Saturday, June 26, 2021

गृहस्थ में रहकर भगवान से प्रेम कैसे करें ? Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj Pravachan - Full Transcript Text


 

गृहस्थ में रहकर भगवान से प्रेम कैसे करें? Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj | Pravachan

 

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गृहस्थ में रहकर भगवान से प्रेम कैसे करें Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj Pravachan.mp4


0.07 भगवान अनिर्वचनीय (cannot be described or cannot be made to understand), प्रेमस्वरूपम हैं. भगवान और प्रेम दोनों ही अनिर्वचनीय हैं, मगर अनुभव किये जा सकते हैं और अनुभव साधना के पश्चात होता है

2.12 भगवान और प्रेम दोनों अनुभव रूपम हैं - नारदजी ने कहा  

2.35  सांसारिक प्रेम, जिसे आसक्ती (misguided attachment) कहते हैं, को भी आप नहीं बता सकते, नहीं समझा सकते, तो भागवत प्रेम की बात कौन करे

3.14 प्रेम करना सबको आता है, भगवान ने सभी को प्रेम करने का स्वभाव दिया है, आनंद से प्रेम करते हैं हम

3.35 माँ के पेट से जब आप निकले, पैदा हुए, तो सबसे पहले आपने क्या किया, रोये - ये बताने के लिए की आप ये कष्ट दुख नहीं चाहते, आप आनंद चाहते हैं, ये संसार में आने से पहले ही दुख मिल गया तो बाद में क्या होगा, पहले ही ग्रास में मक्खी गिर गई, सारा जीवन रोते ही रहे

4.55  क्यों रोये पैदा होते ही - दुख को मिटाने के लिए, कुछ शब्द नहीं बोले आपने, प्रेम में शब्द का इस्तेमाल नहीं होता,  क्योंकि प्रेम अनिर्वचनीय है

5.34 वोही रोना जो आपने पैदा होते ही किया था, यदि भगवान के सामने कर दे तो आपको भगवान के प्रेम की प्राप्ति हो जाएगी, उस रोने में कोई बनावट, छल कपट नहीं था, केवल भोलेपन की परिकाष्ठा थी (height of innocence), बच्चे को तो अपनी हर जरूरत केवल रो के ही बतानी होती है, माँ अपने आप समझ जाती है कि क्या चाहिए

6.40 प्रेम करना तो सबको आता है मगर कोई कहे कि आपको माँ, पापा भाई, बहन, बेटा, बेटी, पत्नी, पति से प्रेम है - तो ये गलत है, 0.1% भी सही नहीं है, माँ से प्रेम करते हैं, क्यों, आनंद के लिए, और आनंद नहीं मिला - प्रेम खत्म

7.29 सभी केवल आनंद से प्रेम करते हैं और किसी सांसारिक व्यक्ति या वस्तु से नहीं कर सकते, इन सब से हमें आनंद मिलेगा - हमें ये भ्रम हो गया है, हम बार बार सांसारिक व्यक्ति या वस्तु से प्रेम मांगते रहते हैं, मिलता नहीं, निराश हो जाते हैं - यही पागलपन चलता रहता है

8.10 और जिससे हम आनंद मांग रहे हैं वो हमसे आनंद मांग रहा है, एक भिखारी दूसरे भिखारी से भीख मांग रहा है इस संसार में - क्या नाटक है  

8.42 पत्नी और पति ने शादी की परस्पर आनंद के लिए, मगर दोनों को आनंद नहीं मिला अब दोनों एक दूसरे को दोष दे रहे हैं, संसार में आनंद है ही नहीं तो कैसे मिले, एक दूसरे को दोष देने से क्या फायदा

10.30 भगवान तो सब जगह व्याप्त हैं समान रूप से, "प्रभु व्यापक सर्वत्र समाना", चाहे अच्छी जगह हो चाहे बुरी, चाहे महापुरुष हो या राक्षस, हिरणकश्यप ने नहीं माना कि भगवान सब जगह हैं, मारा खंभे में और प्रकट हो गए भगवान

11.23 जो ये REALISE करता है की भगवान सब जगह समान रूप से मौजूद है उसे आनंद ही आनंद है, और जो भगवान को छोड़कर माया से प्रेम करने की चेष्टा करता है, उसे आनंद कहा मिलेगा

