Sunday, January 3, 2021

OUR MIND IS RESTLESS BECAUSE IT IS IN NEED OF PURE LOVE WHICH IS POSSIBLE ONLY FROM LORD #Blog0063

OUR MIND IS RESTLESS BECAUSE IT IS IN NEED OF PURE LOVE WHICH IS POSSIBLE ONLY FROM LORD


जिसका पेट भरा हो वह भोजन की तरफ देखता भी नहीं 
यह जो यहां से वहां से पा लेना, छीन लेना, झपट लेना 
यह सब वृत्तियां (tendencies) है यह सब क्यों है, क्योंकि मन भूखा है, 
अभाव मन का सतत (constantly) प्रयास करवा रहा है      

लेकिन एक अंधा व्यक्ति जिसे पथ ना सूझता हो      
वह बेचारा क्या करे      
वह लाठी के सहारे यहां वहां पग धरता है
कभी ठोकर खाता है कभी गिर पड़ता है      
कभी कांटे पर भी पैर पड़ता है कभी फूल पर भी पैर पड़ता है      
और बिल्कुल जीव की ऐसी ही दशा है      

मन के नेत्र बंद हैं      
कभी जीवन में थोड़ी प्रसन्नता आती है      
मानो फूल पर पैर पड़ गया और      
कभी कष्ट आया मानो कांटे पर पैर पड़ गया 
और इसी सुख और दुख के झूले में झूलता जीवन समाप्त हो गया

Our mind is restless because it is in need of pure love. Pure love is when there is no demand from other side for anything. And this is possible only with Lord, our Creator.

In absence of pure love, our mind flickers all the time & being thus deprived, it tries to snatch this or that under the illusion (माया) feeling that this or that might make it happy & contented but it can never happen from anything in this world even if you "करलो दुनिया मुठ्ठी में" 

And in this pull & push of anxieties, tensions & useless labours, all life comes to an end & we are continuously trapped in worldly birth death cycle, old age, misery & disease.