Saturday, June 5, 2021

बह्म जीव माया तत्व ज्ञान भाग - 3, Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj | BDTV - full text



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Friday, June 4, 2021

तत्व ज्ञान क्या है । Shri Kripalu Maharaj Ji | What is Tatva Gyan AND तत्व ज्ञान का महत्व श्री महाराज जी के मुखारविंद से - full text



(1) तत्वज्ञान क्या है । Shri Kripalu Maharaj Ji | What is Tatva Gyan (2.06)

https://www.youtube.com/watch?v=m0lUBN-EDHY   

or  

https://www.youtube.com/watch?v=GQRxfkjkG6g

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Learn the Secrets of Tatva Gyan with Shri Kripalu Maharaj Ji । Shri Kripalu Maharaj Ji.mp4


0.0 इतना तत्व ज्ञान काफी है की हम जान लें कि हम कौन हैं, सब दुख समाप्त हो जाए, 84,00,000 योनियों का आवागमन सब समाप्त

अनंत जनम बीत गए, भगवान ने हमें कान दिए सुनने के लिए, बुद्धि दी जानने के लिए,  अनंत संत भेजें आपकी तरफ, ये लेकिन ये तत्व ज्ञान अभी तक नहीं हुआ कि हम कौन हैं

1.07 जैसे अपने शरीर के बारे में आपको सदा ये ध्यान रहता है कि मैं पुरुष हूँ, स्त्री हूँ, हम ब्राह्मण हैं,  मगर यदि यह ध्यान रहे कि मैं कृष्णा का नित्य (forever) दास हूँ, श्री कृष्ण मेरे नित्य (forever) स्वामी हैं , यही तत्वज्ञान है 


(2) तत्व ज्ञान का महत्व श्री महाराज जी के मुखारविंद से (3.33)

https://www.youtube.com/watch?v=ixjlUbKdbKQ

0.15 श्री गौरांग महाप्रभु ने कहा कि तत्व ज्ञान के बारे में आलस नहीं करो, ये ज्ञान एक बार में नहीं, बार बार सुनने और बार बार मनन चिंतन करने से पक्का होगा

0.53  ये भूल जाने की आदत बहुत बुरी है मनुष्य में

1.48 ऐसा नहीं सोचना चाहिए की ये तो सब मालूम है, ऐसा सोचना सबसे बड़ी मूर्खता है

2.10 सारा जीवन हम कितना मोह रखते हैं सब रिश्तों में मगर यदि कोई मर गया तो उसे भूलने में ज्यादा देर नहीं लगती

2.49 ऐसे ही तत्वज्ञान है, आज आपने सुना याद है, मगर 5 दिन 10 दिन बाद फिर भूल गए

Thursday, June 3, 2021

बह्म जीव माया तत्व ज्ञान भाग - 2, Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj Pravachan - Bhakti Darshan TV- full text




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बह्म जीव मायाँ तत्वज्ञान भाग - २ Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj Pravachan Bhakti Darshan TV.mp4

2.08 दुख यदि आपको ना भी मिले, तो भी यह जरूरी नहीं कि आपको सुख मिल जाएगा, मगर एक बार सुख (आनंद) मिल जाए तो दुख नहीं मिलेगा यह पक्का है

2.30 तो क्या संसार में हमें सुख नहीं मिलता, वह संसार का सुख, सुख नहीं है हम अज्ञान से उसे सुख मानते हैं, इसीलिए हमें दुख मिल रहे हैं

2.55 तो अज्ञान को मिटाने के लिए पहले ज्ञान चाहिए

3.15 दुख मिलने का मूल कारण है अज्ञान ; तीन तरह के दुख होते हैं: आदिभौतिक, आदिदैविक और आध्यात्मिक

3.52 कुछ भी सिद्ध करने के लिए केवल वेद ही प्रमाण है

4.06 वेद कहता है कि हे मनुष्य, क्या आपको पता है कि आप कौन हो ?

5.06 अगर आपने इस मनुष्य जीवन में ज्ञान प्राप्त नहीं किया तो इसके अलावा कोई और शरीर ऐसा नहीं है जिसमें ज्ञान प्राप्त कर सको

