कामना क्या है-?? -जगद्गुरुत्तम
श्री कृपालु जी महाराज
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कामना क्या है- -जगद्गुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज.mp4
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बताया गया पांच प्रकार की कामनाएं हैं पांच प्रकार का कामनाओं को यदि माईक (in this maya) क्षेत्र में बनाया जाए, तो उसका नाम
कामना और यही पांच कामनाएं ईश्वरीय क्षेत्र में बनाई जाएं, तो उसका नाम उपासना
0.28 संसार संबंधी कामना निंदनीय (to be avoided) है और भगवतीय कामना वंदनीय है, कामना कोई dangerous नहीं है, कामना खतरनाक नहीं है, बुरी
बात नहीं है, कामना बनाना चाहिए, कामना बनानी पड़ेगी, बिना
कामना बनाए कोई विश्व में एक क्षण भी जीवित नहीं रह सकता, उसका कारण ये है कि
अनादिकाल से जीव माया के under में है
1.17 मायाधीन होने के कारण अपने स्वरूप को
भूल गया है, मैं आत्मा हूँ और मैं भगवान का दास हूँ, ये हमारा original रूप है, वास्तविक रूप है, उसको हम भूल
गए, 1 दिन से भूल गए ऐसा नहीं, आनादि काल से भूले हुए हैं, अपने को देह मान लिया, तो
मैं गलत हो गया, मैं आत्मा हूँ ये सिद्धांत भूल जाने के कारण, मैं देह हूँ ये मान
लिया, इसलिए देह के नाते दारो को अपना मान लिया
2.22 main
mistake हमारी
ये है कि हमने अपने आप को भुला दिया, मैं spiritual तत्व
हूँ, आध्यात्मिक तत्व हूँ, दिव्य तत्व हूँ, भगवान का अंश हूँ, उन का दास हूँ, ये बात आप
सब लोग समय समय पर जानते मानते हैं
3.09 किसी के मरने पर आप लोग बोलते हैं आज
रमेश शाम को 6:00 बजे संसार से चला गया, चलो उसकी मिट्टी में
जाना है, उसका अंतिम दर्शन कर लो ये सब शब्दों के बोलने का अभिप्राय क्या होता है,
आप सब लोग बोलते हो "चला गया", कौन "चला
गया" ? जो चला गया उसको आप जानते हो? हाँ, हाँ। तो वो कौन है जो लेटा हुआ है, अरे वो तो शव (मिट्टी)
है
4.12 पंचमहाभूत से शरीर बना है, इसको मिट्टी
कहा जाता है, इस शरीर के केवल तीन ही परिणाम हो सकते हैं - 1. शरीर गली में छोड़
दिया, तो किसी जीव ने उसे खा लिया और ये
शरीर उसका पाखाना (latrine) बन गया, 2. आग में जला दिया, तो भस्म
(ash) बन गया और 3. ऐसे ही मिट्टी में गाड़
दिया, तो कीड़ों ने खा डाला
4.59 तो
आप जो
बोलते हैं कि वो चला गया तो किसको बोलते हैं शरीर तो लेटा हुआ है, इसके लिए रो रहे
हो, तुम तो इसको शरीर मानते थे अभी तक, और उसी से प्यार करते थे, शरीर तो अभी भी सामने लेटा हुआ है, मगर इस के भीतर
वास्तविक personality थी, जीवात्मा उसकी तो मृत्यु होती नहीं
6.22 जीव आत्मा तो सनातन तत्व है नित्य तत्व
है, किसी प्रकार की कोई भी चीज ऐसी नहीं है जो जीवात्मा में जरा सा भी + - (plus minus) कर सके, ये आप सब जानते हैं, मानते हैं,
फिर भूल जाते हैं, विचित्र बात है, फिर अपने को देह मान लेते हैं, देह में भी और
आगे बढ़ गए, मैं मनुष्य हूँ, में पुरुष हूँ, मैं स्त्री हूँ, उसमें भी मैं बंगाली
हूँ, पंजाबी हूँ, मद्रासी हूँ, कितनी उपाधियाँ खरीद ली अपने, कितनी बीमारियाँ पाल
ली आपने
7.12 अगर हम सब अपने आप को जीवात्मा मान लें
तो सब झगड़ें ही समाप्त हो जाएं, हमने अपने स्वरूप को भुला दिया, मगर अपना स्वभाव (nature) को नहीं भुलाया, कि हम सच्चितानंद के
अंश हैं, इसलिए सत्य का स्वभाव नित्य जीवन, चित्त का स्वभाव
परिपूर्ण ध्यान
और
आनंद का स्वभाव परमानंद, ये हमारी तीनों कामनाएं शाश्वत (eternal) है, सनातन (beginning less) हैं
