Still Not Changing After Satsang? Here's Why! | प्रवचन सुनकर भी न बदले... तो क्या फायदा? by Swami Mukundanand
https://www.youtube.com/watch?v=yb0a1s624VU Full Text 1 हम लोग जब मंदिर जाते हैं तो सोचते हैं, हां भाई भगवान है यहां पे कोई बदमाशी मत करो, वो भगवान का मंदिर है, भगवान देख रहा है, लेकिन जब बाहर जाते हैं तो सोचते हैं, कि यहां तो भगवान नहीं है, मंदिर नहीं, इसलिए यहां पे भगवान नहीं देख रहा, यहां पे जो करना है चालाकी 400 बीसी करो, ये हमारे भारतवासियों का सिद्धांत है, कान पवित्र करो, https://www.youtube.com/watch?v=yb0a1s624VU&t=6 2 जब बूढ़े हो गए अब घर में तो कोई पूछता नहीं, सत्संग में जाकर धर लो अपने को और सत्संग के बाद कोई पूछे कि पंडित जी ने क्या समझाया ? अरे भाई हमें क्या लेना देना ? क्या समझाया ? हम कान पवित्र कर रहे थे, तो कान चले जाएंगे गोलोक और आप यहीं रह जाओगे https://www.youtube.com/watch?v=yb0a1s624VU&t=32 3 अब दोनों काम एक साथ कैसे करें ? भगवान का ध्यान भी करो और कर्म भी करो, ये कर्म योग की एक शर्त है और वो शर्त में ही समस्या है, शर्त यह है श्री कृष्ण कहते हैं कि मन लगातार भगवान में बना रहे, अर्थात ऐसा नहीं कि सुबह उठ के आधा घंटा योग कर लिया, ठाकुर जी की पूजा कर ली, फिर ठाकुर जी को अलमारी में बंद कर दिया, चलो भगवान अब मैं संसारी कार्य कर रहा हूं और फिर लास्ट में जाके कुछ कुकर्म भी कर दिया https://www.youtube.com/watch?v=yb0a1s624VU&t=51 4 अब हम कहते हैं कि साहब हमने योग भी किया था कर्म भी किया था अब हम कर्म योगी हैं, श्री कृष्ण कहते हैं कि कर्म करते समय तुम योग में रह सको यह कर्म योग कहलाएगा, कर्म भी हो और योग भी हो दोनों एक साथ हो जाएं वो कहलाएगा कर्म योग https://www.youtube.com/watch?v=yb0a1s624VU&t=96 5 तो आप कहेंगे साहब ये तो बड़ा कठिन है कि कर्म के साथ हम योग में भी रहें, अरे कठिन क्या यह तो असंभव है, आप दोनों काम एक साथ कैसे करेंगे ? भगवान का ध्यान भी करो और कर्म भी करो, कोई भी कर्म करने में मन को तो लगाना पड़ता है, मन के बिना भला कर्म कैसे होगा जैसे आप प्रवचन सुन रहे हैं कान से सुनते हैं लेकिन जब तक मनो योग रहता है तब समझ में आता है, और by chance अगर मन भटक गया, वो वाक्य गायब हो जाता है, मैंने क्या कहा ? स्वामी जी मैं कुछ और सोचने लग गया था लेकिन मेरे कान पवित्र हो रहे थे, https://www.youtube.com/watch?v=yb0a1s624VU&t=122 6 यह हमारे भारतवासियों का सिद्धांत है कान पवित्र करो, जब बूढ़े हो गए अब घर में तो कोई पूछता नहीं है तो सत्संग में जाके धर लो अपने को और सत्संग के बाद कोई पूछे पंडित जी ने क्या समझाया? अरे भाई हमें क्या लेना देना, क्या समझाया ? हम कान पवित्र कर रहे थे, तो कान चले जाएंगे गोलोक और आप यहां रह जाओगे, अरे भैया कान को साफ करना है साबुन पानी से करो, आपको मन को साफ करना पड़ेगा, मनो योग के बिना तो कार्य होता ही नहीं और श्री कृष्ण कहते हैं मेरा चिंतन भी करो, कर्म भी करो और अर्जुन ने कैसे कर लिया ? https://www.youtube.com/watch?v=yb0a1s624VU&t=176 7 अर्जुन का काम तो इतना बारीक था वहां तो किंचित (even a little) भी एकाग्रता भंग होने का scope ही नहीं है, वरना तो लेने के देने पड़ जाएंगे और बाकी संतों ने भी किया, कबीर जी कहते हैं “सुमिरन की सुधि यौं करो, ज्यौं सुरभी सुत मांहि। कहै कबीरा चारों चरत, बिसरत कबहूंक नांहि ॥ - संत कबीर (see text 1 below) भगवान का स्मरण ऐसे करो जैसे गाय बछड़े का स्मरण करती है https://www.youtube.com/watch?v=yb0a1s624VU&t=220 8 अगर आपको लगता है आपकी बच्चों में अटैचमेंट ज्यादा है तो गाय की सबसे अधिक आसक्ती है बछड़े में, जब वह घास चरने जाती है खेत में चिंतन बच्चे का होता रहता है, कभी-कभी चिंतन इतना गहरा हो जाता है कि ग्रास उसके मुख से गिर जाता है और फिर जब गाय वापस आने लगती है तो रमभाती ( sound a cow makes) है, बच्चे को याद करते हुए, तो वो घास भी चर रही है, बच्चे का स्मरण भी कर रही है, कबीर जी ने कहा ऐसे तुम अपने भगवान का स्मरण करो, https://www.youtube.com/watch?v=yb0a1s624VU&t=254 9 हम लोग मैं को तो अनुभव करते हैं, मैं हूं, मैं सुन रहा हूं, मैं बोल रहा हूं, मैं भूखा हूं, प्यासा हूं, सुखी हूं, दुखी हूं, मैं की अनुभूति सदा रहती है, लेकिन हम इस बात को नहीं विचार करते कि भगवान भी अंदर बैठे हुए हैं, वही अनंत कोटि ब्रह्मांड नायक, वही सर्वशक्तिमान भगवान वह अंदर बैठे हूएं हैं तो इसको हमें अपनी consciousness में लाना है, हम लोग जब मंदिर जाते हैं तो सोचते हैं हां भाई भगवान है यहां, कोई बदमाशी मत करो, वो भगवान का मंदिर है भगवान देख रहा है, लेकिन जब बाहर जाते हैं तो सोचते हैं यहां तो भगवान नहीं है, मंदिर नहीं, इसलिए यहां पे भगवान नहीं देख रहा, यहां पे जो करना है चालाकी 400 बीसी करो, हम लोगों ने भगवान की परिभाषा को सीमित कर दिया वो तो मंदिर में ही हैं, मंदिर में हैं, ये तो बात बिल्कुल सही है और मंदिर जाना भी चाहिए लेकिन फिर अपनी बैटरी चार्ज करके जब बाहर निकले, तो सोचना है कि सारा संसार भगवान का मंदिर है, इस स्मृति में हमें जीना है कि वो हमेशा हमारे साथ में रहते हैं इसका अभ्यास करना होगा, https://www.youtube.com/watch?v=yb0a1s624VU&t=296 10 मान लो आप ऑफिस में गए तो कार्य शुरू करेंगे, अब आप कार्य शुरू करने से पहले अपने एकाग्रता को जमाएं, सोचे श्री कृष्ण वहां बैठे हैं मुझे देख रहे हैं अब श्री कृष्ण तो सभी जगह है घट घट वासी हैं, आपने realize कर लिया वो खाली कुर्सी पर बैठे हैं और मुझे देख रहे हैं, अर्थात मैं अकेला नहीं हूं या य समझें कि अंदर वाले भगवान को बाहर खड़ा कर दिया कि भगवान आप देखिए, आप मेरे साक्षी हैं और आप मेरे रक्षक हैं, और अब आपने अपना कार्य शुरू किया तो अभी तो आप कर्म योग में निपुण नहीं है कर्म करते समय भगवान की विस्मृति (भूलना) हो जाएगी, घबराइए मत एक घंटे बाद फिर कर्म को रोकिए एक मिनट और सोचें भगवान वहां पे हैं देख रहे हैं, ऐसे एक एक घंटे में करते जाएं उससे क्या होगा यह मन जो बिगड़ जाता है फिर ठीक हो जाएगा, फिर बिगड़ जाता है फिर ठीक हो जाएगा, फिर बिगड़ता है तो फिर ठीक हो जाएगा https://www.youtube.com/watch?v=yb0a1s624VU&t=388 