खुद भी सुनना और जो सुधरना चाहता हैं उसे भी भेजना और सुनाना by Hit Ambrish ji
यह वीडियो एक नवयुवक के जीवन-परिवर्तन की कहानी के माध्यम से सत्संग (धार्मिक संगति), भगवन्नाम और संत की महत्ता को दर्शाता है। वक्ता बताते हैं कि कैसे एक बुरी आदत में लिप्त व्यक्ति भी केवल सच्ची निष्ठा और गुरु के मार्गदर्शन से अपने जीवन को सुधार सकता है।
मुख्य प्रसंग: बुरी आदत से मुक्ति
1. परिचय और नवयुवक की इच्छा [00:00]: लगभग डेढ़-दो वर्ष पहले एक नव विवाहित युवक वक्ता के पास आया। युवक ने बताया कि वह सात-आठ महीने से वक्ता को सुन रहा है और उसके मन में भजन करने की तीव्र इच्छा जागृत हुई है।
https://youtu.be/8aRZ9bYf1EQ&t=0
2. बाधा का स्वीकार [00:37]: जब वक्ता ने पूछा कि भजन करने से कौन रोकता है, तो युवक ने कहा कि वक्ता के अनुसार मार्ग में सबसे बड़ी बाधा वह स्वयं ही है। आँसुओं के साथ उसने स्वीकार किया कि वह अपनी एक बुरी आदत (शराब पीना) से बहुत परेशान है, जो उसे सन्मार्ग पर चलने से रोकती है।
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3. सत्य कथन और प्रयास [01:04]: युवक ने बताया कि वह रोज़ मदिरा पीता है, और उसे छोड़ने के लिए बहुत प्रयास किए, पर हर बार असफल रहा। उसने पूरी ईमानदारी से स्वीकार किया कि वह वक्ता की कथा सुनते-सुनते भी पीता है।
https://youtu.be/8aRZ9bYf1EQ&t=64
4. समाधान: नाम जप [01:39]: वक्ता ने उससे पूछा कि क्या वह नाम जपेगा? युवक ने वचन दिया कि वह सब करेगा।
https://youtu.be/8aRZ9bYf1EQ&t=99
5. [02:00] वक्ता ने उसे विशिष्ट निर्देश दिया: "पीते-पीते ज़रूर जपना" युवक ने बताया कि उसे कोई माला छूने नहीं देता, जिस पर वक्ता ने उसे स्वयं माला प्रदान की
https://youtu.be/8aRZ9bYf1EQ&t=120
6. चमत्कारिक परिणाम [02:35]: नौ महीने बाद, उस युवक का भावपूर्ण संदेश आया कि अब उसका मन उस ओर (बुरी आदत की ओर) बिल्कुल नहीं जाता। प्रभु की कृपा से अब वह और उसकी पत्नी मिलकर ठाकुर जी की सेवा करते हैं और अपने जीवन में आनंदित हैं।
https://youtu.be/8aRZ9bYf1EQ&t=155
संत, नाम और जीवन-सुधार का सिद्धांत
7. हर पापी अधिकारी है [03:01]: वक्ता ज़ोर देते हैं कि पतित से पतित अवस्था में भी कोई भी व्यक्ति भजन का अधिकारी है। ठाकुर जी का द्वार सबके लिए खुला है।
https://youtu.be/8aRZ9bYf1EQ&t=181
8. ईमानदारी का महत्व [03:20]: वक्ता कहते हैं कि उन्हें "बेईमान देवता की बजाय ईमानदार राक्षस चलेगा," जिसका अर्थ है कि व्यक्ति जैसा है, वैसा अपनी बात सामने रख दे और ईमानदार रहे।
https://youtu.be/8aRZ9bYf1EQ&t=200
9. नाम की अतुलित सामर्थ्य [03:37]: नाम की शक्ति अतुलनीय, अपरिमित और अपार है। बिना भजन और सत्संग के बल के दुर्गुण (बुरी आदतें) छूट नहीं सकते।
https://youtu.be/8aRZ9bYf1EQ&t=217
10. [04:25] दुर्गुणों को वक्ता जन्म-जन्म के संस्कार बताते हैं, जो हमारे बल से कहीं अधिक शक्तिशाली हैं ।
https://youtu.be/8aRZ9bYf1EQ&t=265
11. गुरु-कृपा और प्रसंग [04:39]: कार्य केवल गुरु से हिल-मिलकर सिद्ध होगा।
https://youtu.be/8aRZ9bYf1EQ&t=279
12. [04:52] वक्ता कहते हैं कि संत का कार्य ही यही है, जैसे "नानक नाम जहाज है, चढ़े सो उतरे पार"
https://youtu.be/8aRZ9bYf1EQ&t=292
13. वाल्मीकि का उदाहरण [06:15]: वक्ता बताते हैं कि संतों को वाल्मीकि (जो पहले नरवाहन नाम का डाकू था) और अंगुलिमाल जैसे क्रूर हृदय वाले लोग भी मिले
https://youtu.be/8aRZ9bYf1EQ&t=375
14. [06:40] भक्तमाल में नरवाहन का प्रसंग है, जहाँ वह राम नाम भी नहीं बोल पाता था । संतों ने कहा कि अगर संत भी उसका उद्धार नहीं करेंगे, तो कौन करेगा?
https://youtu.be/8aRZ9bYf1EQ&t=400
15. "मरा" से "राम" का जप [07:52]: संतों ने नरवाहन से कहा कि राम नहीं कहता तो 'मरा' कह। इस प्रकार "उलटा जपत जगत सब जाना, बाल्मीकि भए ब्रह्म समाना" [08:07]—उल्टा नाम जपकर भी वह ब्रह्म के समान हो गए।
https://youtu.be/8aRZ9bYf1EQ&t=472
16. स्वयं को वचन दें [09:19]: वक्ता कहते हैं कि उन्हें किसी से कोई व्रत या वचन नहीं चाहिए। बस अपने आप को यह वचन दीजिए कि अब सन्मार्ग पर चलने का भरसक प्रयास करेंगे।
https://youtu.be/8aRZ9bYf1EQ&t=559
अंतिम निवेदन 17. स्वयं से छल न करें [10:12]: वक्ता का अंतिम और महत्वपूर्ण निवेदन है कि "अपने आप से छल कपट मत करिए"। https://youtu.be/8aRZ9bYf1EQ&t=612 18. रोग पहचानें [10:24]: जीवन बीत जाता है, पर अपना रोग (दोष) हाथ में नहीं आता। https://youtu.be/8aRZ9bYf1EQ&t=624 19. [10:34] व्यक्ति अक्सर वही करता है, जिससे उसका रोग बढ़ता है। संत ही अपने वचन और आभा मंडल के प्रकाश से सबका मार्जन कर देता है https://youtu.be/8aRZ9bYf1EQ&t=634