8.16 इसलिए अपना स्वरूप भुला देने पर भी हम ये
तीनों स्वभाव नहीं भुला सके, हम मरना नहीं चाहते, यदि हम अपने आप को आत्मा मानते
हैं तो मरने में क्या परेशानी है ? घोर कष्ट सहेगा, बूढ़ा है, मगर मरना नहीं चाहता अपने
सत्य स्वभाव के कारण, आपका अपना स्वभाव जबरदस्ती प्रेरित कर रहा है कि आप न मरें
क्योंकि आत्मा नित्य है, ये हमारा स्वभाव
जीवन का और इसी प्रकार ध्यान का
9.27 जब हम माँ के पेट से बाहर आए तो कुछ
बातें संस्कार वश जानते थे जैसे रोना, हँसना, माँ के स्तन से दूध निकाल लेना, हमें रोना हँसना
डरना किसी ने नहीं सिखाया
10.15 लेकिन और सब सीखने के लिए हमने बहुत प्रयत्न किया जैसे करवट लेना, बैठना,
खड़े होना, चलना, बोलना, किसी के साथ तिकड़म करना, ये सब तमाम बातों की अनावश्यक knowledge पूरी life इकट्ठा की, लेकिन हम वहीं है जहाँ से चले थे, हम को जानने
की जिज्ञासा थी, छोटा सा बच्चा बैठा होता है अगर यहाँ जो lecture चल रहा है, वो कुछ नहीं समझता
11.40
जैसे आप प्रारंभिक अवस्था (as a child) में परेशान थे ज्ञान के लिए, ऐसे ही आज
भी, और ज्ञान प्राप्त कर लें, क्या होता है भगवान, वो चाहे material knowledge हो,
चाहे spiritual knowledge
12.08 उसी लिमिट में जिज्ञासा बनी हुई है क्योंकि
हम अंश हैं उस सर्वज्ञ (all knowing) के, हमारी nature को कोई नहीं काट सकता, हमारा अज्ञान भी
नहीं काट सकता, इसी प्रकार आनंद भी हम सदा चाहते हैं, जिसको हम happiness कहते हैं, सुख कहते हैं, शांति कहते हैं, चैन कहते हैं, मज़ा कहते हैं, लुत्फ कहते हैं
12.38 हम भगवान को माने ना माने, इससे कोई मतलब नहीं,
चाहे Russia हो, अमेरिका हो, इंडिया हो, कोई देश हो,
सब विश्व शांति का संदेश चारों ओर फैला रहे हैं, बड़ी meeting हो रही है, अरे भाई हम लोग क्या करें, हमने
ऐसे आविष्कार करके (war weapons) स्वयं ही आग लगा ली, तो मीटिंग कर के अपनी
मूर्खता को मिटाओ, नहीं तो हम ही नहीं रहेंगे तो आनंद कैसे मिलेगा
13.19 इसी आनंद के स्वभाव के कारण, हमने
कामनाएं बनाईं, बनाएंगे और बनाना पड़ेगा, अगर अपने आपको आत्मा
मान लेंगे तो परमात्मा की कामनाएं
बनाएंगे, अगर अपने आपको शरीर मान लेंगे तो शरीर संबंधी सुखों की कामनाएं बनाएंगे, बड़ी सीधी सी बात है, गधा भी समझ सकता है
14.0 तो हमारी जो प्रमुख प्रारंभिक भूल है वो
है अपने स्वरूप को भुला देना, स्मृति (memory that we are Lord's अंश/shakti) भूल गयी, अस्मृति (forgotten) हो गयी, अपना स्वरूप भूल गया माया वश
15.17
याद रखिये इन सारे विकारों (काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्षा etc.) का परस्पर कनेक्शन है, ये जाएंगे तो सब जाएंगे
और नहीं जायेगा तो एक भी नहीं जाएगा
15.40
हम जिस वस्तु में बार बार आनंद मांगते है उसमें अटैचमेंट होता है, उसी की कामना पैदा
होती है, कामना पूर्ति से लोभ पैदा होता है, कामना
आपूर्ति से क्रोध पैदा होता है, भगवान ने कहा ये तीन (काम, क्रोध, लोभ) को छोड़ दो,
बस काम बन जाएगा और बाकी विकार अपने आप भाग जायेंगे
16.25 और बाद में श्रीकृष्ण ने कहा कि बस
कामना छोड़ दो, कामना छोड़िये ये कब छूटेगी, जब आसक्ती छूटेगी, जब संसार से सुख
माँगना बंद करोगे और ये तभी संभव है जब अपना स्वरूप जानेगें कि मैं आत्मा हूँ शरीर
नहीं
17.10 अपने स्वरूप को समझो और अपने को देह मानना
बंद करो, जब अपने को देह नहीं माना, तो देह इन्द्रियओं के आनंद की research बंद, गणित में यदि प्रारंभ में ही गलती हो जाए, चार