11 यह आप एक एक घंटे में अभ्यास करते जाएं, वो देख रहे हैं, वो साथ में है और फिर धीरे-धीरे उसको आधे आधे घंटे पर ले आएं, हर आधे घंटे बाद और फिर 20 मिनट पर, फिर 15 मिनट पर ऐसे करते चले जाए तो धीरे धीरे इस अभ्यास को बढ़ाना है ये चेतना में एक स्मरण कि भगवान सदा मेरे साथ रहते हैं तो यह जब स्मृति “तैल धारावत विच्छिन्न” (see text 2 below) हो जाएगी आपका मन तो समर्पित हो जाएगा, “माम एकम शरणम ब्रज” हो जाएगा, भगवान कृपा कर देंगे, माया निवृत्ति हो जाएगी, भगवत प्राप्ति हो जाएगी, तो ऐसे हम अभ्यास करते चले जाएं https://www.youtube.com/watch?v=yb0a1s624VU&t=465 Transcript 0:06 हम लोग जब मंदिर जाते हैं तो सोचते हैं, 0:09 हां भाई भगवान है यहां पे कोई बदमाशी मत 0:13 करो, वो भगवान का मंदिर है, भगवान देख रहा 0:15 है, लेकिन जब बाहर जाते हैं तो सोचते हैं, 0:19 कि यहां तो भगवान नहीं है, मंदिर नहीं, इसलिए 0:22 यहां पे भगवान नहीं देख रहा, यहां पे जो 0:24 करना है चालाकी 400 बीसी करो, ये हमारे 0:28 भारतवासियों का सिद्धांत है, कान पवित्र 0:32 करो, जब बूढ़े हो गए अब घर में तो कोई 0:36 पूछता नहीं, सत्संग में जाकर धर लो अपने को और 0:39 सत्संग के बाद कोई पूछे कि पंडित जी ने क्या 0:42 समझाया ? अरे भाई हमें क्या लेना देना ? क्या 0:45 समझाया ? हम कान पवित्र कर रहे थे, तो कान 0:48 चले जाएंगे गोलोक और आप यहीं रह 0:51 जाओगे, अब दोनों काम एक साथ कैसे करें ? 0:54 भगवान का ध्यान भी करो और कर्म भी करो 1:04 ये कर्म योग की एक शर्त है और वो शर्त में 1:09 ही 1:10 समस्या है, शर्त यह है श्री कृष्ण कहते हैं कि 1:15 मन लगातार भगवान में बना रहे अर्थात ऐसा 1:20 नहीं कि सुबह उठ के आधा घंटा योग कर लिया, 1:25 ठाकुर जी की पूजा कर ली, फिर ठाकुर जी को 1:29 अलमारी में बंद कर दिया, चलो भगवान अब मैं 1:32 संसारी कार्य कर रहा हूं और फिर लास्ट में 1:36 जाके कुछ कुकर्म भी कर दिया, अब हम कहते हैं कि 1:40 साहब हमने योग भी किया था कर्म भी किया था 1:43 अब हम कर्म योगी 1:44 हैं, श्री कृष्ण कहते हैं कि कर्म करते समय 1:50 तुम योग में रह सको यह कर्म योग 1:56 कहलाएगा, कर्म भी हो और योग भी हो दोनों एक 2:02 साथ हो जाएं वो कहलाएगा कर्म योग, तो आप 2:06 कहेंगे साहब ये तो बड़ा कठिन है कि कर्म के 2:10 साथ हम योग में भी रहें, अरे कठिन क्या यह तो 2:14 असंभव है आप दोनों काम एक साथ कैसे करेंगे ? 2:19 भगवान का ध्यान भी करो और कर्म भी करो, 2:23 कोई भी कर्म करने में मन को तो लगाना 2:27 पड़ता है, मन के बिना भला कर्म कैसे होगा जैसे 2:32 आप प्रवचन सुन रहे 2:34 हैं कान से सुनते हैं लेकिन मनो योग रहता 2:38 है तब समझ में आता है, और by chance अगर मन भटक 2:44 गया, वो वाक्य गायब हो जाता है, मैंने क्या कहा ? 