Tuesday, September 28, 2021

हे श्री राधे! मैं अज्ञानी भूल गया कि आनंद का सागर आपके चरणों में है | Hey Shri Radhe! I, the ignorant, forgot that the ocean of happiness lies at your feet- Devi Chitralekhaji

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https://youtu.be/k7GC8pPiheI?si=RkAhtdAMk8JqFQuY

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in heart) अगर अपने अंतर मन में झाक कर के हम

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नहीं

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खाइ

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चोगी और मेरा

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खती

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glance) इस ओर

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ली जू

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Sunday, September 26, 2021

काम, क्रोध, लोभ, व मोह से कैसे बचें? How to avoid lust, anger, greed and attachment - देवी चित्रलेखा जी

 https://www.youtube.com/watch?v=61iEYupz0iA

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आम आदमी के अंदर

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4 अवगुण पाए जाते हैं, अवगुण तो बहुत

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हैं इंसान अवगुणों का भंडार है पर चार

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विशेष नाम लिए जाते हैं जब भी अवगुणों की

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बात आती है

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एक काम

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है क्रोध

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लोभ और चौथा

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यह मोह

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कि इन चार अवगुणों की विशेष बात की जाती

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है कि यह चार तो सभी में पाए जाते हैं

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कुछ काम है क्रोध है लालच है और संसार के

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प्रति मोह है विषयों के प्रति मोह है

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है तो यह चार यह चारों जो अवगुण हैं यह

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छूटेंगे कैसे हो

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है और क्या भागवत इन चारों अवगुणों को

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छुड़ाने के लिए सुनाई जाती है

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बड़े ध्यान से सुनना है

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[संगीत]

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है क्योंकि

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Foundation फाऊंडेशन मजबूत होगी तो बिल्डिंग भी अच्छी

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बनेगी असल में हमारी सत्संग कथा भागवत

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सुनने की Foundation फाऊंडेशन ही गलत है

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कि हमारी नींव ही इस रूप में रख दी गई थी

1:16

कि भागवत सुनने से काम बन जाते हैं ऐसा बन

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जाता है अब नींव ही गलत पड़ गई तो फिर

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बिल्डिंग कहां से अच्छी बनी पहले समझ

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लीजिए 

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कि क्या भागवत सुनने से काम क्रोध लोभ मोह

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को यह दूर हो जाएं अवगुण,  इसलिए सुनी जाती

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है? नहीं

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यह अवगुण दूर होना तो बड़ा मुश्किल काम है

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तो भागवत क्या करेगी लिए काम क्रोध रहेंगे

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आपके भीतर, लेकिन जो संसार के प्रति थे

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अब वह मुड़कर के भागवत उन अवगुणों को

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कृष्ण से जोड़ देगी और फिर वह गुण अपने आप

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कृष्ण से जुडते ही गुण बन जाएंगे 

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कैसे ?

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काम यानी एक प्रकार की इच्छा

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मैं

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अभी अच्छा भगवान से कैसे जुड़ेगी 

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काम हो इच्छा हो किसी की इच्छा हो भगवत

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प्राप्ति की

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श्रीमद्भागवत में जहां

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रासपंचाध्याई वहां एक श्लोक आता है जब गोपियां

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दौड़ी दौड़ी आ रही है श्रीकृष्ण से मिलन

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के लिए जब बांसुरी सुनी है तब शुकदेव जी

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ने गाया है निशम्य गीतम तधनंग वर्धनम

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कैसा गीत बजाया है आज कृष्ण ने अनंग

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वर्धन करने वाला काम को बढ़ाने वाला अनंग

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वर्धनम

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कि अब यहां यह प्रश्न हो सकता कि

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कृष्ण की वेणू कृष्ण की बांसुरी काम बड़ा

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सकती है कभी कामना बढ़ा सकते हो यहां काम

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बड़ाया पर कैसा काम संसारी काम नहीं

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कृष्ण दर्शन की इच्छा

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उसको बढ़ाया गया है इसलिए शुकदेवजी ने कहा

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अनंग वर्धनम

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काम को बढ़ाने वाला गीत आज कृष्ण

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ने गाया है,काम

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यानी इच्छा इच्छा किसकी प्रियतम के

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मिलन की 

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तो फिर काम के बाद आता है क्रोध 

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क्रोध सब के अंदर होता है

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होता है कि नहीं होता है

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ठीक है सा कोई सिद्ध महापुरुष यहां पर जो

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हाथ उठाकर ले

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की हिम्मत से कैसे के जी हां मुझे

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क्रोध नहीं आता

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कि हमने क्रोध को जीत लिया हे एक महात्मा