गुना 5 यदि 20 की जगह हम 30 कहें तो उसके बाद उत्तर गलत ही आएगा, जब आपने गलती कर
ली पहली कि अपने को आत्मा न मान कर शरीर मान लिया, अब आप चाहे जितनी बुद्धि लगाओगे,
जितना labour करे अनन्त कोटी कल्प तक भी - धर्म,
कर्म, यज्ञ, तप, दान, व्रत, योग करें, जो कुछ भी करें, अब आपको आनंद नहीं मिलेगा
18.07 आप ब्रह्म लोक तक जा सकते हैं लेकिन आप
फिर वहाँ से लौटेंगे फिर कीट पतंगे की योनियों में जाएंगे, फिर कभी हमारे कर्मों के अनुसार भगवान एक मौका /
chance दे देंगे मानव शरीर का
18.51 माँ के पेट में उल्टा टंगा दुखी हुआ, आप
लोग कल्पना नहीं कर सकते हैं उस दुख की, ये
हमारी आत्मा चैतन्य है, इसमें feeling
है , यदि आपको शीर्षासन करने को कहा जाए 5 मिनट में आप परेशान हो जाते
हैं, पैर ऊपर सिर नीचे और आप कितने दिन माँ के पेट में ऐसे पड़े रहे कितना कष्ट हुआ
होगा उस कोमल शरीर में, लेकिन आप आगे चलकर भूल जाते हैं, पिछली feeling आपको आगे याद नहीं रह सकती
19.49 अगर पिछला सुख भविष्य में भी कर सके तो
बड़ा काम बन जाए, एक बार रसगुल्ला खा लें और उसके बाद जब चाहे कई वर्षों बाद आँख बंद
करें और रसगुल्ले के आनंद का अनुभाव हो जाये - मगर ऐसा नहीं होता
20.38 और कितने कष्ट आपको जीवन में मिलते गए -
सब भूलते गये, वो स्मरण नहीं रह सकता उसी काल में feeling होती है, अपने आप को शरीर ना मानना,
वास्तविक स्वरूप मानना, यही गलती ठीक करना है इसी का चिंतन जितनी बार करोगे, इसका
चिंतन करोगे मैं शरीर नहीं, मैं शरीर नहीं, मैं मन नहीं, मैं बुद्धि नहीं, मैं
आत्मा हूँ, मैं आत्मा हूँ इसका revision होना
चाहिए बार बार
21.35 इसका realization जितना पक्का होगा, निरंतर करेंगे - काम
बन जाएगा
22.10
एक लड़की जा रही है एक लड़का जा रहा है, लड़की बड़ी सुन्दर सी, लड़के ने लड़की को ओर देखा और लड़की ने अपनी चप्पल की ओर देखा
22.24 अगले दिन लड़की को मालूम पड़ा, मेरी वहाँ सगाई हो गई, पक्का
ब्याह होने जा रहा है, पिता जी ने बता दिया, अब लड़की उस लड़के को देखने के लिए परेशान
है, वही लड़का वही लड़की, वही आंख वही मन, ये क्या हो
गया, केवल ये feeling कि अब ये मेरा है, मेरा स्वार्थ इससे सिद्ध होगा
23.10 ये सब आपको daily का experience है किसी शस्त्र वेद की आवश्यकता नहीं है,
अपने माँ बाप बेटा जब आपको ऊनपर faith होता
है कि इनसे हमारा स्वार्थ सिद्ध होगा तो आप उन्हें surrender कर देते हैं, सिर झुका लेते हैं, आँखों
में नम्रता, दीनता भर जाती है मगर जिस क्षण में आप को ये feeling होती है, अरे कुछ नहीं सब बेकार है उस
समय आप neutral हो जाते हैं और जिस समय ये feeling होती है कि इनसे हमारे स्वार्थ की हानि हो
रही है उस समय फिर आपकी आंखें फिर जाती है, ये तीन स्थितियां आप के साथ एक दिन में
10 बार होती हैं
23.58 सीधी सी बात है आत्मा का सुख परमात्मा
में ही है, शरीर का subject material जगत और spiritual आत्मा का subject भगवान, देखो आँख material है माइक (maya) से बनी है, पंचमहाभूत से बनी है, फिर
भी आंख का विषय कान नहीं ग्रहण कर सकता, आप कान से नहीं देख सकते, आंख से नहीं सुन
सकते - अपने अपने subject की बात है
24.53 कान में यंत्र लगा करके आप आवाज़ को तेज
कर सकते हैं लेकिन आँख में यंत्र लगाकर के सुन नहीं सकते, देखिये दोनों पंचमहाभूत
की है और पंचमहाभूत का ही सामान देखना है फिर क्या बात है कि कान से दिखाई नहीं
पड़ता, ऐसे ही आत्मा का subject संसार कैसे होगा कैसे तुम सोचते हो इतना
बड़ा संसार मिल जाए तो आनंद ही आनंद है ?
