Friday, June 18, 2021

This 30 min speech is extremely important, listen to this whenever you are free - Kripaluji Maharaj - Full Transcript Text


This 30 min speech is extremely important, listen to this whenever you are free - Kripaluji Maharaj

 

https://www.youtube.com/watch?v=JVdS-oX_GWA



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0.04 ये आधे घंटे की speech बहुत important है, so share among all to the maximum for welfare of all & must listen to this frequently

 

0.20 हमारे शास्त्र कहते हैं कि उपदेश, philosophy को बार बार सुनना चाहिए, तब वो खोपड़ी में पक्का बैठती है फिर practical होता है

0.36 ये अहंकार हो जाए की समझ गए, समझ गए से बात नहीं बनती

0.48 जैसे बच्चे कहते है ना history, geography बड़ी बेवफा, रात भर रटो, सवेरे सफा, ऐसी ही बुद्धि है हम लोगों की कलयुग में

1.35 मन से हरि गुरु का ध्यान और वाणी से भगवान के नाम, रूप, लीला, धाम का गान, संकीर्तन ये साधना है

2.09 प्रमुख है मन

2.15 मैंने बहुत बार आपको समझाया है की मन ही मोह और बंधन का कारण है, many shlokas of vedas quoted with verse numbers. 

4.04 ये सब शास्त्र वेद कह रहे हैं कि मन ही "कर्ता / करता" है, कर्म का करता केवल मन है

4.22 वैसे आप सबको भ्रम रहता है की आंख ने देखा है, कान ने सुना है, नासिका (नाक) ने सूंघा है, रसना (tongue, जीभ) ने चखा है, त्वचा (skin) ने स्पर्श किया है

4.44 लेकिन इन को कर्म नहीं कहते

4.53 कर्म कहते हैं जहाँ पर मन को सुख मिले, जहां मन का attachment / लगाव हो

5.09 आपने किसी को मारा नहीं लेकिन मारने का plan बनाया, इसका मतलब की आपने मारने का कर्म किया और भगवान ने नोट कर लिया

5.24 आप कहेंगे अजी मैंने तो किसी को झापड़ भी नहीं मारा, सही है की नहीं मारा इंद्रियों से, लेकिन मन से तो सोचा था न, हाँ मन से तो कई बार सोचा

5.40 मेरे boss ने मुझे डांटा, मेरा मन किया के एक झापड़ लगाऊँ, मगर लगाऊंगा तो निकाल देगा नौकरी से, बहुत बार अपने माँ बाप के लिए ऐसा सोचा औरों के लिए तो क्या कहें

6.03 भगवान कहते है की मन ही कर्म का करता है, भगवान केवल इन्द्रियों से किया हुआ काम नोट नहीं करते

6.18 इंद्रियों से करोड़ों murder किया अर्जुन ने, हनुमान जी ने, ओर इन सब murders की गवाही भी बहुत है, मगर भगवान ने नोट नहीं किया क्योंकि वो कर्म ही नहीं है जो केवल इंद्रियों से हो, अर्जुन और हनुमान जी के मन में तो भगवान थे

6.54 भगवान ने अर्जुन को कहा मन मुझ में रख "सर्वेषु कॉलेषु" (all the time)

7.44 इसलिए बिना मन के केवल इंद्रियों से किया हुए कार्य को भगवान कर्म नहीं मानते और उसका फल भी नहीं देते

7.43 मगर 99% लोग केवल इंद्रियों से ही भगवान की पूजा करते हैं केवल हाथ से चंदन चढ़ा रहे हैं, केवल मुँह से भगवान का नाम ले रहे हैं, मगर उस मूर्ति में भगवान बैठे हैं ये दृढ़ संकल्प नहीं है मन में, तो फिर ये acting है, पूजा नहीं है, कोई फल नहीं मिलेगा खाली time बर्बाद कर रहे हो, खाली physical drill कर रहे हो, इसे कहते हैं शारीरिक व्यायाम

