Pride of being eternal servant of Lord
"अस अभिमान जाइ जनि भोरे। मैं सेवक रघुपति पति मोरे॥
सुनि मुनि बचन राम मन भाए। बहुरि हरषि मुनिबर उर लाए "
भावार्थ: ऐसा अभिमान भूलकर भी न छूटे कि मैं सेवक हूँ और रघुनाथ मेरे स्वामी हैं। मुनि के वचन सुनकर राम मन में बहुत प्रसन्न हुए। तब उन्होंने हर्षित होकर श्रेष्ठ मुनि को हृदय से लगा लिया
Such pride should be there : "Pride of being eternal servant of Lord"