अफसोस, ये विडंबना (tragic) है..... कब लोगों को अपनी सुध आयेगी कि हम क्या हैं (आत्मा) और क्या समझ रहे हैं (शरीर)
अफसोस, ये विडंबना (tragic) है : कब लोगों को अपनी सुध आयेगी कि हम क्या हैं (आत्मा) और क्या समझ रहे हैं (शरीर) और यह जीवन जैसे मुट्ठी से रेत (sand) निकलती है, वैसे भाग रहा है, इन्हें 84 लाख योनियों में भटकने का कुछ गम (sorrow) या खौफ (fear) या ज्ञान (wisdom) या दोबारा मां के नर्क रूपी गर्भ में 9 महीने उल्टा लटकने की सजा की भी चिंता नहीं है
क्या लाभ है ऐसी education का, ऐसे जीवन का, जिसमें 2+2=0 हो, पूरे भौतिक जगत में यही गणित है, जबकि आध्यात्मिक क्षेत्र में 2+2=4 और 2-2=4 होता है
भक्ति का formula है : 2 + 2 = 4 & 2 – 2 = 4 और भौतिक formula : 2 + 2 = 0 & 2 – 2 = 0, क्योंकि भौतिक में जब शरीर त्यागते हैं तो सब कुछ 0 (0, शून्य) ही हो जाता है
यानी भौतिक जगत में आप कुछ भी सांसारिक कर लो यदि भगवान (यानी 1 number) मन में नहीं है यानी भगवान को अपने प्रत्येक कार्य या विचार में, आपने प्रथम स्थान नहीं दिया तो सब 0 (शून्य) ही है (00000000.....)
मगर
आध्यात्मिक दुनिया में आप कुछ भी प्रयास कर लो वह जुड़ता (cumulative) और बढ़ता ही रहता है, मरने के बाद अगले जन्म में भी (यदि आपका अगला जन्म हुआ तो यानी अगर आपकी भक्ति संपूर्ण (सिद्ध) नहीं हुई यानी आप भगवान को प्रसन्न नहीं कर पाए कि आपको भगवत धाम में प्रवेश मिल जाए)
सारी 99.9% (मेरा अनुमान) दुनिया का यही हाल है
इसीलिए भगवान स्वयं कहते हैं
बहुनाम जन्मनाम अंते...
https://vedabase.io/en/library/bg/7/19/
यानी जो भगवान की लीलाओं में मन रखते हैं, उन भाग्यशाली 0.1% में आप हो, आपको नमन है 🙏