Sunday, November 7, 2021

कृष्ण दास जी के मन में सुंदर वैश्या को देखकर by Indresh Ji

कृष्ण दास जी के मन में सुंदर वैश्या को देखकर कृष्ण दास जी के मन में सुंदर वैश्या को देखकर  https://youtu.be/KS5nc2kPiJo 1 श्री कृष्ण दास जी बाजार खरीदने कुछ सामग्री खरीदने गए https://youtu.be/KS5nc2kPiJo&t=10 2 श्रीनाथ जी की सेवा के लिए ठाकुर जी को सदैव वह वस्तु प्रस्तुत कर करनी चाहिए जो आपके नेत्रों को अति प्रिय लगे  https://youtu.be/KS5nc2kPiJo&t=21 3 आज क्या स्थिति है कि हमें कोई चीज अच्छी लगती है तो हम लोग सोचते हैं घर में कोने में उसको सजाएंगे, हमें और हमारे परिवार को अच्छी लगेगी घर में (यानी हम केवल अपनी प्रसन्नता का ख्याल रखते हैं)   https://youtu.be/KS5nc2kPiJo&t=45  4 कहने का अभिप्राय यह है कि आपके कानों को कोई स्वर अच्छा लगे, नेत्रों को कोई दर्शन अच्छा लगे, जीवहा को कोई रस अच्छा लग जाए, त्वचा को कोई स्पर्श अच्छा लग जाए - वह सब कुछ अपने घर के ठाकुर जी को अर्पित कीजिएगा, उसके बाद स्वयं सेवन कीजिएगा वो प्रसाद बन जाएगा https://youtu.be/KS5nc2kPiJo&t=68  5 श्री कृष्ण दास जी एक बार दिल्ली गए, तो दिल्ली में जलेबी बन रही थी जलेबी देख कर के कृष्णदास जी मन में सोचने लगे इसका भोग लगाना चाहिए ठाकुरजी को https://youtu.be/KS5nc2kPiJo&t=91  6 मंदिर के कपाट खुलते ही क्या देखते हैं श्रीनाथ जी की उठी हुई भुजा के ऊपर जलेबियां रखी हुई हैं, कृष्ण दास जी के नेत्र सजल हो गए (नहीं भगवान ने भक्त का भाव पहले से ही भांप लिया था) https://youtu.be/KS5nc2kPiJo&t=241  7 आरती के पश्चात ठाकुर जी को देख कर के रुदन (रोने) करने लगे, ठाकुर जी ने अपने हाथों से कृष्णदास के मुख में जलेबी पधरा दी https://youtu.be/KS5nc2kPiJo&t=254  8 इसको रस नहीं इसको रास कहते हैं, भगवान का अपने भक्त के साथ, हम ठाकुर जी की इच्छाएं पूरी करते रहें, करते रहें, हमारे हृदय की इच्छा हमारी ना रह जाए वह ठाकुर जी की ही इच्छा हो जाए, यह भक्ति की पराकाष्ठा (climax) है  https://youtu.be/KS5nc2kPiJo&t=270  9 श्री कृष्ण दास जी एक बार आगरा गए, तो आगरा में बाजारी कर रहे थे, तभी उनको सुंदर स्वर सुनाई देने लगा, और सुंदर स्वर को सुनकर के कृष्णदास जी का मन विचलित होने लगा बोले कौन गा रहा है https://youtu.be/KS5nc2kPiJo&t=289  10 घुंघरू अपने पैरों में बांध कर के एक वैश्या करके गा रही थी, उसके स्वर पर तो कृष्णदास जी एक बार को मोहित हो ही गए थे, लेकिन जब उसका स्वरूप देखा, कृष्ण दास जी के मन में भाव आया कि इतना सुंदर स्वरूप, इतना सुंदर कंठ, इतना सुंदर नृत्य, यह तो मेरे लाल जी को प्रस्तुत होनी चाहिए  https://youtu.be/KS5nc2kPiJo&t=323  11 कृष्ण दास जी उसके पास पहुंचे और जाकर के कहा देवी हमारे सेठ जी के सामने नृत्य करोगी  https://youtu.be/KS5nc2kPiJo&t=397  12 वैश्या ने कहा 50 रुपए लगेगा उस समय के बहुत होते थे, कृष्ण दस जी ने 100 रुपए तो तभी दे दिया, बोले तुम पहले रख लो और फिर जब हमारे सेठ जी के सामने नाच लोगी, वो प्रसन्न हो जाएंगे तो उसके बाद जो उनकी इच्छा होगी वो वो दे देंगे, यह तो केवल ऐसे ही एडवांस समझ लो https://youtu.be/KS5nc2kPiJo&t=426 13 वैश्या तो मोहित हो गई, सोचने लगी कि यहां तो मुझे लगता है इतना धन मिलेगा कि मुझे फिर किसी से मांगने की जरूरत नहीं, जब सेठ जी का सेवक इतना उदार है तो सेठ जी कितने उदार होंगे  https://youtu.be/KS5nc2kPiJo&t=454  14 शाम का समय पहुंचे वैश्या तैयार होकर के मंदिर में पहुंची, अभी तक भी उसको नहीं पता था मैं कोई मंदिर में हूं, कृष्णदास जी से बोला, कहां है आपके सेठ  https://youtu.be/KS5nc2kPiJo&t=504  15 बोले अभी भोजन कर रहे हैं, जैसे भोग पूरा हो जाएगा उसके बाद सेठ जी सामने सिंहासन पर बैठे हैं तुम नृत्य करना शुरू कर देना, अति सुंदर बन कर के आई है अपने रूप का अहंकार, अपने