Thursday, June 10, 2021

Roopdhyan - [Best guide for meditation] Jagadguru Shree Kripaluji Maharaj pravachan

 

Roopdhyan - [Best guide for meditation] Jagadguru Shree Kripaluji Maharaj pravachan- Vishesh abhyas 

https://www.youtube.com/watch?v=3j354GTHyWU


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Roopdhyan - [Best guide for meditation] Jagadguru Shree Kripaluji Maharaj pravachan- Vishesh abhyas.mp4

 

0.10 भागवत प्राप्ति में बहुत सी बातों का ध्यान रखना है


0.30 तीन बातें हैं साधक (aspirant) साध्य (aim, Radha Krishna) और साधना (means ,i.e., Bhakti)


1.12 साधक को प्रमुख तौर पर जिंस बात पर ध्यान देना है वह है साध्य (aim, Radha Krishna & guru - in any combination) का रूप  ध्यान - मन में लगन लगानी है केवल ज़ुबान से नहीं

 

3.54 साधना में सबसे पहले साध्य का रूप ध्यान, और क्योंकि गुरु को तो आपने देखा है इसलिए गुरु का रूप ध्यान तो आसान है, मगर भगवान को तो आपने देखा नहीं तो उनका रूप ध्यान कैसे करें


4.23 राधा कृष्ण का रूप ध्यान, गुरु के रूप ध्यान से भी ज्यादा सरल है, क्योंकि भगवान ने नियम बनाया है कि मानव जो भी भगवान का रूप चाहे, उसे मान ले और भगवान भी उसी रूप को स्वीकार लेंगें, अन्यथा तो कोई भी जीव भगवत प्राप्ति कर ही नहीं सकता, क्योंकि पहले तो वो दर्शन देंगें नहीं 

 

5.12 जैसी आंख पसंद हो, जैसी नाक पसंद हो, जैसा मुख पसंद हो - जो भी मन भाता हो, आकर्षित करता हो


5.33 और उम्र भी अपनी इच्छा अनुसार बना लो, तुरंत पैदा हुए हों कृष्ण, एक वर्ष, दो वर्ष, 10 वर्ष, 16 वर्ष, 100 वर्ष, 1000 वर्ष (ideal age for meditation is upon Krishna of 16 years), लेकिन भगवान के तो अनंत रूप है कोई भी रूप मान लो

 

6.22  जो श्रृंगार आपको पसंद हो, वैसा बना लो

 

6.54 जैसे इस संसार में माँ अपने बच्चे को तरह तरह के कपड़े पहनाती है, श्रृंगार करती है

 

7.33 इस संसार में जैसे कुछ देशों में कानून है की मुंह ढक के चलो, बुरखा पहन कर चलो, मगर भगवान के यहाँ ऐसा कोई नियम नहीं हैं

 

8.28 आप सब प्रकार के जेवर (jewellery) पहना सकते हैं उन्हें, सब प्रकार की लीला करा सकते हैं, cricket खिलवा सकते हैं उनसे


8.46 कितना दयालु है भगवान सोचो


8.56 कोई भी नाम उनका, जो आपको पसंद हो, वो रख दीजिए


9.20 देखिए यशोदा मैया, सबसे बड़ा सौभाग्य जिनका, जिन्होंने श्याम सुंदर को अपनी गोद में खिलाया और जिनकी भौं (eyebrows) से डरते हैं भगवान, वो यशोदा अपने बालक को कहती है "कनुआ", अब ये कनुआ शब्द कौन से शास्त्र में लिखा है - कहीं नहीं,  सखा लोग भी कन्हैया कहते हैं, गोपियां तो उन्हें और भी बुरे शब्दों से पुकारतीं है, मगर प्रेम से - जैसे "लफंगे"

 

10.26 वेद कहता है कि सब शब्द भगवान के नाम हैं, अ यानि श्री कृष्ण, ऊँ यानि शंकर, म यानि माया, ऊ+मा = ऊमा यानि शंकर जी की योग-माया पार्वती, दुर्गा -  राधा, श्यामा, किशोरी कोई भी नाम से पुकारिए, यह नाम भी बदल बदल के बोल सकते हैं,