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जी

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40 साल हिमालय की गुफा में तप करके और तप

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क्या क्रोध पर विजय प्राप्त करी


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तपस्या करके आ गए बिहारी जी के मंदिर में

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बिहारी जी के मंदिर तो आपको पता है इतनी

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भीड़ होती है वहां कौन किसको कोई VIP वीआईपी

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वीआईपी सब कोने में धरे रह जाते हैं सब

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एक-दूसरे को धक्का देते हैं तो किसी का

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पांव बाबा के पांव पर चड़ गया तो बाबा एक

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दम गुस्से में बोले खबरदार तुझे पता नहीं

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मैं कौन हूं मैं महात्मा 40 साल हिमालय 

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में रहकर मैंने क्रोध पर विजय प्राप्त

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क्यों तेरी यह हिम्मत तू मेरे पांव पर पांव रख रहा है


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बात पर बड़ा हंसा वाह महात्मा जी 40

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साल में आपने यह विजय प्राप्त करी के पांव

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पर पांव धर दिया तो आप आग बबूला हुए

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कहना बड़ा आसान है और क्रोध पर विजय

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प्राप्त करना पड़ा बड़ा मुश्किल कार्य है

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तो फिर क्या करें क्रोध 

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जब भगवान से जुड़ जाएगा तो क्या होगा

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वह इस फिर संसार पर क्रोध नहीं आएगा फिर

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अपने आप पर क्रोध आएगा कि तू कैसे अपना

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जीवन बर्बाद कर रहा है हर दिन तो अपने

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व्यर्थ में गंवारा तूने अब तक भगवान की ओर

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देखा तक नहीं फिर अपने आप पर क्रोध होता है

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अपने आप पर हीन भावना आएगी

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[संगीत]

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कि कई लोग कहते मैं बस गलत होते नहीं देख

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सकता बस यही नहीं सहा जाता मुझसे लेकिन जब

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खुद गलत करते तब

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मैं अपने आप को कभी कहा कि तू कितना अपना

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समय व्यर्थ कर रहा है यह भी तो गलत है तभी

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अपने आप पर विरोध किया नहीं नहीं

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तो काम क्रोध, क्रोध आएगा पर किसी और

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पर नहीं अपने कर्मों पर

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कि मनुष्य देह मैंने व्यर्थ में गंवा दी

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स्मरण क्यों नहीं हो रहा मुझसे, मुझसे भक्ति

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क्यों नहीं हो रही मुझे भगवान पर पूर्ण

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भरोसा क्यों नहीं हो पा रहा  फिर अपने आप पर

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क्रोध आएगा 

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काम क्रोध

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तीसरा लोभ

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आप लोग किस चीज का होगा जब भगवान से जुड़

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जाएंगे उनको निहारने का लोभ  उनको छूने

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उनको स्पर्श करने का लोभ उनको देखने का

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लोभ उनके साथ बातें करने का लोभ और यह

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लोग प्रकट होगा संसारी लोभ लुप्त हो

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जायेंगे फिर भगवान को प्राप्त करने का

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उनसे बातें करने का मन में लालच जागेगा

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वृंदावन आने का लोभ जागेगा हे बिहारी जी 

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हे राधारमण जी हे श्रीजी हमें वृंदावन

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बुला लो हमें वृंदावन बसा लो फिर यह लोभ

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जागेगा है

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काम क्रोध लोभ और तीसरा है मोह

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मोह होगा पर किससे होगा ले एक मात्र

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अपने प्रियतम से मोह होगा और वहां तो 

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मोह होना भी संसार सागर से पार करा देता है

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भगवान से जिसका मोह हो गया जैसे एक

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मां का अपने छोटे से बालक से मोह होता है

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एक लोभी का धन से मोह होता है यही तो कहते

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हैं तुलसीदासजी काम ही नारि प्यारी जिमि

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लोभहि प्रिय जिमि दाम तिमि रघुनाथ निरंतर

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प्रिय लागहु मोहि राम इतना दे दो बस क्या

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कामी को नारी बड़ी अच्छी लगती है लोभी को

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पैसा बड़ा अच्छा लगता है, हे रघुनाथ वैसा ही

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मुझे आप से प्रेम हो जाए ऐसा मोह हो जाए

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कि छुड़ाने से छूटे नहीं 

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जैसे किसी लोभी को धन से दाम से प्यार

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हो जाए तो आप कितनी भी कोशिश कर लो उससे

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कितना भी कह लो भी थोड़ा-बहुत दान देना

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चाहिए पर उसको तो इतना मोह कि मुट्ठी से

