बह्म जीव माया तत्वज्ञान भाग - 2, Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj Pravachan ||
- Bhakti Darshan TV
2.08 दुख यदि आपको ना भी मिले, तो भी यह जरूरी नहीं कि आपको सुख मिल जाएगा, मगर एक बार सुख (आनंद) मिल जाए तो दुख नहीं मिलेगा यह पक्का है
2.30 तो क्या संसार में हमें सुख नहीं मिलता, वह संसार का सुख, सुख नहीं है हम अज्ञान से उसे सुख मानते हैं, इसीलिए हमें दुख मिल रहे हैं
2.55 तो अज्ञान को मिटाने के लिए पहले ज्ञान चाहिए
3.15 दुख मिलने का मूल कारण है अज्ञान ; तीन तरह के दुख होते हैं: आदिभौतिक, आदिदैविक और आध्यात्मिक
3.52 कुछ भी सिद्ध करने के लिए केवल वेद ही प्रमाण है
4.06 वेद कहता है कि हे मनुष्य, क्या आपको पता है कि आप कौन हो ?
5.06 अगर आपने इस मनुष्य जीवन में ज्ञान प्राप्त नहीं किया तो इसके अलावा कोई और शरीर ऐसा नहीं है जिसमें ज्ञान प्राप्त कर सको
5.39 84 लाख तरह के शरीर हैं
5.54 स्वर्ग लोक में देवता लोग रहते हैं वह भी 84 लाख योनियों का हिस्सा है
6.03 लेकिन ज्ञान प्राप्त करने के लिए केवल मनुष्य शरीर ही है
6.53 यदि आपने ज्ञान प्राप्त नहीं किया इस मनुष्य शरीर में दुख मिलता ही रहेगा
7.06 कब तक मिलेगा दुख ; कल्पों तक
7.20 कितना बड़ा एक कल्प होता है: कलयुग में 4,32,000 वर्ष , 8,64,000 वर्ष का द्वापर 12,96,000 वर्ष का त्रेता 17,28,000 हजार का सत युग ; यानी चारों युग मिलकर 43,20,000 वर्ष ; और 71 बार यह चारों युग का क्रम (complete cycle) बीत जाए यह एक मन्वंतर होता है; 14 मन्वंतर बीत जाए तो ब्रह्मा का 1 दिन होता है इतनी ही लंबी ब्रह्मा जी की रात होती है और 1 दिन और एक रात मिलकर एक कल्प होता है
9.14 यदि एक बार मनुष्य शरीर छिन गया तो दुबारा हजारों कल्पों के बाद भी मनुष्य शरीर नहीं मिलता है
9.23 आप इसे हंसी मजाक में ले रहे हैं अरे मनुष्य जन्म फिर मिल जाएगा, अगला जन्म फिर कर लेंगे, ज्ञान व्यान अगले जन्म में देखा जाएगा
10.10 यह मानव देह बड़ा दुर्लभ है देवता लोग भी मनुष्य शरीर चाहते हैं
10.21 स्वर्ग में कितना सुख है आप सोच नहीं सकते, इतना ज्ञान है उनके पास, इतनी शक्तियां हैं उनके पास, फिर भी वह मनुष्य का गंदा शरीर चाहते हैं
10.49 आपके शरीर में पूरी गंदगी भरी हुई है
11.14 देवता लोग जिनके शरीर से इतनी सुगंध आती है यदि एक देवता यहां आ जाए तो उसके आनंद में आप सब मूर्छित हो जाएं
11.34 देवता गण मनुष्य का शरीर क्यों चाहते हैं क्योंकि केवल मनुष्य शरीर में ही कर्म करने का अधिकार है - और किसी योनि में नहीं
12.53 जो मानव शरीर पाकर ज्ञान अर्जित ना करे, ऐसा ज्ञान, जिस से अज्ञान दूर हो जाए और दुख समाप्त हो जाए और आनंद मिल जाए - तो वह आत्महत्यारा है
13.26 प्रत्येक व्यक्ति केवल सुख के लिए कर्म करता है मगर सुख मिलता नहीं करोड़ों और अनंत जन्म बीत गए
14.24 यह मानव देह देव दुर्लभ है, और उससे भी कहीं अधिक दुर्लभ कोई वास्तविक संत का मिलना
16.58 बिना मनुष्य देह पाए, तत्व ज्ञान नहीं मिलता है
17.12 ऐसे कई बार अनंत बार मनुष्य जन्म भी मिला, संत भी मिले, मगर ज्ञान प्राप्त नहीं कर पाए, अज्ञान नहीं गया, आनंद नहीं मिला, दुख नहीं गया
19.29 जितना वेद शास्त्र पढ़ोगे उतने उलझते जाओगे और गुरु वही चीज हमें बहुत आसानी से समझा सकता है