8.55 पहली मूर्ति में भगवान की भावना हो जाए, उसके बाद जो तुम चाहे कुछ भी करो या कुछ ना करो, मन से ही चंदन चढ़ा दो, मन से ही नहला दो, मन से ही भोग लगा दो, मन से हीरो की माला पहना दो, ये सब स्वीकार करेंगे भगवान और सब नोट करेंगे "आपने मेरी पूजा की, मैं बहुत खुश हूँ"

9.31 आप यहाँ कीर्तन करते हैं मगर कितने लोग सही दृढ़ विश्वास रखते हैं कि नाम में ही भगवान बैठे हैं 

9.58 अगर हम समझ लें कि ये अंगूठी 10 की है, और यदि समझ लें कि ये 1,00,00,000 की है तो तो उस अंगूठी के लिए आपकी दृष्टि में कितना भेद होगा

10.15 इसी प्रकार यदि आप भगवान का नाम लें, ये विचार के साथ कि भगवान अपने नाम में ही बैठे हुए हैं - ये भगवान ने स्वयं कहा है

11.05 गौरांग चैतन्य महाप्रभु कहते हैं कि "हे श्रीकृष्ण, आपने अपने नाम में ही अपनी सब शक्ति भर दी है लेकिन मैं कितना अभागा हूँ कि विश्वास नहीं करता" और साथ में आपने इतनी भी रियायत की किसी भी समय लो, कहीं भी लो, मैखाने में लो, पाखाने में लो, घोर गंदगी में लो

11.45 भगवान कहते है की मेरे नाम में मैं हूँ और यदि गंदगी में आप मेरा नाम लोगे तो गंदगी शुद्ध हो जाएगी

12.11 कोई अपवित्र हो, या पवित्र हो या किसी भी अवस्था में हो, मेरा नाम ले सकता है कितनी बड़ी रियायत

12.33 जो श्रीकृष्ण का स्मरण करे तो उसके अंदर और बाहर की शुद्धि मान ले जाती है

12.48 अब इससे बड़ी कृपा और क्या होगी कि नाम में वो स्वयं बैठे हैं और कोई नियम नहीं -  और चीजों में बड़े बड़े नियम है यदि यज्ञ करना हो, योग करना हो

13.11 लेकिन प्रेम में कोई नेम (नियम) नहीं, "जहाँ नेम नहीं प्रेम तहाँ, जहाँ प्रेम नहीं नेम" (wherever there are no rules & regulationsto be followed, there exists love & vice versa)

13.28 "चाखा चाहे प्रेम रस, राखा चाहे नेम" (you want to taste pure love & still want to keep rules & regulations - these are not possible together as these two - love versus rules & regulations - are contradictory)

13.42 मन का "विचार / सोच" ही कर्म है - ये बात याद कर लो, रट लो, हर समय याद रखो

13.56 जैसे अपने आप को, स्वयं को, हमेशा याद रखते हो - मैं हूँ, जो मैं कल था वही मैं आज भी हूँ

14.13 कोई proof नहीं कि ये मेरा बाप है, फिर भी हमें दृढ़ संकल्प है की यही मेरा बाप है - कोई proof है क्या, नहीं मगर सब ने कहा है ऐसा इसलिए मैंने मान लिया, मगर लोग तो झूठ बोलते हैं न, ये भी मालूम है

15.15 जब संत, महापुरुष, शास्त्र वेद सब कह रहे हैं कि भगवान हैं, तो भगवान में विश्वास नहीं है, doubt है

15.23 कितनी बार कृपालु जी ने कहा कि पहले रूप ध्यान करो फिर भगवान का नाम लो, और ये मानकर नाम लो कि भगवान के नाम में भगवान स्वयं बैठे हैं, मगर हम फिर भूल जाते हैं

15.50 मन से किया हुआ विचार, सोच ही कर्म है इसलिए चाहे भगवान की भक्ति हो, चाहे संसार की भक्ति हो, दोनों का संबंध केवल मन से ही है

