आत्म परिचय के बिना भक्ति नहीं हो सकती (WITHOUT ONE’S KNOWING ONESELF, ONE CANNOT DEVELOP LOVE FOR LORD)
आत्म परिचय के बिना भक्ति नहीं हो सकती
कौन करता है भक्ति? हाथ करते हैं भक्ति? या पैर, कान, मुख, आंख, नाक करते हैं ?
आपकी चेतना भक्ति करती है
Your consciousness does bhakti
और यदि आपका उससे परिचय नहीं है तो आप उस मार्ग पर एक पग भी आगे नहीं बढ़ सकते
आत्म चिंतन के बिना आत्म परिचय नहीं होता
It is self-acquaintance ; you must know the pros and cons of your personality, your own fault, your qualities
आपको अपने गुण अवगुण पता हो
विचार के बिना एकांत नहीं हो सकता
बिना विवेक के विचार नहीं होता
बिना सत्संग के विवेक नहीं होता
इसलिए सत्संग से विवेक (discrimination power), विवेक से विचार (thought), विचार से एकांत (solitude), एकांत से आत्मचिंतन (introspection), आत्मचिंतन से आत्म परिचय (self-acquaintance) और आत्म परिचय से भगवत भक्ति (Devotion)
जैसे कोई 50 साल के लिए अपनी याद भूल गया हो, कोई उसे याद करा दें कि आपके असल में सगे संबंधी कौन हैं फिर वह असली संबंधी के पास ही जाना चाहता है
ठीक वैसे ही हमारी स्थिति है
हम भगवान को भूल बैठे हैं और भगवान ही हमारा एकमात्र सगा है
सत्संग आपको स्मरण करा देता है आपका अपने सगे भगवान का रिश्ता
Actually it is just a memory loss
somehow due to non stop lording over material world
“आए थे हरी भजन को और बन बैठे भगवान”
we have forgotten our relationship with God
and OUR ONLY TRUE ETERNAL RELATIONSHIP is with LORD
, e.g., someone in a coma for say 50 years, once he regains his memory, on being told that his real relative is someone else, will immediately want to be with his real close relative.
“उमा, राम स्वभाव जिन जाना, ताहिं तजत, इन्ही भाव न आना”
LORD SHANKAR TELLS HIS WIFE DURGA (UMA) "WHOEVER COMES TO KNOW THE NATURE OF RAM (GOD), HE NEVER EVER THINKS OF LIVING WITHOUT HIM"
Satsang (सत + संग - सत्य का संग) awakens our lost relationship with God by revealing God's NATURE (स्वभाव) and once one is awake, he tastes such a bliss which is eternal that all other worldly pleasures seem a trifle & too short lived.