 

11.22 या भगवान का कोई भी गुण गाओ, सबकी अपनी अपनी पसंद है, किसी को कोई गुण पसंद है दूसरे को कुछ और


11.36 इसी प्रकार से किसी भी लीला का ध्यान करें, कितनी सुविधा दी है भगवान ने उनको स्मरण करने की


12.02 बस शर्त यही है की ऊनका ध्यान करें, मन को उन में उलझाए रहें, मन संसार में अटकने ना पावे, यदि मन संस्कार में लगा तो गोबर भरा - वो चाहे माँ के प्रति, बाप के प्रति, बीवी, पति, बच्चे कोई भी हो 

  

12.35 तो साधक को साध्य पाने के लिए पहला मूल मंत्र है: रूप ध्यान


12.46 दूसरा मूल मंत्र: अनन्य:, भगवान के अलावा कहीं भी मन का लगाव (आसक्ति) नहीं हो, यहाँ भगवान का मतलब:  उनका नाम, रूप, लीला, धाम, गुण, अथवा उनके जन (संत, गुरु) सब कुछ, तात्पर्य यह है कि संसार में मन नहीं जाए


14.08 दो बातें कही गयी हैं गीता में एक तो अनन्य हो और दूसरा स्मरण (ध्यान) करें


14.22: अन्य वस्तु में मन का लगाव नहीं हो, इसके लिए अगर मन जाता भी है संसार में, तो उसमें श्री कृष्ण को बिठा दो


15.04 दूसरी शर्त हुई अनन्यता, चार वस्तु हैं उनमें से पहले तीन "अन्य" हैं यानि सात्विक, राजसिक तामसिक, चौथी "अनन्य" हैं


15.28 सात्विक व्यक्ति या वस्तु (pious deeds, पुण्य कर्म) में भी अगर मन लगा तो वो भी अन्य हैं, अनन्य नहीं - ऐसा व्यक्ति स्वर्ग तो हो जाएगा मगर भगवान के धाम नहीं


15.49: राजसिक व्यक्ति या वस्तु में मन लगा, तो ये भी अन्य हैं, अनन्य नहीं, और वो मृत्युलोक में ही रहेगा, भगवान से कोई संबंध नहीं है उसका


16.05 तामस व्यक्ति या वस्तु में मन लगा, ये भी अन्य हैं, अनन्य नहीं,  और वो नरक में जाएगा - कुत्ते बिल्ली गधा कि योनि में जाएगा


16.30 जितने भी स्वर्ग के देवी देवता हैं, सब अन्य में आते हैं


16.39 ये दो शब्द देवी और देवता, इनका तात्पर्य समझ लो - देवी और देवता माया के आधीन भी होते हैं, जियें लौकिक देवी देवता कहते हैं         


और        


दूसरे आलौकिक देवी और देवता भगवान के धाम में भी होते हैं, जैसे राधा देवी, सीता देवी, लक्ष्मी देवी, श्री कृष्ण देव है मगर सर्वश्रेष्ठ और सबसे बड़े देव 


17.52 आलौकिकदेवी, देव यानी भगवान की शक्तियां हैं


18.16 जैसे पुरुष शब्द है संसार में भी होता है और भगवान को भी पुरुष कहते हैं


19.02 भगवान को महापुरुष, परम पुरुष भी कहते हैं, संत को भी महापुरुष कहते हैं, और माया बद्धध (trapped in maya) को भी पुरुष कहते हैं

 

19.37  देवी देव माया के आधीन (लौकिक) में भी होते हैं और भगवान के धाम (लौकिक) में भी होते हैं , देवी देव जो माया के आधीन (लौकिक) हैं, इनमें मन का लगाव वर्जित है


