मोह क्या होता है ? by Amarendra
https://www.youtube.com/watch?v=p6FHcsg5Wg8
0:00 कई बार इस जगत में देखा जाता है द्वंद के आधीन होकर जीव अपने परिवार को प्राधान्य देता है यदि हमारे भाई हमारे बहन हमारे माता-पिता हमारे बंधु कुछ कुकर्म भी क्यों ना करें उसको छिपाकर हम कहते हैं सब कुछ ठीक है पर बाहर का व्यक्ति यदि कोई कुकर्म करे तो हम उसको दंडित करते हैं और कोई सद मार्ग पर चले तो निंदा करते हैं, इसको कहते हैं मोह https://www.youtube.com/watch?v=p6FHcsg5Wg8&t=0 0:46 भगवत गीता के प्रारंभ में अर्जुन के हृदय में भी इस भाव का प्रादुर्भाव होता है जिसको चकनाचूर कर देते हैं, प्रभु गीता के उपदेश से https://www.youtube.com/watch?v=p6FHcsg5Wg8&t=46 0:57 परंतु इस संदर्भ में देखा जाता है यदि व्यक्ति भगवान का पुत्र ना हो और भजन परायण हो और दैत्य कुल में भी उत्पन्न क्यों ना हो, प्रभु स्तंभ तोड़कर उस प्रहलाद की रक्षा में आतुरता प्रस्तुत करते हैं, अब देखा जाए तो प्रहलाद हो या महाराज बली हो यह सब दैत्य कुल में उत्पन्न हुए महापुरुष हैं तो भगवान यह कह सकते हैं कि वैसे तो इनका जन्म कोई सात्विक विशुद्ध सात्विक कुटुंब में वैष्णव कुल में तो हुआ नहीं, तो मैं क्यों पक्षपात करके इनके पक्ष में चलूं ऐसे प्रभु सोच सकते हैं परंतु कितना सुंदर हृदय है प्रभु का, व्यक्ति दुष्ट दैत्य कुल का हो, मगर भजन परायण हो, भक्ति में अग्रसर हो, तो प्रभु स्तंभ तोड़ते हैं हिरण्यकशु का और रक्षा करते हैं उन्हीं के पुत्र का https://www.youtube.com/watch?v=p6FHcsg5Wg8&t=57 1:58 यदि स्वयं का पुत्र जन्मा हुआ, जैसे जब वराह देव का जन्म आविर्भाव हुआ तो वराह देव और भूमि से उत्पन्न हुआ महापुरुष “भौम”, श्री भौम वैसे भगवान के ही सुपुत्र हैं परंतु मूर नामक असुर के संग के रंग के कारण, वह भी दुष्ट हो गए, वह भी "भौमासुर" बन गए, बहुत बड़ी सीख मिलती है, जैसा संग वैसा रंग ! https://www.youtube.com/watch?v=p6FHcsg5Wg8&t=118 2:39 उपदेशामृत में देखा जाता है दो शलोकों में श्री रूप गोस्वामी पाद, संग के विषय में वर्णन करते हैं, अगर संग सत्संग का हो साधु संग का हो, तो भक्ति में वर्धन (increase) है और यदि दुसंग हो, ऐसे व्यक्तियों का संग हो, जो भक्ति में बिल्कुल आतुरता नहीं रखते तो विनश्यति, सब नष्ट विनष्ट हो जाता है भजन https://www.youtube.com/watch?v=p6FHcsg5Wg8&t=159 3:04 चैतन्य चरितामृतम में वर्णन है कि यदि कृष्ण भक्ति में आगे निकलना हो तो साधु संग अति अनिवार्य है और कोई प्रेम प्राप्त महापुरुष भी क्यों ना हो, ऐसे महापुरुष के लिए भी अन्य महापुरुष वैष्णव के सत्संग में रहना यह उचित है https://www.youtube.com/watch?v=p6FHcsg5Wg8&t=184 3.39 तो भगवान का सुपुत्र भी क्यों ना हो, भौम यदि मुर नामक असुर का संग करता है तो “भौम” हो जाता है “भौमासुर” और प्रभु अपने हस्त कमल से उनका बध करते हैं, इतनी सुंदर बात बिल्कुल पक्षपात नहीं, मेरा पुत्र यदि खल (bad) निकले तो अपने हाथ से वध और यदि खल का पुत्र यदि भक्ति करे तो उन पुत्र के रक्षा करने हेतु मैं स्तंभ तोड़कर अवतरित होता हूं सुंदर ऐसा “समोहं सर्वभूतेषु” केवल प्रभु है और कोई नहीं https://www.youtube.com/watch?v=p6FHcsg5Wg8&t=219 4.17 हम सब कहीं ना कहीं किसी ना किसी दृष्टिकोण से पक्षपात करते हैं, जाति कुल का विचार होता है, देश का विचार होता है, धर्म का विचार होता है, भारतीय होने का तो विचार है ही, दक्षिण भारतीय उत्तर भारतीय का भी विचार है, किस गाँव के हैं, किस स्कूल से हैं इत्यादी https://www.youtube.com/watch?v=p6FHcsg5Wg8&t=257 4.51: परंतु प्रभु ऐसे निष्कपट, निर्मल, अमल स्वभाव के हैं, जो भजन करे वह प्रभु का और जो भजन ना करे वह “विजातिय" (यानी उन्हें भगवान अपने से निकट नहीं मानते हैं) है, जो भक्ति में अग्रसर नहीं “विजातिय" है, https://www.youtube.com/watch?v=p6FHcsg5Wg8&t=291 5.12: इतनी सुंदर बात है जब श्री चैतन्य महाप्रभु गोदावरी के तट पर रामानंद राय के साथ वार्ता संवाद में पूर्ण रूप से तल्लीन हैं, यदि देखा जाए महाप्रभु ब्राह्मण हैं, जन्म के दृष्टिकोण से तो है हीं, गुण के अनुसार भी ब्राह्मण हैं, भगवान हैं सन्यासी हैं, पूरे जगत के लिए जगतगुरु हैं और रामानंद राय कौन हैं राजकीय सेवक हैं , कायस्थ कुल में जन्म हुआ और गृहस्थ है, यदि वर्ण आश्रम जाति के विचार अनुसार देखा जाए तो हम कह सकते हैं कि दोनों अलग हैं, यह सन्यासी है तो वह गृहस्थ हैं, यह ब्राह्मण हैं तो वह कायस्थ हैं, और यह भगवान हैं तो वह दास हैं और यह संसार से मुक्त सन्यासी है तो वह राजकीय सरकार में सेवक हैं, परंतु जब उनके संवाद कविराज गोस्वामी वर्णन करते हैं, सभी अन्य ब्राह्मण आते हैं, वहां तो महाप्रभु यह कह सकते थे कि वो सब अन्य ब्राह्मण सजातीय हैं, जो ब्राह्मण हैं, मेरे पक्ष के हैं और आप कायस्थ हो आप मेरे पक्ष के नहीं हैं https://www.youtube.com/watch?v=p6FHcsg5Wg8&t=312 6.33: ऐसा यदि लौकिक विचार हो तो व्यक्ति ऐसा सोच सकता है, परंतु चैतन्य महाप्रभु आलिंगन प्रदान करते हैं रामानंद राय को और कहते हैं आप मेरे लिए सजातीय हैं यह सब अन्य ब्राह्मण मेरे लिए विजातीय हैं, क्यों, क्योंकि जन्म कुल आदि विचार से तो ब्राह्मण हैं पर भक्ति बिल्कुल नहीं करते, तो यह विजातिय हैं, आप जन्म अनुसार कायस्थ हो सकते हैं, पर भक्ति में शुद्ध वैष्णव हैं इसलिए आप ही मेरे लिए सजातीय हैं (यानी आप भगवान से करीब हैं) https://www.youtube.com/watch?v=p6FHcsg5Wg8&t=393 7.08: नाग पत्नी जो कालिया नाग की पत्नियां हैं, जब भगवान को प्रार्थना भाव से संस्तुति करती हैं तो एक श्लोक में भगवान श्याम सुंदर की स्तुति करते हुए कहती हैं...., प्रभु आपका अवतार, ईस हेतु आप आते हैं, इस जगत में खल (demons) का नष्ट विनष्ट करने के लिए और वह खल किसी भी जन्म, किसी भी योनि में हो, किसी भी जाति में हो, या आपका स्वयं पुत्र भौमासुर क्यों ना हो, आप उसी हाथ से वध करते हैं इतना सुंदर गुण है आपका, तो इसलिए हे प्रभु ऐसे आपका सुनिर्मल चित्त देखकर कौन वह व्यक्ति होगा जो आपको नमस्कार अर्पण ना करें https://www.youtube.com/watch?v=p6FHcsg5Wg8&t=428 Standby link (in case youtube link does not work) मोह क्या होता है HG Amrendra Prabhu.mp4