यदि आप जानना चाहते हैं कि ये भक्ति कहाँ पड़ाई / सिखाई जाती है ,
(1)
तो ये समग्र अस्तित्व पल पल पग पग सिखाता है
Nature itself teaches bhakti :
Twenty-Four gurus from Nature < click this link to read
Each thing in creation & each step in life teaches you bhakti, provided you tune yourself.
अरे संसार में कोई कहता है “सैयाँ भए कोतवाल, तो डर काहे का”
Even in this world, if someone is related to a judge, he starts feeling fearless - similarly if you relate yourself to God, you'd become fearless first thing.
(2)
पहले जितना पड़ा है, वो सब भूल जायो,
खाली रिक्त मन कर के प्रभु के हाथ में दे दीजिए
शांति अर्थात रिक्त मन, रिक्त चित्त सुंदरता है जीवन की (रिक्त = clean)
यंत्र खुद बोले तो शोर है, कोलाहल (noise)
यदि संगीतकार बजाए, तो संगीत है
ऐसे जीवन का यह यंत्र (our ego) बोले, तो कोलाहल है
यदि कृष्णा को सौंप दें (surrender), तो भक्ति है
इसलिए आपकी प्रार्थना भी शिकायत है (our prayer is also like a complaint only), वो शुक्रिया नहीं है (we are not being grateful) क्योंकि उसमें याचना (our demand) छुपी है
क्योंकि आपको उसके स्वरूप और स्वभाव का बोध नहीं है, i.e., due to ignorance of Lord's personality & nature, we are not able to establish relationship with Him
उसके स्वरूप और स्वभाव का बोध होगा निरंतर सत्संग से - उनके बारे में सुनना, पड़ना, देखना, मनन (contemplation) करना
Normally, people are aware only of influence / power of God BUT not aware of nature of God which is known only through continuous stasang.
Even normally, when we hear about a very rich, wealthy & famous personality, we simply shrug our shoulders & say “ok, how are we concerned” BUT if you have a relationship with such a person, then you feel great & are attracted towards him.
And relationship with God can be established only by learning about nature of God.
“दिल देके दिल की चर्चा कौन करे” Once having given your heart to Lord, no one would grudge about this & complain.
“उमा, राम स्वभाव जिन जाना, ताहिं तजत, इन्ही भाव न आना” ,
तजत = to live without
LORD SHANKAR TELLS HIS WIFE DURGA (UMA) "WHOEVER COMES TO KNOW THE NATURE OF RAM (GOD), HE NEVER EVER THINKS OF LIVING WITHOUT HIM"
So, to learn bhakti, we have to know His nature & His personality - possible only by satsang.
(3)
अगर ये जानते होते कि भगवान तो :
“बिन बोलया सब कुछ जानदा, किस आगे कीजे अरदास”
"चींटी के पग नूपुर बाजे, तो भी साहिब सुनता है"
Even if an anklet worn on an ant sounds, He listens
उनका नाम भक्त वांछा कलपतरु है (वांछा = desires, कलपतरु = fulfiller)
His another name is Acceptor of Wishes of His devotees
किसी के सुषुप्त (while sleeping) मन में कोई भाव उठता हो,
कोई और जाने ना जाने आप भी शायद पहचाने ना पहचाने,
लेकिन प्रभु लिख लेते हैं अपने उस कागज़ पर
in someone, even if sleeping, when a desire is raised, God knows earlier than the subject person
नानक कहते हैं “अनबोलत मेरी वृथा जानी, अपना नाम जपाया, ठाकुर तुम शरणाई आया"
,i.e., He knows your wishes / difficulties (वृथा) even without telling (अनबोलत) - be aware of this nature of His & you'd automatically become grateful & become a devotee.
He knows my troubles even without my saying (as He sits in heart of each)
Best option to be a devotee is to surrender to Lord & let His will take over
(4)
आत्म परिचय के बिना भक्ति नहीं हो सकती
WITHOUT ONE’S KNOWING ONESELF, ONE CANNOT DEVELOP LOVE FOR LORD & CANNOT LEARN BHAKTI
आत्म परिचय के बिना भक्ति नहीं हो सकती
कौन करता है भक्ति? हाथ करते हैं भक्ति? या पैर, कान, मुख, आंख, नाक करते हैं ?
आपकी चेतना भक्ति करती है
Your consciousness does bhakti
और यदि आपका उससे परिचय नहीं है तो आप उस मार्ग पर एक पग भी आगे नहीं बढ़ सकते
आत्म चिंतन के बिना आत्म परिचय नहीं होता
It is self-acquaintance ; you must know the pros and cons of your personality, your own fault, your qualities
आपको अपने गुण अवगुण पता हो
विचार के बिना एकांत नहीं हो सकता
बिना विवेक के विचार नहीं होता
बिना सतसंग के विवेक नहीं होता
इसलिए सतसंग से विवेक (discrimination power), विवेक से विचार (thought), विचार से एकांत (solitude), एकांत से आत्मचिंतन (introspection), आत्मचिंतन से आत्म परिचय (self-acquaintance) और आत्म परिचय से भगवत भक्ति (Devotion)
जैसे कोई 50 साल के लिए अपनी याद भूल गया हो, कोई उसे याद करा दें कि आपके असल में सगे संबंधी कौन हैं फिर वह असली संबंधी के पास ही जाना चाहता है
ठीक वैसे ही हमारी स्थिति है
हम भगवान को भूल बैठे हैं और भगवान ही हमारा एकमात्र सगा है
सतसंग आपको स्मरण करा देता है आपका अपने सगे भगवान का रिश्ता
Actually it is just a memory loss, somehow due to non stop lording over material world
“आए थे हरी भजन को और बन बैठे भगवान” we have forgotten our relationship with God and OUR ONLY TRUE ETERNAL RELATIONSHIP is with LORD , e.g., someone in a coma for say 50 years, once he regains his memory, on being told that his real relative is someone else, will immediately want to be with his real close relative. Satsang (सत + संग - सत्य का संग) awakens our lost relationship with God by revealing God's NATURE (स्वभाव) and once one is awake, he tastes such a bliss which is eternal that all other worldly pleasures seem a trifle & too short lived.