11.47 संसार में माँ, बाप, बेटा, बेटी, पति, पत्नी सब मिट्टी के पुतले हैं, ये सब माया के विकार (deformation) हैं,  तो यदि केवल शारीरिक दृष्टि से देखें तो इनसे आनंद नहीं मिल सकता

 

12.11 मगर क्योंकि इनमें भगवान भी व्याप्त हैं इस नजर से कोई देखें कि इन सब में भगवान हैं तो उसे आनंद मिल सकता है

12.15 तो संसार में सुख है ये भी सही और सुख नहीं है ये भी सही

12.46 बड़े बड़े ज्ञानी कहते है कि सब कुछ ब्रह्म ही है और कुछ नहीं और हम लोग कहते हैं ज्ञानी गलत हैं और ज्ञानी की बात पर हंसते हैं और ज्ञानी हमारी मूर्खता पर हंसते हैं कि देखो मिट्टी के पुतलों में आनंद ढूंढ रहे हैं, भला बालू से तेल निकलेगा ? भला पानी से मक्खन निकलेगा ? मतथे जाओ (but you do keep on churning water in order to get butter) 

 

14.15 अनंत युग बीत गए यही करते करते, कुछ जनम नहीं अनंत जनम, फिर भी इस research से पेट नहीं भरा, पैदा हुए, बढ़े हुए, संसार बटोरा, मर गए, फिर पैदा हुए और सब भूल गए

14.40 तुमने जन्मों जन्मों में कितनों से कहा कि तुम मेरे बाप हो, अनंत माँयें बनी, अनंत बेटे बने, बेटी बने, कहाँ है वो सब ?

15.14 समुद्र में तरंगें (लहरें) उठती है हजारों लाखों करोड़ों, तरंग तरंग की दोस्ती नहीं चलती, एक तरंग का दूसरी तरंग से संबंध तो अनित्य है, मिथ्या है, मगर समुद्र का संबंधित लहरों से नित्य है

15.51 इसी प्रकार एक जीवात्मा का दूसरी जीवात्मा से संबद्ध अनित्य है, मगर जीवात्मा का परमात्मा से संबंध नित्य है, परमात्मा हमेशा हमारे हृदय में बैठकर हमारे ideas (विचार) note करते है,  हमारे अनंत जन्मों के अनंत कर्मों का फल देते हैं, हमको ये संसार बना कर देते हैं, बच्चे के लिए माँ के स्तन  में दूध बना देते हैं, तमाम भोजन पदार्थ बना रखे हैं भगवान ने, भला इतना प्रबंध कोई करेगा, बिना कहे

16.45 क्षण क्षण हमारे ideas (विचार) note करते हैं, और हम अपने हिसाब किताब के लिए एक मामूली सा मुनीम रखते हैं और उसे तनख्वाह देते हैं

17.05 हम गाली देते है भगवान को, भगवान कहते हैं हम केवल नोट करेंगे (मरने के बाद इसका फल मिलेगा), हो सकता है की तुम माफी मांगो, रोवो, पछताओ, तो हम माफ़ कर देंगें

17.35 एक एक पाप, अनंत जन्मों में, अनंत बार, प्रत्येक व्यक्ति कर चुका है, संसार में कोई किसी को बोल दे कि तुम लोभी हो, क्रोधी हो, तो बस क्रोध आ गया, हमको क्रोधी कहा ? तुम क्या समझते हो अपने आप को

18.35 अनंत पाप किए बैठे हैं हम, फिर भी कोई पछतावा नहीं, सब अपने अपने मद (false pride) में बैठें हैं, कोई रूप के मद में, कोई जवानी के मद में, धन के मद में, post के मद में, अनेक प्रकार के अहंकार हैं

19.03 एक तो बंदर चंचल, दूसरा उसे भूत लग जाए, फिर उसी को hysteria का दौरा पड़ जाए, फिर उसी को बिच्छू डंक मार दे, फिर उसी को एक बोतल शराब पिला दो, ये हाल है हम लोगों का

19.26 हमारे पास कुछ है नहीं अपना, रूप की authority कामदेव हैं, धन की authority कुबेर हैं, ऐश्वर्य की authority इन्द्र हैं, प्रताप की authority सूर्य हैं, मगर इन सबके पास भी limited authority है, अनन्त authority तो  केवल भगवान के पास हैं, लेकिन हमारे पास क्या है समुंद्र की एक बूंद भी तो नहीं