20.01 आजकल तो मनगढ़ंत देवी देवताओं की भी पूजा होने लगी, जैसे संतोषी माँ जिनका शास्त्रों, पुराणों, वेदों में कहीं जिक्र नहीं

 

20.27 जैसे प्रेम शब्द है संसार में, पूछो की माँ से प्रेम करते हो, बोले हाँ, बाप से - बोले हाँ, बेटा बेटी से - हाँ, प्रेम का अर्थ जानते हो - नहीं

 

21.03 हम मन के स्वार्थिक लगाव को प्रेम का नाम दे देते हैं, स्वार्थ अधिक तो प्रेम अधिक ;  स्वार्थ कम तो प्रेम कम ;  स्वार्थ खत्म तो प्रेम खत्म


21.25 देवी देव जो माया के आधीन (लौकिक) हैं, इनमें मन का लगाव वर्जित है, मगर जो देवी देव भगवान के धाम (आलौकिक) होते हैं, उनमे ही मन को लगाना चाहिए

 

21.56 यानी अगर वस्तु या व्यक्ति या देवी देवता जो माया के अधीन है यानी जो माया के त्रिगुण सात्विक, राजसिक और तामसिक मैं बंधा है, वो चाहे माँ हो, बाप हो, बेटा बेटी, कोई भी हो-  तो उनमें मन लगाना वर्जित है और मरने के बाद जिस व्यक्ति में मन लगा था, उसी की योनि में हम भी जाएंगे, वो यदि गधा बना तो हम गधे के पुत्र बनेंगे  

 

23.0 जो माया के त्रिगुण सात्विक, राजसिक और तामसिक से परे है यानी भगवान, उनका नाम, रूप, गुण, लीला, धाम और उनका संत - केवल इन सब में मन को लगाव हो तो अनन्य भक्ति कहलाती है

 

23.40 तो अनन्य पर बहुत ध्यान देना है, वास्तव में हम सब भगवान से प्रेम करते हैं - कैसे ? हम सब आनंद चाहते हैं और सब कार्य उसी की पाने के लिए कर रहे हैं और भगवान का पर्यायवाची (synonym) शब्द है आनंद, वेद कह रहा है भगवान हैं : आनंदों ब्रह्म, रसौ वै स: (वे रस रूप आनन्द हैं)

 

24.12 संसार में भी ये जब कोई मुसीबत आती है तो सब लोग बोलते हैं, हे  भगवान बचाओ, नास्तिक भी आस्तिक बन जाता है, और जो सत्संग करते है वो तो विशेष अधिकारी हैं, भगवान से प्रेम तो करते ही हैं

 

24.31 लेकिन गड़बड़ कहाँ है कि अनन्य प्रेम नहीं है, त्वमेव (तुम "ही" ,i.e., only You, एव यानि "ही") माता नहीं लेकिन त्वमपी (तुम "भी", You also, अपि यानि "भी") माता के भाव से प्रेम करते हैं हम भगवान से  


24.53 एक माँ हमारी संसार में भी बैठी है उससे भी हम प्रेम करते हैं, और हे भगवान तुम भी हमारी माँ हो  - ऐसे विचार रखते हैं हम  

0.1% भी अगर संसार से प्यार है तो अनन्य नहीं कहलाओगे

 

25.40: यदि लोहा पारस को, जब तक छू नहीं जाए, सोना नहीं बनेगा - यदि बाल जितनी भी दूरी रह गई लोहे और पारस के बीच में, तो सोना नहीं बनेगा


26.05 तार में बिजली जा रही है जब तक उस तार को कोई छूता नहीं है तब तक बिजली अपनी ओर खींच नहीं पाएगी

 

26.17 इसलिए भगवान की अनन्यता की ये शर्त है की कहीं और दूसरे में मन का लगाव नहीं हो

 

26.35 प्रमुख बातें : 1. भगवान का रूप ध्यान  2. जो चाहे भगवान का रूप बना लो, नाम रख लो, श्रृंगार कर लो, जो इच्छा हो लीला का ध्यान करो 3. भगवान के प्रेम में अनन्यता हो 4. भगवान का स्मरण निरंतर हो

