Showing posts with label Amarendra ji. Show all posts
Showing posts with label Amarendra ji. Show all posts

Saturday, September 25, 2021

मोह क्या होता है ? by HG Amarendra Prabhu

मोह क्या होता है ? by Amarendra

https://www.youtube.com/watch?v=p6FHcsg5Wg8

0:00 कई बार इस जगत में देखा जाता है द्वंद के आधीन होकर जीव अपने परिवार को प्राधान्य देता है यदि हमारे भाई हमारे बहन हमारे माता-पिता हमारे बंधु कुछ कुकर्म भी क्यों ना करें उसको छिपाकर हम कहते हैं सब कुछ ठीक है पर बाहर का व्यक्ति यदि कोई कुकर्म करे तो हम उसको दंडित करते हैं और कोई सद मार्ग पर चले तो निंदा करते हैं, इसको कहते हैं मोह  https://www.youtube.com/watch?v=p6FHcsg5Wg8&t=0 0:46 भगवत गीता के प्रारंभ में अर्जुन के हृदय में भी इस भाव का प्रादुर्भाव होता है जिसको चकनाचूर कर देते हैं, प्रभु गीता के उपदेश से https://www.youtube.com/watch?v=p6FHcsg5Wg8&t=46 0:57 परंतु इस संदर्भ में देखा जाता है यदि व्यक्ति भगवान का पुत्र ना हो और भजन परायण हो और दैत्य कुल में भी उत्पन्न क्यों ना हो, प्रभु स्तंभ तोड़कर उस प्रहलाद की रक्षा में आतुरता प्रस्तुत करते हैं, अब देखा जाए तो प्रहलाद हो या महाराज बली हो यह सब दैत्य कुल में उत्पन्न हुए महापुरुष हैं तो भगवान यह कह सकते हैं कि वैसे तो इनका जन्म कोई सात्विक विशुद्ध सात्विक कुटुंब में वैष्णव कुल में तो हुआ नहीं, तो मैं क्यों पक्षपात करके इनके पक्ष में चलूं ऐसे प्रभु सोच सकते हैं परंतु कितना सुंदर हृदय है प्रभु का, व्यक्ति दुष्ट दैत्य कुल का हो, मगर भजन परायण हो, भक्ति में अग्रसर हो, तो प्रभु स्तंभ तोड़ते हैं हिरण्यकशु का और रक्षा करते हैं उन्हीं के पुत्र का  https://www.youtube.com/watch?v=p6FHcsg5Wg8&t=57 1:58 यदि स्वयं का पुत्र जन्मा हुआ, जैसे जब वराह देव का जन्म आविर्भाव हुआ तो वराह देव और भूमि से उत्पन्न हुआ महापुरुष “भौम”, श्री भौम वैसे भगवान के ही सुपुत्र हैं परंतु मूर नामक असुर के संग के रंग के कारण, वह भी दुष्ट हो गए, वह भी "भौमासुर" बन गए, बहुत बड़ी सीख मिलती है, जैसा संग वैसा रंग ! https://www.youtube.com/watch?v=p6FHcsg5Wg8&t=118 2:39 उपदेशामृत में देखा जाता है दो शलोकों में श्री रूप गोस्वामी पाद, संग के विषय में वर्णन करते हैं, अगर संग सत्संग का हो साधु संग का हो, तो भक्ति में वर्धन (increase) है और यदि दुसंग हो, ऐसे व्यक्तियों का संग हो, जो भक्ति में बिल्कुल आतुरता नहीं रखते तो विनश्यति, सब नष्ट विनष्ट हो जाता है भजन  https://www.youtube.com/watch?v=p6FHcsg5Wg8&t=159 3:04 चैतन्य चरितामृतम में वर्णन है कि यदि कृष्ण भक्ति में आगे निकलना हो तो साधु संग अति अनिवार्य है और कोई प्रेम प्राप्त महापुरुष भी क्यों ना हो, ऐसे महापुरुष के लिए भी अन्य महापुरुष वैष्णव के सत्संग में रहना यह उचित है  https://www.youtube.com/watch?v=p6FHcsg5Wg8&t=184 3.39 तो भगवान का सुपुत्र भी क्यों ना हो, भौम यदि मुर नामक असुर का संग करता है तो “भौम” हो जाता है “भौमासुर” और प्रभु अपने हस्त कमल से उनका बध करते हैं, इतनी सुंदर बात बिल्कुल पक्षपात नहीं, मेरा पुत्र यदि खल (bad) निकले तो अपने हाथ से वध और यदि खल का पुत्र