Secrets to Achieve Vrindavan Bliss at Home | घर बैठे वृंदावन सुख पाने का रहस्य by Swami Mukundanand
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Salient Points: मन, भक्ति और कथा की महिमा क्र.सं. समय मुख्य बिंदु (हिंदी में) 1 0:00 मन का महत्व: यह जो मन/चित्त है, यही बंधन और मोक्ष का मूल कारण है, इसलिए इसे ईश्वर में लगाना चाहिए। 2 0:08 वृंदावन का लाभ: जहाँ मन, वहाँ हम। मन को प्रभु में लगाने से घर बैठे ही वृंदावन का लाभ मिलता है। 3 0:17 मन की भटकन: मन न लगाने पर व्यक्ति वृंदावन जैसे पवित्र स्थान में भी भटकता रहता है। 4 0:20 आंतरिक निवास: भगवान तुम्हारे हृदय में निवास करते हैं। 5 0:26 श्रद्धा का महत्व: जिस दिन सच्ची श्रद्धा हो जाती है, उस दिन गंगा स्नान या कुरुक्षेत्र की तीर्थयात्रा जैसे बाहरी कर्मों का महत्व गौण (very small) हो जाता है। 6 0:36 मन की शुद्धि: "जो मन चंगा तो कठौती में गंगा" - मन को शुद्ध करना ही असली स्नान है। 7 0:44 आंतरिक संबंध: बाहरी पूजा और कथा (क्रियाएँ) करते रहें, पर अंदर के कनेक्शन (मन के जुड़ाव) को अधिक महत्व दें। 8 0:58 गर्ग मुनि का परिचय: गर्ग मुनि वृष्णि वंश के कुल-गुरु और प्रतिष्ठित भक्ति आचार्य थे। 9 1:17 नामकरण की गोपनीयता: वसुदेव जी के कहने पर, गर्ग मुनि कंस के भय से गुप्त रूप से नंद बाबा के पास ब्रज में पहुँचे। 10 1:45 गौशाला में संस्कार: नंद बाबा ने गोपनीयता बनाए रखने के लिए नामकरण संस्कार गौशाला में करने का सुझाव दिया। 11 2:00 बलराम का नाम: रोहिणी-नंदन को सहजता से "बलराम" नाम दिया गया, क्योंकि वह तमाम बल से युक्त थे। 12 2:10 कृष्ण को देख समाधि: श्री कृष्ण को गोद में लेते ही गर्ग मुनि समाधिस्थ हो गए और अपनी सुध-बुध भूल गए। 13 2:40 कृष्ण नाम का अर्थ: उन्होंने 'कृष्ण' नाम दिया, जिसका अर्थ है: जो योगियों के चित्त को आकर्षित करता है। 14 2:57 इंद्रियों का अंतर: पूजा कर्म-इंद्रियों (हाथ) से, जबकि कथा श्रवण ज्ञान-इंद्रियों (कान) से की जाती है। 15 3:09 सूक्ष्मता और उत्कृष्टता: ज्ञानेंद्रियाँ कर्म-इंद्रियों से अधिक सूक्ष्म और उत्कृष्ट हैं। 16 3:17 हृदय में प्रवेश: इसी कारण भगवान कान (श्रवण) के माध्यम से सहज ही हृदय में प्रवेश कर जाते हैं। 17 3:25 श्रवण की शक्ति: श्रवण (सुनने) में बहुत शक्ति होती है। 18 3:30 काम-क्रोध का उपाय: भागवत के आरंभ में, सूत जी ने बताया कि सत्पुरुषों से भगवान की कथाओं का श्रवण-कीर्तन करने से हृदय के भीतर के अमंगल नष्ट हो जाते हैं। 19 4:12 अंतःकरण की शुद्धि: कथा रस का पान करने से हृदय के अभद्र भाव धुल जाते हैं और अंतःकरण की शुद्धि होती है। 20 4:29 श्रवण के प्रकार: भगवत्-संबंधी श्रवण दो प्रकार का होता है: तत्त्व ज्ञान का श्रवण और लीला श्रवण। 