 

27.17 मान लो कुछ लोग घंटा, दो घंटा भगवान की पूजा करते है अनन्यता से भी करते हैं, मगर उसके बाद फिर भूल जाते हैं, ये हमेशा स्मरण रखें (realise करना है) कि वो हमारे साथ है हमारे अंदर बैठे हैं - इसका बार बार अभ्यास करना होगा - है तो यह सच्चाई (कि वो हमारे साथ है, हमारे अंदर बैठे हैं) मगर हम इसे जन्मों जन्मों से भूल बैठे हैं - जैसे आपको स्वयं का ध्यान सदैव naturally रहता है कि "मैं हूँ", इसी तरह से सदैव ये "feeling" रहे कि वो हमारे साथ है, हमारे अंदर बैठे हैं 

 

29.16 हमारे हृदय में हमारी आत्मा रहती है और हमारी आत्मा के अंदर भगवान रहते हैं, सदा से, अनंत काल से अनन्त काल तक

 

30.18 हमारा शरीर "ब्रह्म पुर" है, क्योंकि इसमें ब्रह्म रहते हैं

 

31.44 भोले भाले लोग समझते हैं कि भगवान केवल गो लोक में रहते हैं, उनसे अधिक समझदार समझते हैं कि वो सर्वव्यापक है और जो पूरे समझदार है वो ये समझते हैं कि हमारे भीतर भी भगवान हैं, हमे हमेशा यही समझ के साथ जीना चाहिए तो आप कोई भी विचार "privately" नहीं करोगे


32.07 मैं जो सोच रहा हूँ बीवी नहीं जानती, अरे भगवान तो जानता है क्योंकि वो अंदर बैठा है और वो आपका हर भाव, चिंतन, मन का विचार "नोट" करते हैं और उसी के अनुसार फल / दंड भी देते हैं

 

32.52 भगवान तो मन का कर्म / भाव को नोट करते हैं इंद्रियों के कर्म को नोट नहीं करते


32.59 हमने उल्टा सोचा, बस हो गया अपराध, पाप हो गया, अनन्यता से भटक गए, मन को गंदा कर लिया, साबुन से जो धोया था उसे फिर बिगाड़ लिया


33.20 इसलिए बड़ी सावधानी से, जहाँ भी जाएं, अपने ईष्ट को साथ में लिए रहें, वो हमारे भीतर बैठे हैं ये विश्वास जमाते रहें, इसका अभ्यास करते रहें   

 

33.50  और जब यह अभ्यास हो जायेगा तो इतनी शांति मिलेगी कि जैसे आप अनंतकोटी ब्रह्मांड के मालिक हैं, कितना आनंद मिलेगा हर समय, कोई दुख आए आपको महसूस भी नहीं होगा, क्योंकि आपको ये "feeling" है कि वह अंदर बैठा है


34.14 सनकादि परमहंस ऋषि बोलते हैं की हमें चाहे नरक भेज दो, बस ये "feeling" बनी रहे कि आप हमारे साथ हैं, हमारे अंदर बैठे हैं

 

 

 


Wednesday, June 9, 2021

Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj Pravachan Part 10 - Full Transcript Text

 



https://youtu.be/hiSiToZAGJs

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Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj Pravachan Part 10.mp4

0 पहले तो भगवत कृपा का अधिकारी बनना मुश्किल, यदि पार भी कर जाओ मंजिल (ज्ञान और कर्म मार्ग से) तो फिर पतन हो जाएगा

0.16 ज्ञान अज्ञान को समाप्त कर देगा यदि पहुंच गए वहां तक तो लेकिन माया से निवृत्ति नहीं होगी

0. 29 दो प्रकार की माया होती है एक स्वरूप आवृकमाया, दूसरी गुण आवृक माया (आवृक = covered ,i.e., maya keeps the Truth covered in wraps), तो पहली प्रकार की माया को जो अंतिम सीढ़ी तक पहुंच जाए वो समाप्त कर सकता है, लेकिन दूसरी माया को कोई भी पार नहीं कर सकता