25.35 संसार तो आपको अनन्त बार मिल चुका, इसी
जीवन में मिल चुका, बड़ी प्यास लगी है पानी मिल जाए तो आनंद मिल जाए, पानी मिला, एक
घूंट पिया, दूसरा घूंट पिया, तीसरा घूंट पिया, उससे
कम आनंद, आधा लिटर पानी पी लिया आनंद समाप्त, किसी वस्तु में सुख हो तो सबको सुख मिले
और सदा एक सा मिले
26.22 अगर शराब में सुख है तो सब को मिले, सदा
एक रस मिले, मगर ऐसा नहीं है, उसी लड़की से ब्याह करने
के लिए लड़का जान देने जा रहा था अब ब्याह होने के बाद साल 2 साल भी नहीं बीता कि
सोचने लगा ये लड़की तो ठीक नहीं है, मेरी तो life खराब कर दी, पहले तो वो तुम्हारी life बन गयी थी अब ऊल्टा हो गया ?
27.0 ऐसे ही कुछ समझ में नहीं आता, समझ में
क्या आएगा ? तुम आत्मा हो, संसार तो तुम्हारी आत्मा का subject ही नहीं है, डॉक्टर ने कहा तुम diabetes के
मरीज हो, मिठाई मत खाना, कोई भी मीठी चीज़ हो वो खतरनाक है diabetes में, उसी प्रकार तुम ये समझते हो मेरा बाप खराब है, मेरी माँ खराब है, मेरी बीवी खराब है, मेरा
बेटा खराब है
28.09 खराब वराब कोई नहीं है तुम्हारा जो भ्रम
है कि इसमें आनंद मिल जायेगा वो खराब है क्योंकि आनंद तो संसार में किसी के पास है नहीं,
चाहे बाप हो, माँ हो, बीवी हो, बेटा हो - इसी भ्रम में सब एक दूसरे से आनंद की खोज
कर रहे हैं, मगर दुख पा रहें है (यही माया का खेल है)
28.39 जैसे 50 अंधे लोग खड़े हों, उनमें एक
अंधा बोले अरे कोई यहाँ आँख वाला है ? मुझे सत्संग भवन जाना है, एक अंधे ने जोर से
चिल्लाकर कहा अरे मेरा हाथ पकड़ ले मैं पहुंचा दूँगा, अब अगला बड़ा खु़श हो रहा है
कि मुझको आंख वाला मिल गया, मगर दोनों ही चलने पर धड़ाम से जा गिरे - बाजू में ही
एक तालाब था
29.20 संसार में आपको पैसा चाहिए तो पैसे वाले
के पास जाओ, आपको विद्या चाहिए, विद्या वाले के पास
जाओ, आपको जो चीज़ चाहिए उस चीज़ के धनी के पास जाओ, आपको प्रेम
चाहिए, आनंद चाहिए तो जिसके पास प्रेम और आनंद हो उसके पास जाओ (प्रेम और आनंद तो केवल गुरु और भगवान के
पास हैं), जो स्वयं भिखमंगा है बड़ी कृपा भी करेगा तो
क्या करेगा, जो है ले लो
29.54 ऐसे ही बाप बेटा से आनंद चाहता है और संसार में किसी के भी पास प्रेम और
आनंद तो है ही नहीं
30.24 ये उस से आनंद चाहता है वो ईस से आनंद चाहता है, इसी भ्रम में
अनादि काल से क्रम चला आ रहा है, सबका चिंतन कमजोर है
31.02 चिंतन में ही सारी विशेषताएं (शक्ति) हैं,
और किसी चीज़ में नहीं - चाहे सांसारिक subject हो
या ईश्वरीय subject, तो संसार संबंधी कामनाओं का त्याग
करके भगवान की उपासना होगी - ये भी सही
31.56 मगर संसार
संबंधी कामनाओं का त्याग करना असंभव है - ये भी सही तो उसमें करना क्या है आपको ? कामनाएं
चली जाएं और भगवान की उपासना हो - ये गलत
32.16 यानी 100% कामनाएं चली जाएं पहले, उसके
बाद भगवान की उपासना आरंभ करेंगे - ये गलत, और भगवान की उपासना कर ले तो कामनाएं
चली जायें, ये और गलत
32.47 भगवान की कामना उपासना
कहलाती है, उसको भगवान संबंधी कामना कह लो चाहे उपासना कह लो, अर्जुन ने एक प्रश्न
किया श्रीकृष्ण से
33.15
महाराज आप तो बड़े आराम से कह देते हैं मन को वश में कर ले अर्जुन, मगर मन इतना चंचल है कि इंद्रियों पर विजय प्राप्त करने
वाला भी मन को वश में नहीं प्राप्त कर सकता, किसी भी साधन से
34.09
