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Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj Pravachan Part 2.mp4
0.59 श्रोतव्यं (Listening), मंतव्य (contemplation), निधिध्यासन (practice of the invaluable wisdom (निधि)) are 3 stairs for spiritual progress
1.39 4 गुण श्री कृष्ण में है जो किसी अवतार में भी नहीं है लीला माधुरी, प्रेम माधुरी, वेणु माधुरी, रूप माधुरी
4.28 अर्जुन ने श्रीकृष्ण से पूछा, हे भगवान श्रीकृष्ण ये कल्याण का मार्ग बहुत confusion वाला है, कोई कहता है जप करो, तप करो, पूजा करो, पाठ करो, कर्म करो, उपवास करो
भगवान ने कहा सब लोग मेरी माया से मोहित है :सतो, रजो और तमो गुण में, जो जिस गुण में स्थित हैं उसी के अनुसार अपना अपना वेदों का मतलब निकालते है, इसलिए अनेकों मार्ग प्रचलित हो गए हैं मुझ तक पहुँचने के लिए मगर जब तक जीव मुझ में मन लगा के पूरी तरह से मेरी शरणागत नहीं हो जाता, प्रेममय भाव से, तब तक जीव का कल्याण नहीं हो सकता
10.30 भगवान ने कहा कोई दुख से निवारण चाहता है और कोई आनंद प्राप्ति चाहता है
11.30 भोले लोग कहते है की हमारा दुख चला जाए मगर समझदार लोग आनंद प्राप्ति चाहते हैं
11.55 दुख निवृत्ति तो रोज़ मिलती है हमें नींद में
12.20 आनंद प्राप्ति होने के बाद दुख नहीं आ सकता, इस लिए दुख निवृत्ति छोटा और साधारण लक्ष्य है, मगर आनंद प्राप्ती मुख्य लक्ष्य होना चाहिए
12.35 ये दो लक्ष्य दुख निवृत्ति और आनंद प्राप्ति किसी और मार्ग - कर्म, योग, ज्ञान - से प्राप्त नहीं किए जा सकते
13.45 + 14.50 + 15.52 केवल कामनाओं को छोड़कर, भक्ति मार्ग से ही, माया छूटेगी (दुख निवृत्ति) और आनंद प्राप्ति होगी
16.04 + 17.23 ये मेरी माया हैं इसे कोई नहीं हटा सकता, ब्रह्मा शंकर भी नहीं
17.25 मेरी माया को कोई पार नहीं कर सकता जब तक मैं इशारा ना करूँ और मैं इशारा तब तक नहीं करता जब तक जीव मेरी अनन्य शरण में नहीं आता
18.45 गीता के आखिर में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कहा कि तू मेरा प्रिय है इसलिए मैं बहुत ही गोपनीय बात बताता हूँ
19.05 Just surrender to me