Sunday, June 27, 2021

इस एक उपाय से भगवान तुम पर रीझ जायेंगे Jagadguru Shri Kripaluji Maharaj Pravachan - Full Transcript Text

 



इस एक उपाय से भगवान तुम पर रीझ जायेंगे Jagadguru Shri Kripaluji Maharaj Pravachan

https://www.youtube.com/watch?v=REkOrOzga8o

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इस एक उपाय से भगवान तुम पर रीझ जायेंगे Jagadguru Shri Kripaluji Maharaj Pravachan.mp4

0 भगवान सबके अंदर बैठे हैं सर्वव्यापक है फिर भी भगवान का लाभ नहीं मिल रहा है

0 45 भगवान हमसे ऊम में सीनियर नहीं है हमने भगवान के अवतार को भी कई बार देखा होगा

1..0 "जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी", अपनी ही भावना का फल मिला भगवान का फल नहीं मिला

1.20 और अपनी भावना तो माइक है क्योंकि मन तो माया का बना हुआ है

1 46 भगवान ने अर्जुन को कहा कि "मामेव ये प्रपद्यंते माया मेताम तरंती ते" (Gita 7.14) (This divine energy of Mine, consisting of the three modes of material nature, is difficult to overcome. But those who have surrendered unto Me can easily cross beyond it.)

1.55 अर्जुन, जो मेरी प्रपत्ति में आ जाएगा - एक होता है "पत्तन" जो सिर्फ गुरु के चरणों में सिर को डाल देना मगर यह नकली शरणागति है क्योंकि मन को तो गिराया नहीं , गुरु के चरणों में

2.31 बुद्धि को चरणों में नहीं डाला, आत्मा को नहीं गिराया - इसे प्रणाम कहते हैं लोग

3 10  "प्र"+पत्ति यानी मन और बुद्धि की भी शरणागति हो

3 30  "मामेव" यानि  केवल मेरी "ही" (एव यानि "ही") शरणागति, यानी मन मुझ में ही रहे, संसार में नहीं रहे

3 46 यहां जितने लोग बैठे हैं उन सब का मन भगवान में भी है, संसार में भी है - भगवान कहते हैं यह नहीं चलेगा, सारी गीता लेक्चर दिया अर्जुन को मगर अंत में वही के वही पहुंचते हैं

4 40 हालांकि अर्जुन ने शुरू में कहा था गीता  मैं  "प्रपन्न" हूं यानी शरणागत हूँ मगर वास्तव में था नहीं, अगर प्रपन्न होता तो गीता ही नहीं होती,  और क्योंकि अर्जुन अपनी बुद्धि लगा रहा है - यहीं पर गड़बड़ हो रही है

5 15 अगर मैं युद्ध में इन सब को मारूंगा तो इतनी स्त्रियाँ विधवा होंगी पाप लगेगा,  हमारे पूज्य लोग हैं ये सब विरोधी पक्ष में, तो मैं राजा बन कर क्या करूंगा

6 श्रीकृष्ण ने कहा "अर्जुन यदि तुम युद्ध में मर गये, स्वर्ग मिलेगा और अगर जीवित रहा, तो पृथ्वी का राज मिलेगा"

6 30 अर्जुन ने कहा मुझे बेवकूफ बना रहे हो स्वर्ग में भी सुख नहीं है, वहां दिव्यानंद कहां है और संसार में तो है ही नहीं - मैं देख ही रहा हूं

6 58 जैसे आप स्कूल जाते हैं तो "प्रपन्न" (यानी शरणागत) होते हैं,  जो टीचर ने कहा वही मान लेते हैं

7 45 डॉक्टर ने कहा कि आप को यह बीमारी है और तीन बार ये दवा खानी है, चुपचाप खा लेना, बुद्धि नहीं लगाना, हम कंपलीट शरणागत कर देते हैं, नहीं करेंगे तो मरेंगे

8 30 जैसे हम संसार में शरणागत होते हैं, ऐसे ही अर्जुन यदि शरणागत होता गीता के आरंभ में ही, तो यह ऐसे उलटे सीधे प्रश्न नहीं करता

8 57 हमारे देश में जो पुलिस होती है, military होती है अपने boss का order follow  करते हैं, बुद्धि नहीं लगाते

9 30 शरणागति का मतलब बुद्धि नहीं लगाना

10 अर्जुन ने आरंभ में बुद्धि लगायी, उस लगाई हुई बुद्धि को मिटाने के लिए, गीता के 18 अध्याय का लेक्चर हुआ

10 24 अंत में श्री कृष्ण ने अर्जुन को कहा "केवल मेरी शरणागति हो जाओ, अपनी बुद्धि पर शरणागत नहीं हो, केवल मेरी शरणागत हो

11 10 वाल्मीकि के गुरु ने कहा बस "मरा, मरा" कहते जाओ, जब तक मैं लौट के ना आऊँ, वाल्मीकि ने यह नहीं पूछा कि कब आओगे लौट के ?, यानि वाल्मिकी ने शरणागति की और एक डकैत से महापुरुष बन गए

11 33 हमको अनंत जन्मों में अनंत संत मिले पर हर जगह हमने अपनी बुद्धि लगाई,  हां ठीक है गुरु जी ने ऐसा कहा है, लेकिन ऐसा है कि।। , एक "लेकिन" लगा दिया आपने और उसका परिणाम भोग रहे हैं 84 लाख योनियों में

12 मगर जिसने गुरु की आज्ञा पर "लेकिन" नहीं लगाया - तुलसीदास, सूर मीरा, बड़े-बड़े महात्मा बन गए, सारा झगड़ा ही केवल एक लेकिन में है

12 25 हमारी बुद्धि दो पैसे की नहीं है, माया की बनी हुई, गंदी - सेमगर "लेकिन" लगाए बिना नहीं मानती

12.40 "हां गुरुजी ने ठीक कहा लेकिन हमारा ख्याल यह है।।" बस हो गई गड़बड़

12.55 यह privacy - "this is my life" - यह बर्बाद कर रही है हमें अनादि काल से

13 चोरी चोरी हम सोचते हैं गुरु के आगे बैठकर भी, हालांकि मालूम है कि भगवान हृदय के अंदर बैठे नोट कर रहे हैं

13 15 क्या करें, जीव अपने कर्म करने के लिए स्वतंत्र है लेकिन फिर फल भोगना पड़ेगा - कर्म के अनुसार, वहां नहीं चलेगी आपकी कि हम फल नहीं भोते

13 35 वह हमारे हृदय में बैठा है महा शक्तिशाली भगवान, वो आपको "भगवाए गा" (will make you run around)

13.42 तो शरणागति से ही भागवत कृपा होगी "मामेव ये प्रपद्यंते माया मेताम तरंती ते" (Gita 7.14)