Tuesday, May 25, 2021

Difference between Maha-Vishnu & Krishna महाविष्णु vs. श्री कृष्ण - क्या है अंतर? Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj | Pravachan

 

महाविष्णु vs. श्री कृष्ण - क्या है अंतर? Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj | Pravachan

https://www.youtube.com/watch?v=cKDbnWDXiAQ

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0.20 भगवान में भी कोई भेद होता है -  हाँ, रसिकों में होता है

0.40 श्रीकृष्ण के अनंत अवतार हुए

1.24 अनंतकोटी ब्रह्मांड है आप तो एक छोटे से ब्रह्मांड में बैठे हैं, चतुर्मुखी ब्रह्मा के ब्रह्मांड में, जितने ज्यादा मुख ब्रह्मा के होते हैं उतना ही बड़ा ऊन ब्रह्मा का ब्रह्मांड होता है, एक हजार मुख, एक लाख मुख, एक करोर मुख के भी ब्रह्मा होते हैं

2.06 अलग अलग ब्रह्मांडों में अलग अलग अवतार भगवान के होते ही रहते हैं हर क्षण

2.30 श्रीकृष्ण के चार प्रमुख रूप हैं 1. महाविष्णु, चार भुजा वाले नारायण

4.49 जब भगवान के अनंत अवतार हैं तो उनके लोग भी अनंत होंगे, भगवान की कोई भी चीज़ सीमित नहीं है

5.20 भगवान स्वयं कहते हैं कि मेरा जन्म यानी अवतार, मेरे कर्म, नाम आदि अनंत हैं - भगवान खुद कहते हैं कि मैं भी नहीं बता सकता कि कितने हैं

5.55 सब लोकों में सर्वोच्च है वैकुंठ

6.23 बहुत ही अल्पज्ञ लोग तो कहते हैं कि फलाने का स्वर्गवास हो गया, 99.9% लोग मरे हुए को कहते हैं, लिखते हैं "स्वर्गीय" और जिन्होंने सत्संग में भाग लिया है वो मरने वाले को "वैकुंठ वास" कहते हैं  

7.07 "yad gatvā na nivartante, tad dhāma paramaṁ mama" *Gita Shloka* 15.6: "That supreme abode of Mine is not illumined by the sun or moon, nor by fire or electricity. Those who reach it never return to this material world."  https://vedabase.io/en/library/bg/15/6/

7.35 बैकुंठ में श्रीकृष्ण का चारभुजा वाला रूप, बहुत ऐश्वर्ग (opulent) है

8.19 जितनो को भगवान ने स्वयं मारा और सब बैकुंठ गए

9.50 वैकुंठ से ज्यादा अधिक सरस (माधुर्य) रूप कृष्ण का है द्वारका में, ऐश्वर्ग वैकुंठ से कम है,  जहाँ 16,108 पटरानियां रही थीं,सब का एक अलग महल था और प्रत्येक के 10 बच्चे थे

10.41 द्वारका से ज्यादा अधिक सरस (माधुर्य) रूप कृष्ण का है मथुरा में और ऐश्वर्ग बहुत ही कम है

11.01 और सबसे अधिक रस (माधुर्य) वृंदावन का है, ये ही है नंदनंदन का स्वरूप

11.14 फिर लगभग 100 वर्ष पहले एक संत गोवर्धन की तलहेटी में, उन्हें साक्षात नन्द नंदन के दर्शन हुआ करते थे, पूरे किस्से का वर्णन किया है

16.53 वृंदावन में नंदनंदन का केवल है 100% माधुर्य रूप है, ऐश्वर्ग बिल्कुल नहीं

17.15 जब ठाकुरजी के पिटने की बारी आई यशोदा मैया से, तो चोरी छुपे ऐशवर्ग शक्ति आयी चोरी छिपे, यशोदा मैया को विकराल रूप दिखाया, मगर फिर ऐशवर्ग शक्ति भगा दी गयी ठाकुरजी द्वारा

17.52 ऐसे मौके-मौके पर उनकी ऐशवर्ग शक्ति आती रही नंदनंदन के पास, चोरी छिपे - प्रकट रूप से नहीं