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छोड़ता नहीं

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है

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बाबा तुलसी कहते है रघुनाथ वैसा ही मेरा

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प्रेम आपसे हो जाए लोभ हो जाए आपके दर्शन

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का मैं आपको देखता रहूं और जितना देखूं

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लोभ कम नहीं होता मान लीजिए आपका target टारगेट

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है कि हम 1 लाख रुपए महीना में कमाएं तो

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क्या 1 लाख कमाने के बाद मन शांत हो जाता

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है क्या इससे ज्यादा नहीं कमाना

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हां कि नहीं 

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आज तक तो किसी का हुआ नहीं

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मान लो मेरा नियम है कि मुझे एक दिन में

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₹5000 कमाने अपनी दुकान से सुबह-सुबह कुछ

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ग्राहक आगे ₹5000 मिल गए क्या अगले क्षण

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ताला लगाकर घर चले जाते हैं कि बस हो गया

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5,000 मिल गए अजी ऐसे कैसे चले जाएंगे

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है जितना आए उतना कम है उतना ही लोभ बढ़ता

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जाता है और आए और आए वैसे ही जो एक बार

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श्री प्रभु से जिसको प्रेम हो जाए उसका

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लोभ कभी कम नहीं होता कभी लगता है भगवान

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बातें करें कभी लगता है भगवान स्पर्श

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करें

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कि वह देख-देख कर के ही राजी होता रहता है

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कि इतने सारे लोग ब्रिज में आते हैं

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वृंदावन आते हैं पागलों की भांति कोई हर

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सप्ताह आता है कोई हर महीने है क्यों

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श्री ठाकुर जी ने इनको पकड़ लिया है

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कि इनका लोभ ठाकुर जी बढ़ा रहे हैं

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है और जब एक बार वह आ जाता है श्री ठाकुर जी

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उसको एक बार पकड़ लेते हैं तो फिर उसको

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संसार की कोई वस्तु प्रिय नहीं लगती जगत

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के रंग क्या देखूं तेरा दीदार काफी है

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करूं मैं प्यार किस-किस से तेरा एक प्यार

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काफी है उसको दुनिया की कोई मूर्ति कोई आप

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जिनको ठाकुर जी से प्रेम है ना आप दुनिया

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का उनका कोई अच्छी से अच्छी मूर्ति दिखा

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दो लेकिन उनको जिस मूर्ति से प्यार है

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उसके आगे कुछ अच्छा नहीं लगेगा 

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एक बार एक राजा ने

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अपनी प्रजा में घोषणा की 

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कि इस प्रजा हुए जिसके बालक है

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जिसके बच्चे हैं और जिन जिन को लगता है कि

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उनका बच्चा इस प्रजा का सबसे सुंदर

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बच्चा है तो लेकर आओ मैं उसको इनाम

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दूंगा

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सब लेकर आ रहे थे हमारा बच्चा, एक मैया आई 

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उसने राजा से पूछा राजा जी मेरा बच्चा इस

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प्रजा का सबसे सुंदर बच्चा है 

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तो जैसे राजा जी ने देखा एकदम काला कलूटा

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टेढ़ी मेढ़ी आँख, मोटी नाक

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राजा जी हँसे राजा जी बोले मैया तूने

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अपने यह बेटे को देखा कैसा दिख रहा है

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तूने सोचा भी कैसे कि यह प्रजा का सबसे

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अच्छा बच्चा है  सोच भी कैसे आई तेरे मन में तो

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उस मैया ने हंस कर जवाब दिया हे राजा जी

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अभी आप इसको अपनी दृष्टि से देख रहे हो

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जरा मेरी दृष्टि से एक बार देखो तो पूरे

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राज्य में इससे ज्यादा सुंदर कोइ बच्चा नहीं

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बात तो दृष्टि की है ना बात तो

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तुम्हारे नजरिए की है और मेरी आंखों से

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देखोगे तो अपने आप समझ में आ जाएगा कि यह

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दुनिया का सबसे सुंदर बच्चा है

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ठीक वैसे ही भक्तों की नजर से देखो

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भक्तों की दृष्टि से देखो तो इस दुनिया

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में भगवान से अधिक रंगील और भगवान से

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अधिक सुंदर और दूसरा कोई वस्तु नहीं है

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पर उसके लिए चाहिए वह भक्तों की

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दृष्टि

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कर दो

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मतो काम क्रोध लोभ मोह यह चारों जो हैं

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यह भगवान से जुड़कर अवगुण भी गुण में बदल

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जाते हैं भागवत क्या करती है भागवत हमारे

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अवगुणों को गुण में परिणित करने का काम