20.10 25 साल की उम्र में हम अकड़ के चलते हैं, रूप का मद अलग और कुछ धन भी हो गया तो फिर क्या बात है, यदि एक पोस्ट हो गई वो कहीं पुलिस का इंस्पेक्टर भी हो गया - सैय्यां भए कोतवाल तो डर काहे का  -  बस भूल जाते हैं ये हमारी व्यवस्था कितने दिन रहेंगी जब वही बड़े से बड़ा officer President या Prime Minister हो, जब retire होता है तो तो कोई दमड़ी को नहीं पूछता, बिचारा कितना दुखी होता होगा, लोग तो मुझसे इतना सलाम करते थे अब तो कोई मेरे पास आता ही नहीं, कहाँ गया वो मद,  

 

21.22 तो जैसे संसार में हम दो चीज़ अनुभव करते हैं, देखते हैं, समझते हैं कि एक चीज़ तो हमारे प्रत्यक्ष (हमारे सामने) है और एक है भगवान जो परोक्ष (hidden) हैं और ये मायिक (created by maya) वस्तुएँ, यें प्रत्यक्ष है,  तो जीव जीव से प्यार नहीं कर सकता, एक आत्मा दूसरी आत्मा से प्यार नहीं करती, कोई भी स्त्री पुरुष से प्यार करती है पुरुष की जो आत्मा है अंदर उस आत्मा से ये स्त्री की आत्मा नहीं प्यार करती से करती,

21.56 शरीर से करता है प्यार, माँ से, बाप से, बेटे से, किसी से, इसलिए जब शरीर छिन जाता है तो रोता हैं क्यों रो रहे हो, वेरी माँ चली गई

22.08 चली गयी, कहाँ चली गयी, अरे खत्म हो गयी, खत्म ? अरे कोई आत्मा खत्म होती है बेवकूफ वो तो नित्य वस्तु है अरे वो जो हा मास की थी हाँ तो

22.25 हा मास का शरीर है वो, तेरी माँ नहीं है वो, माँ तो उसके अंदर रहती थी आत्मा, तू नासमझ था जो शरीर से प्यार कर बैठा,

22.38 तो प्रेम करना सब जानते हैं, "हित अनहित पशु पक्षी हू जाना" (own welfare or not - is known to all beings)  - both animals & humans do four things: eat, sleep, mate, defend - पशु और मनुष्य में और कोई अंतर नहीं है मनुष्य अधिक पाप करता है बस इतना सा अंतर है

23.11 वो भी खाता है उसको भी भूख लगती है हमको भी लगती है, वो भी अपनी माँ बाप बेटी से प्यार करता है हम भी करते हैं, वो भी विषयों में आसक्त हैं, हम भी आसक्त (attached) हैं लेकिन हम बहुत अधिक आसक्त हैं,

23.33 देखो एक पशु गाय है, भैंस है , साल भर में एक बार अपने पति से प्यार करती है, केवल एक बार उसको विषय में आसक्ती होती है, हम को दिन में 10 बार होती है, कितना बुरा हाल है हमारा, और कहने के लिए हम मनुष्य हैं, बड़ा ज्ञान है हमारे अंदर, इतने कमजोर हैं हम,  गाय भैंस को हरी घास मिल जाए विभोर हो गई, सूखी घास मिल जाए तब भी खाएगी, हमको कितने ही व्यंजन बनाए जाओ, मगर बीवी डाट खाती रहती है,  रोज़ रोज़ वही चने की दाल और ये अरहर की दाल, अरे कुछ नयी चीज़ बनाओ, जा के होटलों में अंडपंड चीज़ खाता रहता है ऊटपटांग

24.40 और कहता है आज क्या बढ़िया enjoyment हुआ है, एक एक इंद्री का विषय पशुओं से 1000 गुना, लाख गुना अधिक उसके हम गुलाम हैं, अगर आप कहे की नहीं जी हम बराबर हैं, चलो बराबर ही सही तो पशु के बराबर हुए तुम लोग, अजी अब सुनने में तो बड़ा खराब लगता है, खराब लगे अच्छा लगे, fact है