16.13 संसार में राग (attachment) है - किसका है, मन का

16.27 भगवान ने ध्रुव को कहा, राज्य करो, व्यवहार करो, बच्चे पैदा करो

16.38 भगवान ने प्रहलाद को कहा, राज्य करो, गृहस्थ में रहो, For AS MANY AS 33 crore 67 lakh 20 thousand years, ये भगवान ने आज्ञा दी, ध्रुव और प्रहलाद नहीं चाह रहे थे

17.04 भगवान मिल जाने के बाद, उन का आनंद मिल जाने के बाद कौन चाहेगा गोबर गणेश संसार को,  मगर भगवान की आज्ञा थी इसलिए मानना था

17.25  श्रीराम सुग्रीव को कह रहे हैं राज्य करो, विभीषण को कह रहे हैं राज्य करो, ये हमारी आज्ञा है

17.46 मगर हम लोगो को ये सब विश्वास नहीं होता है की ध्रुव और प्रहलाद को भगवान मिले - क्योंकि इतने वर्ष राज किया संसार पर इन्होंने, ये विश्वास नहीं होता

18.10 ये चार उँगली की खोपड़ी है हमारी ये हर जगह चल जाती है,  महापुरुषों पर भी भगवान पर भी, हम सब एंठते (we pride ourselves in) है कि हम कोई मामूली अक्लमंद हैं क्या

18.34 भगवान का रूप ध्यान करना ये हमारा प्रथम (number one) कर्म है, इसे चाहे ज्ञान कहो, कर्म कहो, भक्ति कहो, प्रपत्ति (surrender) कहो - यही सब कुछ है

18.53 उपासना - उप: यानी नजदीक / पास और आसना: जाना या बैठना - उपासना का मतलब भगवान के पास जाना, भगवान के पास कौन जाए - शरीर नहीं, मन जाए, मन को ले जाना है भगवान के पास

19.15 वैराग्य यानी संसार से मन हटाना, संसार रहे अपनी जगह, संसार क्या बिगाड़ लेगा हमारा, केवल मन हट जाए संसार से  

20.05 ये संभव है कि सब विषयों का ग्रहण करते हुए भी मन सबसे अलग है, रसगुल्ला खा रहा है मगर स्वाद रसगुल्ले का नहीं, प्रेमानंद का आ रहा है मन को -उसका मन भगवान में है नित्य

20.43 एक बार भगवान की प्राप्ति हो जाने के बाद,  प्रभु प्रेम में मन लग जाने के बाद, यही मन भगवान के आनंद से पृथक (separate) हो ही नहीं सकता -विश्व की कोई भी शक्ति ऐसा नहीं कर सकती, भगवान खुद भी चाहें तो भी नहीं

21.06 एक गोपी यमुना किनारे ध्यान कर रही थी, नारदजी आए और पूछा कि श्रीकृष्ण का ध्यान कर रही हो ? गोपी ने उत्तर दिया: नहीं,  श्रीकृष्ण से ध्यान हटाने का प्रयास कर रही हूँ मगर मन हटता ही नहीं

22.11 बड़े बड़े योगेंद्र मुनींद्र, संसार से मन हटा कर समाधि में ध्यान लगाते हुए, एक क्षण के लिए श्याम सुन्दर की झलक चाहते हैं मगर नहीं पाते

22.40 और ये गोपी भगवान से मन हटाकर, संसार में लगाना चाहती है मगर नहीं लगा पाती

23.03 आप लोगों को यदि चीनी की चाय मिले तो गुड़ की चाय कौन पीना चाहेगा जबकि दोनों एक ही चीज़ है

23.15 तो एक वि (संसार) और एक अमृत (भगवान), भला कौन विष पीना चाहेगा जो अमृत पीने वाला हो

23.29  एक बार परमानंद मिल जाने के बाद फिर वो छिनता नहीं, सदा के लिए मिल जाता है,  क्योंकि उस पर माया का अधिकार नहीं हो, यदि माया का अधिक अधिकार हो जाए तो छिन जाए

23.51  लेकिन जैसे अंधकार का प्रकाश पर अधिकार कभी नहीं हो सकता ऐसे ही माया का अधिकार भगवान पर कभी नहीं हो सकता, इसी तरह परमानन्द पर दुख का अधिकार कभी नहीं हो सकता

