बह्म जीव माया तत्वज्ञान भाग - 3 || Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj | BDTV
2.14 भगवान की कृपा हो तीन चीज़ पूरी मिलती है 1. मानव देह 2. वास्तविक गुरु
जितना वेद शास्त्र पढ़ोगे उतने उलझते जाओगे और गुरु वही चीज हमें बहुत आसानी से समझा सकता है
3.43 और तीसरी कृपा: भूख - भगवान प्राप्त करने की
5.08 भूख, भगवान प्राप्त करने की, बहुत आवश्यक है, बहुत जनम संत मिले उन्होंने समझाया हमने सिर हिलाया मगर हमने उसे व्यावहारिक रूप (we did not practice what we learnt) नहीं दिया क्यों क्योंकि भूख नहीं थी भागवत प्राप्ति की
5.42 हमने केवल एक लेकिन लगा दिया, कि हम तो गृहस्थी हैं ना - करेंगे अभी तो बच्चे पढ़ाई कर ले, अभी तो मौज मस्ती का समय है जवानी मैं, बुढ़ापे में ये सब करेंगे और क्या करना है बुढ़ापे में
6.14 अब बुढ़ापा भी आ गया अब नाती पोते को गोद में लेकर घूम रहे हैं, हम कहते हैं कोई नहीं भगवान तो अंदर बैठे ही हैं, यू ही बेकार कहते करते अनंत जनम हमारे बीत गए
6.54 यह मानव देह में एक ज्ञान शक्ति है, समझने की, धारण करने की -ये कुत्ते, बिल्ली, गधे में नहीं है
7.19 गरुड़ ने काग भुसिंडी से सात सवाल किये
7.43 सब से दुर्लभ शरीर किसका हैं, (उत्तर : मानव देह)
8.12 सब याचना करते हैं कि मानव देह मिल जाए
8.18 क्यों याचना करते हैं, मानव देह की, मानव देह से चार प्राप्ति हो सकती है नरक (hell),स्वर्ग (heaven) अपवर्ग (liberation), ज्ञान वैराग्य भक्ति (loving devotion)
9.11: सबसे प्रथम चीज़ नरक क्यों कहा इसलिए क्योंकि इसमें ज्ञान शक्ति है, और इसका यदि सही उपयोग नहीं किया, या दुरुपयोग किया, तो पाप भी उतना ही घोर होगा (level / degree of sin committed is proportional to the wisdom capacity that a person has ,i.e., higher the wisdom, graver is the degree of sin committed)
10.35 आप लोग झूठ बोलने का कितना अभ्यास करते हैं, कोई जानवर तो झूठ नहीं बोल पाता है
11.35 यदि आपने अपनी ज्ञान शक्ति को सही दिशा में नहीं लगाया तो कुछ तो उल्टा करेंगे ही, ये मन बुद्धि माया से ही बने हैं और माया की तरफ प्राकृतिक रूप से खिंचते हैं (we are naturally inclined to flow with the illusions created by maya)
12.14 यदि तैरना हो नदी की दिशा में तो बहुत आसान है मगर नदी के विपरीत तैरना हो थोड़ा सा भी तो तैरना मुश्किल होता है, ऐसे ही इस संसार और माया के साथ बहना तो बहुत आसान है, मगर भगवान जो माया से विपरीत है उनकी तरफ जाना कठिन है
12.49 अगर सही दिशा में आपने ज्ञान को नहीं लगाया, तो गलत दिशा में तेजी के साथ जाएगा, और बड़े बड़े पाप आपसे होंगे और आपको पाप करने पड़ेंगे क्योंकि अपने सही रास्ता नहीं चुना है, आप एक सेकंड भी कर्म किए बिना नहीं रह सकते, आपका मन कुछ तो करेगा
13 18 अगर आपने भगवान की बात नहीं तो अवश्य ही संसार की बात सोचेंगे, कई राग होगा कहीं द्वेश होगा
14.01 तो आप अपनी बुद्धि से पूछेंगे तो क्या मैं पाप करता हूँ, नहीं तो -आप की बुद्धि तो आपके खिलाफ़ फैसला (judgment) देगी नहीं, क्यूँ जी हम अपने मम्मी पापा, बीवी, बेटा, बेटी से प्यार करते हैं तो क्या ये पाप है - जी हाँ ये पाप है
14.30 आपको मनुष्य जन्म मिला है केवल भगवान से प्रीति लगाने के लिए, संसार में केवल अपना duty करो, व्यवहार करो (अपने परिवार का पालन करिए, केवल अपनी duty समझ कर के, मगर परिवार से मोह मत कीजिए)
14.42 नहीं जी, हम तो नहीं मानते की ये पाप है संसार और और सगे सम्बंधियों से प्रीत करना - आपके मानने या ना मानने से क्या होगा
15.03 जड़ भरत जैसे महान ज्ञानी को एक हिरण से प्यार हो गया
16.28 मरने के समय भी हिरण का ही ख्याल था
16.50 मरने के बाद उन्हें हिरण बनना पड़ा
17.05 मरने के समय उसी की याद आती है जिससे पूरा जीवन मन का मोह (attachment) रहा
17.18 अगर हमारा मन संसार में किसी भी व्यक्ति या जानवर से हाँ, तो हमारे मरने के बाद हमें भी हो वही योनि में जाना पड़ेगा जिसमें वो व्यक्ति या जानवर गया है
18.0 जो सात्विक देवताओं से प्यार करेंगे, वे स्वर्ग जाएंगे, किस राजसिक से प्यार करोगे तो राजसिक बनना पड़ेगा और किसी तामसिक से भी प्रेम करोगे तो अगला जन्म तामसिक वृत्ती का मिलेगा - इसलिए भगवान के अलावा किसी से भी प्रेम किया तो पाप ही होता है और दुख बढ़ जाता है आपका
18 28 उदाहरण : जैसे आप में अपने पिता से प्रेम किया और पिता मरने के बाद गधा बने, तो आपको भी अगले जनम में गधा ही बनना पड़ेगा (इसलिए संसार में प्रेम नहीं, केवल अपना फर्ज (duty) निभाईए, बिना मोह (attachment) के)
18.43 ये मानव शरीर आपको इसलिए मिला के भगवान से प्रेम करो, ना कि संसार से
18.50 जब माँ के गर्भ में थे हम, हमने इतनी पीड़ा पाई, इतने सिकुड़े हुए हम नौ महीने बैठे रहे, इतनी गंदी बदबूदार थैली (womb) में, तो हम लोगों ने भगवान से प्रार्थना किया था, हे भगवान इस नरक से निकाल दो, इस जन्म में केवल आप ही का भजन करेंगे
1930 और जब आप गर्भ से बाहर आये तो आपके हितैषी माता और पिता ने कहा, कि हे बालक - केवल हमसे ही प्यार करो, भगवान से नहीं
20.03 और हम क्या क्या उदाहरण देते हैं कि भगवान राम ने भी तो माँ से पिता से प्यार किया
20.16 निष्कर्ष ये है की इस मानव देव में यदि हमने ज्ञान प्राप्त नहीं किया तो अज्ञान में ही रह जाएंगे और दुख ही भोगते रहेंगे 84 लाख योनियों में
20 56 इसलिए ब्रह्मा जीव माया का तत्वज्ञान बहुत आवश्यक है