25.13 अरे अगर तुमने भगवान से प्यार नहीं किया, और सब कुछ किया तो सब 0/100,  अजी हमने 10 करोड़ कमाया और 10 कोठियां खड़ी कर ली, 10 बच्चे पैदा किए, अरे ये सब तो किया लेकिन जब हजरत आप जाएंगे, तब क्या होगा, इसके कमाने में जो 420 की है उसका दंड मिलेगा और जो कमाया है वो धरवा लेंगे भगवान जैसे कोई निषेध (banned) वस्तु का व्यापारी होता है हिरोइन वगैरह तक दी जाती है तो सामान जब्त और उस व्यापारी को दंड अलग से मिलता है

26.01 ऐसे ही भगवान करते हैं कि हमने जो 420 करके तमाम संसार इकट्ठा किया, भगवान का तो कानून था कि जितने में तुम्हारा शरीर चल जाए जान, बस उतने धन के तुम हकदार हो इससे अधिक अगर तुम इकट्ठा करते हो बाल बच्चों के लिए या अपने लिए या किसी संसार वालों के लिए तो चोर हो, जैसे हमारे income tax में चोरी करते हैं, नंबर दो के black money वाले, ऐसे तुम हो, संसार में black money वालों को पकड़ना कठिन है लेकिन भगवान तो अंदर बैठा बैठा पकड़ लेता है बिना कहे, वो दंड देगा, तुम बच नहीं सकते, तुमने क्यों तमाम सारा इकट्ठा कर लिया आपने नाम, एक गरीब रोटी के लिए तरस रहा है और तुमने इतना सारा इकट्ठा कर लिया अपने नाम, बेटे के नाम, बीबी के नाम, संसार के तमाम लोगों के नाम

27.23 spiritual law भगवान का,  कानून न जाने के कारण भी हम बहुत सी गलतियाँ करते हैं और जो बता भी दिया संत ने, जान भी लिया, वो मन की कमजोरी के कारण ;  देखो पाप क्या है, बुरा क्या है, अच्छा क्या है इसकी छोटी मोटी knowledge तो सबको है, कैसे, आपके साथ जो कोई गलत व्यवहार करता है तो आप जान लेते है, तुम झूठ बोले हमसे हमारे बेटे हो के  गए हम तो झूठ बोले, हमारी बीवी होके हमसे झूट बोली, झूठ बुरी चीज़ है, मुझे झूठ से नफरत है और आप झूठ बोलते हैं, हाँ मैं तो बोलता हूँ ; जब इससे तुमको नफरत है वही तो बुरी चीज़ है बस समझ लें इसी में सब कुछ

28.29 दूसरे को दुख देना अच्छा लगता है, हाँ, और तुमको कोई दुख दे तो खराब लगता है, तो जो तुम्हें खराब लगता है बस वही खराब चीज़ है, उसको तुम भी ना किया करो, दूसरों से तो तुम अच्छी अच्छी चीज़ चाहते हो और स्वयं खराब खराब करते हो और कहते हो शास्त्र में क्या लिखा है अरे जो लिखा है उनको संत महात्मा बताएंगे, लेकिन ये तमाम सारी knowledge तो तुमको अपना अनुभव बता रहा है, तो संसार के सामान से, माइक (created from maya) व्यक्ति या माइक वस्तु से प्यार करना गलत है, वहाँ आनंद नहीं है, हमको आनंद से प्रेम है और जो  आनंद है या जिसमें आनंद है, दोनों सही हैं, भगवान मैं आनंद है यह भी शास्त्र वेद कहता है और भगवान ही आनंद है यह भी शास्त्र वेद कहता है

29.33 भगवान आनंद है और भगवान में आनंद है कोई बात मान लो दो में, भगवान से मान लो कोई सामान किसी के पास हो ये मालूम हो जाए और तुमको चाहिए तो क्या उपाय एक उपाय यह है कि चुरा लो, भगवान से चुरा सकते नहीं,  अरे जब वो दिखा ही नहीं पड़ेगा तो चुरयोगे क्या, वो तो बड़ा चालक हैं भगवान और अगर प्रकट भी हो जाए अवतार लेकर भी आ जाये, तो भी तुम नहीं चुरा सकते क्योंकि वो सर्व दृष्टा,सर्व नियंता, सर्व साक्षी, सर्वव्यापी है