0.45 क्यों पार नहीं कर सकता,श्री कृष्ण ने अर्जुन को कहा कि यह मेरी माया है इस माया में मेरे जैसी बराबर शक्ति है

1.33 इसलिए बिना भगवान की कृपा के, इस माया को कोई पार नहीं कर सकता

1.50 माया से उत्तीर्ण होने के लिए श्री कृष्ण की शरणागति करनी पड़ेगी

2.9 श्री कृष्ण की अनुग्रह (कृपा / grace) युक्त ज्ञान जब मिले, तब मोक्ष मिल सकता है

3.0 बिना भक्ति के मोक्ष नहीं मिल सकता,  भक्ति से प्राप्त ज्ञान - जो भगवान की कृपा से मिलेगा - तब मोक्ष मिलेगा

3.24 मोक्ष माने क्या,बंधन से छुट्टी, माया का बंधन

3.35 कोई भी मार्ग ऐसा नहीं है जिसमें बिना भक्ति के मोक्ष मिल जाए

3.46 ऐसा योग भी कुयोग है ऐसा ज्ञान भी अज्ञान है क्योंकि इन से मोक्ष नहीं मिलेगा

4.12 चाहे योगी हो या ज्ञानी हो सब प्रभु की माया से बंधे ही रहते हैं

4.21 तो, ज्ञान मार्ग हमें मोक्ष नहीं दिला सकता भगवत प्राप्ति तो बहुत दूर की बात है

4.32 दो मुख्य लक्ष्य होते हैं हमारे : एक तो दुख (माया) निवृत्ति, दूसरा भगवत आनंद प्राप्ति,  ज्ञान मार्ग तो माया निवृत्ति (overcome / to get relief from) ही नहीं कर सकता भगवत प्राप्ति कैसे कराएगा

4.51 ज्ञान का काम है अज्ञान को समाप्त करना और ज्ञान का स्वयं मर जाना, i.e., wisdom having removed darkness & thereby served its purpose of achieving Lord's love, is no longer required per se) जैसे कर्म का काम है स्वर्ग देना और फिर कर्म का मर जाना

5.13 तो यह दोनों मार्ग कर्म और ज्ञान हमें हमारे लक्ष्य तक नहीं पहुंचा सकते

5.52 जब परमहंस भारत मह ऋषि अपनी हिरण के बच्चे में आसक्ती के कारण, जिससे उनका ध्यान भगवान से हट गया, हिरण बनना पड़ा उन्हें अगले जन्म में

6.48 कोई भी हो, मरने के समय जिस का जिस से प्रेम होगा अगले जन्म में वही उसको शरीर मिलेगा

7.16 मान लीजिए हम अपने पिता से प्रेम करते हैं और अगले जन्म में पिता गधा बने तो हमें गधे का बच्चा बनना पड़ेगा अगले जन्म में

7.35 यदि किसी देवता की भक्ति करते हैं तो देवलोक में जाइए मरने के बाद

7.42 जो भगवान और महापुरुष की भक्ति करेगा, केवल वही माया से निवृत (overcome) हो सकता है

7.52 पहले दो मार्ग - कर्म और ज्ञान - तो हमारे किसी काम के नहीं, अब तीसरा मार्ग बचा उपासना का, भक्ति का और चौथा कोई मार्ग है नहीं

8.22 केवल भक्ति आपको भगवत प्राप्ति करा सकती है

9.02 केवल उपासना से ही हमारा लक्ष्य प्राप्त होगा

9.12 भक्ति में क्या परिश्रम है वह तो हमारे हृदय में बैठे हैं जिनको हम प्राप्त करना चाहते हैं

10.12  यह शरीर एक पीपल का वृक्ष है इसके अंदर एक घोंसला है उसमें दो पक्षी हमारे हृदय में रहते हैं दोनों पक्षी सखा हैं

