Guruji of Shivaji, in order to remove the pride of Shivaji, who felt that it was Shivaji who was responsible for all the charity in his kingdom, demonstrated an example that it is Lord who does everything & we are only His puppets.
शिवाजी के गुरु गुरु रामदास जी में उनकी बहुत निष्ठा थी
एक बार छत्रपति जी के राज्य में अकाल पड़ा
उनहोने अपना पूरा राज कोश खोल दिया और कर्मचारियों को आज्ञा दे दी कि कोई भी भूखा ना रहे उनके राज्य में
जिसे जिस चीज की आवश्यकता हो ले जाए
एक दिन बैठे विचार कर रहे थे अपने कक्ष में, कि मैं अगर ये कोश नहीं खोलता तो प्रजा भूखी मर जाती
कौन देता इन्हे खाने के लिए
यदि मैं यह निर्णय नहीं लेता तो
अभी ये विचार कर ही रहे थे कि सैनिक ने खबर दी कि गुरु राम दास जी आएं हैं
दौड़ कर गए शशटांग दंडवत प्रणाम किया
भीतर ले कर आए सुंदर आसन दिया
कुछ देर बैठे थे तो रामदास जी ने अपने झोले से एक पत्थर निकाला और पत्थर शिवाजी को देते तो इतने में पत्थर नीचे गिर गया और दो टुकड़े हो गए
पत्थर के बीच में देखते हैं एक छोटा सा गड्ढा (cavity), उसमें एक नन्हा सा कीट (ant) जल पी रहा है
छत्रपति जी अचंभे में पड़ के पूछा कि पत्थर के बीच में कीट को जल देने वाला कौन है
किसने इसकी जल की व्यवस्था की होगी
रामदास जी ने कहा कि आज तो धरती पर दाता एक ही है और वो तुम हो
तुम ना होते तो प्रजा भूखी मर जाती
और तुम ना होते तो ये कीट भी ना होता
चोट लगी है छत्रपति को, समझ में आ गया
कि मेरा विचार अनुशासन हीन हो रहा था
चलते चलते मन कहां पहुंच जाता मगर गुरु का आशीर्वाद और संकल्प था गुरु का शिवाजी की रक्षा करने का
अपने संकल्प की रक्षा करने के लिए चल के आना पड़ा गुरुदेव को
कहीं छत्रपति का मन अस्वस्थ ना हो जाए
ये बात गुरु की महिमा दर्शाती है