30.32 दूसरा तरीका है उसको पकड़ के बांध के छीन लो डकैती जिसे कहते हैं, मगर वो इतना बलवान है कि उसके बराबर भी कोई नहीं है तो बड़ा क्या होगा, ना तब समस्या वेद कहता उसके बराबर भी कोई नहीं है उससे अधिक बलवान हो तब तो उसको बांध दें, पकड़ कर डकैती करे वो भी नहीं कर सकते, अब तीसरा उपाय बचा रोकर मांग लो, भीख माँग लो, संसार में जो भीख मांगते हो, जी मैंने तो आज तक किसी के आगे हाथ नहीं फैलाया, क्या बक बक करता है, पैदा होते ही से रो रहा है, माँ के आगे, बाप के आगे, बीवी के आगे, पति के आगे, और कहता है कि हमने किसी के आगे हाथ नहीं फैलाया; ज़रा सी भूख लगी तो हालत खराब हो गयी, प्यास लगी तो हाय कोई पानी पिला दो, तेरी हैसियत क्या है जो कहता है कि मैंने आज तक किसी के आगे हाथ नहीं फैलाया, सर नहीं झुकाया, बड़ी अकड़ दिखा रहा है अरे तेरी सत्ता है क्या

31.49 तू तो चेतन भी है तो भगवान की शक्ति से ,अन्यथा वो भी नहीं रहता तू, भगवान से मांगने में क्या लज्जा, वो तो हमारी माँ है, हमारा बाप है, हमारा प्रियतम है, हमारा सर्वस्व है,  हमारा माने आत्मा का, शरीर का नहीं, शरीर के तो अनन्त माँ बाप, बेटा, स्त्री बन चूके लेकिन हम रूपी जो आत्मा है उसका तो नाता भगवान से ही है, जैसे तुम अपनी संसारी माँ से रो करके दूध मांगते थे, खाना मांगते थे, पानी मांगते थे, ऐसे ही वो हमारी माँ है

33.02 वो हमारा सब कुछ है, जब संसार में तुम सब के आगे नाक रगड़ रहे हो अनादि काल से, तो भगवान के आगे मांगने में तुमको क्या शर्म लग रही है जो अब तक कभी मांगे ही नहीं और मांगें भी तो अहंकार से, ऐसे ही तुमने अपनी माँ से दूध मांगा था पैदा होने पर, अकड़ के ?

33.40 भोले बनना होगा फिर एक बार, भगवान से मांगना है, बस इतना तुम को करना है उतना करने के लिए भोला बनना पड़ेगा,  जैसा पैदा हुए, वहीं फिर जाना होगा, आज जाओ, 10 साल बाद जाओ, 10 जन्म बाद जाओ, अनंत जन्म बाद जाओ, वहीं जाना पड़ेगा "मोहे कपट छल छिद्र न भावा, सरल ह्रदय" बिलकुल भोलापन, उस तरह से रो कर भगवान के आगे मांग लो, वो दे देंगे, कुछ साधना नहीं करना है भगवान कुछ दाम नहीं लेते, free देते हैं अकारण करुण हैं, बिना कारण के करुणा करते हैं

34.36 तुम रो के मांग लो फिर वो करुणा करके दे देंगे ! कुछ साधना करने की जरूरत नहीं है, भगवान कुछ दाम नहीं लेते, free देते हैं, अकारण (without any reason / cause) करुण (compassionate) है, बिना कारण के करुणा करते हैं, तुम करूणा करके मांग लो, फिर वो करूणा करके दे देंगे, रोकर मांग लो, कोई कामना न रहे ह्रदय में, भगवान से प्यार भी करते हैं कुछ लोग तो संसार मांगते हैं, बताओ इससे बड़ा और कोई पागल होगा

35.03 भगवान से संसार मांग रहा है और संसार से भगवान मांग रहा है,  भगवान माने आनंद, संसार से आनंद मांग रहा है और भगवान से संसार मांग रहा है, दुख में पुकारता है भगवान को, हे भगवान बचा लो

35.29 ना ना, कोई काम ना करना, मोक्ष/ मुक्ति की कामना भी नहीं चाहिए, हम आपकी सेवा चाहते हैं और सेवा का मतलब क्या होता है अपने स्वामी की इच्छा में इच्छा रखना उनको सुख देना अपनी इच्छा न रखना बस एक formula

https://youtu.be/ZQ_2NDXNvpA?t=2131

 