24.16 तो भगवान का रूप ध्यान करना है, मन से, साथ में इंद्रियों को भी लगा दो, ठीक है, भगवान ने ही तो इन्द्रियां दी हैं, उन्हें भी लगादो भगवान में, तो अच्छा है - तो इन्द्रियां संसार की तरफ नहीं जाएंगीं, वो मन को disturb नहीं करेंगीं

24.53 यदि भगवान में मन लग गया तो इन्द्रियां कुछ नहीं कर पाएंगीं, ये आंख जो देखती है वास्तव में तभी देख पाती है जब मन भी इसके साथ हो

25.35 साधना की अवस्था में यदि इन्द्रियां भी लगी रहे भगवान में तो अच्छा है, नहीं तो आप अकेले में साधना कर रहे हैं तो नींद आ जाती है, क्योंकि बहुत बिगड़ा हुआ मन है, शुरुआती पहले दर्जे में ऐसा होता है   

25.54 और यदि भगवान की लीला का ध्यान करके गुणगान करें, तो मन को सामान मिल गया कई तरह का लगने के लिए, ये जान लो कि मन केवल एक ही चीज़ में नहीं लगता, "bore" हो जाता है

26.16 मन का बस चले तो अपने माँ बाप, बीवी बच्चों को रोज़ बदलता रहे, अपना मुँह नाक कान बदलता रहे रोज़

27.06 मुख्य तो मन को लगाना है भगवान में, इन्द्रियां भी लगी रहे हैं तो अच्छा है

27.22 भगवान से ना तो संसार मांगो ना मोक्ष मांगो, केवल तीन चीज़ मांगो: दर्शन, दिव्य प्रेम और सेवा, दिव्य प्रेम अंतःकरण शुद्धि के बाद मिलता है, भगवान दिव्य प्रेम के आधीन रहते हैं और सेवा उसी प्रेम से मिलती / होती है

28.06 दर्शन इसलिए कि यदि हम दर्शन की कामना बनाएंगे तो व्याकुलता पैदा होगी उनसे मिलने की, और फिर अश्रुपात (tears would roll) होगा जिससे अंतःकरण जल्दी शुद्ध होगा

28.23 दर्शन, दिव्य प्रेम और सेवा की कामना से भगवान का रूप ध्यान करना चाहिए

28.37 भगवान का कौन सा रूप ध्यान हो, ये भगवान ने आप की इच्छा पर छोड़ दिया - देखिये भगवान की कृपा का कितना अंबार है, "तुम जैसा चाहो, रूप बना लो हम (भगवान कह रहे हैं) उसको असली मान लेंगे"

29.28 मन से भगवान के रूप ध्यान के लिए जो उनकी उमर पसंद हो वो बना लो, जो कपड़े पसंद हो वैसे कपड़े पहना दो, जो जेवर पहनाने हो वो पहना दो, जैसा खाना खिलाना हो वैसा खिला दो, सब भगवान ने आप की इच्छा पर छोड़ दिया

29.52 भगवान को थोड़ा सा पत्रम (leaf), पुष्पम (flower), फलम (fruit), तोयम (water) भी दे दो तो प्रसन्न हो जाते हैं

30.20 तो इस तरह से भगवान की भक्ति करने से अंतःकरण की शुद्धि होगी, उसके बाद आपका काम नहीं है, गुरु और भगवान अपना अनुग्रह करेंगे

 

30.54 ये आधे घंटे की speech बहुत important है, so share among all to the maximum for welfare of all & must listen to this frequently  हमारे शास्त्र कहते हैं कि उपदेश, philosophy को बार बार सुनना चाहिए, तब वो खोपड़ी में पक्का बैठती है फिर practical होता है, ये अहंकार हो जाए की समझ गए, समझ गए से बात नहीं बनती, जैसे बच्चे कहते है ना history, geography बड़ी बेवफा, रात भर रटो सवेरे सफा, ऐसी ही बुद्धि है हम लोगों की कलयुग में