2:49 स्वामी जी मैं कुछ और सोचने लग गया था 2:53 लेकिन मेरे कान पवित्र हो रहे 2:56 थे, यह हमारे भारतवासियों का सिद्धांत है 3:00 कान पवित्र करो, जब बूढ़े हो गए अब घर में 3:04 तो कोई पूछता नहीं है तो सत्संग में जाके 3:08 धर लो अपने को और सत्संग के बाद कोई पूछे 3:11 पंडित जी ने क्या समझाया ? अरे भाई हमें 3:14 क्या लेना देना, क्या समझाया ? हम कान पवित्र 3:16 कर रहे थे, 3:19 तो कान चले जाएंगे गोलोक और आप यहां रह 3:22 जाओगे, अरे भैया कान को साफ करना है साबुन 3:27 पानी से करो, आपको मन को साफ करना पड़ेगा, 3:30 मनो योग के बिना तो कार्य होता ही 3:34 नहीं और श्री कृष्ण कहते हैं मेरा चिंतन भी 3:37 करो, कर्म भी करो और अर्जुन ने कैसे कर 3:40 लिया ? अर्जुन का काम तो इतना बारीक था वहां 3:44 तो किंचित (even a little) भी एकाग्रता भंग होने का scope 3:48 ही नहीं है वरना तो लेने के देने पड़ 3:51 जाएंगे और बाकी संतों ने भी किया, कबीर जी 3:55 कहते हैं “सुमिरन की सुधि यौं करो, ज्यौं सुरभी सुत मांहि। कहै कबीरा चारों चरत, बिसरत कबहूंक नांहि ॥ - संत कबीर (see text 1 below) 4:01 4:09 भगवान का स्मरण ऐसे करो 4:14 जैसे गाय बछड़े का स्मरण करती है, अगर आपको 4:20 लगता है आपकी बच्चों में अटैचमेंट ज्यादा 4:22 है तो गाय की सबसे अधिक आसक्ती है बछड़े में, 4:28 जब वह घास चरने जाती है खेत में चिंतन 4:31 बच्चे का होता रहता है, कभी-कभी चिंतन इतना 4:36 गहरा हो जाता है कि ग्रास उसके मुख से गिर 4:41 जाता है और फिर जब गाय वापस आने लगती है तो 4:45 रमभाती ( sound a cow makes) है, बच्चे को याद करते हुए, तो वो 4:49 घास भी चर रही है, बच्चे का स्मरण भी कर 4:52 रही है, कबीर जी ने कहा ऐसे तुम अपने भगवान 4:56 का स्मरण करो, हम लोग मैं को तो अनुभव करते 5:01 हैं, मैं 5:03 हूं, मैं सुन रहा हूं, मैं बोल रहा हूं, मैं 5:07 भूखा हूं, प्यासा हूं, सुखी हूं, दुखी हूं, 5:10 मैं की अनुभूति सदा रहती है, 5:14 लेकिन हम इस बात को नहीं विचार करते कि 5:19 भगवान भी अंदर बैठे हुए हैं, 5:22 वही अनंत कोटि ब्रह्मांड नायक, वही 5:25 सर्वशक्तिमान भगवान वह अंदर बैठे हूएं हैं तो 5:30 इसको हमें अपनी consciousness में लाना है, 5:33 हम लोग जब मंदिर जाते हैं तो सोचते हैं 5:36 हां भाई भगवान है यहां, 5:39 कोई बदमाशी मत करो, वो भगवान का मंदिर 5:43 है भगवान देख रहा है, लेकिन जब बाहर जाते 5:47 हैं तो सोचते हैं यहां तो भगवान नहीं है, 5:49 मंदिर नहीं, इसलिए यहां पे भगवान नहीं देख 5:52 रहा, यहां पे जो करना है चालाकी 400 बीसी 5:55 करो, हम लोगों ने भगवान की परिभाषा को 6:00 सीमित कर दिया वो तो मंदिर में ही है, 6:03 मंदिर में है ये तो बात बिल्कुल सही है और 6:06 मंदिर जाना भी चाहिए 6:08 लेकिन फिर अपनी बैटरी चार्ज करके जब बाहर 6:12 निकले, तो सोचना है कि सारा संसार भगवान 6:16 का मंदिर है, इस स्मृति में हमें जीना है कि 6:22 वो हमेशा हमारे साथ में रहते हैं इसका 6:28 अभ्यास करना होगा, मान लो आप ऑफिस में गए 6:33 तो कार्य शुरू करेंगे, अब आप कार्य शुरू 6:36 करने से 6:38 पहले अपने एकाग्रता को जमाएं, 6:42 सोचे श्री कृष्ण वहां बैठे हैं मुझे देख 6:46 रहे हैं अब श्री कृष्ण तो सभी जगह है घट 6:49 घट वासी हैं, आपने realize कर लिया वो खाली 6:52 कुर्सी पर बैठे हैं और मुझे देख रहे हैं, 6:56 अर्थात मैं अकेला नहीं हूं या य समझें कि 6:59 अंदर वाले भगवान को