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करती है

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काम, क्रोध, लोभ, व मोह से कैसे बचें - देवी चित्रलेखा जी.mp4

Saturday, September 25, 2021

मोह क्या होता है ? by HG Amarendra Prabhu

मोह क्या होता है ? by Amarendra

https://www.youtube.com/watch?v=p6FHcsg5Wg8

0:00 कई बार इस जगत में देखा जाता है द्वंद के आधीन होकर जीव अपने परिवार को प्राधान्य देता है यदि हमारे भाई हमारे बहन हमारे माता-पिता हमारे बंधु कुछ कुकर्म भी क्यों ना करें उसको छिपाकर हम कहते हैं सब कुछ ठीक है पर बाहर का व्यक्ति यदि कोई कुकर्म करे तो हम उसको दंडित करते हैं और कोई सद मार्ग पर चले तो निंदा करते हैं, इसको कहते हैं मोह  https://www.youtube.com/watch?v=p6FHcsg5Wg8&t=0 0:46 भगवत गीता के प्रारंभ में अर्जुन के हृदय में भी इस भाव का प्रादुर्भाव होता है जिसको चकनाचूर कर देते हैं, प्रभु गीता के उपदेश से https://www.youtube.com/watch?v=p6FHcsg5Wg8&t=46 0:57 परंतु इस संदर्भ में देखा जाता है यदि व्यक्ति भगवान का पुत्र ना हो और भजन परायण हो और दैत्य कुल में भी उत्पन्न क्यों ना हो, प्रभु स्तंभ तोड़कर उस प्रहलाद की रक्षा में आतुरता प्रस्तुत करते हैं, अब देखा जाए तो प्रहलाद हो या महाराज बली हो यह सब दैत्य कुल में उत्पन्न हुए महापुरुष हैं तो भगवान यह कह सकते हैं कि वैसे तो इनका जन्म कोई सात्विक विशुद्ध सात्विक कुटुंब में वैष्णव कुल में तो हुआ नहीं, तो मैं क्यों पक्षपात करके इनके पक्ष में चलूं ऐसे प्रभु सोच सकते हैं परंतु कितना सुंदर हृदय है प्रभु का, व्यक्ति दुष्ट दैत्य कुल का हो, मगर भजन परायण हो, भक्ति में अग्रसर हो, तो प्रभु स्तंभ तोड़ते हैं हिरण्यकशु का और रक्षा करते हैं उन्हीं के पुत्र का  https://www.youtube.com/watch?v=p6FHcsg5Wg8&t=57 1:58 यदि स्वयं का पुत्र जन्मा हुआ, जैसे जब वराह देव का जन्म आविर्भाव हुआ तो वराह देव और भूमि से उत्पन्न हुआ महापुरुष “भौम”, श्री भौम वैसे भगवान के ही सुपुत्र हैं परंतु मूर नामक असुर के संग के रंग के कारण, वह भी दुष्ट हो गए, वह भी "भौमासुर" बन गए, बहुत बड़ी सीख मिलती है, जैसा संग वैसा रंग ! https://www.youtube.com/watch?v=p6FHcsg5Wg8&t=118 2:39 उपदेशामृत में देखा जाता है दो शलोकों में श्री रूप गोस्वामी पाद, संग के विषय में वर्णन करते हैं, अगर संग सत्संग का हो साधु संग का हो, तो भक्ति में वर्धन (increase) है और यदि दुसंग हो, ऐसे व्यक्तियों का संग हो, जो भक्ति में बिल्कुल आतुरता नहीं रखते तो विनश्यति, सब नष्ट विनष्ट हो जाता है भजन  https://www.youtube.com/watch?v=p6FHcsg5Wg8&t=159 3:04 चैतन्य चरितामृतम में वर्णन है कि यदि कृष्ण भक्ति में आगे निकलना हो तो साधु संग अति अनिवार्य है और कोई प्रेम प्राप्त महापुरुष भी क्यों ना हो, ऐसे महापुरुष के लिए भी अन्य महापुरुष वैष्णव के सत्संग में रहना यह उचित है  https://www.youtube.com/watch?v=p6FHcsg5Wg8&t=184 3.39 तो भगवान का सुपुत्र भी क्यों ना हो, भौम यदि मुर नामक असुर का संग करता है तो “भौम” हो जाता है “भौमासुर” और प्रभु अपने हस्त कमल से उनका बध करते हैं, इतनी सुंदर बात बिल्कुल पक्षपात नहीं, मेरा पुत्र यदि खल (bad) निकले