एक तरफ कहते हैं कि कर्म करो दूसरी ओर होता वही है जो भगवान ने लिखा है तो कर्म क्यों करें ? by Swami Premanand ji
https://www.youtube.com/watch?v=0mwnu4V5CyE Full Text 1# अनुपमा जी, पटियाला से, राधे राधे महाराज जी, भगवान ने मनुष्य को कर्म करने के लिए कहा है, लेकिन राम चित मानस में उल्लेख है कि “होई है सोई, जो राम रची राखा” तो सत्य क्या है ? सदगुरुदेव, सत्कर्म करने पर भी जब परिस्थिति प्रतिकूल हो रही हो, मन को ये समझाना ठीक है ? ये तभी बोला जाता है “करि देखा बहु जतन जब रहइ न दच्छकुमारि” (see text 1 below) https://www.youtube.com/watch?v=0mwnu4V5CyE&t=0 2 जब भगवान ने अपनी प्रिया सती जी को बार-बार समझाया, यह प्रसंग है, कि भगवान श्री राम सिया जी की प्रेम विकलता में लताओं से पूछ रहे हैं मृग से पूछ रहे हैं “हे खग, हे मृग, मधुकर श्रेणी, तुम देखी सीता मृग नैनी” ? उस समय भगवान शंकर ने कहा, “जय सच्चिदानंद परमधाम प्रभु की जय”, सती जी के मन में आया कि राम अगर सच्चिदानंद है तो सच्चिदानंद त्रिकालज्ञ होता है, भूत भविष्य वर्तमान तीनों काल का ज्ञान, फिर लताओं से, खग, मृग, पक्षी, पशु, पक्षियों से पूछ रहें हैं कि तुमने मृगनैनी सीता को देखा है क्या ? तीनों काल का ज्ञान नहीं इनको ? https://www.youtube.com/watch?v=0mwnu4V5CyE&t=25 3 और अगर अल्पज्ञ है तो भगवान शंकर सर्वज्ञ है, यह जय सच्चिदानंद परम धाम कह के क्यों प्रणाम किया ? “अस संशय मन भय अपार”, संशय हुआ, तो भगवान शंकर ने देखा, तुम्हारे मन में बहुत संदेह है, संदेह मत करो, बड़े-बड़े मुनी योगी जिनका ध्यान करते हैं, वही भगवान श्री राम हैं, यह लीला के लिए मनुष्य रूप धारण किया है, इसलिए वह ऐसा पूछ रहे हैं, सती जी को बहुत समझाया लेकिन नहीं समझ में आया, तब कहा, “जो तुम्हरे मन अति संदेह, तो किन जाए परीक्षा लेहु”, https://www.youtube.com/watch?v=0mwnu4V5CyE&t=73 4 सती जी राजी हो गई और परीक्षा के लिए चल पड़ी, तब कहा, “होई है सोई जो राम रची राखा”, (see text 2 below) पूरा प्रयास करने पर भी जब परिणाम सही नहीं निकला और वह परीक्षा के लिए गईं, तब ये बोला “होई सोई जो राम रची राखा”, अपना कर्तव्य कर्म करें और परिणाम अगर हमारे विपरीत आ रहा है, इसका मतलब, भगवान ने कुछ लीला रची है, अब कुछ होगा, होगा विनाश लीला ही, अगर समझाने से समझ में नहीं आ रहा, सत धर्म से चलना नहीं आ रहा, तो विनाश लीला ही होगी और तो कुछ होने वाला नहीं, https://www.youtube.com/watch?v=0mwnu4V5CyE&t=108 5 अब सती जी गई और सोचा, अगर यह राजा है, और सिया जी की खोज कर रहे हैं, तो मैं सीता रूप धारण करूंगी तो देखते ही कहेंगे, मिल गई सिया जी, अगर त्रिकालज्ञ भगवान हैं तो अभी पता चल जाएगा, लता की ओट में हुई और तत्काल अपना रूप सीता जी का रखा, सामने गईं, “verse“ https://www.youtube.com/watch?v=0mwnu4V5CyE&t=150 6 राम ने कहा मैं आपको नमस्कार करता हूँ, हे माता, भगवान शिव को छोड़कर, अकेले कहां और सीता जी का रूप, कांप गईं, कि हम तो समझ रहे थे, देखते ही कहेंगे, आओ सीता मिल गई लेकिन