने को भगवान है, "भक्ति भक्त, भगवंत, गुरु, चतुर नाम वपु एक", वास्तव में ये सब एक ही तत्व है, प्रेम का तत्त्व, जो इन चारों के रूप में कार्य करता है
संत, सद्गुरु भगवान की कृपा मूर्ती हैं, भक्ति वो मार्ग है जिसपर चलकर जीव भगवान तक पहुँचता है, भगवान परम विश्राम हैं