Thursday, January 21, 2021

TRYING TO UPLIFT ONESELF SPIRITUALLY IS UNIVERSAL RELIGION APPLICABLE FOR EVERY INDIVIDUAL, ANY TIME, ANY WHERE #Blog0068


TRYING TO UPLIFT ONESELF SPIRITUALLY IS UNIVERSAL RELIGION APPLICABLE FOR EVERY INDIVIDUAL, ANY TIME, ANY WHERE 


आत्म कल्याण से बड़ा कोई धर्म नहीं है, सार्वभौमिक धर्म है आत्म कल्याण 
trying to uplift oneself spiritually is UNIVERSAL RELIGION applicable for every individual, any time, any where 

आत्म कल्याण का प्रयास, आत्म कल्याण आपके मेरे हाथ में नहीं है कल्याण तो तभी होगा, जब प्रभु चाहेंगे प्रयास आपके मेरे हाथ में है 
हम प्रभु से कल्याण कराना चाहते हैं, बिना प्रयास के 
we all want to get God's grace, without making any effort

अभी दो पांच महीना हुआ नहीं भजन करते और भजन के परिणाम की चिंता है 
it's hardly been 2-5 months since we started bhajans & we are worried that good result has not followed

ये तो भगवान की हम पर बहुत बड़ी कृपा है कि आपको अपनी पूर्व जन्मों की यात्रा स्मरण नहीं है 
it is God's extreme grace that we do not remember trajectory of our countless past births 

जैसे जैसे भजन करते हैं, जैसे जैसे अंतर्मन निर्मल होता है, जैसे जैसे मन का मुकुर (दर्पण, mirror) साफ़ होता है और जीव को अपने अस्तित्व का पूर्ण रूपेण बोध होता है 
as we go on bhajan path, our conscience gets clearer, more & more cleaned off the thick layers of "dust “(sins/habit of being away from even talk of God) & we start getting true overall picture of our real existential constitutional situation

जिसने जीवन में भजन का आरम्भ कर दिया है आत्म कल्याण के लिए, भगवत प्राप्ति के लिए, भगवत अनुराग प्राप्ति के लिए 
whoever has started treading the path of bhajan, for self upliftment spiritually, only for getting love of God... 

वो इतना तो विश्वास रखे कि उस पर भगवान की कृपा दृष्टि तो है 
he must rest assured that he is definitely a recipient of God's grace 

वो भगवान की कृपा दृष्टि में है, तभी जीवन में ये क्षण आया है 
& only due to God's benevolence on him, such an auspicious period has come in his life

संसार के एक से एक क्षुद्र से क्षुद्र प्रलोभन में इतनी सामर्थ है, कि वो आपको अनंत काल तक बांधे रख सकता है अपने साथ 
otherwise, the world's smallest & meanest of pleasures have such a potency that it can keep on "binding “you for ages & ages of repeated births 

इसीलिए भगवान कहते हैं "मम (Mine) माया दुरत्यया” 
hard to traverse, very difficult to cross over

कितने कितने कितने जन्मों से संसार भोगा है, (for innumerable births, we've been indulging deep in the meanest of wordly pleasures) 

और जितना भजन आप और मैं करते हैं या कर रहें हैं ,उतना तो कैसा है जैसे खारे पानी के कुँए में आप एक चुटकी मीठा डाल दें, 
& the extent of bhajan that we do is like mixing a spoon of sugar in the well full of brackish water

उससे क्या होगा, जल तो मीठा नहीं होगा, 
"ऐसी भक्ति करे, बहुकाल” 
with this, the well water cannot get sweet/potable - so the extent of bhajans has to be over a very long period, to have any positive effect)