भक्ति से क्या क्या मिलेगा ?
भक्ति करने से भगवत कृपा और गुरु कृपा होती है जब अंतःकरण शुद्ध हो जाता है तो दिव्य भक्ति मिलती है फिर सदा को भक्ति ही रहती है यानी भक्ति से भक्ति मिलती है भगवान तो मिलते ही हैं, साथ में मिलती हैं मुक्ति, माया निवृत्ति, त्रिगुण निवृत्ति, त्रिकर्म निवृत्ति, त्रिताप निवृत्ति, पंचक्लेश निवृत्ति, पंचकोष निवृत्ति - यह सब अपने आप मिल जाती हैं, इनको मांगना नहीं पड़ता, इनके लिए कुछ करना भी नहीं पड़ेगा, इस एक भक्ति से ऐसी भक्ति महादेवी की जय https://www.youtube.com/shorts/kqMXr0bm8RQ 1 माया निवृत्ति : माया निवृत्ति का अर्थ है माया से मुक्त होना, या माया का अंत होना। हिंदी Wikipedia पर माया को अक्सर सांसारिक मोह या भ्रम के रूप में वर्णित किया जाता है जो हमें सत्य से दूर रखता है। माया निवृत्ति का अर्थ है इस भ्रम से मुक्ति पाना और सत्य को पहचानना। विवरण: माया: माया एक ऐसी शक्ति या ऊर्जा है जो हमें सांसारिक वस्तुओं और इच्छाओं से बांधती है। यह एक प्रकार का भ्रम है जो हमें यह सोचने में मदद करता है कि सांसारिक चीजें वास्तविक और स्थायी हैं, जबकि वे वास्तव में नहीं हैं। निवृत्ति: निवृत्ति का अर्थ है किसी चीज से मुक्त होना, या किसी चीज से अलग हो जाना। माया निवृत्ति: माया निवृत्ति का अर्थ है माया से मुक्त होना, या माया का अंत होना। यह सांसारिक मोह और भ्रम से मुक्ति पाने के बारे में है। 2 त्रिगुण निवृत्ति : त्रिगुण निवृत्ति का अर्थ है प्रकृति के तीन गुणों - सत्व, रज और तम से परे जाना, या उनसे मुक्त होना। त्रिगुण प्रकृति के तीन गुण हैं जो हर चीज में मौजूद होते हैं, और ये गुण मानव के मन और शरीर पर भी प्रभाव डालते हैं। विस्तार से: त्रिगुण: त्रिगुण भारतीय दर्शन में प्रकृति के तीन मूलभूत गुणों को कहते हैं, जो हैं: सत्व (Sattva): यह गुण शुद्धता, ज्ञान, प्रकाश, और संतुलन का प्रतीक है। रज (Rajas): यह गुण गति, क्रिया, जुनून, और उत्साह का प्रतीक है। तम (Tamas): यह गुण जड़ता, अज्ञान, अंधकार, और निष्क्रियता का प्रतीक है। त्रिगुण निवृत्ति: यह एक आध्यात्मिक लक्ष्य है जो प्रकृति के इन गुणों से परे जाने को दर्शाता है। यह व्यक्ति को इन गुणों के बंधन से मुक्त करके, शुद्ध और शांत अवस्था में ले जाने की बात करता है। 3 त्रिकर्म निवृत्ति: तीन प्रकार के कर्म : कर्म तीन प्रकार के होते हैं: संचित कर्म, प्रारब्ध कर्म और क्रियमाण कर्म। संचित कर्म: यह वह कर्म है जो जन्मों-जन्मों में संचित होता चला आ रहा है। Bhagavad Gita इसे "आगमी कर्म" भी कहा जाता है, प्रारब्ध कर्म: यह वह कर्म है जो इस जन्म में हमें भोगना पड़ता है। इसे भाग्य भी कहा जाता है। क्रियमाण कर्म: यह वह कर्म है जो हम वर्तमान में अपने विचारों और कार्यों के माध्यम से करते हैं। यह कर्म हमारे संचित कर्म में जुड़ता है या इस जन्म में प्रकट हो सकता है। संक्षेप में, संचित कर्म हमारे सभी पिछले कर्मों का योग है, प्रारब्ध कर्म इस जन्म में निर्धारित कर्म है, और क्रियमाण कर्म इस जन्म में हमारे द्वारा किए गए नए कर्म हैं। 