Desires are of three kinds : For 1. Money 2. Son/Daughter 3. Prestige
इच्छाएं तीन प्रकार की होती हैं, धनैषणा, पुत्रैषणा और लोकैषणा।
सबसे पहले मनुष्य अधिकाधिक धन पाने की चाह में पागल होता है।
धन तुम्हारे जीवन के निर्वाह का साधन है।
धनार्जन करो, मगर धन के पीछे पागल मत हो।
एक बात का ध्यान रखो रुपए जीवन निर्वाह का साधन है, साध्य नहीं।
जीवन के गुजारे के लिए रुपए कमाना तो समझ में आता है, लेकिन रुपए कमाने के पीछे सारा जीवन गुजार देना समझ से परे है।
उन्होंने कहा कि भगवान महावीर ने गृहस्थों को जो उपदेश दिया उसमें एक बात कही है।
वह है इच्छा का परिमाण करो, एक सीमा में धन रखो।
धन का जीवन में वही स्थान है जो कि नाव के लिए पानी का।
जीवन निर्वाह के लिए धन उतना ही आवश्यक है जितना कि नाव को चलाने के लिए पानी। पानी के अभाव में नाव नहीं चल सकती, नाव तभी चलती है जब नीचे पानी का प्रवाह हो।
यदि पानी नाव में चला गया तो उसे डूबने से कोई नहीं बचा सकता।
इसी प्रकार धन का साधन के रूप में जीवन भर उपयोग करो, साध्य नहीं बनने देना।
यदि धन को साध्य बना डाला तो जीवन की नौका में पानी भर जाएगा और वह डूब जाएगी।
कोई कितना भी धन जोड़ ले पर खाएगा दो रोटी ही, सोना-चांदी जोड़ लें, लेकिन सोने की रोटी थोड़ी ही खाएगा, रोटी तो अनाज की ही खाई जाती है।
वह मनुष्य उतना ही अधिक दु:खी है, जिसके मन में जितनी अधिक तृष्णा है।
Man’s happiness is inversely proportional to his desires.
Money is only a means to an end. Money is not an end in itself.
Money is like water for a boat - money is required but only so much that life’s boat can move (as without water, boat cannot move) but if water is allowed to come into the boat, the boat sinks.
BUT ALL THESE DESIRES ARE WORTHLESS AGAINST DIVINE DESIRE TO MEET LORD & ONLY THEN CAN ONE COME OUT OF THIS WORLDLY CYCLE OF BIRTH DEATH, OLD AGE & DISEASE & THIS IS WISDOM.