Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj Pravachan Part 4
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4.58 3 तत्व हैं क्षर (माया), अक्षर (जीव) और इनका शासक भगवान, जो नियामक (Who frames the rules) है, प्रेरक (motivator) हैं 6.12 जीव भगवान का ध्यान करें मन लगाए और भगवान को हृदय में धारण करें तो माया की निवृत्ति (overcome) हो जाएगी 6.45 भगवान रसो वैस: हैं, और ऊसे प्राप्त करके ही जीवन प्रसन्न हो सकता है आनंदित हो सकता है 8.0 सब जीव उसी आनंद से प्रकट हुएं, सब जीव उनके पुत्र हैं9.15, 10.15 भगवान को पाने का एक ही तरीका है उठो जागो और गुरु के पास जाओ, उन से समझो कि भगवान क्या है 10.55 महापुरुष की शरण में जाओ और surrender करो, जिज्ञासु मन से सब प्रश्न पूछो कि जीवन क्या है, मृत्यु क्या है, आत्मा क्या है 11.45 ऐसे महापुरुष के पास जाओ जिसको शब्द ब्रह्म (Theory) और परब्रह्म (Practical) दोनों प्राप्त हो चुके हों 12.22 गुरु बिना भव निधि तर ही ना कोई जो बिरंचि (Lord Brahma) शंकर सम होई - without guru, none including Lord Brahma & Lord Shankar - can cross worldly material cycle 12.45, 13.30, 14 25 बड़े भाग्य मानुष तन पाया, 2 शर्त हैं - एक तो अपना भाग्य (यानि pious deeds), दूसरा भगवान की कृपा से ही मनुष्य तन मिला 13.43 बिन हरि कृपा मिले नहीं संता 13.59 अब मोहे भाव भरोस हनुमंता बिन हरि कृपा मिलें नहीं संता 14.40 श्रद्धा हो जाए यदि हमारी गुरु के वचन मेंं 16.05 भागवत कृपा हो तो लालसा हो, प्यास हो,भगवान को पाने की, जिज्ञासा हो 16.27 एक तो अपना भाग्य (यानि pious deeds) , दूसरा भगवान की कृपा, तीसरा श्रद्धा हो जाए यदि हमारी गुरु के वचन मेंं, भगवान में 16.40 भगवान का ये एहसान है कृपा है की जो हमारे अच्छे कर्म है और हमने श्रद्धा भी रखी है इसका फल केवल भगवान ही देते और दे सकते हैं केवल अच्छे कर्म हो और श्रद्धा हो मगर भगवान की कृपा ना हो तो फल नहीं मिलेंगा 17.35 गुरु ही बताता है कि भगवान कौन है और उसकी प्राप्ति कैसे होगी 17.46 गुरु का मिलना हो भी जाए तो गड़बड़ कहाँ होती है की श्रद्धा नहीं होती और अनंत जन्मों से ऐसा ही चलता आया है 18.15 हम अनादि काल से संसार में चक्कर लगा रहे हैं जन्म मृत्यु का, अनेकों बार हमने भगवान के अवतार देखें, मगर हमने कभी भी श्रद्धापूर्ण भाव से उन्हें नहीं माना