यदि भक्ति करे तो उन पुत्र के रक्षा करने हेतु मैं स्तंभ तोड़कर अवतरित होता हूं सुंदर ऐसा “समोहं सर्वभूतेषु” केवल प्रभु है और कोई नहीं  https://www.youtube.com/watch?v=p6FHcsg5Wg8&t=219 4.17 हम सब कहीं ना कहीं किसी ना किसी दृष्टिकोण से पक्षपात करते हैं, जाति कुल का विचार होता है, देश का विचार होता है, धर्म का विचार होता है, भारतीय होने का तो विचार है ही, दक्षिण भारतीय उत्तर भारतीय का भी विचार है, किस गाँव के हैं, किस स्कूल से हैं इत्यादी    https://www.youtube.com/watch?v=p6FHcsg5Wg8&t=257 4.51: परंतु प्रभु ऐसे निष्कपट, निर्मल, अमल स्वभाव के हैं, जो भजन करे वह प्रभु का और जो भजन ना करे वह “विजातिय" (यानी उन्हें भगवान अपने से निकट नहीं मानते हैं) है, जो भक्ति में अग्रसर नहीं “विजातिय" है,  https://www.youtube.com/watch?v=p6FHcsg5Wg8&t=291 5.12: इतनी सुंदर बात है जब श्री चैतन्य महाप्रभु गोदावरी के तट पर रामानंद राय के साथ वार्ता संवाद में पूर्ण रूप से तल्लीन हैं, यदि देखा जाए महाप्रभु ब्राह्मण हैं, जन्म के दृष्टिकोण से तो है हीं, गुण के अनुसार भी ब्राह्मण हैं, भगवान हैं सन्यासी हैं, पूरे जगत के लिए जगतगुरु हैं और रामानंद राय कौन हैं राजकीय सेवक हैं , कायस्थ कुल में जन्म हुआ और गृहस्थ है, यदि वर्ण आश्रम जाति के विचार अनुसार देखा जाए तो हम कह सकते हैं कि दोनों अलग हैं, यह सन्यासी है तो वह गृहस्थ हैं,   यह ब्राह्मण हैं तो वह कायस्थ हैं, और यह भगवान हैं तो वह दास हैं और यह संसार से मुक्त सन्यासी है तो वह राजकीय सरकार में सेवक हैं, परंतु जब उनके संवाद कविराज गोस्वामी वर्णन करते हैं, सभी अन्य ब्राह्मण आते हैं, वहां तो महाप्रभु यह कह सकते थे कि वो सब अन्य ब्राह्मण सजातीय हैं, जो ब्राह्मण हैं, मेरे पक्ष के हैं और आप कायस्थ हो आप मेरे पक्ष के नहीं हैं  https://www.youtube.com/watch?v=p6FHcsg5Wg8&t=312 6.33: ऐसा यदि लौकिक विचार हो तो व्यक्ति ऐसा सोच सकता है, परंतु चैतन्य महाप्रभु आलिंगन प्रदान करते हैं रामानंद राय को और कहते हैं आप मेरे लिए सजातीय हैं यह सब अन्य ब्राह्मण मेरे लिए विजातीय हैं, क्यों, क्योंकि जन्म कुल आदि विचार से तो ब्राह्मण हैं पर भक्ति बिल्कुल नहीं करते, तो यह विजातिय हैं, आप जन्म अनुसार कायस्थ हो सकते हैं, पर भक्ति में शुद्ध वैष्णव हैं इसलिए आप ही मेरे लिए सजातीय हैं (यानी आप भगवान से करीब हैं)   https://www.youtube.com/watch?v=p6FHcsg5Wg8&t=393 7.08: नाग पत्नी जो कालिया नाग की पत्नियां हैं, जब भगवान को प्रार्थना भाव से संस्तुति करती हैं तो एक श्लोक में भगवान श्याम सुंदर की स्तुति करते हुए कहती हैं....,  प्रभु आपका अवतार, ईस हेतु आप आते हैं, इस जगत में खल (demons) का नष्ट विनष्ट करने के लिए और वह खल किसी भी जन्म, किसी भी योनि में हो, किसी भी जाति में हो, या आपका स्वयं पुत्र भौमासुर क्यों ना हो, आप उसी हाथ से वध करते हैं इतना सुंदर गुण है आपका, तो इसलिए हे प्रभु ऐसे आपका सुनिर्मल चित्त देखकर कौन वह व्यक्ति होगा जो आपको नमस्कार अर्पण ना करें https://www.youtube.com/watch?v=p6FHcsg5Wg8&t=428 Standby link (in case youtube link does not work) मोह क्या होता है HG Amrendra Prabhu.mp4

