Wednesday, May 26, 2021

Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj Pravachan Part 5 - Full Transcript Text

Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj Pravachan Part 5

https://www.youtube.com/watch?v=FBhBL8I8dOc

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Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj Pravachan Part 5.mp4

0.07 हम इतना अहंकार करते हैं अपनी बुद्धि पर - कौन संत है कौन संत नहीं है, अरे अपनी पत्नी, अपने पति, अपने बेटे बेटी को, यहाँ तक की स्वयं अपने आप को तो आप समझ नहीं पाए - संत और भगवान को क्या समझोगे ?

0.27 आप स्वयं अपने मन को नहीं समझ पाए, तुम को तुम्हारा ही मन नचा रहा है आदि काल से, 84,00,000 योनियों में घूमा रहा है, अगर मन की 420 हरकतों को समझ पाते, तो मन की बात को नहीं मानते,  सारा कसूर मन का है

1.55 ये मानव देह इतनी मुश्किल से, इतने भाग्य से मिला है असीम कृपा हैं भगवान की, देवता भी मानव देह मांगते है

2.50 मानव देह भी मिल गया, मान लो संत / गुरु  भी मिल गए, मगर एक गलती हमने कर दी की श्रद्धा नहीं रखी

3.35: हमारी बुद्धि ने गड़बड़ करके अहंकार कर के, श्रद्धा नहीं होने दी

3.45 India का कानून America Russia में नहीं लगता तो बुद्धि जो केवल चमड़े की आँख और पंचभूत (5 senses of perception) से दिखाई देने पर विश्वास करती है तो जो भगवान पर्दे के पीछे है और मन बुद्धि इन्द्रियों से परे हैं, उनपर कैसे विश्वास करेगी बुद्धि - इसलिए पहले मानना पड़ता है उसके बाद जाना जाता है

4.14 "गो गोचर जहां लग मन जाई, सो सब माया" - (गोचर = whatever is accessible) wherever our physical eyes can see, all is illusion (माया)   

5.12: राजा जनक की सभा में अष्टवक्र ऋषि (bent at 8 places in body) गए और सब ने उनका मजाक बनाया और हँसे, अष्टवक्र ने उन सबको चमार कह डाला, क्योंकि चमार केवल चमड़ी (skin) की पहचान करता है आंतरिक गुणों को नहीं देखता

7.14 बेर का फल बाहर इतना सुन्दर और भीतर इतनी बड़ी गुठली जबकि नारियल बाहर से कुरूप मगर अंदर से सफेद पौष्टिक

7.30  केवल बाहर देखना मूर्खों का काम है और भीतर देखना बुद्धिमानों का काम है

8.17 अब संत महापुरुष के पास कौन सी डिग्री है आप तो बुद्धि लगाएंगे इसलिए श्रद्धा नहीं जागेगी

9.20 महापुरुष को महापुरुष मान लेना ये ही श्रद्धा है, वो जो कहें तो क्यों, किंतु, परंतु, लेकिन, कुछ नहीं करना, जैसी हम डॉक्टर की बात 100% मानते हैं, ऐसे ही spiritual doctor की बात को मानो

11.20 इसलिए पहले श्रद्धा हो फिर मांगिए सतसंग

11.34 पारस और लोहे का उदाहरण, जब तक दोनों संग नहीं मिलेंगे तो सोना नहीं बनेगा, ऐसे ही यदि गुरु सच्चा है मगर शिष्य शरणागत नहीं है, श्रद्धा नहीं है, तो बात नहीं बनेगी

12.48 यदि ब्रह्मा जी भी आ जाए गुरु बनकर और एक ऐसा शिष्य जो शरणागत नहीं है तो शिष्य का कल्याण नहीं होगा

14.0 नास्तिक लोग ऐसा बोलते हैं : यदि कृपालु जी के कहने से सभी भगवान की और चले जाएं तो संसार तो खत्म हो जाएगा

14.37: महापुरुष असली है और शिष्य शरणागत है त ही बात बनेगी, अगर गुरु नकली है तो कहेगा  कि सुन्दर कांड पड़ लो, गीता का बारहवां अध्याय पढ़ लो, इतनी बार जप कर लो, वगैरह- वगैरह

15.40 जितने भी संसार में मंत्र है सबका दो ही अर्थ है: 1. हे भगवान आप पर नमन हैं 2. हे भगवान हम आपकी शरण में हैं

17.45 ऐसे नकली गुरु का प्रवचन है जैसे नकली चेक (like no money in bank but cheque issued)