Friday, December 25, 2020

GOD's LOVE IS SO DEEP and VAST and EVER NEW THAT ONE CANNOT DESCRIBE IT, YET NONE CAN STAY WITHOUT TELLING ABOUT IT #Blog0059


GOD's LOVE IS SO DEEP & VAST & EVER NEW THAT ONE CANNOT DESCRIBE IT, YET NONE CAN STAY WITHOUT TELLING ABOUT IT


"प्रेम तो काचे पारे सोए है, खाए नहीं पची है" 

"Love is like raw mercury, one cannot digest it"  

यानी प्रेम पचता नहीं है 

प्रेम कैसा है कि कहा भी नहीं जाता, सहा भी नहीं जाता और कहे बिन रहा भी नहीं जाता 

हमारे महाप्रभु जी (Shri Hit Harivansh ji - avtar of Krishna's flute) प्रिया जी (Sri Radhe) के छवि का दर्शन करके कह रहे हैं 

"ब्रज नव तरुणी कदंब मुकुट मणि श्यामा आज बनी" 
ब्रज Vrindavan, नव = Fresh / New,  तरुणी = young lady, कदंब = famous tree under which Krishna & His friends used to play, मुकुट मणि = gem on the crown  

अब इस पंक्ति में डूब जाइए, इस एक पंक्ति में श्री किशोरी जी के रूप रस का समुद्र उच्छलित हो रहा है - this is indicative of pure love for Sri Radhe

गोपी कहती है, मत पूछ श्याम का दीदार किया है 
दूसरी सखी कहती है कि अगर पूछूं नहीं तो बताना क्यों चाहती है 
तो कहती है कि यही विवशता है कि कहा भी नहीं जाता और कहे बिन रहा भी नहीं जाता 

"यद्यपि सब जानत प्रभु प्रभुता तब सोई, तदपी कहे बिन रहा ना कोई" 

यद्यपि प्रभु श्री रामचन्द्रजी की प्रभुता को सब ऐसी (अकथनीय) ही जानते हैं, तथापि कहे बिना कोई नहीं रहा। इसमें वेद ने ऐसा कारण बताया है कि भजन का प्रभाव बहुत तरह से कहा गया है। (अर्थात भगवान की महिमा का पूरा वर्णन तो कोई कर नहीं सकता, परन्तु जिससे जितना बन पड़े उतना भगवान का गुणगान करना चाहिए, क्योंकि भगवान के गुणगान रूपी भजन का प्रभाव बहुत ही अनोखा है, उसका नाना प्रकार से शास्त्रों में वर्णन है। थोड़ा सा भी भगवान का भजन मनुष्य को सहज ही भवसागर से तार देता है)

Though all know the Lord's greatness as such, yet none has refrained from describing it. The Vedas have justified it thus; they have variously sung the glory of remembering the Lord

above from: bit.ly/3PLfDcY

जिस जिस ने अनुभव किया उसने गाया और यह कहते हुए गाया कि प्रेम  कहने योग्य नहीं है - Love cannot be described

“मूकास्वाद वत, गुण रहितम, कामना रहितम, सूक्ष्म तरम, अविछिन्नम, प्रतिक्षण वर्धमानम, अनुभव रूपम
दिने दिने, नवम नवम, नमामि नंद संभवम, प्रतिक्षण वर्धमान" 

Sutra 54 at 

मूकास्वाद वत (like taste done by a dumb, i.e., cannot be described), गुण रहितम (above the three modes of nature)
कामना रहितम (without selfish desire)
सूक्ष्म तरम (subtle-most) 
अविछिन्नम (uninterrupted) 
अनुभव रूपम (subject matter of only experience, not speaking)
दिने दिने, नवम नवम = Fresh & New every day
नमामि  = I bow to Lord (नंद)
संभवम = Who makes possible love - the way it is ! 
प्रतिक्षण वर्धमानम (increasing at every moment)

प्रेम का गुण धर्म है यह