Wednesday, June 16, 2021

Srimad Bhagavatam 6.4.25 by HG Amarendra Prabhu, 16 Nov 2022 - Salient Points

 

 

Srimad Bhagavatam 6.4.25 by HG Amarendra Prabhu, 16 Nov 2022 - Salient Points

 

https://www.youtube.com/watch?v=ER-m2NhJ7Aw

 

Salient Points as noted by me:

15.16Bhakti is called स+हिता, means along with & हिता means welfare. So, Bhakti brings supreme well-being for one & therefore books containing bhakti are called साहित्य

https://youtu.be/ER-m2NhJ7Aw?t=916

 

18.25 we cannot see Krishna, examples.

https://youtu.be/ER-m2NhJ7Aw?t=1104

 

21.53Krishna appears to us in so many ways to reciprocate with us & only to uplift us. He appears as His holy books, His विग्रह (deities), as Shri Vrindavan dham, as गुरुदेव - if we think gurudev is simply a human being, it is considered an offence.  

https://youtu.be/ER-m2NhJ7Aw?t=1313&

https://youtu.be/ER-m2NhJ7Aw?t=1678

 

24.25 why guru is more important than all demigods.

https://youtu.be/ER-m2NhJ7Aw?t=1465

 

29 none can know or describe Greatness & Opulence of Krishna, unless Krishna reveals Himself to His pure devotees.

https://youtu.be/ER-m2NhJ7Aw?t=1701

 

30.55 His माधुर्य भाव & He is grave, means we cannot understand what He is thinking. We can never estimate / understand / appreciate how much He loves us all.

https://youtu.be/ER-m2NhJ7Aw?t=1850

 

32.28 one incident of Prabhupad : once some devotees were cooking, Prabhupada came and asked they said we have 50 pounds of rice, 50 pounds of sugar etc.  Prabhupada told them that it is Krishna who is provided this much quantity for us devotees whereas outside कर्म कांडी persons strive day and night to get one pound.

https://youtu.be/ER-m2NhJ7Aw?t=1948

 

35 25 Essence of the essence of the essence of everything is Krishna.

36.30 in this world by basically selfish nature, as long as we have something to give to others, people come to us, otherwise they avoid & ignore.

https://youtu.be/ER-m2NhJ7Aw?t=2330

40 15 3 types of gratitude: Ayodhya type: where all are grateful for everything, Kishkinda type where people sometimes they are grateful sometimes they are not & Lanka type where people are never grateful.

46.15 we serve a lowly boss but we ignore Super boss Krishna.

49.15दुर्भाग्य है if we love anyone anything in this world apart from Krishna.

51.45 sarvam Krishna arpanam वस्तु

55 28 Krishna is too great.

56.08 Krishna comes in the form of...... to rescue us.

57.18 He has the greatest compassion.

59 40 Gita as it is, explained why best.

1 0 10we can never understand Krishna but like a father, if he desires, lifts the son on his shoulders - likewise if Krishna desires, He can reveal Himself to His devotees. 

1 02 20 Krishna created the universe and simultaneously the Vedas and Prabhupad similarly created ISKCON and Bhakti Vedant trust books.

1 02 55 we can never understand Krishna.

1 04 54 Guru destroys darkness, given some examples.

1 06 35 which is the book to start with

1 11 31 what if garlic onion people eat at home and they force you.

1 14 10 why did Arjuna ask Krishna to show His cosmic Universal form.

1 14 39 how to overcome initial hesitation in performing bhakti.

1 17 31 why Satyug etc. are not found in evidence in archaeology.

1 18 49 Darwin for father might have been monkeys but Prabhu Path says my father was appreciate.

1 20 01 it is not the instinct only but Lord who sits in heart of each being, even insects, & so God guides.

1 21 52 Science if you dig Deep you come to the divnity point.

1 25 15 only one rule; remember Krishna all the time.