4 त्रिताप निवृत्ति: त्रिताप निवृत्ति का अर्थ है, तीन प्रकार के कष्टों से मुक्ति, जो जीवन में आते हैं। यह एक आध्यात्मिक शब्द है जो हिंदू धर्म और योग में उपयोग किया जाता है। Quora पर "त्रिविध ताप" के अनुसार, तीन प्रकार के कष्ठ हैं - आध्यात्मिक (आधिभौतिक), भौतिक (आधिभौतिक) और दिव्य (आधिदैविक)। विस्तार से: आध्यात्मिक (आधिभौतिक) ताप: यह हमारे मन, बुद्धि और आत्मा से जुड़े कष्ट हैं, जैसे कि दुख, चिंता, भय, और लालसा। भौतिक (आधिभौतिक) ताप: यह हमारे शरीर और बाहरी दुनिया से जुड़े कष्ट हैं, जैसे कि बीमारी, चोट, और प्राकृतिक आपदाएं। दिव्य (आधिदैविक) ताप: यह हमारे कर्मों और भाग्य से जुड़े कष्ट हैं, जैसे कि विभिन्न प्रकार की कठिनाइयां और संघर्ष। 5 पंचक्लेश निवृत्ति: पंचक्लेश निवृत्ति का अर्थ है, पाँच क्लेशों (अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष, और अभिनिवेश) से मुक्ति पाना। ये क्लेश योग दर्शन के अनुसार, हमारे जीवन में दुख और असंतोष के मूल कारण हैं. पंचक्लेश निवृत्ति के बारे में विस्तृत जानकारी: अविद्या (अज्ञान): सुख को दुख और दुख को सुख समझना, अपने वास्तविक स्वरूप को न जानना. अस्मिता (अहंकार): कर्ता और कर्म को एक ही मानना, अपने आप को अधिक महत्व देना. राग (आसक्ति): किसी भी वस्तु या व्यक्ति से अत्यधिक प्रेम करना या आसक्त होना. द्वेष (घृणा): किसी भी वस्तु या व्यक्ति से अत्यधिक नफरत करना या घृणा करना. अभिनिवेश (मृत्यु का भय): मृत्यु के डर को न जानना या उससे डरना. ये पाँच क्लेश हमारे जीवन में दुख का कारण बनते हैं और आध्यात्मिक प्रगति में बाधा डालते हैं. पंचक्लेश निवृत्ति प्राप्त करके, हम इन बाधाओं से मुक्ति पा सकते हैं और आध्यात्मिक उन्नति कर सकते हैं. 6 पंचकोष निवृत्ति का अर्थ है पाँच कोशों से मुक्त होना। योग और ध्यान की साधना के माध्यम से, व्यक्ति इन कोशों से परे जा सकता है और अपने वास्तविक स्वरूप को प्राप्त कर सकता है। पंचकोष: पंचकोष योग दर्शन के अनुसार, मानव अस्तित्व के पांच स्तर या आवरण हैं। ये हैं: 1. अन्नमय कोश: यह भौतिक शरीर है जो भोजन से बना है। 2. प्राणमय कोश: यह जीवन शक्ति या प्राण ऊर्जा का कोश है। 3. मनोमय कोश: यह मन और भावनाओं का कोश है। 4. विज्ञानमय कोश: यह बुद्धि और ज्ञान का कोश है। 5. आनंदमय कोश: यह आनंद और आत्म-ज्ञान का कोश है। निवृत्ति: निवृत्ति का अर्थ है इन कोशों से परे जाना और अपने वास्तविक स्वरूप, आत्मा को प्राप्त करना। यह आत्म-ज्ञान और आत्म-साक्षात्कार की अवस्था है