Thursday, May 28, 2020

LIFE IS A JOURNEY FROM “ASSUMING” TO “KNOWING” - जीवन मानने से जानने की यात्रा है - जिस्म से रूह तक - शिकायत से शुक्रिया तक #Blog0009

जीवन मानने से जानने की यात्रा है 

Life is a journey from “assuming” to “knowing”


हम या तो मानते ही नहीं है 

या मानने तक ही सीमित रह जाते हैं 

we, first of all do not assume or if we assume, we remain limited till that assumption point only


मानना आवश्यक है, मगर मान के ही रुक जाना यह उचित नहीं है 

मानना किस लिए है क्योंकि मानने से आरंभ करके आपको जानने तक पहुंचना है,इसलिए आपको मानना है 

Assumption is necessary to start with but we have to proceed further till “knowing”


लेकिन आपके मेरे जीवन की दुविधा, पीड़ा, निर्बलता, विचार हीनता है कि हम मान कर कार्य समाप्त कर देते हैं 

मान लिया भगवान है और जीवन भर उोछी सी क्रियाएं करते रहे, भक्ति को भी एक क्रिया बना दिया 

But because of our duality, the pain, the inner weakness & sheer thoughtlessness, we do not proceed beyond assumption thus making even bhakti a mere action and consequently

और अंत में क्या हुआ 

“दुविधा में दोनों गए, माया मिली ना राम” 

“इत व्यवहार ना उत परमार्थ, बीचो बीच जनम गवायो” 

And consequently..

“we lost both - the world & the Lord”

“neither this world, nor God – lost our life in between” 


मानने से जानने की यात्रा - 1st video


मानने से जानने की यात्रा - 2nd video

or

मानने से जानने की यात्रा - 2nd video (standby)

Life is a game - do not play a losing game - PLAY A WIN WIN GAME BY INVESTING & BANKING IN LORD


जैसे ये video किसी ने तो बनाई है न, बिना किसी के बनाये तो अपने आप बनी नहीं !  ऐसे ही (EXACTLY LIKEWISE) एक (One) शक्ति है जिसने ये सब रचना की है, जिसके निर्देश पर सब चल रहा है केवल इतनी सी बात ही तो माननी है (समझनी है) ये जीवन "मानने" से "जानने" की यात्रा है  या यूं कह लो कि  "जिस्म से रूह तक"

या यूं कह लो कि 

"शिकायत से शुक्रिया तक"

दो ही तो "कर्म" है दुनिया में : या तो स्वार्थ (selfish) या तो परमार्थ (dedicated to Lord i.e. done for Lord's sake)  या तो कर्म (anything done with God not in mind or not dedicated to Lord)  या तो भक्ति (done while dedicated to Lord)

कर्म बाँधता है चाहे कुकर्म हो चाहे या शुभ कर्म (आपको वापस संसार में जन्म लेना ही पड़ेगा कर्म का फल भोगने के लिये, कुकर्म का फल दुख, शुभ कर्म का फल सुख - आप Ambani बन सकते हैं Bill Gates बन सकते हैं)   और भक्ति मुक्त करती है, जीवन मरण के चक्र से liberate करती है यदि आपको संसार में वापस आना ही है तो भक्ति की कोई आवश्यकता नहीं है मगर अगले जन्म की guarantee कुछ नहीं है कि मानव जन्म ही होगा

