Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj Pravachan | Part 10 -full Transcript
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Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj Pravachan Part 10.mp4
0 पहले तो भगवत कृपा का अधिकारी बनना मुश्किल, यदि पार भी कर जाओ मंजिल (ज्ञान और कर्म मार्ग से) तो फिर पतन हो जाएगा
0.16 ज्ञान अज्ञान को समाप्त कर देगा यदि पहुंच गए वहां तक तो लेकिन माया से निवृत्ति नहीं होगी
0. 29 दो प्रकार की माया होती है एक स्वरूप आवृकमाया, दूसरी गुण आवृक माया (आवृक = covered ,i.e., maya keeps the Truth covered in wraps), तो पहली प्रकार की माया को जो अंतिम सीढ़ी तक पहुंच जाए वो समाप्त कर सकता है, लेकिन दूसरी माया को कोई भी पार नहीं कर सकता
0.45 क्यों पार नहीं कर सकता,श्री कृष्ण ने अर्जुन को कहा कि यह मेरी माया है इस माया में मेरे जैसी बराबर शक्ति है
1.33 इसलिए बिना भगवान की कृपा के, इस माया को कोई पार नहीं कर सकता
1.50 माया से उत्तीर्ण होने के लिए श्री कृष्ण की शरणागति करनी पड़ेगी
2.9 श्री कृष्ण की अनुग्रह (कृपा / grace) युक्त ज्ञान जब मिले, तब मोक्ष मिल सकता है
3.0 बिना भक्ति के मोक्ष नहीं मिल सकता, भक्ति से प्राप्त ज्ञान - जो भगवान की कृपा से मिलेगा - तब मोक्ष मिलेगा
3.24 मोक्ष माने क्या,बंधन से छुट्टी, माया का बंधन
3.35 कोई भी मार्ग ऐसा नहीं है जिसमें बिना भक्ति के मोक्ष मिल जाए
3.46 ऐसा योग भी कुयोग है ऐसा ज्ञान भी अज्ञान है क्योंकि इन से मोक्ष नहीं मिलेगा
4.12 चाहे योगी हो या ज्ञानी हो सब प्रभु की माया से बंधे ही रहते हैं
4.21 तो, ज्ञान मार्ग हमें मोक्ष नहीं दिला सकता भगवत प्राप्ति तो बहुत दूर की बात है
4.32 दो मुख्य लक्ष्य होते हैं हमारे : एक तो दुख (माया) निवृत्ति, दूसरा भगवत आनंद प्राप्ति, ज्ञान मार्ग तो माया निवृत्ति (overcome / to get relief from) ही नहीं कर सकता भगवत प्राप्ति कैसे कराएगा
4.51 ज्ञान का काम है अज्ञान को समाप्त करना और ज्ञान का स्वयं मर जाना, i.e., wisdom having removed darkness & thereby served its purpose of achieving Lord's love, is no longer required per se) जैसे कर्म का काम है स्वर्ग देना और फिर कर्म का मर जाना
5.13 तो यह दोनों मार्ग कर्म और ज्ञान हमें हमारे लक्ष्य तक नहीं पहुंचा सकते
5.52 जब परमहंस भारत महा ऋषि अपनी हिरण के बच्चे में आसक्ती के कारण, जिससे उनका ध्यान भगवान से हट गया, हिरण बनना पड़ा उन्हें अगले जन्म में
6.48 कोई भी हो, मरने के समय जिस का जिस से प्रेम होगा अगले जन्म में वही उसको शरीर मिलेगा
7.16 मान लीजिए हम अपने पिता से प्रेम करते हैं और अगले जन्म में पिता गधा बने तो हमें गधे का बच्चा बनना पड़ेगा अगले जन्म में
7.35 यदि किसी देवता की भक्ति करते हैं तो देवलोक में जाइए मरने के बाद
7.42 जो भगवान और महापुरुष की भक्ति करेगा, केवल वही माया से निवृत (overcome) हो सकता है
7.52 पहले दो मार्ग - कर्म और ज्ञान - तो हमारे किसी काम के नहीं, अब तीसरा मार्ग बचा उपासना का, भक्ति का और चौथा कोई मार्ग है नहीं
8.22 केवल भक्ति आपको भगवत प्राप्ति करा सकती है
9.02 केवल उपासना से ही हमारा लक्ष्य प्राप्त होगा
9.12 भक्ति में क्या परिश्रम है वह तो हमारे हृदय में बैठे हैं जिनको हम प्राप्त करना चाहते हैं
10.12 यह शरीर एक पीपल का वृक्ष है इसके अंदर एक घोंसला है उसमें दो पक्षी हमारे हृदय में रहते हैं दोनों पक्षी सखा हैं
