Tuesday, June 1, 2021

तत्व ज्ञान - भाग 1, Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj Pravachan, Spiritual Knowledge


 Tatwa Gyan-1 (तत्व ज्ञान) ||Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj Pravachan

https://www.youtube.com/watch?v=BvtruUTwFCc

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Tatwa Gyan-1 (तत्व ज्ञान) Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj Pravachan.mp4

 

5.20 kirtan

8.19 तुम्हारा शरीर, देव दुर्लभ है करोड़ों जन्मों बाद तुम्हें यह मानव देह मिला है इसीलिए इसी देह में लक्ष्य को प्राप्त कर लो

8.44 अन्यथा 84,00,000 योनियों में घूमना पड़ेगा

9.12 यदि इसी देह में आपने तत्व को जान लिया तब तो यह देह सफल है अन्यथा बहुत बड़ी हानि होगी

9.56 एक तो यह मानव जन्म दुर्लभ है, दूसरा यदि संत महापुरुष जिसको वेद शास्त्रों का ज्ञान है, भगवत प्राप्ति हो चुकी है मिल जाए, तब आपका लक्ष्य मिल सकता है

10.44 यह तत्वज्ञान केवल मानव देह में प्राप्त किया जा सकता है, बाकी सब शरीर भोग योनियाँ हैं

11.0 यहां मनुष्य अगर अच्छा कर्म करेंगे तो स्वर्ग जाएंगें, बुरा कर्म करेंगें  तो नर्क जाएंगे और यदि दोनों का मिश्रण होगा तो इसी मृत्यु लोक में किसी 84,00,000 योनियों में घूमेंगे

11.17 अच्छा कर्म और बुरा कर्म दोनों ही करना खतरनाक है और इन दोनों का मिश्रण भी खतरनाक है

11.46 स्वर्ग के देवता जिनकी हम पूजा करते हैं इंद्र, वरुण, कुबेर, यमराज आदि ये सब भी मानव देह की याचना करते हैं

12.0 क्यों, क्योंकि स्वर्ग भी भोग योनि है वहां पर कुछ नया पुण्य आप नहीं कमा सकते हैं, जैसे आप का बैंक का खाता हो, केवल खर्च कर सकते हैं वहां (स्वर्ग में)

पर नया पुण्य (पैसा) जमा नहीं करा सकते, और ज्यों ही आपकी जमा पूंजी (पुण्य) खर्च हुई तो वापस मृत्यु लोक आना पड़ेगा

12.36 संकेत केवल यह है कि मानव देह का महत्व पहचानना है और लाभ उठाना है

12.45 यह मानव शरीर केवल खाना, पीना, सोना और विषय भोग करने के लिए नहीं है, यह तो सब पशु पक्षी भी करते हैं आप से अधिक स्वस्थ है वह जानवर

13.0 वह मूल खाना खाते हैं आप बुद्धिमान हैं तल के, पका के, प्रोटीन विटामिन नष्ट करके खाते हैं और आए दिन अस्पताल जाते रहते हैं, यह बुद्धि के दुरुपयोग का परिणाम है

13.22 यह दुख की बात है कि मानव देह में आकर भी हम यह न सोचें कि हम कौन हैं, हमारा क्या लक्ष्य है, वो कैसे मिलेगा, इन प्रश्नों को हल करना चाहिए

13.47 बस केवल भाग रहे हैं, क्यों भाग रहे हैं क्योंकि वह भाग रहा है

14.04 हम नौकरी चाहते हैं, हम करोड़पति बनना चाहते हैं सब गलत

14.16 संपूर्ण ब्रह्मांड, चींटी से ब्रह्म तक, सब केवल एक ही वस्तु चाहते हैं, बिना किसी के सिखाए पढ़ाएं

14.35 जब बच्चा पैदा हुआ तब रोता है, असल में वह भी आनंद मांग रहा है

15.16 जन्म और मृत्यु के समय दुसहाय (intolerable) पीड़ा होती हैं मगर मनुष्य बड़ा होकर भूल जाता है और यही दुख को बच्चा रोकर निकालता है, जन्म के समय

15.48 कोई भी व्यक्ति कुछ भी चाहता है तो क्यों, आनंद के लिए

17.26, 18.06 आनंद का लवलेश (even a semblance) भी यदि मिल जाए - एक बार सही, चाहे स्वपन में ही, तो सारी दौड़ भाग, बांटना, कामना वगैरह सब समाप्त हो जाएं और संसार के सुख को लात मार दे

18.25 एक बार आनंद प्राप्ति के बाद फिर आनंद छिन नहीं सकता

18.33 आनंद की परिभाषा क्या है, जो (unlimited) असीमित हो, यानी अनंत मात्रा का हो और सदा बना रहे

18.58 हमको अभी तक संसार में जितना भी सुख मिला सब सीमित मात्रा में और क्षण भर के लिए, यानी तुरंत खत्म होने वाला मिला

20.06 फिर दोबारा उसी वस्तु या व्यक्ति की भूख और फिर थोड़े समय के बाद वैराग्य, यही  नाटय क्रम अनंत जन्मों से हो रहा है

20.17 हमारे पास इतनी भी फुर्सत नहीं है कि हम समझ तो ले कि आनंद कहां से मिलेगा जो स्थाई हो, जो सदा रहे

20.38 भई करोड़पति बनना चाहते हो क्यों, जो लाखों करोड़पति हैं उनसे पूछ तो लो क्या वह आनंद में है, भई वे भी नींद की गोली खाकर सोते हैं

21.05 फुर्सत नहीं है यह जानने की, कि आनंद कहां से मिलेगा, बस भागना है, पागलों की तरह

21.19 विश्व का प्रत्येक जीव आनंद चाहता है, बिना किसी के सिखाए पढ़ाए, कुछ तो मूल कारण होगा

21.38 किसी मां बाप ने अपने बेटे को यह नहीं बताया होगा कि बेटा आनंद ही का प्रयास करना, दुख पाने का नहीं, क्योंकि यह तो स्वाभाविक (natural knowledge) है