18.02 ठाकुरजी सदा अपने को दास मानते रहे - सदा, नाटक (acting) नहीं - मन से, सखाओं, गोपियों, माँ बाप को सुख देना है, जो जिस भाव से प्यार कर रहा है, उसे उसी भाव से सुख देना है - यही है माधुर्य भावया भक्तों का कान्त भाव, तुम जो भक्ति का सर्वोच्च भाव है

19.20 : श्यामसुन्दर ही हमारे स्वामी हैं, सखा हैं, पुत्र हैं, पति हैं -सब भावनाएँ एक साथ - इसे माधुर्य भाव कहते हैं, संसार में जबकि ऐसा नहीं होता ऐसा करोगे तो पिट जाओगे, mentalhospitalभेज दिए जाओगे

20.10 तो नन्दनंदन पूर्ण भंडार है माधुर्य भाव के


Monday, May 24, 2021

Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj Pravachan Part 9 - Full Transcript Text

Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj Pravachan Part 9 

https://www.youtube.com/watch?v=A0m1iqNg42Q

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Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj Pravachan Part 9.mp4

0.0 स्वर्ग में भी आनंद नहीं मिलता, हाँ  कुछ सुख तो है मगर अस्थायी, वहाँ पर कुछ सुख भोगकर वापस मृत्युलोक में आना पड़ता है 

1.38 स्वर्ग में इंद्र भी ब्रह्मा का पद चाहते हैं, कोई यदि मृत्युलोक में भी तपस्या करे, तो इन्द्र परेशान हो जाते हैं कि कहीं उनका आसन ना छिन जाए, तो मेनका उर्वशी को भेजते हैं ताकि तपस्या भंग हो, ताकि इंद्र का आसान बना रहे, देखिये स्वर्ग के प्रधान में भी ईर्ष्या है

3.23 कर्मका फल स्वर्ग, वो भी अगर ठीक ठाक तरीके से किये गए हों - अन्यथा दंड - ऐसे कर्म को "नमस्कार" (यानी क्या लाभ, कर्म इतनी मेहनत के साथ करने की - और वो भी नश्वर स्वर्ग के लिए)

3.39 स्वर्ग भी मृत्युलोक की तरह ही है वहाँ भी तीनों प्रकार के दुख है आधिभौतिक आधिदैविक और आध्यात्मिक

4.19 आध्यात्मिक दुख दो प्रकार का होता है शारीरिक और मन - शारीरिक यानि रोग, दर्द, बुड़ापा और मन का यानि काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या

4.46 शारीरिक रूप से कितना भी स्वस्थ कोई हो अगर मन से मन के रोग से पीड़ित हैं तो खरबपति होने का भी क्या लाभ - depression में चला जाएगा - सुख नहीं मिल सकता

6.08  आदि भौतिक दुख - जो दूसरे से मिलता है

7.30 दुष्ट का स्वभाव है दूसरों को विपत्ति मेँ देख कर खुश होना और दूसरों की खुशी में दुखी होना

7.35 आप समझ गए की कर्म धर्म का पालन ही असंभव और अगर हो भी जाए तो केवल स्वर्ग ही मिलेगा, वहाँ भी सब दुख हैं, इसलिए कर्म धर्म के मार्ग को "नमस्कार" (यानी इसे करने का कोई लाभ नहीं है)

7.53 आप ज्ञान मार्ग की तरफ देखें, ये तो और भी कठिन है इसकी तो कल्पना भी न कीजिए   

8.22 ज्ञान के बारे में कहना ही कठिन है, उदाहरण : जैसे कोई कहे कि मैं ब्रह्म हूँ तू भाई सभी ब्रह्म है तो कौन किसको उपदेश कर रहा है ब्रह्म ब्रह्म को उपदेश कर रहा है ? - सब बकवास