बाहर खड़ा कर 7:02 दिया कि भगवान आप देखिए, आप मेरे साक्षी 7:07 हैं और आप मेरे रक्षक हैं, और अब आपने अपना 7:12 कार्य शुरू 7:13 किया तो अभी तो आप कर्म योग में निपुण 7:17 नहीं है कर्म करते समय भगवान की विस्मृति (भूलना) 7:21 हो जाएगी, घबराइए मत एक घंटे बाद फिर कर्म 7:26 को रोकिए एक मिनट और सोचें भगवान वहां पे 7:31 हैं देख रहे हैं, 7:35 ऐसे एक एक घंटे में करते 7:38 जाएं उससे क्या होगा यह मन जो बिगड़ जाता 7:41 है फिर ठीक हो जाएगा, फिर बिगड़ जाता है 7:43 फिर ठीक हो जाएगा, फिर बिगड़ता है तो फिर 7:45 ठीक हो जाएगा यह आप एक एक घंटे में 7:49 अभ्यास करते जाएं, वो देख रहे हैं, वो साथ 7:53 में है और फिर धीरे-धीरे उसको आधे आधे घंटे 7:58 पर ले आएं, 8:00 हर आधे घंटे बाद और फिर 20 मिनट पर, फिर 15 8:04 मिनट पर ऐसे करते चले जाए तो धीरे धीरे इस 8:09 अभ्यास को बढ़ाना है ये चेतना में एक 8:16 स्मरण कि भगवान सदा मेरे साथ रहते हैं तो यह 8:22 जब स्मृति “तैल धारावत विच्छिन्न” (see text 2 below) हो जाएगी 8:27 आपका मन तो समर्पित हो जाएगा, “माम एकम शरणम 8:30 ब्रज” हो जाएगा, भगवान कृपा कर देंगे, माया 8:33 निवृत्ति हो जाएगी, भगवत प्राप्ति हो जाएगी, 8:36 तो ऐसे हम अभ्यास करते चले जाएं see text 1 above सुमिरन की सुधि यौं करो, ज्यौं सुरभी सुत मांहि। कहै कबीरा चारों चरत, बिसरत कबहूंक नांहि ॥ - संत कबीर यह साखी संत कबीर की है। यह बताती है कि सुमिरन (स्मरण) को याद रखना कैसे चाहिए, ठीक वैसे ही जैसे गाय (सुरभी) अपने बछड़े (सुत) को याद करती है। कबीर कहते हैं कि सुमिरन को कभी भी भूलना नहीं चाहिए, ठीक वैसे ही जैसे गाय का बछड़ा उसे कभी नहीं भूलता. व्याख्या: • सुमिरन की सुधि यों करो: इसका मतलब है कि सुमिरन (स्मरण) को याद रखने का प्रयास करना चाहिए। • ज्यों सुरभी सुत मोहि: इसका मतलब है कि सुमिरन को याद रखना चाहिए, जैसे गाय अपने बछड़े को याद करती है। गाय अपने बछड़े को कभी नहीं भूलती, वैसे ही सुमिरन को भी कभी नहीं भूलना चाहिए। • कहै कबीरा चारों चरत, बिसरत कबहूंक नांहि: कबीर कहते हैं कि चारों चरत (जीवन के चारों चरण) में भी सुमिरन को कभी नहीं भूलना चाहिए। • इसका अर्थ यह है कि सुमिरन (स्मरण) को जीवन के सभी पहलुओं में याद रखना चाहिए, चाहे वह कोई भी परिस्थिति हो। सुमिरन को कभी नहीं भूलना चाहिए, ठीक वैसे ही जैसे गाय अपने बछड़े को कभी नहीं भूलती. see text 2 above “तैल धारावत विच्छिन्न” The phrase "तैल धारावत विच्छिन्न" appears in the context of Jain philosophy and Hindu concepts of the cycle of birth and death. It is associated with the idea of continuous, unbroken thought or contemplation, similar to a stream of oil. The practice involves continuous contemplation, meditation and reflection, and is often pursued under the guidance of a guru. The phrase describes a state of unwavering focus in meditation or contemplation. This continuous flow is contrasted with the cycle of birth and death, suggesting a practice aimed at liberation from it.