 

35.57 नारदजी में प्रेम का स्वरूप बताया, एक संक्षिप्त वाक्य में, उनके सुख में सुखी बनने का अभ्यास करो मगर तुम्हारी आदत है अपने सुख में सुखी होना, अब उसको बदलो, भगवान के सुख में सुखी होना ये दास्य धर्म है, दास का काम स्वामी को सुख देना, इतना तो जानते हो, हाँ हाँ, ये तो जानते है, तो फिर तुम दास  हो ना भगवान के, हाँ हाँ, तो फिर भगवान से मांगते क्यों हो, मांगना गलत, क्या भगवान नहीं जानता तुम को क्या चाहिए, हाँ वो तो जानता होगा, तो फिर तुम को ये सोचना चाहिए कि हमारे लाभ के लिए जो कुछ होगा वो अपने आप देगा, अगर धन छीन रहा है तो इसमें हमारा कल्याण होगा

37.0 हम नहीं समझते वो बात अलग है भगवान कहते हैं "मैं जिसपर कृपा करता हूँ, उसका संसार छीन लेता हूँ, ये भगवान का वाक्य है भागवत में, इसको मानने वाला कोई है ? कोई नहीं, एक भी नहीं, क्योंकि आपका संसार में प्यार है,  अगर भगवान उसको छीन लेगा तो आपको बुरा लगेगा, कृपा कैसे मानेंगे, बीवी का पति मर जाए और वो कहे भगवान ने बड़ी कृपा की,  ऐसी बीवी है कोई ? नहीं है, तो फिर वो बीवी आस्तिक (believer) नहीं, नास्तिक (non believer) है

37.57 भगवान का कानून नहीं मानते, बेटा मर गया, बाप को feeling हो रही है, क्यों मरा ? अरे जीव अपना अपना कर्म लेके आये है, जब तक उनको रहना है रहेंगे फिर चले जाएंगे, train में तमाम स्टेशनों के मुसाफिर बैठे रहते है जिसका स्टेशन आ गया वो उतर गया, अरे साहब आप कहाँ जा रहे हैं ? मैं अकेला रहूँगा डब्बे में, अरे साहब अकेले रहो चाहे या दुकेले (two) रहो हमारा station आ गया है हम जा रहे हैं, किसकी माँ, किसका बाप, आप अकेले आये थे, अकेले जाएंगे और अकेले ही कर्म का फल भोगेगें  

38.47 भगवान से मांगना गलत है, देना सीखो बस एक formula, देना देना देना को प्रेम कहते हैं और लेना लेना लेना को स्वार्थ कहते हैं ओर देना लेना, देना लेना को व्यापार कहते हैं

39.04 तो दो बात तो आप लोग जानते हैं, लेना लेना ये नीच लोग जानते हैं और जो भले मानस कहलाते हैं वो संसार में लेना देना, लेना देना,  बीवी से कहता है पति, तुम रात भर जागी हो हमारे बीमार होने पर, तो तुम बीमार हो लो मैं भी जागता हूँ, ये लेना देना है, व्यापार है, ठीक है, बीवी के बिना पति को दुख मिलेगा इसलिए वो जाग रहा है, पति के बिना बीवी को दुख मिलेगा इसलिए वो जाग रही है और दोनों बेवकूफ़ समझते हैं कि यह प्रेम के कारण जाग रहा है, अपने अपने मतलब से प्यार करना भी आप जानते हैं और उसका मतलब भी हल करो और अपना मतलब भी हल हो इसको भी आप लोग जानते हैं लेकिन केवल उसका मतलब हल हो ये आप लोगों ने कभी नहीं पड़ा

40.04 ये कभी नहीं सीखा, अब इसको सीखना है, देना देना सीखो है अनंतकोटी ब्रह्मांड नायक सर्वशक्तिमान भगवान माना कि तू सर्वशक्तिमान अनंतकोटी ब्रह्मांड नायक है लेकिन मैं तुझे दूंगा, माँगूँगा नहीं, दूंगा - क्या देगा ? तन, मन, धन, प्राण सब कुछ, अरे ये सब तो मेरा है, अरे तुम्हारा जब था तब था, अब तो मेरे हाथ में है, तो अगर एक बार हम कमर कस लें, देने देने के ऊपर, बस भगवान के कान खड़े हो जाते हैं, अरे ये तो बाजी मारेगा, ये हम को दास बनाकर छोड़ेगा, ये हमारा पीछा कर रहा है, इसको सही guide (गुरु) मिल गया है, ये कुछ मांगता ही नहीं,