कंठ का अभिमान, अपने संपूर्ण अंग का अभिमान कर रही है, बोले ऐसा नृत्य करूंगी ऐसा गाऊंगीं कि सेठ मुझ पर फिदा हो जाएगा मुझ पर, लेकिन उसको क्या पता था कि फिदा कौन होने वाला है  https://youtu.be/KS5nc2kPiJo&t=518  16 जैसे ही गोसाई जी ने कपाट खोले, एक भुजा उर्द (ऊपर) बाहु, दूसरी भुजा कंठ पर अपने कटी भाग (कमर) पर और कमल नैन श्रीनाथ जी का जैसे ही उसने दर्शन किया, स्तब्ध हो गई, मुख मंडल को देख कर के, उसके संपूर्ण शरीर के रोए मानो नृत्य करने लगे https://youtu.be/KS5nc2kPiJo&t=566  17 जितने स्वर राग रागिनियो को जानती थी सब विस्मृत (forgot) हो गए, कृष्णदास जी कहने लगे नृत्य करो तो धरती कहीं है, पैर कहीं और जाता है, मन की दशा कछु और ही भई रे, तब अंत में वह समझ गई कि मैं कुछ नहीं कर पाऊंगीं, क्योंकि अपने पर अभिमान था ना कि मैं यह जानती हूं, वो जानती हूं, उनके लिए पूर्ण समर्पण नहीं था  https://youtu.be/KS5nc2kPiJo&t=597  18 तब वो कृष्णदास जी के सामने हाथ जोड़ती, बोली मेरे बस का नहीं है, अब कुछ गाना आप ही कुछ गा दीजिए, तो कृष्ण दास जी ने उस वैश्या के भाव को ही गाया “गिरधर छवी पे अटकयो मेरो मन”  https://youtu.be/KS5nc2kPiJo&t=624  19 कृष्णदास जी उस वैश्या का मुख पर पड़ रहे हैं, मानो वैश्या कहना चाह रही है, ये जो सामने तुम्हारे सेठ जी खड़े हैं ना इनकी, जो भगवान का ललित त्रिभंगी स्वरूप है यानी तीन जगह से टेढ़े, सिर भी टेढ़ा, कमर भी टेढ़ी, पाँव भी टेढ़े, इन पर मेरा चित्त ऐसे अटक गया है, जैसे चुंबक पर लोहा चिपक जाता है https://youtu.be/KS5nc2kPiJo&t=886  20 नाचते नाचते कृष्ण दास जी ने इशारा किया, बोले, बस हो गया चलो वापस तुमको आगरा छोड़ आए, जहां तुम नाचती थी https://youtu.be/KS5nc2kPiJo&t=951  21 वैश्या के नेत्र लाल पड़ जाते हैं, रोने लग जाती है, हाथ पांव कंपन करने लगते हैं, तब कृष्ण दास जी से मानो इशारे में कहती है कि मैं इस शरीर से इनकी (भगवान की) सेवा नहीं कर सकती, इस शरीर को ना जाने कितने लोगों ने उपभोग करके अब दूषित कर दिया है, जूठा कर दिया है, और जूठी वस्तु ठाकुर जी की सेवा में नहीं जा सकती, अब तो मेरा एक ही मन है, शरीर अपवित्र है लेकिन आत्मा परम शुद्ध होती है, अब प्रणा परायण करना चाहती हूँ   https://youtu.be/KS5nc2kPiJo&t=981  22 वैश्या नाचते नाचते, घूमते घूमते घूमते, श्री नाथ जी के आंगन में ही अपने प्राणों का परित्याग कर देती है और आत्म रूप धारण करके श्रीनाथ जी के शिव विग्रह में जाकर के विलीन हो जाती है  https://youtu.be/KS5nc2kPiJo&t=1043  23 सोचो अपने जिस रूप, जिस कंठ, जिस नृत्य की विद्या को आज तक संसार को देती रही, कभी संतुष्ट नहीं हुई, वह वैश्या केवल एक दिन एक उस विद्या का प्रस्तुतीकरण ठाकुर जी के सामने किया, और ठाकुर जी ने अंगीकार कर लिया, निज सेवा में बुला लिया https://youtu.be/KS5nc2kPiJo&t=1088 24 थोड़ी देर में श्रीमद वल्लभाचार्य जी आदि समस्त वैष्णव जनों को दर्शन हुआ कि ठाकुर जी की लीला में, जितने सखा सहचर थे, उन सहचरों में एक वैश्या भी खड़ी है ठाकुर जी उसको अपनी अंतःपुर की लीला में ले गए https://youtu.be/KS5nc2kPiJo&t=1110  25 कहने का अभिप्राय केवल इतना है जिस विद्या को ठाकुर जी ने कृपा करके आपको दिया है उस विद्या का प्रस्तुतीकरण उन्हीं के लिए कीजिए, संसार के लिए मत कीजिए  https://youtu.be/KS5nc2kPiJo&t=1132 26 बहुत बड़ी रहस्य की बात बता रहा हूं, यदि आप हाथ से भोजन बहुत अच्छा बनाते हैं, तो आपको नाम जप की जरूरत नहीं है, आपको तीर्थ यात्रा करने की जरूरत नहीं है, सत्संग की भी जरूरत नहीं है, बस भोजन इतना स्वादिष्ट बनाकर ठाकुर जी को पवाओ, ठाकुर जी उसी से रीझ (प्रसन्न) जाएंगे https://youtu.be/KS5nc2kPiJo&t=1148   Standby link (in case youtube link does not work) https://1drv.ms/v/s!AkyvEsDbWj1gndBaUiiPKQayJ-MdwQ?e=tWhku0