11.18 एक पक्षी बालक - हम जीव आत्मा - दूसरा पक्षी हमारा पालक ब्रह्म है, यदि हम उस पालक पक्षी की तरफ घूम जाएं, शरणागत हो जाएं बस अमृत हो जाएंगे आनंद मय हो जाएंगे, यह माया अपने आप छोड़ देगी
11.54 भक्ति मार्ग सबसे सरल है
12.10 भगवान तो केवल भक्ति से प्रसन्न होते हैं और सब विडंबना है बकवास है
12.35 भगवान स्वयं गीता में कहते हैं केवल मेरा चिंतन करो मैं सुलभ हूं, कुछ तकल्लुफ (botheration) नहीं करना है कि उपासना / पूजा कहां बैठकर करें, कितने बजे सवेरे करें, नहाकर करें या बिना नहाए, पूरब की तरफ मुंह करें कि कहां करें
12.50 अरे अपनी मां बाप बेटा बेटी पत्नी से प्यार करते हो तो नहा धोकर करते हो क्या, हर समय हर जगह करते हो, यदि लड़का बीमार है तो हर जगह उसका चिंतन हो रहा है बाथरूम में भी
1309 यही भगवान कहते हैं मेरे को पाने के लिए कोई नियम नहीं है, केवल मेरा चिंतन करो मन तुम्हारे पास है मेरा रूप जो भी अच्छा लगे बना लो, कोई परिश्रम नहीं है मुझे पाने में
13.40 मुझे पाने के लिए कुछ करने की जरूरत नहीं है ना योग, जप नहीं, तप नहीं, कोई व्रत नहीं, कोई यज्ञ नहीं
14.10 बस भगवान का स्मरण करो उनका गुणगान करो, नाम गान करो और रो कर आंसू बहाओ
14.24 आंखों से आंसू बहा कर, रो कर भगवान को पुकारो, वह हजारों हाथों से तुम्हारा स्वागत करेंगे, रक्षा करेंगे 14.43 एक छोटा सा बच्चा कुछ नहीं जानता क्या है मां, क्या है बाप, बोलना भी नहीं जानता, भूख लगी है केवल रो देगा अब मां को सोचना है कि क्यों रो रहा है बच्चा तो पूरी तरह से शरणागत है मां के ऊपर
15.09 यही भक्ति मार्ग है,कोई परिश्रम नहीं है,कोई कायदा कानून नहीं है चाहे कोई भी हो कोई भी कितना भी दुराचारी हो बस केवल भगवान की शरण में जाना है सब क्षमा हो जाएगा
15.40 भगवान की कृपा का कुछ मूल्य चुकाना ही नहीं है, हर एक मर्ज की दवा केवल रोना है - बस क्षमा हो गई
1552 अनंत जन्मों के अनंत पाप केवल रो देने से क्षमा हो जाते हैं ऐसी सरकार विश्व में कहां हो सकती है
16.05 ऐसी ही भगवान की कृपा पर, दया पर, सुखदेव परमहंस रीझ गए थे कि जिस पूतना ने अपने स्तन से उनको विष पिलाया उस पूतना को अपना लोक दे दिया, ऐसे दयालु श्यामसुंदर को छोड़कर और किसकी शरण में जाऊं
16.25 भगवान का एक ही काम है दया करना, कृपा करना - हम लोग चाहे कृपा करें चाहे कोप करें, हां भगवान ने भी कोप किया था राक्षसों को मारने के लिए मगर उन सब को अपना लोक दे दिया
17.0 भगवान का गुस्सा तो और भी बढ़िया है कि तुरंत ही को गो लोक मिल जाता है
17.08 भगवान तो कृपा ही करते हैं लेकिन उनकी कृपा पर विश्वास हो और याचना सही सही हो
17.23 भूख चाहिए भगवान की, जैसे कोई 3 दिन का भूखा हो और दूसरा जिसका पेट भरा हो, दोनों की खाने की पुकार में कितना फर्क होगा
17.39 जैसे हम लोग प्रार्थना करते हैं "प्रेम भिक्षाम देही" ( O God, please give me your love as alms), यह कहा तो सही भगवान से, मगर क्या यह सोचा कि दो आंसू भी बहा दें भगवान के लिए बस खाली बोल रहे हैं
18.09 केवल भक्ति मार्ग ही ऐसा है जिसमें कोई नियम नहीं और कोई भय नहीं
18.24 केवल आंख बंद करके दौड़ना है पीछे पीछे श्यामसुंदर खड़े हैं डरो मत
18.36 वह तो पीछे पीछे चलते हैं भक्त के, कि भक्त की चरण धूल मेरे ऊपर पड़े और मैं पवित्र हो जाऊं
18.45 वह भक्त कैसा भी हो, दुराचारी हो, चांडाल चाहे क्यों ना हो
19.17 मगर यदि कोई चारों वेदों का ज्ञानी हो, 12 गुणों से युक्त भी हो मगर यदि मेरा भक्त ना हो तो मैं केवल उसका कर्म नोट करूंगा (just as a witness) और कर्मों के अनुसार फल दे दूंगा