यह क्या, यह तो हमारा पूरा सब रहस्य जानते हैं, फिर देखा, अनंत ब्रह्मांड में अनंत राम, अनंत सिया, अनंत लक्ष्मण, इतना वैभव देखा, आंख मूँदकर बैठ गईं, तब फिर देखा, फिर वो ऐसे पूछ रहे हैं, हे खग, हे मृग, हे मधुकर, https://www.youtube.com/watch?v=0mwnu4V5CyE&t=177 7 भगवान शंकर ने कहा राम की परीक्षा ली ? झूठ बोल गई भगवान शंकर से, “कछु न परीक्षा लीन गोसाईं और कीन प्रणाम तुम्हारी नाई” कि जैसे आपने राम को प्रणाम किया, मैं भी वैसे ही प्रणाम करके चली आई, कोई परीक्षा नहीं ली, भगवान शंकर ने कहा, जब मैं समझा रहा था, तो संशय नहीं गया, वहां जाकर केवल प्रणाम करके चली आओगी ? https://www.youtube.com/watch?v=0mwnu4V5CyE&t=210 8 तब देखयो “शंकर धर ध्याना सती जो चरित कीन जाना, शिव संकल्प कीन मन माही, ये तन भेंट सती अब नाहीं, आखिरकार सती जी को पिता के यज्ञ में जाकर अपना शरीर भस्म करना पड़ा, यह हुआ, “राम रची राखा”, ये तब कहा जाता है, जब अपना पूरा कर्तव्य करके देख लिया और परिणाम हाथ में नहीं https://www.youtube.com/watch?v=0mwnu4V5CyE&t=235 -----------
(see text 1 above) कहि देखा हर जतन बहु रहइ न दच्छकुमारि। दिए मुख्य गन संग तब बिदा कीन्ह त्रिपुरारि॥62॥ भावार्थ:-शिवजी ने बहुत प्रकार से कहकर देख लिया, किन्तु जब सती किसी प्रकार भी नहीं रुकीं, तब त्रिपुरारि महादेवजी ने अपने मुख्य गणों को साथ देकर उनको बिदा कर दिया॥62॥ https://www.shriramcharitmanas.in/p/baal-kand_36.html (see text 2 above) "होइहि सोइ जो राम रचि राखा" एक प्रसिद्ध चौपाई है जो रामचरितमानस से ली गई है। इसका अर्थ है, जो कुछ राम ने रच रखा है, वही होगा।" यह चौपाई इस बात पर जोर देती है कि हमें ईश्वर की इच्छा पर विश्वास करना चाहिए और किसी भी तर्क से उसे बदलने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। [1, 2] चौपाई: होइहि सोइ जो राम रचि राखा। को करि तर्क बढ़ावै साखा।। (होइहि सोइ जो राम रचि राखा। को करि तर्क बढ़ावै साखा।।) अर्थ: जो कुछ श्री राम ने निश्चित कर रखा है, वही होगा। तर्क करके उसे बदलने की कोशिश न करें। [1, 2] भावार्थ: यह चौपाई हमें कर्म के फल पर विश्वास करने और ईश्वर की इच्छा को स्वीकार करने का संदेश देती है। हमें अपनी बुद्धि और तर्क से परे जाकर, ईश्वर की इच्छा पर भरोसा करना चाहिए। यह चौपाई हमें धैर्य और समर्पण का पाठ सिखाती है। उदाहरण: रामचरितमानस में, जब सती भगवान शिव के कथन पर विश्वास नहीं कर पाती हैं, तब वह कहती हैं कि "होइहि सोइ जो राम रचि राखा" अर्थात् जो कुछ राम ने रच रखा है वही होगा। निष्कर्ष: "होइहि सोइ जो राम रचि राखा" एक महत्वपूर्ण चौपाई है जो हमें धैर्य, समर्पण और ईश्वर की इच्छा पर विश्वास करने का पाठ सिखाती है। [1] https://shriramshalaka.com/chaupai/hoi-hi-soi-jo-ram-rachi-rakha [2] https://www.facebook.com/watch/?v=387362284258839
Standby link (in case youtube link does not work) एक तरफ कहते हैं कि कर्म करो दूसरी ओर होता वही है जो भगवान ने लिखा है तो कर्म क्यों करें BhajanMarg.mp4