तो अपने हाथ से वध और यदि खल का पुत्र यदि भक्ति करे तो उन पुत्र के रक्षा करने हेतु मैं स्तंभ तोड़कर अवतरित होता हूं सुंदर ऐसा “समोहं सर्वभूतेषु” केवल प्रभु है और कोई नहीं  https://www.youtube.com/watch?v=p6FHcsg5Wg8&t=219 4.17 हम सब कहीं ना कहीं किसी ना किसी दृष्टिकोण से पक्षपात करते हैं, जाति कुल का विचार होता है, देश का विचार होता है, धर्म का विचार होता है, भारतीय होने का तो विचार है ही, दक्षिण भारतीय उत्तर भारतीय का भी विचार है, किस गाँव के हैं, किस स्कूल से हैं इत्यादी    https://www.youtube.com/watch?v=p6FHcsg5Wg8&t=257 4.51: परंतु प्रभु ऐसे निष्कपट, निर्मल, अमल स्वभाव के हैं, जो भजन करे वह प्रभु का और जो भजन ना करे वह “विजातिय" (यानी उन्हें भगवान अपने से निकट नहीं मानते हैं) है, जो भक्ति में अग्रसर नहीं “विजातिय" है,  https://www.youtube.com/watch?v=p6FHcsg5Wg8&t=291 5.12: इतनी सुंदर बात है जब श्री चैतन्य महाप्रभु गोदावरी के तट पर रामानंद राय के साथ वार्ता संवाद में पूर्ण रूप से तल्लीन हैं, यदि देखा जाए महाप्रभु ब्राह्मण हैं, जन्म के दृष्टिकोण से तो है हीं, गुण के अनुसार भी ब्राह्मण हैं, भगवान हैं सन्यासी हैं, पूरे जगत के लिए जगतगुरु हैं और रामानंद राय कौन हैं राजकीय सेवक हैं , कायस्थ कुल में जन्म हुआ और गृहस्थ है, यदि वर्ण आश्रम जाति के विचार अनुसार देखा जाए तो हम कह सकते हैं कि दोनों अलग हैं, यह सन्यासी है तो वह गृहस्थ हैं,   यह ब्राह्मण हैं तो वह कायस्थ हैं, और यह भगवान हैं तो वह दास हैं और यह संसार से मुक्त सन्यासी है तो वह राजकीय सरकार में सेवक हैं, परंतु जब उनके संवाद कविराज गोस्वामी वर्णन करते हैं, सभी अन्य ब्राह्मण आते हैं, वहां तो महाप्रभु यह कह सकते थे कि वो सब अन्य ब्राह्मण सजातीय हैं, जो ब्राह्मण हैं, मेरे पक्ष के हैं और आप कायस्थ हो आप मेरे पक्ष के नहीं हैं  https://www.youtube.com/watch?v=p6FHcsg5Wg8&t=312 6.33: ऐसा यदि लौकिक विचार हो तो व्यक्ति ऐसा सोच सकता है, परंतु चैतन्य महाप्रभु आलिंगन प्रदान करते हैं रामानंद राय को और कहते हैं आप मेरे लिए सजातीय हैं यह सब अन्य ब्राह्मण मेरे लिए विजातीय हैं, क्यों, क्योंकि जन्म कुल आदि विचार से तो ब्राह्मण हैं पर भक्ति बिल्कुल नहीं करते, तो यह विजातिय हैं, आप जन्म अनुसार कायस्थ हो सकते हैं, पर भक्ति में शुद्ध वैष्णव हैं इसलिए आप ही मेरे लिए सजातीय हैं (यानी आप भगवान से करीब हैं)   https://www.youtube.com/watch?v=p6FHcsg5Wg8&t=393 7.08: नाग पत्नी जो कालिया नाग की पत्नियां हैं, जब भगवान को प्रार्थना भाव से संस्तुति करती हैं तो एक श्लोक में भगवान श्याम सुंदर की स्तुति करते हुए कहती हैं....,  प्रभु आपका अवतार, ईस हेतु आप आते हैं, इस जगत में खल (demons) का नष्ट विनष्ट करने के लिए और वह खल किसी भी जन्म, किसी भी योनि में हो, किसी भी जाति में हो, या आपका स्वयं पुत्र भौमासुर क्यों ना हो, आप उसी हाथ से वध करते हैं इतना सुंदर गुण है आपका, तो इसलिए हे प्रभु ऐसे आपका सुनिर्मल चित्त देखकर कौन वह व्यक्ति होगा जो आपको नमस्कार अर्पण ना करें https://www.youtube.com/watch?v=p6FHcsg5Wg8&t=428 Standby link (in case youtube link does not work) मोह क्या होता है HG Amrendra Prabhu.mp4