41.29 मोक्ष (संसार से मुक्त होना) भी नहीं मांगता,  संसार मांगना तो खैर मूर्खता है ही, मोक्ष मांगना और भी बड़ी मूर्खता है, क्योंकि मोक्ष हो जाएगा तो फिर भगवान का दर्शन तक ना होगा, प्रेम भी नहीं मिलेगा, सेवा भी नहीं मिलेगी, लय (merger) हो जाएगा, जैसे नमक पानी में मिल जाता है, क्या मिला ? ना दुख मिला, ना आनंद मिला, एक हो गया बस - तो भगवान से कुछ मांगना नहीं है उनकी इच्छा में ही इच्छा रखना है, उनको सुख देने की भावना से प्रेम करना है, और यही सबसे सिद्धांत (principle) महापुरुष के प्रति भी लागू होता है, गुरु के प्रति भी लागू होता है

42.22 जो गुरु के आदेश को मानकर, आज्ञा पालन करता है अपनी इच्छा नहीं बनाता, उससे मांगता नहीं कुछ, ये मांगने की बिमारी छोड़ दो एक बार, "खूब तरसाया है तेरी ख्वाहिशों ने ही तुझे अनंत जन्म में रुलाया तुमको एक कामनाओं ने, ये ख्वाहिशों, तू भी अब इन ख्वाहिशों को कुछ तरसती छोड़ दे" ये ख्वाहिशें, ये कामनाएं तरसे कि हमको अपना ले, अरे मोक्ष वस्तु जैसी चीज को ठुकरा देता है, एक रसिक भक्त इसी ब्रिज में

43.20 मुक्ति भगवान की नौकरानी है, वो कहती है ,हे भगवान, प्रभु, स्वामी, यह सारे ब्रिज के महात्मा संत लोग लात मारते हैं हमें कि मेरे सामने मत आना, दूर दूर दूर जा, जैसे कर्मकाण्डी पंडित किसी गंदे भंगी को देखकर कहता है दूर दूर, छूना नहीं, ऐसे ही वो रसिक भक्त कहता है मुक्ति के लिए, भागों यहाँ से, ठुकराता है, ठोकर मारता है और ज्ञानि परमहंस लोग मुक्ति  के चरण पड़ते हैं कि आ जाओ, तो भगवान ने मुक्ति को कहा भाई देखो, तुम ऐसा है कि बस भक्तों के चरणों में पड़ी रहो, ऐसे ही मुक्ति मिल जाएगी एक दिन तुमको

44.26  तुमको कोई भक्त अपनायेगा नहीं, बहुत समझा चूके हैं हम भक्तों को

भाई ले लो मुक्ति, वो कहते हैं हमको नहीं लेना मुक्ति, हमको 84,00,000 में भेज दो, हम तैयार हैं जाने को, लेकिन भक्ती साथ में रहे, सनकादिक परमहंस भगवान के अवतार, पैदा होने के पहले ही से ब्रह्मज्ञानी, वो कहते है हमको नरक भेज दो महाराज, लेकिन आपका प्रेम साथ में रहे, आप हम को मिले रहे सदा, माया हमारे ऊपर हावी (overpower) न हो, प्रेम आनंद मिलता रहे, ऐसा नर्क भी अनंतकोटी वैकुंठ के बराबर है

45.16 तो मांगना, ये गलत बात, बिना मांगे निष्काम प्रेम और केवल भगवान - उनका नाम, उनका रूप,  उनका गुण, उनकी लीला, उनके धाम, और उनके संत -  इतने में मन का attachment कहीं रहे, सब सही है, अनन्य प्रेमी कहलाएगा वो  

45.50 और संसार - उसका नाम, इसका रूप, इसकी क्रियाएं,  इसके उपासक मनुष्य पशु पक्षी वृक्ष - कुछ हो, इन में मन का attachment हो तो बस अनन्य नहीं रहा, अन्य हो गया

