इतना कहकर बहलाते है दिल को, Itna kehkar behlate hai dil ko
इतना कहकर बहलाते है दिल को
हर किसी के मुकद्दर में प्यार नहीं होता
बरसों तपती धूप में, किया बसर हमने
किये सिजदे तेरे श्यामों सहर हमनें
खामोश रह कर भी मोहब्बत निभाई जाती है
हर बार चाहत में इकरार नहीं होता
(मैं तुमसे मिलना चाहूँ और तुम वादा कर भी दो, लेकिन अपनी वादा निभा भी दो, ये ज़रूरी तो नहीं प्यारे )
प्यारे लिख दी मैंने तेरे नाम पर हर सांस अपनी
तुझसे जुड़ी हर आस अपनी
बहुत गहरा है रिश्ता तेरा मेरा
यूं ही तो किसी पर ऐतबार नहीं होता
(कभी कभी मैं भी शक के दायरे में आ जाती हूँ, जब तुम वादा खिलाफ़ी करते हो, मिलते नहीं प्यारे
लेकिन तेरे मेरे बीच कौन सा सम्बन्ध है की ये विश्वास की डोर टूटती ही नहीं
दिल हर बार कह देता है:
कि आदतन तुमने भी कर दिए वादे, और आदतन मैंने भी ऐतबार कर लिया)
(प्रेम की सबसे बड़ी शक्ति भी यही है की अपने प्रीतम के प्रति विश्वास कभी टूटे नहीं, कम भी न हो )
बेसबब, बेवजह, इंतज़ार नहीं होता
प्यार इक बार ही होता है बार बार नहीं होता
होता होगा इश्क़ पर यूं बेशुमार नहीं होता
फ़िर भी रोते रोते कहता ये दिल मेरा
हर किसी के मुकद्दर में प्यार नहीं होता
प्यारे ये प्यार अगर किसी अल्प या अपूर्ण के प्रति होता, तो गल्ती मेरी होती ,
लेकिन ये प्रीत एक पूर्ण ,असीम के साथ है, तुम सर्व समर्थ हो
फिर क्यों नहीं तुम मेरे मोहब्बत के मचलते जज़्बातों को ठंडा कर देते
गोपाल राधा कृष्ण गोविन्द गोविन्द