Monday, May 24, 2021

Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj Pravachan Part 9 - Full Transcript Text

Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj Pravachan Part 9 

https://www.youtube.com/watch?v=A0m1iqNg42Q

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Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj Pravachan Part 9.mp4

0.0 स्वर्ग में भी आनंद नहीं मिलता, हाँ  कुछ सुख तो है मगर अस्थायी, वहाँ पर कुछ सुख भोगकर वापस मृत्युलोक में आना पड़ता है 

1.38 स्वर्ग में इंद्र भी ब्रह्मा का पद चाहते हैं, कोई यदि मृत्युलोक में भी तपस्या करे, तो इन्द्र परेशान हो जाते हैं कि कहीं उनका आसन ना छिन जाए, तो मेनका उर्वशी को भेजते हैं ताकि तपस्या भंग हो, ताकि इंद्र का आसान बना रहे, देखिये स्वर्ग के प्रधान में भी ईर्ष्या है

3.23 कर्मका फल स्वर्ग, वो भी अगर ठीक ठाक तरीके से किये गए हों - अन्यथा दंड - ऐसे कर्म को "नमस्कार" (यानी क्या लाभ, कर्म इतनी मेहनत के साथ करने की - और वो भी नश्वर स्वर्ग के लिए)

3.39 स्वर्ग भी मृत्युलोक की तरह ही है वहाँ भी तीनों प्रकार के दुख है आधिभौतिक आधिदैविक और आध्यात्मिक

4.19 आध्यात्मिक दुख दो प्रकार का होता है शारीरिक और मन - शारीरिक यानि रोग, दर्द, बुड़ापा और मन का यानि काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या

4.46 शारीरिक रूप से कितना भी स्वस्थ कोई हो अगर मन से मन के रोग से पीड़ित हैं तो खरबपति होने का भी क्या लाभ - depression में चला जाएगा - सुख नहीं मिल सकता

6.08  आदि भौतिक दुख - जो दूसरे से मिलता है

7.30 दुष्ट का स्वभाव है दूसरों को विपत्ति मेँ देख कर खुश होना और दूसरों की खुशी में दुखी होना

7.35 आप समझ गए की कर्म धर्म का पालन ही असंभव और अगर हो भी जाए तो केवल स्वर्ग ही मिलेगा, वहाँ भी सब दुख हैं, इसलिए कर्म धर्म के मार्ग को "नमस्कार" (यानी इसे करने का कोई लाभ नहीं है)

7.53 आप ज्ञान मार्ग की तरफ देखें, ये तो और भी कठिन है इसकी तो कल्पना भी न कीजिए   

8.22 ज्ञान के बारे में कहना ही कठिन है, उदाहरण : जैसे कोई कहे कि मैं ब्रह्म हूँ तू भाई सभी ब्रह्म है तो कौन किसको उपदेश कर रहा है ब्रह्म ब्रह्म को उपदेश कर रहा है ? - सब बकवास

9.15 शंकराचार्य से किसी ने पूछा की ज्ञान कब समझ में आएगा, उन्होंने कहा चार साधन पूरे कर लो उसके बाद समझ में आएगा, सम (मन पर नियंत्रण, जो कि परमहंसों को भी नहीं हो पाता - जो इंद्रियों को भी नियंत्रण में कर लेते है हो मन को नियंत्रण में नहीं कर पाते), दम

11.35 अर्जुन जो इंद्रियों को बस में कर चके थे मगर मन को नहीं

11.57 अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा कि मन बहुत चंचल है

12.36 दुनिया के 6 अरब आदमी में 6 लोग भी नहीं मिलेंगे जो कहें कि हमारा मन पर नियंत्रण है

13.05 ज्ञान मार्ग तो कलयुग में सर्वथा असंभव है,

13.12 और यदि कोई ज्ञान मार्ग पर चलें भी तो अनेक विघ्न आएँगे उससे क्योंकि भगवान उस की रक्षा नहीं करते, क्योंकि ऐसा ज्ञानी अपने बल पर चलता है

13.28 और भक्ति मार्ग वाले भगवान के बल पर चलते हैं