1 28 30 five fingers point to five principles 1. Worship Krishna, son of Nanda maharaj 2. Be attached only to Vrindavan 3. Follow the footsteps of Gopis 4. Study Srimad Bhagvat 5. Aim of our life is to develop for Shri Radha Krishna

-------------

Following is copy pasted from Transcript given on this youtube link:

 

https://www.youtube.com/watch?v=ER-m2NhJ7Aw

 

0:00

0:05

0:11

0:17

0:23

0:41

1:57

2:14

2:22

2:28

2:41

2:46

3:21

3:40

3:46

3:51

3:59

4:05

4:12

4:18

4:45

4:51

5:07

5:12

5:18

5:25

5:34

5:43

5:50

6:03

6:09

6:22

6:29

6:41

6:51

6:58

7:04

7:12

7:22

8:06

8:30

8:36

8:43

8:49

9:00

9:43

10:05

10:29

10:45

10:55

11:01

11:07

11:13

11:19

11:37

11:49

11:57

12:03

12:09

12:16

12:23

12:28

12:33

12:39

12:46

12:52

12:58

13:03

13:10

13:17

13:44

13:50

13:56

14:01

14:11

14:16

14:24

14:32

14:39

14:45

14:51

14:59

15:09

15:16

15:22

15:29

15:36

15:43

15:49

15:55

16:01

16:07

16:12

16:18

16:23

16:29

16:38

16:45

16:52

16:57

17:04

17:11

17:18

17:26

17:34

17:42

17:50

17:55

18:03

18:09

18:15

18:22

18:29

18:34

18:43

18:48

18:54

19:01

19:07

19:13

19:20

19:26

19:32

19:37

19:43

19:51

19:56

20:02

20:07

20:15

20:20

20:26

20:31

20:38

20:44

20:52

20:58

21:04

21:10

21:15

21:22

21:29

21:36

21:43

21:52

22:00

22:06

22:32

22:38

22:44

22:49

22:55

23:02

23:08

23:14

23:19

23:26

23:35

23:40

23:45

23:51

23:59

24:04

24:11

24:17

24:25

24:32

24:37

24:43

24:49

24:56

25:02

25:08

25:14

25:21

25:28

25:35

25:40

25:48

25:54

26:00

26:07

26:13

26:20

26:27

26:32

26:38

26:45

26:52

27:00

27:07

27:21

27:27

27:33

27:38

27:46

27:53

28:00

28:07

28:14

28:21

28:28

28:36

28:42

28:47

28:53

28:59

29:06

29:21

29:28

29:34

29:40

29:49

29:55

30:03

30:10

30:16

30:24

30:30

30:37

30:45

30:53

30:58

31:04

31:11

31:16

31:23

31:28

31:34

31:39

31:45

31:50

31:56

32:04

32:09

32:15

32:21

32:28

32:34

32:42

32:47

32:54

33:00

33:08

33:14

33:20

33:26

33:32

33:39

33:44

33:50

33:56

34:02

34:08

34:13

34:20

34:25

34:32

34:39

34:47

34:52

34:58

35:04

35:10

35:16

35:25

35:32

35:39

35:45

35:51

35:57

36:04

36:11

36:17

36:24

36:30

36:35

36:42

36:48

36:54

37:00

37:07

37:12

37:19

37:26

37:32

37:38

37:43

37:50

37:57

38:05

38:11

38:16

38:22

38:28

38:34

38:42

38:48

38:54

38:59

39:06

39:12

39:19

39:27

39:33

39:40

39:45

39:52

39:59

40:05

40:15

40:21

40:27

40:36

40:42

40:49

40:54

41:00

was doing so much

41:06

41:13

41:19

41:31

41:37

41:44

41:50

41:57

42:04

42:10

42:17

42:23

42:30

42:37

42:44

42:51

42:56

43:03

43:10

43:19

43:26

43:32

43:38

43:43

43:49

43:55

44:01

44:07

44:13

44:18

44:24

44:29

44:37

44:43

44:49

44:55

45:39

45:45

45:53

46:00

46:08

46:14

46:20

46:26

46:32

46:37

46:44

46:56

47:01

47:08

47:15

47:23

47:30

47:36

47:44

47:52

47:58

48:05

48:10

48:17

48:22

48:29

48:38

48:43

48:51

48:59

49:04

49:10

49:15