5.39 84 लाख तरह के शरीर हैं

5.54 स्वर्ग लोक में देवता लोग रहते हैं वह भी 84 लाख योनियों का हिस्सा है

6.03 लेकिन ज्ञान प्राप्त करने के लिए केवल मनुष्य शरीर ही है

6.53 यदि आपने ज्ञान प्राप्त नहीं किया इस मनुष्य शरीर में दुख मिलता ही रहेगा

7.06 कब तक मिलेगा दुख ; कल्पों तक

7.20 कितना बड़ा एक कल्प होता है: कलयुग में 4,32,000 वर्ष , 8,64,000 वर्ष का द्वापर 12,96,000 वर्ष का त्रेता 17,28,000 हजार का सत युग ; यानी चारों युग मिलकर 43,20,000 वर्ष ; और 71 बार यह चारों युग का क्रम (complete cycle) बीत जाए यह एक मन्वंतर होता है; 14 मन्वंतर बीत जाए तो ब्रह्मा का 1 दिन होता है इतनी ही लंबी ब्रह्मा जी की रात होती है और 1 दिन और एक रात मिलकर एक कल्प होता है

9.14 यदि एक बार मनुष्य शरीर छिन गया तो दुबारा हजारों कल्पों के बाद भी मनुष्य शरीर नहीं मिलता है

9.23 आप इसे हंसी मजाक में ले रहे हैं अरे मनुष्य जन्म फिर मिल जाएगा, अगला जन्म फिर कर लेंगे, ज्ञान व्यान अगले जन्म में देखा जाएगा

10.10 यह मानव देह बड़ा दुर्लभ है देवता लोग भी मनुष्य शरीर चाहते हैं

10.21 स्वर्ग में कितना सुख है आप सोच नहीं सकते, इतना ज्ञान है उनके पास, इतनी शक्तियां हैं उनके पास, फिर भी वह मनुष्य का गंदा शरीर चाहते हैं

10.49 आपके शरीर में पूरी गंदगी भरी हुई है

11.14 देवता लोग जिनके शरीर से इतनी सुगंध आती है यदि एक देवता यहां आ जाए तो उसके आनंद में आप सब मूर्छित हो जाएं

11.34 देवता गण मनुष्य का शरीर क्यों चाहते हैं क्योंकि केवल मनुष्य शरीर में ही कर्म करने का अधिकार है - और किसी योनि में नहीं

12.53 जो मानव शरीर पाकर ज्ञान अर्जित ना करे, ऐसा ज्ञान, जिस से अज्ञान दूर हो जाए और दुख समाप्त हो जाए और आनंद मिल जाए - तो वह आत्महत्यारा है

13.26 प्रत्येक व्यक्ति केवल सुख के लिए कर्म करता है मगर सुख मिलता नहीं करोड़ों और अनंत जन्म बीत गए

14.24 यह मानव देह देव दुर्लभ है, और उससे भी कहीं अधिक दुर्लभ कोई वास्तविक संत का मिलना

16.58 बिना मनुष्य देह पाए, तत्व ज्ञान नहीं मिलता है

17.12 ऐसे कई बार अनंत बार मनुष्य जन्म भी मिला, संत भी मिले, मगर ज्ञान प्राप्त नहीं कर पाए, अज्ञान नहीं गया, आनंद नहीं मिला, दुख नहीं गया

19.29 जितना वेद शास्त्र पढ़ोगे उतने उलझते जाओगे और गुरु वही चीज हमें बहुत आसानी से समझा सकता है

Wednesday, June 2, 2021

इस उपदेश को बार-बार सुनिए , श्री महाराज जी का आदेश है Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj - full text

 


इस उपदेश को बार-बार सुनिए , श्री महाराज जी का आदेश है || Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj

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1.0  मन ही मोक्ष और बंधन का कारण है

Tuesday, June 1, 2021

तत्व ज्ञान - भाग 1, Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj Pravachan, Spiritual Knowledge


 Tatwa Gyan-1 (तत्व ज्ञान) ||Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj Pravachan

https://www.youtube.com/watch?v=BvtruUTwFCc

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Tatwa Gyan-1 (तत्व ज्ञान) Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj Pravachan.mp4

 

5.20 kirtan

8.19 तुम्हारा शरीर, देव दुर्लभ है करोड़ों जन्मों बाद तुम्हें यह मानव देह मिला है इसीलिए इसी देह में लक्ष्य को प्राप्त कर लो

8.44 अन्यथा 84,00,000 योनियों में घूमना पड़ेगा

9.12 यदि इसी देह में आपने तत्व को जान लिया तब तो यह देह सफल है अन्यथा बहुत बड़ी हानि होगी

9.56 एक तो यह मानव जन्म दुर्लभ है, दूसरा यदि संत महापुरुष जिसको वेद शास्त्रों का ज्ञान है, भगवत प्राप्ति हो चुकी है मिल जाए, तब आपका लक्ष्य मिल सकता है

10.44 यह तत्वज्ञान केवल मानव देह में प्राप्त किया जा सकता है, बाकी सब शरीर भोग योनियाँ हैं