11.18 एक पक्षी बालक - हम जीव आत्मा - दूसरा पक्षी हमारा पालक ब्रह्म है, यदि हम उस पालक पक्षी की तरफ घूम जाएं, शरणागत हो जाएं बस अमृत हो जाएंगे आनंद मय हो जाएंगे, यह माया अपने आप छोड़ देगी

11.54 भक्ति मार्ग सबसे सरल है

12.10 भगवान तो केवल भक्ति से प्रसन्न होते हैं और सब विडंबना है बकवास है

12.35 भगवान स्वयं गीता में कहते हैं केवल मेरा चिंतन करो मैं सुलभ हूं, कुछ तकल्लुफ (botheration) नहीं करना है कि उपासना / पूजा कहां बैठकर करें, कितने बजे सवेरे करें, नहाकर करें या बिना नहाए, पूरब की तरफ मुंह करें कि कहां करें

12.50 अरे अपनी मां बाप बेटा बेटी पत्नी से प्यार करते हो तो नहा धोकर करते हो क्या, हर समय हर जगह करते हो, यदि लड़का बीमार है तो हर जगह उसका चिंतन हो रहा है बाथरूम में भी

1309 यही भगवान कहते हैं मेरे को पाने के लिए कोई नियम नहीं है, केवल मेरा चिंतन करो मन तुम्हारे पास है मेरा रूप जो भी अच्छा लगे बना लो, कोई परिश्रम नहीं है मुझे पाने में

13.40 मुझे पाने के लिए कुछ करने की जरूरत नहीं है ना योग, जप नहीं, तप नहीं, कोई व्रत नहीं, कोई यज्ञ नहीं

14.10 बस भगवान का स्मरण करो उनका गुणगान करो, नाम गान करो और रो कर आंसू बहाओ

14.24 आंखों से आंसू बहा कर, रो कर भगवान को पुकारो, वह हजारों हाथों से तुम्हारा स्वागत करेंगे, रक्षा करेंगे 14.43 एक छोटा सा बच्चा कुछ नहीं जानता क्या है मां, क्या है बाप, बोलना भी नहीं जानता, भूख लगी है केवल रो देगा अब मां को सोचना है कि क्यों रो रहा है बच्चा तो पूरी तरह से शरणागत है मां के ऊपर

15.09 यही भक्ति मार्ग है,कोई परिश्रम नहीं है,कोई कायदा कानून नहीं है चाहे कोई भी हो कोई भी कितना भी दुराचारी हो बस केवल भगवान की शरण में जाना है सब क्षमा हो जाएगा

15.40 भगवान की कृपा का कुछ मूल्य चुकाना ही नहीं है, हर एक मर्ज की दवा केवल रोना है - बस क्षमा हो गई

1552 अनंत जन्मों के अनंत पाप केवल रो देने से क्षमा हो जाते हैं ऐसी सरकार विश्व में कहां हो सकती है

16.05 ऐसी ही भगवान की कृपा पर, दया पर, सुखदेव परमहंस रीझ गए थे कि जिस पूतना ने अपने स्तन से उनको विष पिलाया उस पूतना को अपना लोक दे दिया, ऐसे दयालु श्यामसुंदर को छोड़कर और किसकी शरण में जाऊं

16.25 भगवान का एक ही काम है दया करना, कृपा करना - हम लोग चाहे कृपा करें चाहे कोप करें, हां भगवान ने भी कोप किया था राक्षसों को मारने के लिए मगर उन सब को अपना लोक दे दिया

17.0 भगवान का गुस्सा तो और भी बढ़िया है कि तुरंत ही को गो लोक मिल जाता है

17.08 भगवान तो कृपा ही करते हैं लेकिन उनकी कृपा पर विश्वास हो और याचना सही सही हो

17.23 भूख चाहिए भगवान की, जैसे कोई 3 दिन का भूखा हो और दूसरा जिसका पेट भरा हो, दोनों की खाने की पुकार में कितना फर्क होगा