49:20

49:26

49:33

49:39

49:46

49:52

49:58

50:03

50:08

50:14

50:21

50:27

50:34

50:40

50:46

50:54

50:59

51:05

51:14

51:20

51:27

51:34

51:42

51:50

51:55

52:00

52:05

52:10

52:18

52:24

52:31

52:36

52:43

52:49

52:55

53:02

53:09

53:16

53:30

53:35

53:43

53:49

53:55

54:02

54:08

54:15

54:25

54:33

54:40

54:46

54:51

54:58

55:04

55:10

55:16

55:22

55:28

55:34

55:40

55:47

55:54

56:00

56:08

56:15

56:21

56:26

56:34

56:40

56:45

56:51

56:56

57:11

57:18

57:23

57:31

57:38

57:44

57:49

57:57

58:07

58:14

58:20

58:25

58:31

58:38

58:45

58:52

58:57

59:03

59:08

59:14

59:21

59:28

59:34

59:40

59:48

59:55

1:00:02

1:00:10

1:00:16

1:00:22

1:00:27

1:00:33

1:00:40

1:00:48

1:00:55

1:01:02

1:01:10

1:01:16

1:01:21

1:01:27

1:01:32

1:01:37

1:01:44

1:01:50

1:01:57

1:02:03

1:02:09

1:02:14

1:02:20

1:02:28

1:02:36

1:02:41

1:02:48

1:02:55

1:03:02

1:03:07

1:03:12

1:03:17

1:03:24

1:03:33

1:03:42

1:03:48

1:04:24

1:04:30

1:04:36

1:04:47

1:04:54

1:04:59

1:05:04

1:05:11

1:05:17

1:05:22

1:05:29

1:05:41

1:05:48

1:05:56

1:06:01

1:06:06

1:06:13

1:06:28

1:06:35

1:06:41

1:06:46

1:06:52

1:06:58

1:07:06

1:07:11

1:07:17

1:07:23

1:07:31

1:07:38

1:07:45

1:07:51

1:07:57

1:08:02

1:08:10

1:08:16

1:08:22

1:08:28

1:08:35

1:08:43

1:08:48

1:08:55

1:09:01

1:09:06

1:09:13

1:09:19

1:09:35

1:09:40

1:09:48

1:09:54

1:10:00

1:10:07

1:10:12

1:10:19

1:10:26

1:10:32

1:10:38

1:10:44

1:10:51

1:10:57

1:11:03

1:11:10

1:11:18

1:11:24

1:11:31

1:11:37

1:11:45

1:11:50

1:11:57

1:12:03

1:12:10

1:12:16

1:12:23

1:12:29

1:12:34

1:12:41

1:12:48

1:12:57

1:13:03

1:13:11

1:13:17

1:13:24

1:13:29

1:13:41

1:13:47

1:13:56

1:14:02

1:14:10

1:14:16

1:14:24

1:14:39

1:14:45

1:14:52

1:14:58

1:15:04

1:15:10

1:15:16

1:15:23

1:15:29

1:15:36

1:15:44

1:15:50

1:15:56

1:16:02

1:16:09

1:16:16

1:16:23

1:16:31

1:16:36

1:16:41

1:16:49

1:16:55

1:17:24

1:17:31

1:17:37

1:17:45

1:17:52

1:17:58

1:18:05

1:18:10

1:18:16

1:18:22

1:18:31

1:18:37

1:18:43

1:18:49

1:18:55

1:19:03

1:19:10

1:19:19

1:19:25

1:19:30

1:19:36

1:19:42

1:19:48

1:19:55

1:20:01

1:20:07

1:20:13

1:20:18

1:20:25

1:20:30

1:20:36

1:20:41

1:20:49

1:20:55

1:21:00

1:21:06

1:21:12

1:21:19

1:21:26

1:21:34

1:21:41

1:21:47

1:21:52

1:21:58

1:22:03

1:22:10

1:22:16

1:22:22

1:22:29

1:22:36

1:22:41

1:22:48

1:22:53

1:22:59

1:23:05

1:23:11

1:23:17

1:23:23

1:23:30

1:23:35

1:23:42

1:23:48

1:24:02

1:24:09

1:24:14

1:24:21

1:24:51

1:24:58

1:25:03

1:25:10

1:25:15

1:25:23

1:25:30

1:25:37

1:25:43

1:25:48

1:25:54

1:25:59

1:26:05

1:26:12

1:26:18

1:26:24

1:26:30

1:26:36

1:26:41

1:26:47

1:26:52

1:26:59

1:27:05

1:27:11

1:27:17

1:27:23

1:27:32

1:27:38

1:27:43

1:27:48

1:27:54

1:28:03

1:28:09

1:28:16

1:28:57

1:29:02

1:29:07

1:29:13

1:29:20

1:29:26

1:29:31

1:29:38

1:29:45

1:29:51

1:29:59

1:30:06

1:30:14

1:30:20

1:30:27

1:30:32

1:30:39

-