 

32.40 इस कलयुग में बहुत मंदबुद्धि लोग होते हैं, जल्दी से कुछ उपदेश समझ में नहीं आता है और समझ में आ भी जाए तो जल्दी से विस्मरण (forget) हो जाता है

 

 

 


Thursday, June 17, 2021

मृत्यु का भय Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj [ Death Fear] ..Radha Govind Dham - Full Transcript Text




https://www.youtube.com/watch?v=Gz30UNmuEoY


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Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj [ Death Fear ] ... मृत्यु का भय Radha Govind Dham.mp4

 

1.57 पांच क्लेश होते हैं उस में से एक है मृत्यु का भय, उसे अभिनिवेश कहते हैं, ये भय सबको है, ऐसा नहीं है कि मृत्यु का समय निश्चित है की 50 वर्ष तक तो मरना ही नहीं, पक्का है

2.50 पैदा होते ही या माँ के पेट में ही बच्चा मर जाता है कभी कभी, सभी देख ही रहे हैं कि आस पास सब लोग मर ही रहे

3.18  फिर मृत्यु से डरते क्यों हैं, सब वेद, शास्त्र के प्रमाण और आसपास सभी जगह प्रत्यक्ष प्रमाण को भी नकार दिया की मैं तो नहीं मरने वाला

3.42 ये संसार है, संसार शब्द बना है संसृति से : संसार माने सरकने वाला, पहले सबसे ऊपर सतयुग आया, फिर संसार सरका त्रेता युग की तरफ, फिर द्वापर, फिर कलयुग और जब संसार बहुत नीचे चला जाएगा तब फिर भगवान सतयुग ले आयेंगे, संसार सरकता ही रहता है

4.25 ये संसार चलता ही रहता है कोई चीज़ स्थिर नहीं है, और यदि कोई स्थिर है केवल तीन चीज़ 1. ब्रह्मा 2 जीव 3. माया  लेकिन आना जाना इन तीनों का भी बना हुआ है

5.04 ब्रह्मा भी आते हैं और अपनी आयु व्यतीत कर के चले जाते हैं - हालांकि ब्रह्मा तो स्वेच्छा  से आते हैं और स्वेच्छा से जाते हैं, मगर जीव कैदी बनकर आते हैं और कैदी बनकर ही चले जाते हैं, ये भेद तो है ब्रह्म और जीव में लेकिन आना जाना सबका लगा रहता है

5.42  माया भी आती है जाती है,  सारे संसार का प्रलय होता है एक दिन

6.11 पृथ्वी से 10 गुना जल,  जल से 10 गुना अग्नि, अग्नि से 10 गुना वायू, वायु से 10 गुना आकाश, आकाश से 10 गुना पंचतनमात्रा, पंचतनमात्रा से 10 गुना अहंकार, अहंकार से 10 गुना महान,  महान से 10 गुना प्रकृति, प्रकृति से अनंत गुना भगवान, प्रलय के बाद प्रकृति लीन हो जाती है भगवान में और फिर भगवान ही उसे दोबारा प्रकट करते हैं

 

6.55 ये आवागमन, आना जाना, सबका चलता ही रहता है, तो फिर भय क्यों, जब जाने का समय होगा तो जाना ही होगा

7.33 11,000 वर्ष राम रहे, समय पूरा होने पर यमराज आए, प्रणाम किया और राम जी को बोला कि आपका समय हो गया, हम याद दिलाने आए हैं, आप को लेके तो कोई जा नहीं सकता, लेकिन हम आपके नौकर हैं, हमारी dutyहै आपको समय पर याद कराना, जैसे संसार में मंत्री को उनके PAयाद कराते हैं

8.27 32 वर्ष की आयु में शंकराचार्य चले गए, 48 वर्ष में गौरांग चैतन्य महाप्रभु चले गए


Wednesday, June 16, 2021

Srimad Bhagavatam 6.4.25 by HG Amarendra Prabhu, 16 Nov 2022 - Salient Points

 

 