21 4:50 सिद्धांतों में स्पष्टता: तत्त्व ज्ञान के श्रवण से सिद्धांतों में स्पष्टता आती है, जो सही व्यावहारिक आचरण (प्रैक्टिकल) के लिए अति आवश्यक है। 22 5:26 रूप ध्यान: लीला श्रवण बहुत लाभदायक है, क्योंकि सुनते समय स्वचालित रूप से (ऑटोमेटिकली) रूप ध्यान होने लगता है। 23 5:44 गोपी गीत का प्रमाण: गोपियों ने गोपी गीत में कहा कि मिलन की विरह वेदना से पीड़ित होने पर भी, आपकी कथा श्रवण से ही हमें शांति मिलती है। 24 6:53 परोपकारी वक्ता: कथा प्रदान करने वाले वक्ता 'भूरिदा' (बड़े उदार और दयालु) होते हैं, और कथा प्रदान करना सबसे बड़ा परोपकार है। 25 7:20 भीतरी रस: गर्ग आचार्य ने मत दिया कि कथा का रस भीतर से अनुभव होना चाहिए, केवल बाहरी प्रदर्शन नहीं। ________________________________________ Full Transcript समय शुद्ध हिंदी ट्रांसक्रिप्ट 0:00 यह जो चित्त है, यही बंधन और मोक्ष का कारण है। तो चित्त को भगवान में लगाओ। 0:07 जहाँ मन, वहाँ हम। अब अगर मन को लगा दिया, तो यहीं बैठे-बैठे वृंदावन का लाभ पा लोगे। और चित्त को नहीं लगाया, तो वृंदावन में भटकोगे। 0:20 भगवान तुम्हारे हृदय में निवास करते हैं। जिस दिन तुमने श्रद्धा कर ली, अब गंगा स्नान करने का तात्पर्य नहीं रह गया और कुरुक्षेत्र तीर्थ यात्रा का भी कोई महत्व नहीं रह गया। 0:36 यहाँ बैठ के ही मन को स्नान कर लो। जो मन चंगा, तो कठौती में गंगा। 0:44 ठीक है? बाहर की चीजें रखो। पूजा भी करो, साथ में कथा भी करो, लेकिन अंदर के कनेक्शन को महत्व दो। 0:58 गर्ग मुनि हमारे भारतीय इतिहास के प्रतिष्ठित भक्ति आचार्यों में से एक हैं। वे वृष्णि वंश के कुल-गुरु थे। 1:12 इसलिए वे वासुदेव जी को कंस के कारागृह में मिले। मथुरा में वसुदेव जी ने कहा कि मेरे बेटे का नामकरण कर दो, वह ब्रज में है। 1:24 तो बिना किसी को बताए, वे पहुँचे वहाँ पर नंद बाबा के पास। और नंद बाबा को कहा कि आपके बेटे को हम नाम देंगे। 1:36 नंद बाबा ने कहा, आप तो वृष्णि वंश के पुरोहित हैं। अगर आप नाम देंगे, लोगों को पता चलेगा, तो हो सकता है किसी को संदेह हो जाए। आइए यहाँ गौशाला में बैठ के करते हैं। 1:52 वहाँ पर यशोदा और रोहिणी अपने-अपने पुत्रों को लाईं। 2:00 तो रोहिणी-नंदन के लिए तो उन्होंने सहज भाव से बोल दिया, "बलराम," तमाम बल से युक्त। 2:10 और श्री कृष्ण को जब गोद में लिया, तो कहने लगे, "मैं तो इस लड़के को नाम देने के लिए आया था, पर इसको देखकर तो मैं अपने नाम को ही भूल गया हूँ।" ऐसी समाधि लग गई। 2:40 तथापि, उन्होंने 'कृष्ण' नाम दिया। "कर्षति योगीनां चेतांसि इति कृष्णः।" (जो योगियों के चित्त को आकर्षित करता है, वह कृष्ण है)। 2:52 भगवान की कथा में अनुराग। 