9.15 शंकराचार्य से किसी ने पूछा की ज्ञान कब समझ में आएगा, उन्होंने कहा चार साधन पूरे कर लो उसके बाद समझ में आएगा, सम (मन पर नियंत्रण, जो कि परमहंसों को भी नहीं हो पाता - जो इंद्रियों को भी नियंत्रण में कर लेते है हो मन को नियंत्रण में नहीं कर पाते), दम

11.35 अर्जुन जो इंद्रियों को बस में कर चके थे मगर मन को नहीं

11.57 अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा कि मन बहुत चंचल है

12.36 दुनिया के 6 अरब आदमी में 6 लोग भी नहीं मिलेंगे जो कहें कि हमारा मन पर नियंत्रण है

13.05 ज्ञान मार्ग तो कलयुग में सर्वथा असंभव है,

13.12 और यदि कोई ज्ञान मार्ग पर चलें भी तो अनेक विघ्न आएँगे उससे क्योंकि भगवान उस की रक्षा नहीं करते, क्योंकि ऐसा ज्ञानी अपने बल पर चलता है

13.28 और भक्ति मार्ग वाले भगवान के बल पर चलते हैं

Sunday, May 23, 2021

Expressing our love to Lord - one could call it "दोस्ती" as Lord is our BFF (Best Friend Forever) #Blog0086


 

How appropriate these wordings - each word suits perfectly - for expressing our love to 

Lord - one could call it "दोस्ती" as Lord is our BFF (Best Friend Forever) 


https://www.youtube.com/watch?v=tP0D6ZJll1M

 

मेरा तो जो भी कदम है, वो तेरी राह में है

के तू कही भी रहे, मेरी निगाह में है

Ideally, our each step - be it a thought, word or deed - should be directed / dedicated towards Lord

 

खरा है दर्द का रिश्ता तो फिर जुदाई क्या

जुदा तो होते हैं वो खोट जिन की चाह में है

We (our soul, what we actually are) are indeed a part & parcel of Lord & hence intimately related to Lord & hence we can never lose our relationship - of course, it is a different matter that we have forgotten our relationship with Lord - hence suffering all these miseries & birth & death cycles

 

छुपा हुआ सा मुझी में, हैं तू कहीं ए दोस्त

मेरी हंसी में नहीं है, तो मेरी आह में है

Lord resides within each of us as Supersoul as our BFF (Best Friend Forever) - none in this world can come to our rescue except Lord.


Friday, May 21, 2021

Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj Pravachan Part 4 - Full Transcript Text


Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj Pravachan Part 4

https://youtu.be/I2QDf1n_Va8 

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Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj Pravachan Part 4.mp4

4.58 3 तत्व हैं क्षर (माया), अक्षर (जीव) और इनका शासक भगवान, जो नियामक (Who frames the rules) है, प्रेरक (motivator) हैं   6.12 जीव भगवान का ध्यान करें मन लगाए और भगवान को हृदय में धारण करें तो माया की निवृत्ति (overcome) हो जाएगी 6.45 भगवान रसो वैस: हैं, और ऊसे प्राप्त करके ही जीवन प्रसन्न हो सकता है आनंदित हो सकता है 8.0 सब जीव उसी आनंद से प्रकट हुएं, सब जीव उनके पुत्र हैं
9.15, 10.15 भगवान को पाने का एक ही तरीका है उठो जागो और गुरु के पास जाओ, उन से समझो कि भगवान क्या है 10.55 महापुरुष की शरण में जाओ और surrender करो, जिज्ञासु मन से सब प्रश्न पूछो कि जीवन क्या है, मृत्यु क्या है, आत्मा क्या है 11.45 ऐसे महापुरुष के पास जाओ जिसको शब्द ब्रह्म (Theory) और परब्रह्म (Practical) दोनों प्राप्त हो चुके हों 12.22 गुरु बिना भव निधि तर ही ना कोई जो बिरंचि (Lord Brahma) शंकर सम होई - without guru, none including Lord Brahma & Lord Shankar - can cross worldly material cycle 12.45, 13.30, 14 25 बड़े भाग्य मानुष तन पाया, 2 शर्त हैं - एक तो अपना भाग्य (यानि pious deeds), दूसरा भगवान की कृपा से ही मनुष्य तन मिला  13.43 बिन हरि कृपा मिले नहीं संता 13.59 अब मोहे भाव भरोस हनुमंता बिन हरि कृपा मिलें नहीं संता 14.40 श्रद्धा हो जाए यदि हमारी गुरु के वचन मेंं   16.05 भागवत कृपा हो तो लालसा हो, प्यास हो,भगवान को पाने की, जिज्ञासा हो    16.27 एक तो अपना भाग्य (यानि pious deeds) , दूसरा भगवान की कृपा, तीसरा श्रद्धा हो जाए यदि हमारी गुरु के वचन मेंं, भगवान में  16.40 भगवान का ये एहसान है कृपा है की जो हमारे अच्छे कर्म है और हमने श्रद्धा भी रखी है इसका फल केवल भगवान ही देते और दे सकते हैं  केवल अच्छे कर्म हो और श्रद्धा हो मगर भगवान की कृपा ना हो तो फल नहीं मिलेंगा 17.35  गुरु ही बताता है कि भगवान कौन है और उसकी प्राप्ति कैसे होगी 17.46  गुरु का मिलना हो भी जाए तो गड़बड़ कहाँ होती है की श्रद्धा नहीं होती और अनंत जन्मों से ऐसा ही चलता आया है 18.15  हम अनादि काल से संसार में चक्कर लगा रहे हैं जन्म मृत्यु का, अनेकों बार हमने भगवान के अवतार देखें, मगर हमने कभी भी श्रद्धापूर्ण भाव से उन्हें नहीं माना 