46.08 वो पतिव्रता नहीं रही, भ्रष्ट हो गई, दुराचारिनी हो गई आत्मा - जो भगवान और इनके सामान - उनका नाम, रूप, लीला, गुण, धाम, जन को छोड़कर संसार से भी प्यार करे और भगवान से भी करे, भगवान कहते हैं हम से भी 420 ? तुम तो कहते हो "त्वमेव", तुम "ही" मेरी माँ हो और अपनी संसारी माँ से भी प्यार करते हो ये चालाकी संसार में चल जाती है भोले भाले लोगों के आगे, हमसे नहीं चलेगी हम तुम्हारे ideas (विचार) नोट करते हैं, भगवान भीतर के ideas नोट करते हैं, संसार बाहर की क्रिया नोट करता है इतना बड़ा अंतर है, भगवान आपकी मंषा (what is going on in your heart) नोट करते हैं और संसार बाहरी क्रिया नोट करता है

47.10 वैसे संसार के भी कानून में है अगर मंषा खराब हो, तब वो क्रिया सही है अन्यथा वह क्रिया, क्रिया ही नहीं है, ये संसार के कानून में है, अगर हमसे murder "हो गया" (i.e., without intention to murder) तो हम को फांसी नहीं मिलेगी, अगर हमने मर्डर किया (i.e., with intention to murder) तब फांसी मिलेंगी, यदि हमारी गाड़ी ठीक है, हमारी brake ठीक है, हमारी eyesight ठीक है, सब कुछ ठीक है एक आदमी आके हमारी कार के आगे अपनी आत्महत्या करने के लिए गिर गया और मर गया, तो कोई फांसी नहीं देगा यानी मंषा देखी जाती है संसारी कानून में भी, लेकिन यहाँ गवाही वगैरह सब नाटक से गड़ब होता रहता है, सही निर्णय कहाँ हो पाता है लेकिन भगवान तो भीतर घुस करके, हर समय देखते रहते हैं, वहाँ कहाँ चलेगी गड़बड़

48.13 वो ही judgment देने वाले, वही दंड देने वाले, तो इस प्रकार सावधान हो करके, अगर हम भगवान में मन का अनुराग करें तो ही अनुराग, भगवान के प्रेम पाने की भीख, सही सही मांगे रोककर आंसू बहाकर तो उसी आंसू से हमारा अंतःकरण शुद्ध होगा जब अंतःकरण शुद्ध हो जायेगा,complete 100  percent, तब हमारा गुरु हमको शिष्य बनाएगा, तब दीक्षा देगा, यह जो कान में मंत्र देते हैं न, सब धोखा है, ये मंत्र देने का मतलब power दे, जैसे हमने सब fitting कर लिया बिजली के तारों से लेकिन अंधेरा है, कुछ light नहीं, पंखा नहीं, ये सब क्या है, अजी वो power house से connection नहीं हुआ, connection कर दिया mechanic ने,  हाँ हाँ सब हो गया - तो वो connection करने वाला है गुरु, लेकिन किसमें करें connection, आप fitting तो करो, अंतःकरण शुद्ध नहीं होगा तो कहाँ देगा प्रेम गुरु, अगर दे भी दे तो शरीर की हड्डियों का चूरा भी न मिले, भस्म हो जाए, इतना temperature होता है उस प्रेम में, इतना बड़ा आनंद है वो,  देखो एक भिखारी की lottery खुल जाती है 1,00,00,000 की तो उसका heart fail हो जाता है, तो आनंद आनंद को तुम्हारा एक छोटा सा मन क्या सहन करेगा ?

50.03 पहले पात्र बनाओ मन को,  सामान free में मिलेगा गुरु से, लेकिन तुम्हारा हृदय तो सही हो, उसके लिए हमको साधना करनी होगी, भगवान का रूप ध्यान करते हुए रोकर उनको पुकारो, उनसे उनका दर्शन, उनका प्रेम मांगो, संसार या मोक्ष न मांगो, हर समय हर जगह उनको अपने साथ realise करो, अभ्यास करो, वो हमारे साथ हैं, कभी अपनी privacy ना realise  करो, हम private सोच रहे हैं, private कोई नहीं हो सकता, एक सेकंड को भी, यदि ऐसा करोगे तो लक्ष्य की प्राप्ति हो जाएगी यही अनन्य प्रेम का हल्का फुल्का रहस्य है