इस उपदेश को बार-बार सुनिए , श्री महाराज जी का आदेश है || Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj
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1.0 मन ही मोक्ष और बंधन का कारण है
2.53 मन ही कर्म का करता है
3.50 जैसे आपने किसी को मारा तो नहीं, मगर आपने विचार किया मरने का, तो बस भगवान ने नोट कर लिया वो कर्म कर दिया आपने, चाहे इंद्रियों से नहीं किया
5.36 श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कहा कि मन मुझ में रख सदा ("सर्वेषु कालेषु")
6.26 इंद्रियों के कार्यों को भगवान कर्म नहीं मानते, मगर हम तो पूजा केवल इंद्रियों से ही करते हैं मन से नहीं, आप केवल physical drill कर रहे हो
8.18 आप लोग दिन भर नाम लेते हैं, भगवान का कीर्तन करते हैं, मगर कितना विश्वास है आप में कि ये नाम में ही भगवान है
8.38 मान लो एक अंगूठी आपने पहन रखी है ₹10 की और दूसरी पहन रखी है 1 करोड़ की, तो आपके नज़रिए में फर्क होगा ना, दोनों को देखने में
9.02 नाम में ही भगवान है - ये भगवान ने स्वयं कहा है
11.15 जो श्री कृष्ण का समरण करे, उसकी आंतरिक और बाहर की दोनों शुद्धि मान ली जाती है, इससे बड़ी और कृपा क्या होगी कि नाम में वो बैठे हैं और नाम लेने का भी कोई नियम नहीं
11.41 और चीजों में बहुत बड़े बड़े नियम है यदि यज्ञ करना हो, योग करना हो, लेकिन प्रेम में कोई नेम (नियम) नहीं, "जहाँ प्रेम नहीं नेम", जहां नेम नहीं प्रेम + "चाखा चाहे प्रेम रस, राखा चाहे नेम" यह नहीं हो सकता
12.45 जैसे अपने आप को याद रखते हो मैं हूं, मैं हूं, ऐसे ही याद रखो कि मन ही कर्म का करता है
13.10 कोई proof नहीं है कि यह मेरा बाप है, मगर हम रोज कहते हैं और मान भी लिया, मगर भगवान के बारे में नहीं माना
14.20 कितनी बार कहा है कि पहले भगवान का रूप ध्यान करो, और नाम में भगवान ही बैठे हैं, फिर नाम लो 12-11-2022
13.45 चाहे संसार की भक्ति करनी हो, चाहे भगवान की भक्ति - चुनाव आपको करना है, मन से ही करो
15.10 प्रह्लाद को भगवान ने कहा कि संसार में रहो, गृहस्थ रहो, राज्य करो, 30, 67,20,000 वर्ष राज्य किया, क्योंकि भगवान की आज्ञा है, हालांकि प्रह्लाद नहीं चाह रहे थे क्योंकि भगवान का आनंद पाने के बाद, दर्शन करने के बाद, कौन चाहेगा गोबर गणेश संसार को
16.07 सुग्रीव को भी आदेश दिया राम ने राज्य करो, विभीषण को बोला राज्य करो
16.56 तीन अंगुली की खोपड़ी है ना हमारी, हर जगह चल जाती है महापुरूषों पर भी भगवान पर भी
17.20 भगवान का रूप ध्यान करना है, इसको ज्ञान कहो, कर्म कहो, भक्ति कहो या प्रपत्ति कहो 12-11-2022
17. 40 उपासना : उप यानी नजदीक, आसन मतलब जाना, बैठना, और कौन जाए भगवान के पास, मन जाए, केवल शरीर नहीं, शरीर न भी जाए तो चलेगा
18.05 वैराग्य का मतलब, संसार से मन को हटाना
18.20 संसार को अपनी जगह रहने दो, क्या बिगाड़ लेगा केवल मन को हटाना है
18.45 जो मन भगवान की तरफ लग गया वह विषय का ग्रहण करते हुए भी विषय से अलग है जैसे रसगुल्ला खा रहा है शरीर, मगर मन को प्रेमानंद मिल रहा है
19.35 एक बार भगवान में मन लगने के बाद, भगवान से मन पृथक हो ही नहीं सकता, कोई शक्ति नहीं संसार में जो ऐसा कर दे, यानी भगवान से पृथक कर दे
20.0 गोपी बैठी थी यमुना किनारे, ऐसा लग रहा था कि ध्यान कर रही है, नारद जी आए पूछा श्री कृष्ण का ध्यान कर रही हो, बोली नहीं मैं उनको मन से हटाना चाह रही हूं मगर हटता ही नहीं
21.50 जब आपको चीनी की चाय मिले और गुड़ की चाय मिले तो चीनी की चाय नहीं छोड़ोगे हालांकि दोनों एक ही है, ऐसे ही भगवान का आनंद (अमृत) और जगत का आनंद (विष), कौन चाहेगा विष पीना अमृत छोड़कर
22.20 भगवान में लगा मन हटता नहीं, क्योंकि माया (दुख) का अधिकार नहीं होता, जैसे अंधकार रह नहीं सकता सूर्य की रोशनी में
23.0 इसलिए मन को भगवान आनंद में लगाओ, इंद्रियों को भी लगा दो ताकि इंद्रियां भी संसार में नहीं जाएंगी और मन को परेशान नहीं करेंगी