17.39 जैसे हम लोग प्रार्थना करते हैं "प्रेम भिक्षाम देही" ( O God, please give me your love as alms), यह कहा तो सही भगवान से, मगर क्या यह सोचा कि दो आंसू भी बहा दें भगवान के लिए बस खाली बोल रहे हैं

18.09 केवल भक्ति मार्ग ही ऐसा है जिसमें कोई नियम नहीं और कोई भय नहीं

18.24 केवल आंख बंद करके दौड़ना है पीछे पीछे श्यामसुंदर खड़े हैं डरो मत

18.36 वह तो पीछे पीछे चलते हैं भक्त के, कि भक्त की चरण धूल मेरे ऊपर पड़े और मैं पवित्र हो जाऊं

18.45 वह भक्त कैसा भी हो, दुराचारी हो, चांडाल चाहे क्यों ना हो

19.17 मगर यदि कोई चारों वेदों का ज्ञानी हो,  12 गुणों से युक्त भी हो मगर यदि मेरा भक्त ना हो तो मैं केवल उसका कर्म नोट करूंगा (just as a witness) और कर्मों के अनुसार फल दे दूंगा


Sunday, June 6, 2021

Understanding the 2 Rules of God - Swami Mukundananda





https://www.youtube.com/watch?v=E_WixNAcDLg 


Understanding the 2 Rules of God


0. God does not do any in-justice, He gives only 2 things: one is nyay (Justice) and other is kripa (Grace)

0.12 nyay means he will note our karmas, he will keep an account and will bestow the results

0.24 our soul says O God "I do not want justice from you, I just want your grace", because if you go by justice I will never be saved, I have got so many karmas of so many lifetimes, I have got my karmas for infinite lifetimes and even if I do only good karmas in 1000 lives , Infinity -1,000 is still equal to Infinity, so I will keep on repeating the bad results of my karma

0.54 all of us have got paap (sins) and punya (pious deed) from endless lifetimes

1.27 Dhritrashtra asked Krishna after the war which sins he had committed so that he had to see the death of his 100 sons - Krishna reminded him that He remembers all previous karmas of all previous lifetimes

2.24 so we have got paap and punya of infinite lifetimes ; only one way to get rid of it and that is if God bestows his grace. By His grace He will burn all the paap and punya of previous lifetimes.

2.37. God has said in Gita : https://vedabase.io/en/library/bg/18/66/   Abandon all varieties of religion and just surrender unto Me. I shall deliver you from all sinful reactions. Do not fear.

3.04 so, we want God's grace; for that we have to surrender to Him

3.14 what does surrender mean. It means O God my faith is fixed nowhere BUT only in Your grace. My faith is not in my strength, not in my wealth, not in my prestige, not in my knowledge, not in my abilities, my faith is only in You

3.46 that was the surrender of Draupadi - full incident of Lord's grace is explained here

6.57 surrender means that I am nothing, O God you are my only strength

7.04 जब लग गज बल अपनो बरतयो, नेक हु नहीं सरयो काम - as long as Gajraj (elephant) had faith in his own strength, God did not come  

BUT निर्बल है जब नाम पुकारयो, आए आधे नाम - when Gajraj felt powerless and called out to God, then Lord came immediately    

7.32 surrender is not name of a sadhana ("means" / directed effort towards Lord) -surrender is a state of thinking that I have no means (साधन हीन) to reach God

7.43 but to reach that stage you have to do sadhana,  that stage will not come automatically, you have to do sadhana to destroy the ego, you have to do sadhana to realise that you have really no means to reach God

7.59 that is why Maharshi Vashishtha told Rama to adopt these two apparently contradictory theories - externally endeavour with full energy as if everything depends on you but internally, on the contrary, leave everything to God grace.

8.28 now if you say externally also, I will not do anything means you are not yet surrendered, you have not yet destroyed the ego

8.36 so until we have destroyed the ego we have to endeavor completely

8.41 when we are fully surrendered God will take over