जीवन में यदि परिवर्तन होता है तो ना पंथ से ना ग्रंथ से
परिवर्तन होता है संत से
If ever there is going to be a change for better in your life, it is going to be through the means of a saint / devotee
महादेव याचना करते हैं
“बार बार वर मांगे हूं, हर्ष देहु श्रीरंग
पद सरोज अनुपायनी, भक्ति सदा सत्संग”
Even Lord Shankar prays repeatedly(बार बार) for non-stop loving devotion & satsang
जीवन में भक्ति की भावना होना एक बात है और जीवन में भक्ति की भावना स्थिर होना यह दूसरी बात है
It is one thing to have feeling of devotion but quite another that the devotion stays on continuously
बहुत से लोग सोचते हैं कि एक ही बात होती है कथा में घुमा फिरा के कही जाती है
Many feel that in katha, only one thing is repeated endlessly…
तो एक ही बात को कब तक सुनते रहे, क्या होता है बार बार सुनने से
so how many times can we listen to the same thing again & again & what happens on listening repeatedly
एक भवन की नींव भरी जाती है, बजरी (concrete) भर कर उस पर दुरमुट चलाया जाता है
नींव को ठोस और मजबूत करने के लिए, क्यों क्योंकि उसे आधार बनना है, आपका यह बार-बार सुनना एक दुरमुट चलाने के समान है (दुरमुट =(Flat Hammer on a long handle for levelling concrete)
For creating a solid Foundation after filling concrete, the flat hammer is hit again and again repeatedly ; why ?
so as to create a strong foundation.
Likewise your repeatedly listening to the Katha is like repeated hammering your mind to wake up so as to move from untruth to Truth, from darkness to Light, from mortality to Immortality
असतो मा सदगमय ॥ तमसो मा ज्योतिर्गमय ॥ मृत्योर्मामृतम् गमय ॥
If the mind does not “clean up” (निर्मल), it would of course be kept trapped in “dirt”, as already so in countless births in untruth, darkness & mortality.
Lord Himself says, भगवान स्वयं कहते हैं
"निर्मल मन जन, सो ही मोहे पावा, मोहे छल छिद्र कपट ना भावा" i.e., I'm attained by only a निर्मल (clean) heart
& I (God) don't like छल (deceipt) छिद्र (seeing faults in others) & कपट (selfishness)
कथा बार बार सुनने से मन निर्मल होता है केवल जिससे भगवान आकर्षित होते हैं