हे दीन बंधू करुणा सिंधु, शरण में आयें हैं हम तुम्हारी
हे दीन बंधू करुणा सिंधु
शरण में आयें हैं हम तुम्हारी
करत रहे अपराध जगत में पहले हमने नाहीं विचारी
जग दोषी कहे कितना ही हमें
हम को उस की परवाह नहीं
प्रभु प्रेम पयोधि (sea) अगम्य (inaccessible) बड़ा
उस की सब बातें हैं थाह (immeasurable depth) नहीं
हँसते हँसते ये जीवन दे
मुख से निकले पर आह नहीं
बस चाह कृष्ण दर्शन की
अब और नहीं कुछ चाह नहीं
हे दीन बंधू करुणा सिंधु
शरण में आयें हैं हम तुम्हारी
मेरी पांचो इन्द्रियों और पांचो कर्मेन्द्रियों को आदत है रस लेने की
रस ले रहीं हैं विषयों का विकारों का
बस इनको divert करदो तुहारी ही रूप माधुरी की तरफ
तो इन्द्रियों और पांचो कर्मेन्द्रियों की आदत भी बनी रहेगी और बात भी बन जाएगी
श्रवणो से सुनूं मुरली रब को
तुम रूप द्रिगो से निहारा करूँ
पट भूषण (ornaments) गंध (smell) लूँ नासिका (nose) से
मुख से हरे कृष्ण उचारा करूँ
तन से करूँ सेवा तुम्हारी सदा
मन से सुमिलाप (meeting You)विचारा करूँ
इस भांति तुम्हे अपना करके
तन से मन से तुम्हें प्यार करूँ
हे दीन बंधू करुणा सिंधु
शरण में आयें हैं हम तुम्हारी
देखो ये सब बातें कहीं हैं मैंने इस जनम के लिए
मगर आगे कोई और योनि में तू अगर डाले तो। ...
उर (heart) ऊपर नित्य रहूँ लटका
अपनी वनमाल (Your garland) का फूल बनादे
लहरें टकराती रहें जिससे
कामिनी ये कालिंदी (river Yamuna) का कूल (shore) बनादे
कर कमल (Your Lotus Hands) जिसे छूते हों जिसको
उस वृक्ष कदम्ब का फूल बनादे
पद (feet) पंकज (Lotus) तेरे छुएंगे कभी
ब्रिज राज हमें ब्रिज धूल (dust) बनादे
Vinod Agarwal Bhajan lyrics
https://www.youtube.com/watch?v=NmZlbWEMiSE&t=144s