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LIFE IS A JOURNEY FROM ASSUMPTION TO FAITH "असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम् | अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्येते ||" अर्थात् : (श्री भगवान्बो ले) हे महाबाहो ! निःसंदेह मन चंचल और कठिनता से वश में होने वाला है लेकिन हे कुंतीपुत्र ! उसे अभ्यास और वैराग्य से वश में किया जा सकता है | असल में मन चंचल नहीं है, मन बेकरार (restless, anxious) है सतत (constant) खोज में – सच्चे और स्थायी प्रेम के लिए - और संसार में सच्चा और स्थायी प्रेम है नहीं – इस बेकरारी को हम चंचलता कह देते हैं इसलिए एक ही युक्ति है, बाप - एक ही युक्ति है “The pure souls are eternally in love with Krshna, and this permanent love, either as a servant, a friend, a parent or a conjugal lover, is not at all difficult to revive. Especially in this age, the concession is that SIMPLY BY CHANTING THE HARE KRSHNA MANTRA (“HARER NAMA HARER NAMA HARER NAMAIVA KEVALAM”) ONE REVIVES HIS ORIGINAL RELATIONSHIP WITH GOD AND THUS BECOMES SO HAPPY that he does not want anything material” (Srimad Bhagvat) (HARE KRSHNA MANTRA = हरे कृष्ण, हरे कृष्ण,कृष्ण कृष्ण,हरे हरे ,हरे रामा, हरे रामा, रामा रामा, हरे हरे) अब इसमे बुद्धि मत लगाना, इसमे क्यों, कैसे मत करना आप पूछोगे कृष्ण कृष्ण जपने से कृष्ण प्राप्त हो जाएंगे? क्या केवल पानी पानी बोलने से प्यास बुझ जाती है ? कोई आपसे पूछे कि जहर क्या होता है आप कहोगे कि इससे मृत्यु हो जाती है आपसे पूछें कि आपको कैसे मालूम, आपने तो जहर का अनुभव नहीं किया आप कहोगे, नहीं हमें मालूम है, सब लोग कहते हैं आप टैक्सी में बैठते हैं, तुम ड्राइवर से ये तो नहीं पूछते कि चला लोगे? गाड़ी आती है चलानी? यह मानकर ही तो बैठते हो कि पहुँचा देगा सही सलामत जब हम बालक थे तो मां ने कहा बेटा ये आपके पिता है, तो हमने मान लिया कि ये हमारे पिता ही हैं   Maths में भी, we say Let's ASSUME A=B & then we go on to PROVE that indeed A=B जीवन तो मानने से जानने की ही यात्रा है इसलिए मान लीजिए कि भगवान हैं ऐसे ही कृष्ण जाप से कृष्ण मिलते हैं, ये संतों, महापुरुषों, ग्रंथों और स्वयं भगवान के मुख वाक्य की बात मान लीजिए जीवन मानने से जानने की यात्रा ही तो है, केवल जिस्म से रूह तक ही तो जाना है “जहां बुद्धि की हद समाप्त होती है ,वहाँ से मस्ती की हद शुरू होती है” LIFE IS A JOURNEY FROM CONFUSION TO CONCLUSION -------------------------------------- *FAITH* is the name of the game, we have come to play in this life. ये जीवन मानने से जानने की यात्रा है  मानने से जानने की यात्रा है जीवन : हम लोग किसी की भी बात मान लेते हैं क्या किसी ऑटो वाले से या टैक्सी वाले से कभी पूछा है कि चलाना आता है? हड्डी पसली तो नहीं तोड़ दोगे किसी के भी पीछे चल दोगे किसी के भी पीछे बैठ जाओगे कभी किसी डॉक्टर से पूछा है कि यह लाल गोली, सफेद गोली शाम को क्यों, सुबह क्यों नहीं या खाने से पहले या बाद क्यों नहीं कभी पूछा है किसी डॉक्टर से कि पहले अपना certificate दिखाओ, तब हम दवाई लेंगे कोई आपसे पूछे कि जहर क्या होता है आप कहोगे कि इससे मृत्यु हो जाती है आपसे पूछें कि आपको कैसे मालूम, आपने तो जहर का अनुभव नहीं किया आप कहोगे, नहीं हमें मालूम है, सब लोग कहते हैं, यानि यहाँ भी हमने लोगों की बात मान ली ,बिना जाने  कभी पूछना अपने मन से, सब की बात मानते हो बिना बुद्धि का प्रयोग किये मानते हो लेकिन संत की बात नहीं मानेंगे भगवान के अपने श्री मुख की बात पर भी विश्वास नहीं होगा ऐसा इसलिए, क्योंकि "बिन हरि कृपा, मिले नहीं संता” (without God’s grace, even सदवचन (auspicious words) भी नहीं सुहाते  क्योंकि "तुद पावे, तो नाम जपावे"(Only if God accepts, can we take His name on our tongue) जाओ जाओ कहीं से भी होकर आओ मगर पानी तो "पुल के नीचे “से ही जायेगा *LIFE IS A JOURNEY FROM CONFUSION TO CONCLUSION BUT JOURNEY TO HIM STARTS ONLY WITH FAITH*

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दुविधा में दोनों गए - माया मिली ना राम

यह कबीर दास के द्वारा लिखे दोहे का भाग है इसलिए यह आध्यात्मिकता की ओर संकेत करता है। इसका अर्थ है सांसारिक इच्छाओं के पीछे भागना मगर प्रभु को पाने की भी लालसा रखना जिसके परिणाम स्वरूप ना संसार हमारे हाथ आता है और ना ही भगवान।

सांसारिक इच्छाओं के पीछे भाग मानव अपना काफी जीवन नष्ट कर देता है फिर भी उसकी सांसारिक अभिलाषा पूरी नहीं होती और इसी के साथ प्रभु भी उसे नहीं मिलते क्योंकि उसने अपनी बुद्धि प्रभु की तरफ लगाई ही नहीं  और हमेशा सांसारिक अभिलाषा के पीछे भागता रहा।

अंत में ऐसे व्यक्ति के हाथ कुछ नहीं आता, ना संसार हाथ में आता है और ना भगवान। दुविधा में मनुष्य< यह लोक और परलोक दोनों खो देता है।

दोस्तों भगवान का सुख ही सच्चा सुख है। वह नित्य हैं, सदा हमारे साथ रहने वाला है। वहीं दूसरी ओर, सांसारिक सुख नश्वर है, कुछ समय का है, और कम मात्रा का है इसलिए मैं आपसे यही विनती करूंगा कि आप तीव्रता के साथ अपने प्रभु का नाम जप कीजिए।

https://muhavare.com/duvidha-me-dono-gaye-maya-mili-na-ram/