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Wednesday, June 2, 2021
इस उपदेश को बार-बार सुनिए , श्री महाराज जी का आदेश है Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj - full text
Tuesday, June 1, 2021
तत्व ज्ञान - भाग 1, Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj Pravachan, Spiritual Knowledge
Tatwa Gyan-1 (तत्व ज्ञान) ||Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj Pravachan
https://www.youtube.com/watch?v=BvtruUTwFCc
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Tatwa Gyan-1 (तत्व ज्ञान) Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj Pravachan.mp4
5.20 kirtan
8.19 तुम्हारा शरीर, देव दुर्लभ है करोड़ों जन्मों बाद तुम्हें यह मानव देह मिला है इसीलिए इसी देह में लक्ष्य को प्राप्त कर लो
8.44 अन्यथा 84,00,000 योनियों में घूमना पड़ेगा
9.12 यदि इसी देह में आपने तत्व को जान लिया तब तो यह देह सफल है अन्यथा बहुत बड़ी हानि होगी
9.56 एक तो यह मानव जन्म दुर्लभ है, दूसरा यदि संत महापुरुष जिसको वेद शास्त्रों का ज्ञान है, भगवत प्राप्ति हो चुकी है मिल जाए, तब आपका लक्ष्य मिल सकता है
10.44 यह तत्वज्ञान केवल मानव देह में प्राप्त किया जा सकता है, बाकी सब शरीर भोग योनियाँ हैं
11.0 यहां मनुष्य अगर अच्छा कर्म करेंगे तो स्वर्ग जाएंगें, बुरा कर्म करेंगें तो नर्क जाएंगे और यदि दोनों का मिश्रण होगा तो इसी मृत्यु लोक में किसी 84,00,000 योनियों में घूमेंगे
11.17 अच्छा कर्म और बुरा कर्म दोनों ही करना खतरनाक है और इन दोनों का मिश्रण भी खतरनाक है
11.46 स्वर्ग के देवता जिनकी हम पूजा करते हैं इंद्र, वरुण, कुबेर, यमराज आदि ये सब भी मानव देह की याचना करते हैं
12.0 क्यों, क्योंकि स्वर्ग भी भोग योनि है वहां पर कुछ नया पुण्य आप नहीं कमा सकते हैं, जैसे आप का बैंक का खाता हो, केवल खर्च कर सकते हैं वहां (स्वर्ग में)
पर नया पुण्य (पैसा) जमा नहीं करा सकते, और ज्यों ही आपकी जमा पूंजी (पुण्य) खर्च हुई तो वापस मृत्यु लोक आना पड़ेगा
12.36 संकेत केवल यह है कि मानव देह का महत्व पहचानना है और लाभ उठाना है
12.45 यह मानव शरीर केवल खाना, पीना, सोना और विषय भोग करने के लिए नहीं है, यह तो सब पशु पक्षी भी करते हैं आप से अधिक स्वस्थ है वह जानवर
13.0 वह मूल खाना खाते हैं आप बुद्धिमान हैं तल के, पका के, प्रोटीन विटामिन नष्ट करके खाते हैं और आए दिन अस्पताल जाते रहते हैं, यह बुद्धि के दुरुपयोग का परिणाम है
13.22 यह दुख की बात है कि मानव देह में आकर भी हम यह न सोचें कि हम कौन हैं, हमारा क्या लक्ष्य है, वो कैसे मिलेगा, इन प्रश्नों को हल करना चाहिए
13.47 बस केवल भाग रहे हैं, क्यों भाग रहे हैं क्योंकि वह भाग रहा है
14.04 हम नौकरी चाहते हैं, हम करोड़पति बनना चाहते हैं सब गलत
14.16 संपूर्ण ब्रह्मांड, चींटी से ब्रह्म तक, सब केवल एक ही वस्तु चाहते हैं, बिना किसी के सिखाए पढ़ाएं
14.35 जब बच्चा पैदा हुआ तब रोता है, असल में वह भी आनंद मांग रहा है
15.16 जन्म और मृत्यु के समय दुसहाय (intolerable) पीड़ा होती हैं मगर मनुष्य बड़ा होकर भूल जाता है और यही दुख को बच्चा रोकर निकालता है, जन्म के समय
15.48 कोई भी व्यक्ति कुछ भी चाहता है तो क्यों, आनंद के लिए
17.26, 18.06 आनंद का लवलेश (even a semblance) भी यदि मिल जाए - एक बार सही, चाहे स्वपन में ही, तो सारी दौड़ भाग, बांटना, कामना वगैरह सब समाप्त हो जाएं और संसार के सुख को लात मार दे