11.0 यहां मनुष्य अगर अच्छा कर्म करेंगे तो स्वर्ग जाएंगें, बुरा कर्म करेंगें  तो नर्क जाएंगे और यदि दोनों का मिश्रण होगा तो इसी मृत्यु लोक में किसी 84,00,000 योनियों में घूमेंगे

11.17 अच्छा कर्म और बुरा कर्म दोनों ही करना खतरनाक है और इन दोनों का मिश्रण भी खतरनाक है

11.46 स्वर्ग के देवता जिनकी हम पूजा करते हैं इंद्र, वरुण, कुबेर, यमराज आदि ये सब भी मानव देह की याचना करते हैं

12.0 क्यों, क्योंकि स्वर्ग भी भोग योनि है वहां पर कुछ नया पुण्य आप नहीं कमा सकते हैं, जैसे आप का बैंक का खाता हो, केवल खर्च कर सकते हैं वहां (स्वर्ग में)

पर नया पुण्य (पैसा) जमा नहीं करा सकते, और ज्यों ही आपकी जमा पूंजी (पुण्य) खर्च हुई तो वापस मृत्यु लोक आना पड़ेगा

12.36 संकेत केवल यह है कि मानव देह का महत्व पहचानना है और लाभ उठाना है

12.45 यह मानव शरीर केवल खाना, पीना, सोना और विषय भोग करने के लिए नहीं है, यह तो सब पशु पक्षी भी करते हैं आप से अधिक स्वस्थ है वह जानवर

13.0 वह मूल खाना खाते हैं आप बुद्धिमान हैं तल के, पका के, प्रोटीन विटामिन नष्ट करके खाते हैं और आए दिन अस्पताल जाते रहते हैं, यह बुद्धि के दुरुपयोग का परिणाम है

13.22 यह दुख की बात है कि मानव देह में आकर भी हम यह न सोचें कि हम कौन हैं, हमारा क्या लक्ष्य है, वो कैसे मिलेगा, इन प्रश्नों को हल करना चाहिए

13.47 बस केवल भाग रहे हैं, क्यों भाग रहे हैं क्योंकि वह भाग रहा है

14.04 हम नौकरी चाहते हैं, हम करोड़पति बनना चाहते हैं सब गलत

14.16 संपूर्ण ब्रह्मांड, चींटी से ब्रह्म तक, सब केवल एक ही वस्तु चाहते हैं, बिना किसी के सिखाए पढ़ाएं

14.35 जब बच्चा पैदा हुआ तब रोता है, असल में वह भी आनंद मांग रहा है

15.16 जन्म और मृत्यु के समय दुसहाय (intolerable) पीड़ा होती हैं मगर मनुष्य बड़ा होकर भूल जाता है और यही दुख को बच्चा रोकर निकालता है, जन्म के समय

15.48 कोई भी व्यक्ति कुछ भी चाहता है तो क्यों, आनंद के लिए

17.26, 18.06 आनंद का लवलेश (even a semblance) भी यदि मिल जाए - एक बार सही, चाहे स्वपन में ही, तो सारी दौड़ भाग, बांटना, कामना वगैरह सब समाप्त हो जाएं और संसार के सुख को लात मार दे

18.25 एक बार आनंद प्राप्ति के बाद फिर आनंद छिन नहीं सकता

18.33 आनंद की परिभाषा क्या है, जो (unlimited) असीमित हो, यानी अनंत मात्रा का हो और सदा बना रहे

18.58 हमको अभी तक संसार में जितना भी सुख मिला सब सीमित मात्रा में और क्षण भर के लिए, यानी तुरंत खत्म होने वाला मिला

20.06 फिर दोबारा उसी वस्तु या व्यक्ति की भूख और फिर थोड़े समय के बाद वैराग्य, यही  नाटय क्रम अनंत जन्मों से हो रहा है

20.17 हमारे पास इतनी भी फुर्सत नहीं है कि हम समझ तो ले कि आनंद कहां से मिलेगा जो स्थाई हो, जो सदा रहे

20.38 भई करोड़पति बनना चाहते हो क्यों, जो लाखों करोड़पति हैं उनसे पूछ तो लो क्या वह आनंद में है, भई वे भी नींद की गोली खाकर सोते हैं

21.05 फुर्सत नहीं है यह जानने की, कि आनंद कहां से मिलेगा, बस भागना है, पागलों की तरह

21.19 विश्व का प्रत्येक जीव आनंद चाहता है, बिना किसी के सिखाए पढ़ाए, कुछ तो मूल कारण होगा

21.38 किसी मां बाप ने अपने बेटे को यह नहीं बताया होगा कि बेटा आनंद ही का प्रयास करना, दुख पाने का नहीं, क्योंकि यह तो स्वाभाविक (natural knowledge) है