जैसे आज कल के politician बोलते हैं सब लोग एक हो जाओ मगर एक कैसे
हो जाओ ? हम नहीं जानते कैसे हो जाओ, पर हो
जाओ
37.33
श्रीकृष्ण ने कहा विषयों पर तो कोई control
कर सकता है लेकिन मन पर control नहीं होगा
37.50
तो मन पर control कैसे होगा ? इसके लिए तो भगवान की side से बात बनेगी, अपनी side से नहीं बन सकती
38.22
बड़े बड़े योगेंद्र मुनीन्द्र भी मन को वश में नहीं कर पाए, देखो जड़ भरत जैसे ज्ञानी
का क्या बुरा हाल हो गया, एक हिरण के बच्चे में आसक्ती (attachment) हो गयी और उनको अगला जन्म हिरण का
लेना पड़ा
40.52 मन को पेंडिंग (suspension) में नहीं रख सकते (मन अकर्मा (without any work) कभी नहीं रह सकता) या तो उधर (God) के side रहोगे या तो इधर (संसार) के side रहोगे, किसी एक ही side में रहना पड़ेगा श्रीमान जी, दो ही तो area हैं, एक ईश्वर और एक माया का
तुम्हारी
reading weak है तुम समझ नहीं पा रहे हो अपने मन को read नहीं कर पा रहे हो कि मन इस समय कहाँ है
41.22 एक राजा
को वैराग्य हुआ, जिस भेष में बैठा हुआ था करोड़ों का मुकुट पहने, वैसे ही चल पड़ा,
मुझे तो भगवान से मिलना है, भागता भागता एक जंगल में पहुँच जहाँ एक बड़े महात्मा थे,
उनके पास जाके बोला मुझे बताइए कैसे मिलेंगे भगवान, मैं सब कुछ करने को तैयार हूँ,
41.55 महात्मा ने देखा राजा को, बोले भाग जा, पहले सब कुछ छोड़ के आ, ऐसे भगवान नहीं
मिलते
44.0
जब कई दिन हो गए तो गुरूजी स्वयं गये राजा के पास और राजन को चिपटा लिया गले से, कहा
राजन पहले तुम सब छोड़ के तो आए थे मगर छोड़ने का अहंकार नहीं
छोड़ा था,
44.38 यदि अहंकार साथ रहेगा तो गुरु कि वाणी को
100% स्वीकार नहीं कर सकता, बार बार doubt करेगा,
शंका करेगा, और "संशय आत्मा विनाश्यति"
45.00
इसलिए केवल त्याग त्याग, बलिदान बलिदान, वैराग्य वैराग्य , यानी संसार में सुख नहीं है - यदि इन
सबका चिंतन करोगे इससे मन का हिसाब नहीं बैठा सकते हैं आप, उसी संसार का चिंतन होगा बार बार, जब आप किसी से द्वेष करते हैं संसार में, तो
उसकी आकृति बार बार आपकी खोपड़ी में आती है चाहे आंख बंद करें तो भी
45.50 मन को अलग करने का मतलब वैराग्य
है, दोस्ती का जो फल है वही फल दुश्मनी का
होता है, राग (love / attachment) द्वेश (hatred) दोनों ही राग हैं, ना राग करो ना
द्वेश उसका नाम वैराग्य है
46.29 इसलिए shri कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि संसार में
राग भी न हो क्योंकि संसार में सुख नहीं है और द्वेष भी ना हो क्योंकि संसार में
दुख भी नहीं है, ये दुख तो हमें इसीलिए मिलता है कि हम संसार में सुख मान लेते हैं,
यदि संसार में सुख मानना बंद कर दो तो अपने आप दुख भी नहीं मिलेगा
47.03 लेकिन फिर मन क्या करे ? हाँ ये important question है संसार में राग भी ना हो द्वेष भी ना
हो, अब मन खाली हुआ, तो मन कहता है मुझे कुछ काम बताओ, हम एक second को भी खाली नहीं बैठ सकते
47.23
एक बार एक पंडित जी को जिन मिला जो हर काम करने को तैयार था मगर उनकी शर्त ये थी
की एक second भी वो काम के बिना नहीं रहेगा, पहले तो
अच्छा लगा पंडित जी को सब काम होते गए और बाद में वो परेशान हो गए कि क्या काम
इसको बताएं बार बार,
Finally पंडित जी को सूझा कि जब तक हम कोई काम
नहीं बताएं, इस डंडे के ऊपर चढ़ो, उतरो चढ़ो, उतरो
