Saturday, October 30, 2021

आपके ‘अधूरे समर्पण की ठगाई’ में नहीं आने वाले “प्रभु”..! God cannot be deceived by your ‘incomplete surrender’ Shree Hita Ambrish Ji

आपके ‘अधूरे समर्पण की ठगाई’ में नहीं आने वाले “प्रभु”..!

God cannot be deceived by your ‘incomplete surrender’


https://www.youtube.com/watch?v=t_s8WLUtO0c 1  प्राणों का मूल प्राण है, आप आधा अधूरा जीवन भगवान को देने जाओ और आधा अधूरा संसार का व्यवहार निभाने में लगा दो, यह सौदा भगवान को स्वीकार नहीं है, वो कहेगें आप पूरा ही संसार में रहिए, जो शीश तली पर धर ना सके, वो प्रेम गली में आवे क्यों https://www.youtube.com/watch?v=t_s8WLUtO0c?t=0 2 एक सांसारिक व्यक्ति के लिए करने को बहुत कुछ है, पाठ है, पूजा है, ज्ञान है, ध्यान है, योग है, यज्ञ है, जप है, तप है, वो सब करिए करते जाइए और जीवन भर करिए व्यापार https://www.youtube.com/watch?v=t_s8WLUtO0c?t=20 3 किसी ने सिखा दिया बोले महादेव पर दूध चढ़ाओ ये मिलेगा, गन्ने का रस चढ़ाओ ये मिलेगा, मैं तो पढ़ के हैरान हो गया, बोले अनार का रस चढ़ाओ ये मिलेगा,  घी चढ़ाओ ये मिलेगा, शहद चढ़ाओ ये मिलेगा, महादेव करेंगे क्या उसका और आज जैसा दूध है महादेव को चढ़ाओ महादेव को allergy और हो जाए,  https://www.youtube.com/watch?v=t_s8WLUtO0c?t=31 4 भगवान का स्वरूप समझ में आए तो लगे वस्तु का वहां तक प्रवेश नहीं होता, अरे मन ही नहीं रहता भगवान के पास पहुंचने से पहले, मन ही समाप्त हो जाता है, मन ही घुलमिल जाता है कहीं, मन ही नहीं रहता, वस्तु तो जाएगी कहां, कैसे पहुंचेगी वहां और आप जीवन भर वस्तुओं का व्यापार मंदिर में करते हो, आप जीवन भर वस्तुओं के व्यापार से भगवान को पाने का, रिझाने का असफल प्रयास करते हो https://www.youtube.com/watch?v=t_s8WLUtO0c?t=50 5 संसार की वस्तु का स्वरूप देखो क्या वोह भगवान को निवेदन करने योग्य है, ये चमड़े का हाथ क्या भगवान की सेवा करने योग्य है, देना महत्त्वपूर्ण है, आपके जीवन में देने का संस्कार हो, इसलिए दी जाती है, क्या दिया जा रहा है महत्त्वपूर्ण नहीं है, आप दें, क्योंकि देने में विनम्रता है, देने में एक कृतज्ञता का भाव है कि प्रभु आपने इतना कुछ दिया है, आपको निवेदन करके प्रसाद पाता हूं, ये देने का जो भाव है,  the gesture is important  https://www.youtube.com/watch?v=t_s8WLUtO0c?t=78 6 आपकी महत (focus) बुद्धि रहती है वस्तु पर, भगवान पर बुद्धि नहीं है, भाव पर बुद्धि नहीं है, इसलिए मन नीरस रह जाता है, इसलिए मन रुखा सूखा रह जाता है, देने के बाद भी देने का सुख नहीं होता क्योंकि आपको देना ही नहीं आया  https://www.youtube.com/watch?v=t_s8WLUtO0c?t=116 7 वह लेते नहीं, जब दुर्योधन ने कहा मैंने 56 भोग बनाया है द्वारिकाधीश पधारिए, तो भगवान ने कहा कि वस्तू की भूख मुझे नहीं लगती, भाव तेरे पास है नहीं,  तो तेरे महल में आने का कोई कारण नहीं है और कोई बुद्धिमान नहीं समझेगा कि केले के छिलके भगवान को अच्छे लग रहे हैं और इतने अच्छे लग रहे हैं कि विदुर जी को डांट दिया, बोले बीच में आकर आपने सब रस में बेरस कर दिया https://www.youtube.com/watch?v=t_s8WLUtO0c?t=136 Standby link (in case youtube link does not work): https://1drv.ms/v/s!AkyvEsDbWj1gncpJb-q-kiEvwA50BA?e=8BIURe