Thursday, May 20, 2021

Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj Pravachan Part 3 - Full Transcript Text



Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj Pravachan Part 3

https://youtu.be/ZYzw_j0jdrI

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Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj Pravachan Part 3.mp4

0.30 Krishna says to Arjuna: "Abandon all varieties of religion and just surrender unto Me. I shall deliver you from all sinful reactions. Do not fear."  

Gita Shloka 18.66 https://vedabase.io/en/library/bg/18/66/

0.50 जो मेरी शरण में आ गया उसके लिए सब कानून खत्म

3.40 बिना रामकृपा के, माया नहीं जाएगी

5.0 जब रोग का पता चलेगा, तभी तो इलाज करेंगे

5.20 तुलसीदास जी कहते हैं कि दवाइयां तो बहुत हैं साधन करने की  जैसे तप, जप, नियम, उपवास, कर्म योग, ज्ञान इत्यादि मगर केवल इन दवाइयों से इस भाव सागर से पार जाना संभव नहीं है और हरि नहीं मिलेंगे -केवल भक्ति मार्ग से ही हरि मिल सकते हैं

7.05 सद्गुरु चरणों में अनंत बार मिले, हमने सिर भी हिलाया उनके सामने कि हां समझ में आया, पर फिर वही बात आपने की कि "सुनो सबकी, करो अपने मन की",  वही करते रहे जो मन ने कहा - इसलिए कभी मृत्यु चक्र से निकल ही नहीं पाए, गुरु के शब्दों पर विश्वास नहीं है

9.25 अगर एक महापुरुष या संत या गुरु आपके जीवन में आ जाए और हमें उनके शब्दों पर विश्वास हो, तो भगवत प्राप्ति दूर नहीं है, इसमें कोई संशय नहीं है

9.55 जो वास्तविक कृष्ण भक्ति करता है, कहते हैं उसे "आंख मूंदकर दौड़ना चाहिए" वह तब भी कहीं गिरेगा नहीं,  फिसलेगा नहीं, क्यों नहीं गिरोगे क्योंकि वे रक्षा करते हैं, पीछे पीछे चलते हैं

10.35 भगवान स्वयं कहते हैं "मेरे भक्त का पतन नहीं होता"

11.20 वेद कहता है बस भगवान को रो कर पुकारो, कुछ मत कहो, कुछ मत सुनो, बिना किसी कामना के बस एक उनके दर्शन और प्रेम की कामना, इससे आपका अंतःकरण शुद्ध हो जाएगा और भगवान की कृपा आप पर बरस पड़ेगी