48.27
संसार स्वार्थी है, इसलिए जब कोई आपके लिए तारीफ करे, जान देने को
तैयार हो, होशियार हो जाओ ये बहुत बड़ा fraud करने जा रहा है मेरे से, मगर यदि कोई आपको डांट लगाता है, कोई विरोधी व्यवहार
करता है, वो तो आपके लिए बड़ा अच्छा है उसके जो भीतर है वही बाहर आया
49.26 इस प्रकार को मन को संसार से हटाना,
यानी संसार की कामना के जगह पर भगवान की कामना करना,
कामना समाप्त नहीं हुई है उसने केवल direction change किया
है, जैसे 18 साल की लड़की जिसने अपने मायके के सामान को ही अपना सामान माना, ससुराल
जाते ही उसने सब अपनी मन बुद्धि को divert कर
दिया, ये मेरा घर है, ये मेरा bank
balance है, उसी प्रकार ये कि संसार में हमारी
आत्मा का सुख नहीं है, अच्छी प्रकार से समझ कर, मन को संसार से हटाया
50.29 संसार की कामना छोड़ी, छुटी नहीं, छोड़ा, और छोड़ के रुके नहीं,
इसी संसार की कामना को भगवान की कामना बनाया इसी का नाम उपासना, यहाँ से मन हटाया,
फिर श्री कृष्ण में लगाया, तो ये भी सही
है कामना छोड़ा तभी तो भगवान में लगाया और ये भी सही है कि कामना छूटी नहीं क्योंकि
भगवान में वही कामना लगा दी
51.05 तो फिर मन को संसार से हटाया, फिर श्री
कृष्ण में लगाया, फिर हटाया फिर लगाया - ये अभ्यास करना होगा बार बार, यही लड़ाई है,
युद्ध है, 10 बार हटाया, 10 बार लगाया फिर भी हठ आता है ऐसी बेगारी (forced labor) से क्या फायदा, अपने बस का नहीं है तो
क्या भगवत प्राप्ति तुम्हारा पड़ोसी करेगा ?
51.42 किसी को भूख लगी है, एक भिखारी बहुत भूखा है,
किसी से भीख मांगता है बाबूजी 1 पैसा दे दीजिए, आगे जाओ,
आगे जाओ, यदि भिखारी परेशान होकर ये कह दे कि सब भाड़ में जाओ हम किसी से नहीं मांगेंगे,
अरे नहीं मांगोगे तो खाओगे क्या, मांगना पड़ेगा, language PHD करने के बाद तुम जगह जगह घूम रहे हो,
सर्विस मिल नहीं रही है, चार जगह से लौट आए, तो आप खीझकर ये कह दें कि अब कहीं
नहीं जाएंगें, मगर जाना पड़ेगा - जब तक सर्विस नहीं मिलेगी इसी प्रकार जाना पड़ेगा
52.45 आनंद प्राप्ति तो भगवान के सिवा कहीं
मिलनी नहीं है इसलिए आत्मा को जो आनंद की natural भूख है उस भूख के कारण या तो भगवान की
शरण में जाओ और नहीं तो 84,00,000 में घूमा करो इनके अन्यथा कोई गती
नहीं (there is no
other 3rd option)
53.0 इसलिए निराशा नहीं आनी चाहिए, मैंने बार बार समझाया है कि जब आप छोटे
से थे, खड़े होना सीखे थे, चलना सीखे थे, हजारों लाखों
बार गिरे थे, चोट लगी थी, लेकिन आप हिम्मत नहीं हारे, तब आपको किसी ने ज्ञानोपदेश
नहीं दिया था कि बेटा चलना ज़रूरी है, खड़ा होना जरूरी है, लेक्चर नहीं दिया और बार
बार चोट लगी, चिल्लाया आंसू बहाकर दर्द भी हुआ और कभी कभी डाक्टरों की भी शरण लेनी
पड़ती है इतनी चोट लग जाती है बच्चों को, लेकिन वो चलना बंद नहीं करते
53.54 ये सब आप कर चूके हैं फिर भगवान संबंधी साधना के लिए आप क्यों
ये सोच लेते हैं कि भाई मैंने 10 दिन, 10 महीने, 10 साल, 10 जन्म प्रयत्न किया, अब
मेरे बस का नहीं, मगर हमारा पड़ोसी का तो भगवत प्राप्ति हो गया, अरे उसको तो भगवत प्रेम में बहुत आंसू
आते थे, उसके ऊपर गुरूजी ने कृपा कर दी, हमारे ऊपर कृपा तो की नहीं, सारी गलती
गुरु जी की है
54.43 यही हम लोग कहते हैं, अरे भाई उसने तमाम जन्मों में परिश्रम