Srimad Bhagavatam 6.4.25 by HG Amarendra Prabhu, 16 Nov 2022 - Salient Points

 

https://www.youtube.com/watch?v=ER-m2NhJ7Aw

 

Salient Points as noted by me:

15.16Bhakti is called स+हिता, means along with & हिता means welfare. So, Bhakti brings supreme well-being for one & therefore books containing bhakti are called साहित्य

https://youtu.be/ER-m2NhJ7Aw?t=916

 

18.25 we cannot see Krishna, examples.

https://youtu.be/ER-m2NhJ7Aw?t=1104

 

21.53Krishna appears to us in so many ways to reciprocate with us & only to uplift us. He appears as His holy books, His विग्रह (deities), as Shri Vrindavan dham, as गुरुदेव - if we think gurudev is simply a human being, it is considered an offence.  

https://youtu.be/ER-m2NhJ7Aw?t=1313&

https://youtu.be/ER-m2NhJ7Aw?t=1678

 

24.25 why guru is more important than all demigods.

https://youtu.be/ER-m2NhJ7Aw?t=1465

 

29 none can know or describe Greatness & Opulence of Krishna, unless Krishna reveals Himself to His pure devotees.

https://youtu.be/ER-m2NhJ7Aw?t=1701

 

30.55 His माधुर्य भाव & He is grave, means we cannot understand what He is thinking. We can never estimate / understand / appreciate how much He loves us all.

https://youtu.be/ER-m2NhJ7Aw?t=1850

 

32.28 one incident of Prabhupad : once some devotees were cooking, Prabhupada came and asked they said we have 50 pounds of rice, 50 pounds of sugar etc.  Prabhupada told them that it is Krishna who is provided this much quantity for us devotees whereas outside कर्म कांडी persons strive day and night to get one pound.

https://youtu.be/ER-m2NhJ7Aw?t=1948

 

35 25 Essence of the essence of the essence of everything is Krishna.

36.30 in this world by basically selfish nature, as long as we have something to give to others, people come to us, otherwise they avoid & ignore.

https://youtu.be/ER-m2NhJ7Aw?t=2330

40 15 3 types of gratitude: Ayodhya type: where all are grateful for everything, Kishkinda type where people sometimes they are grateful sometimes they are not & Lanka type where people are never grateful.

46.15 we serve a lowly boss but we ignore Super boss Krishna.

49.15दुर्भाग्य है if we love anyone anything in this world apart from Krishna.

51.45 sarvam Krishna arpanam वस्तु

55 28 Krishna is too great.

56.08 Krishna comes in the form of...... to rescue us.

57.18 He has the greatest compassion.

59 40 Gita as it is, explained why best.

1 0 10we can never understand Krishna but like a father, if he desires, lifts the son on his shoulders - likewise if Krishna desires, He can reveal Himself to His devotees. 

1 02 20 Krishna created the universe and simultaneously the Vedas and Prabhupad similarly created ISKCON and Bhakti Vedant trust books.

1 02 55 we can never understand Krishna.

1 04 54 Guru destroys darkness, given some examples.

1 06 35 which is the book to start with

1 11 31 what if garlic onion people eat at home and they force you.

1 14 10 why did Arjuna ask Krishna to show His cosmic Universal form.

1 14 39 how to overcome initial hesitation in performing bhakti.

1 17 31 why Satyug etc. are not found in evidence in archaeology.

1 18 49 Darwin for father might have been monkeys but Prabhu Path says my father was appreciate.

1 20 01 it is not the instinct only but Lord who sits in heart of each being, even insects, & so God guides.

1 21 52 Science if you dig Deep you come to the divnity point.

1 25 15 only one rule; remember Krishna all the time.

1 28 30 five fingers point to five principles 1. Worship Krishna, son of Nanda maharaj 2. Be attached only to Vrindavan 3. Follow the footsteps of Gopis 4. Study Srimad Bhagvat 5. Aim of our life is to develop for Shri Radha Krishna

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Following is copy pasted from Transcript given on this youtube link:

 

https://www.youtube.com/watch?v=ER-m2NhJ7Aw

 

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