18.25 एक बार आनंद प्राप्ति के बाद फिर आनंद छिन नहीं सकता
18.33 आनंद की परिभाषा क्या है, जो (unlimited) असीमित हो, यानी अनंत मात्रा का हो और सदा बना रहे
18.58 हमको अभी तक संसार में जितना भी सुख मिला सब सीमित मात्रा में और क्षण भर के लिए, यानी तुरंत खत्म होने वाला मिला
20.06 फिर दोबारा उसी वस्तु या व्यक्ति की भूख और फिर थोड़े समय के बाद वैराग्य, यही नाटय क्रम अनंत जन्मों से हो रहा है
20.17 हमारे पास इतनी भी फुर्सत नहीं है कि हम समझ तो ले कि आनंद कहां से मिलेगा जो स्थाई हो, जो सदा रहे
20.38 भई करोड़पति बनना चाहते हो क्यों, जो लाखों करोड़पति हैं उनसे पूछ तो लो क्या वह आनंद में है, भई वे भी नींद की गोली खाकर सोते हैं
21.05 फुर्सत नहीं है यह जानने की, कि आनंद कहां से मिलेगा, बस भागना है, पागलों की तरह
21.19 विश्व का प्रत्येक जीव आनंद चाहता है, बिना किसी के सिखाए पढ़ाए, कुछ तो मूल कारण होगा
21.38 किसी मां बाप ने अपने बेटे को यह नहीं बताया होगा कि बेटा आनंद ही का प्रयास करना, दुख पाने का नहीं, क्योंकि यह तो स्वाभाविक (natural knowledge) है
Monday, May 31, 2021
मरने के बाद किसको मनुष्य शरीर अवश्य मिलेगा और किसको नहीं - Jagadguru Shree Kripaluji Maharaj Pravachan - who will get the human birth again or not ?
मरने के बाद किसको मनुष्य शरीर अवश्य मिलेगा और किसको नहीं - who will get the human birth again or not ?
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उसको मरने के बाद मनुष्य शरीर अवश्य मिलेगा - Jagadguru Shree Kripaluji Maharaj Pravachan.mp4
0 कर्म कोई भी हो बुरा (पाप) या अच्छा (पुण्य), दोनों ही बंधन में डालते हैं
1.53 वेदों में 80000 रिचाएं (श्लोक) वर्णाश्रम धर्म का निरूपण (detail) करती हैं 16000 रिचाएं उपासना का वर्णन करती है, 4000 रिचाएं ग्यान का
3.56 पुण्य कर्म करने से स्वर्ग मिलता है
4 17 लेकिन स्वर्ग भी माया जैसा ही लोक है जैसे दुख यहां पर है वैसे वहां भी हैं
4 32 सिर्फ standard ऊपर है जैसे संसार का भिखारी और खरबपति - उन दोनों में अंतर दिखाई पड़ता है, fact में नहीं है
4 52 जो आनंद गाय को हरी घास में मिलता है वही आनंद हम लोगों को रसगुल्ला में मिलता है आनंद में अंतर नहीं है - देखने में केवल अंतर है
5 19 जैसे आप बच्चे से लाड करते हैं चुम्मा करते हैं, वैसे ही गाय भी करती है कोई अंतर नहीं है, केवल अंतर दिखाई पड़ता है
5.48 ऐसे ही स्वर्ग और संसार में केवल दिखने का अंतर है, उनका (स्वर्ग में) शरीर बहुत चमकदार होता है, खुशबू निकलती है उसमें पसीना नहीं आता, मल मूत्र नहीं होता, उस शरीर में - लेकिन मन जैसे आपका वैसे ही उनका
6.18 जैसे आपकी वासनाएं घटती बढ़ती रहती हैं, वैसे ही वहां भी
6.25 वहां भी 1 से 1 ऊपर स्तर है और अपने से ऊपर वाले को देखकर जलन होती है
6 52 जो स्वर्ग का राजा है इंद्र, वह भी उसी बीमारी से बीमार है - काम क्रोध लोभ मोह ; हमारे संसार की एक स्त्री (गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या) पर मोहित हो गया स्वर्ग का राजा इंद्र जहां पहले से ही उर्वशी और मेनका है
7.35 ध्रुव भक्ति कर रहे हैं भगवान की और इंद्र को जलन हो रही है, यह मेरा सिंहासन छीन लेगा, अप्सरा भेजो ध्रुव के पास उसका ध्यान भंग करने के लिए
7.59 वेद कहते हैं वह घोर मूर्ख हैं जो स्वर्ग के लिए इतनी मेहनत करते हैं, शुभ कर्म पुण्य कर्म करते हैं