किया था, उसका अभ्यास और वैराग्य वो पका पकाया उसी का सामान भगवान ने उसको दिया है,
अब आप भी abcd और क ख ग शुरू कर दो पड़ना भक्ति का, अपने से आगे
साधक को देख कर निराशा ना लाओ, उत्साह लाओ आखिर ये भी तो हमारी तरह मनुष्य है, ये
भगवान के लिए आंसू बहा सकता है, उनके लिए इतना time निकाल सकता है, मैं क्यों नहीं कर सकता
55.45 वैसे तो मैं बड़ा काबिल समझता हूँ अपने
आप को, धिक्कार है मुझे, बार बार feel करो, कल का दिन मुझे मिले ना मिले, आज
ही करना है, अभी करना है, वेद कहते हैं, हे मनुष्यो, उठो, नींद छोड़ो, जागो, सतगुरु
के पास जाओ, और उनके आदेशानुसार साधना करो, देर ना करो
56.28 कल करेंगे, फिर करेंगे, ये सोचना बंद
करो, उसी सोच से अनंत जनम आपके बीत गए हैं, अभी जल्दी क्या है, अभी तो हमारी पढ़ाई चल रही है, अभी तो हमारा ब्याह हुआ है, अभी तो
बहुत मौज मस्ती का समय है, और अभी तो दो तीन बच्चे हो गए हैं ये छोटे छोटे हैं, उनको संभालने की life है,
अब वो
बड़े हो गए हैं, अब क्या है, अब novel पढ़ने की life है,
बुड़ापे
में retire हो गए, क्या करें, चार छे अखबार (newspapers) ले लिया, उसको पढ़ रहे हैं - क्या करे
महाराज अब समय कैसे बिताएं, क्या पढ़ रहे हो इस अखबार
में, वो लड़की भगाई
गई, वो लड़का भगाया गया, ये पढ़ रहे हैं
57.28 यानी किसी प्रकार इस मानव देह को समाप्त
कर दिया जाए, इसका अभ्यास कर रहे हैं, अरे मेरा क्या है, अब थोड़े दिन के बात है, बेटा
तुम अपनी सोचो, मैं तो निश्चिंत हूँ क्योंकि 4, 6,10 साल का मेहमान हूँ, उसके बाद वैकुंठ
जाऊंगा ही, मन को भगवान में लगाओ, यदि संसार में आवे,
फिर
हटाओ,
फिर भगवान में लगाओ
58.10 ऐसा करते करते कुछ दिन में मन भगवान में
लगने लगेगा, अब आई naturality, पहले शौक से cigarette, चाय पिया, अब उसके बाद वो चाय, वो cigarette खोपड़ी में pinch करती है, हमको पियो, नहीं तो तुम्हारी
खोपड़ी में चक्कर लाएंगे, ये
जड़ वस्तुओं का
इतना प्रभाव है, और वो तो चेतनों का चेतन है, तो भगवान
में मन लगाओ, यदि हटा तो फिर लगाया, ये हटाया यानि वैराग्य, लगाया यानि साधना
58.46
धीरे धीरे मन लगने लगेगा, जितनी लिमिट में लगने लगेगा (भगवान में) उतनी लिमिट में हटने लगा (संसार से), अब आपको
परिश्रम कम पड़ेगा, जितना जितना लगने लगेगा, उतना उतना हटने लगेगा और यहीं क्रम आप
बराबर चलाते रहिये, तो जब 50% से ऊपर आप पहुँच जाएंगे भगवान में मन लगने लगा का,
तब फिर आपको हँसी आएगी कि मन को संसार से हटाने में क्या रखा है, कोई मुश्किल नहीं
है, लेकिन अभी निश्चिंत नहीं होना (do not be content yet) जब तक भागवत
प्राप्ती न हो जाए, तब तक आपको यही सोचना है धिक्कार है मेरी साधना को कि श्याम
सुन्दर आए नहीं
59.47
मेरे आंसुओं को श्याम सुंदर ने अपने पीतांबर से पोछा नहीं, तो क्या अहंकार करें ऊन
आंसुओं पर, संसार की कामना से भी आंसू आते
हैं इसके अंक (marks =) 0/100, वो घोर मूर्ख है जो आँसू संसार के लिए बहा रहा है, वास्तविक आँसू
वो हैं जिसके लिए भगवान अपना लोक छोड़ दें और भागकर आप को हृदय से लगावे
1.00.52
उसके पहले आपको तृप्ति नहीं लाना है, कितने अच्छे
अच्छे साधक वापिस संसार में पहुँच गए जिनको गुरु नहीं मिला था सही सही, ये ठीक है
गुरु के बिना कोई काम नहीं बनेगा लेकिन गुरु से ही राय लेकर के हमको आगे बढ़ना है, तृप्ति