2:57 पूजा हाथ इत्यादि से की जाती है (कर्म इंद्रियाँ)। कथा में श्रवण करना होता है (ज्ञानेंद्रिय)। 3:09 ज्ञानेंद्रिय कर्म-इंद्रिय से सूक्ष्म है और उत्कृष्ट भी हैं। 3:17 इसलिए भगवान कान के माध्यम से सहज ही हृदय में आ जाते हैं। 3:25 श्रवण में बहुत शक्ति होती है। 3:30 भागवत के प्रारंभ में ही शौनकादिक ने सूत जी महाराज से प्रश्न किया था कि हृदय में अभद्र चीजें हैं—काम, क्रोध, लोभ, मोह—यह सब कैसे जाएँगी? 3:47 सूत जी ने उपाय बताया: "शृण्वतां स्वकथाः कृष्णः पुण्यश्रवणकीर्तनः। हृद्यन्तःस्थो ह्यभद्राणि विधुनोति सुहृत्सताम्।" (अर्थात, एक संत के श्रीमुख से भगवान के नाम, रूप, लीला, गुण, धाम आदि का श्रवण करो)। 4:12 तो कथा रस पान से अभद्र अमंगलमय चीजें सब धुल जाएँगी। अंतःकरण की शुद्धि होगी। 4:23 अब यह जो श्रवण है, भगवत-संबंधी, यह दो प्रकार का होता है: 4:32 एक तत्त्व ज्ञान का श्रवण। चाहे कान से श्रवण करें अथवा नेत्रों से पठन करें, बात तो एक ही है। 4:50 तत्त्व ज्ञान का श्रवण करने से सिद्धांत क्लियर (clear) होता है, तो यह अति आवश्यक है। जितनी क्लेरिटी (clarity) होगी थ्योरी (theory) में, उतना ही हम व्यावहारिक ढंग से सही-सही उपयुक्त रूप में कर पाएँगे। 5:12 किंतु एक दूसरे प्रकार का श्रवण भी होता है—लीला श्रवण, भगवान की लीलाओं के बारे में सुनना। 5:23 यह लीला श्रवण भी साधक के लिए बहुत लाभदायक होता है, क्योंकि आप जब लीला सुनते हैं, तो स्वचालित रूप से रूप ध्यान होता जाता है। 5:37 तो जितनी बार हम लीला श्रवण करते हैं, रूप ध्यान क्रिस्टल क्लियर (crystal clear) होता है। 5:44 लीला श्रवण के लिए तो गोपियों ने गोपी गीत में कहा था: "तव कथामृतं तप्तजीवनं, कविभिरीडितं कल्मषापहम्। श्रवणमङ्गलं श्रीमदाततं, भुवि गृणन्ति ते भूरिदा जनाः॥" 6:33 कहती हैं गोपियाँ, कि हे श्री कृष्ण, आपके मिलन की विरह वेदना से जब हम बहुत पीड़ित हो जाती हैं, आपकी कथा श्रवण से हमको शांति मिलती है। 6:53 और वो कथा प्रदान करने वाले जो वक्ता हैं, वो बड़े दयालु हैं—'भूरिदा'—यानी बड़े उदार हैं। कथा प्रदान करना, गोपियाँ कहती हैं, कितना बड़ा परोपकार है। 7:15 तो गर्ग आचार्य ने अपना मत दिया कि भाई देखो, कथा रस मतलब भीतर से रस की अनुभूति हो, बाहर से नहीं। 7:30 यह जो चित्त है, यही बंधन और मोक्ष का कारण है। तो चित्त को भगवान में लगाओ। 8:04 जिस दिन तुमने श्रद्धा कर ली, अब गंगा स्नान करने का तात्पर्य नहीं रह गया और कुरुक्षेत्र तीर्थ यात्रा का भी कोई महत्व नहीं रह गया। 8:21 यहाँ बैठ के ही मन को स्नान कर लो। जो मन चंगा, तो कठौती में गंगा। ठीक है? बाहर की चीजें रखो, पूजा भी करो, साथ में कथा भी करो, लेकिन अंदर के कनेक्शन को महत्व दो। https://www.youtube.com/watch?v=j4dyggDiJqs