8.15 बहुत परिश्रम है पुण्य करने में, यज्ञ करने में थोड़ा बहुत भी नियम में गलत हुआ तो दंड मिलेगा
8.40 जैसे नौकर ने एक दो बार चाय में चीनी नहीं डाली तो नौकर को दंड मिलता है निकाल दिया जाता है
9.12 ऐसे ही देवता लोग हैं जो मनुष्य की गलती पर सजा देते हैं पुण्य का फल तो दूर रह गया
9. 29 इसलिए वेद कहते हैं पुण्य से स्वर्ग मिलेगा कुछ समय के लिए
10.10 पाप अधिक होगा तो नर्क भेजे जाओगे कुछ समय के बाद फिर मृत्यु लोक में कुत्ते बिल्ली वगैरा की योनि में डाल दिया जाएगा
10.34 इसलिए जो मन को गुरु और हरी में लगा देगा वही कर्म बंधन को पार कर पाएगा
12.0 यदि कर्म भगवान की तरफ झुकाव वाले हुए तो मनुष्य शरीर इसी मृत्यु लोक में दोबारा मिलेगा अपनी साधना भगवान के प्रति पूरा करने के लिए - वरना 84,00,000 योनियों में किसी भी जाति में
12.30 भगवान सबके कर्मों का हिसाब (मन से किए हुए कर्म) रखते हैं और सबका अलग-अलग परिणाम होता है यानी किस योनी में कौन जाएगा
12 54 उसके कर्मों के हिसाब से भगवान किसी को नर्क, किसी को स्वर्ग, किसी को मनुष्य किसी को 8400000 योनियों में भेजते हैं
13.55 हम सब लोग सब योनियों भोग चुके हैं, बहुत दुर्लभ है और भगवत कृपा है कि मनुष्य का शरीर वापिस मिला है
14. 18 ऐसे ही नहीं मिल जाता मनुष्य का शरीर लापरवाही करने से काम नहीं चलेगा
14.26 हरि और गुरु में कितना मन लगा, आपका यदि लगा है तो मानव देह मिलना पक्का है और किसी महापुरुष के घर में जन्म होगा मगर यदि पाप कर्म भी साथ में है तो किसी नास्तिक, शराबी, कबाबी के घर में मनुष्य जन्म मिलेगा ऐसी संगत में आप फिर से पाप कर्म करेंगे और फिर 84,00,000 योनियों में जाना पड़ेगा
15.15 लाखों करोरों कर्मों का बड़ा लंबा चौड़ा बही खाता है कोई महापुरुष भी किसी व्यक्ति के बारे में कह नहीं सकता
15 26 भगवान स्वयं ही कर्मों का फल निर्धारित करते हैं
15.35 हमारा प्रयत्न यह होना चाहिए कि जितना ज्यादा से ज्यादा हो सके उतनी देर गुरु और हरी में मन लगाएं
15.48 जीवन का तो अगले क्षण का भी भरोसा नहीं है
16.16 आजकल के बच्चे पहले 6 महीने समय व्यर्थ करेंगे इधर उधर, जब परीक्षा का समय आएगा तो रातभर जागेंगे
16.40 लेकिन हमें तो पता ही नहीं है कि हमें कब ये शरीर छोड़ना पड़े, इसलिए हर क्षण का लाभ उठाएं, हरि गुण गाएं, मन हरि में लगाएं 1700 यह मन आपका दुश्मन है इसकी नहीं सुनना, जिद कर लो कि जो मन कह रहा है वह नहीं करेंगे, बहुत कर लिया मनमाना अब मन को वेद और गुरु के अनुसार नियंत्रण करना है 17:30 और यह बहाना नहीं चलेगा कि मन नहीं मानता
18.22 केवल दृढ़ संकल्प से मन को नियंत्रण करता है
18.32 शादी ब्याह में सारी रात जागतें हैं और और कीर्तन में एकदम से नींद आने लगती है यह लापरवाही है
19.05 किसी को फिक्र नहीं है कि कल हम रहेंगे कि नहीं
19.44 इसीलिए वेद कहते हैं कि कल कल कल, आगे आगे आगे मत करो, तुरंत करो - कौन जाने की अगला क्षण मिले ना मिले
20 30 और 23.01: यक्ष ने युधिष्ठिर से पूछा कि सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है उन्होंने जवाब दिया कि सब देखते हैं कि उनके रिश्ते में, उनके संबंधों में या दूसरे लोग रोज मर रहे हैं मगर कोई यह नहीं समझता कि हमें भी मरना है यह सबसे बड़ा आश्चर्य है
24.40 यह मूर्ख मनुष्य की अंतिम सीमा है जो तुरंत सावधान नहीं होते
24.48 इसलिए अच्छे और बुरे कर्म दोनों छोड़कर गुरु और हरी में मन लगाएं यही एकमात्र तत्वज्ञान है, यही साधना है, यही बुद्धिमत्ता है