नहीं मान लेना है, जब तक गुरु ना आपको प्रेम दान करेगा तब तक भागवत प्राप्ति नहीं
हो सकती
1.01.55
भागवत प्राप्ति कराने का काम गुरु ही करेगा फिर जैसे आपके यह सब electrical fitting हो गई लेकिन पावर हाउस अगर आप को electricity नहीं
देगा आपके घर में, ये सब ऐसे ही लगाए रहो इसलिए गुरु की तो आवश्यकता है लेकिन उनको समझे
रहना है कि हमको सावधान रहना है, भाव भक्ति जो कि साधना भक्ति के ऊपर है, वहाँ जा
करके भी जीव का पतन हो जाता है, अगर वो भगवान के नाम, नाम, रूप, गुण, लीला, धाम और
सबसे अधिक उनके संत के प्रति अपराध कर डाले तो ये नाम अपराध
है
1.03.06
और नाम अपराध समस्त साधनों को समाप्त कर देता है, बहुत जनम तक कीर्तन कर डालो, श्रवण
कर लो फिर भी काम नहीं बनेगा, ध्यान रखना होगा गुरु की शरणागति का और साधना के सब
नियमों का - उसके अनुसार चलना होगा, अपने हिसाब से चले अनादिकाल से, तभी तो
सर्वनाश हुआ
1.03.41
मन को भगवान में लगाया मगर फिर अभ्यास के कारण संसार में चला आया, लेकिन घबराना नहीं,
फिर संसार से हटाया, फिर लगाया, लगाते लगाते लगने
लगेगा, जब 100% मन लग जाएगा भगवान में, यानी अंतःकरण शुद्ध हो जाएगा, तब एक क्षण बिना
श्रीकृष्ण के, एक युग के समान बीतेगा, तब गुरु के पास से वो दिव्य प्रेम मिलेगा
1.04.23
तब संसारी कामनाएं चली जाएंगी, यानी फिर नहीं आएंगी, यानि माया गई, अब कामना रह गई
केवल भगवान की सेवा करने की, सब spiritual मामला है, वहाँ भी काम क्रोध
मोह लोभ है, मगर वो सब योग माया के हैं,
माया की नहीं हैं
1.05.17
योग माया भगवान की personal
power है, ये जो आप सुनते
है ना किशोरी जी ने "मान" किया, मान किया यानी क्रोध आया, किशोरी जी ने ठाकुर
जी से पूछा, कहां थे रात भर, ये ईर्ष्या आई, ये सब योग माया के गुण हैं, वो तुम्हारे गोबर गणेश (नासमझ -on who
does not understand) संसार के नहीं है, तो संसारी
कामनाओं को साधना के दौरान "त्यागना", ये अलग बात है और संसारी कामनाओं
का भागवत प्राप्ति के बाद "चले" जाना, यह अलग
बात है
1.06.21
किसी का murder
करना या किसी का murder हो जाना यह दोनों अलग अलग बाते हैं,
अगर accident हुआ है आप कार चला रहे हैं, आपकी ब्रेक भी ठीक, आपकी speed भी ठीक है और फिर भी कोई आगे आ धमका आपके गाड़ी के आगे और मर गया तो आपकी उसे
मार डालने की मंशा (mindful intent) नहीं था, इसलिए आपको दंड
नहीं मिलेगा
1.07.13
सांसारिक कामनाओं का त्याग करना, ये साधना है, और त्याग हो जाना ये सिद्धि है, भगवान में मन लगाना,
ये साधना है, भगवान में मन लग जाना ये
सिद्धि है, सिद्धि की आशा पहले मत करो,
संसार में भी पहले शादी करते हो, बाद में बच्चा मिलता है, बड़ी परीक्षा देते हो फिर
डिग्री मिलती है, ऐसा कहीं नहीं हुआ कि पहले
फल मिल जाए, बाद में साधना करो, फिर ये सवाल करते हैं आप लोग किसी भी महात्मा के
पास जाकर, और तो सब ठीक है महाराज मगर भगवान में मन लगता नहीं, कहां लिखा है (किस
शस्त्र या वेद में) कि पहले से ही भगवान में मन लगेगा, अरे मन को लगाना पड़ेगा
1.08.09
मन को संसार से हटाओ, भगवान में लगाओ, जब मन
भगवान में पूरा लग जाएगा तो संसार से पूरा
हट जाएगा, उसी क्षण गुरु के पास से भगवान प्राप्ति होगी, वो दिव्य प्रेम मिलेगा और
जीव सदा को माला माल हो जाएगा, बोलिए
वृंदावन बिहारी लाल की जय