Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj | Pravachan | Part 13
https://www.youtube.com/watch?v=tUX0s7YAk1M
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Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj Pravachan Part 13.mp4
0.15 जिस पूतना ने अपने स्तन पर जहर लगाकर कृष्णा को मार डालने की कोशिश की, उसको भी ठाकुरजी ने अपना लोक दे दिया, ऐसा दयालु कौन होगा
1.16 सभी आत्माराम, परिपूर्ण, तृप्त परमहंस, सर्वत्र मैं को realise करने वाले भी बर्बस (as if under control of someone) भगवान कृष्ण का सौंदर्य (beauty), सौशिल्य (good natured), सौकुमार (forever young) से आकर्षित होकर ऊनकी आराधना करते हैं
3.07 चाहे कोई अकाम हो (निष्काम, who leaves fruits of action in Lord's hands), सकाम हो (who wants fruits of action) या मोक्ष की इच्छा रखता हो - सबके लिए तीन प्रकार की साधना श्रोतव्यं (listening to Lord's glories viz., of His form (रूप), name (नाम), qualities (गुण), activities (लीला) & abode (धाम)), कीर्तनम (singing of Lord's glories), स्मरणं (remembrance of Lord's glories) अनुशंसित (सिफारिश / recommended) बताई जाती हैं
6.12 जीवन मुक्त (liberated while living), मुक्त (liberated after death), साधक(aspirant) , सिद्ध (perfect) योगी, सब के लिए वही तीन साधना श्रोतव्यं, कीर्तनम, स्मरणं बताई जाती हैं
6.58 इन तीन मार्गों - श्रोतव्यं, कीर्तनम, स्मरणं - के अलावा कोई और दूसरा मार्ग नहीं, भगवान को पाने के लिए
7.24 ब्रह्मा जी ने तीन बार समस्त वेदों को मथा और निष्कर्ष निकालकर बताया कि केवल यही तीन मार्ग - श्रोतव्यं, कीर्तनम, स्मरणं - मनुष्य के कल्याण का मार्ग है
8.29 ये तीन प्रकार की साधना - श्रोतव्यं, कीर्तनम, स्मरणं - सर्वत्र (everywhere) और सर्वदा (all the time) करनी चाहिए, बहुत से लोग ये तीन साधना करते तो हैं मगर कुछ समय के लिए ; सर्वत्र सर्वदा नहीं करते , और बाकी समय संसार का श्रोतव्यं, कीर्तनम, स्मरणं ही करते रहते हैं
9.11 दो ही प्रकार के श्रोतव्यं हैं, दो ही प्रकार के कीर्तनम हैं, दो ही प्रकार के स्मरणं हैं - या तो संसार का या भगवान का
9.32 मान लीजिए एक घंटा भक्ति करी, कमाई करी और बाकी 23 घंटे लुटा दिए उस कमाई को, तो परिणाम में क्या मिलेगा
9.45 हमारा एक मन है उसे शुद्ध करना है, उसे आधा घंटा तो आपने धोया (यानी पवित्र किया भक्ति से) मगर बाकी के 23 1/2 घंटे गंदे पानी (संसार) से धोया, तो मन की गंदगी तो बढ़ेगी, अंतःकरण शुद्ध नहीं होगा और गंदा होता जाएगा
11.08 सदा और सर्वत्र तीनों साधना करनी है और कोई गंदी जगह नहीं होती जहाँ पर ये साधनाएं न कर सकते हों
11.24 जैसे आप अपने नजदीकी रिश्तेदारो से प्यार करते हो, हर समय हर जगह - ऐसे ही भगवान से प्यार करना है
11.45 तो इस प्रकार ये 3 साधना हैं और इनके लिए कोई नियम नहीं है कि कब करना है, कहाँ करना है, कैसे करना है, ओर इतनी सरल है और कोई परिश्रम नहीं
12.24 एक शुद्ध वस्तु, अशुद्ध वस्तु को शुद्ध कर देती है मगर एक अशुद्ध वस्तु, शुद्ध वस्तु को अशुद्ध नहीं कर सकती, गंगा जी में हजारों गंदे नाले मिलते हैं मगर सब गंगा बन जाते हैं, गंगा जी गंदा नाला नहीं बन जाती
13.03 इसलिए घबराना नहीं की हम अशुद्ध है तो भगवान का स्मरण कैसे करें, अरे भगवान से ही तो हम शुद्ध होंगें
14.33 ये कलयुग है, इसमें सब मंदबुद्धि लोग हैं, छोटी सी उम्र है और घोर कुसंग का साम्राज्य है, ऐसे में मनुष्य के कल्याण का कोई सरल मार्ग क्या है
16.03 छ: (six) शास्त्र छ: अलग अलग तरह की बात करते हैं, चार वेद अलग अलग ढंग की बात करते हैं, 18 पुराण अलग अलग बात करते हैं, अब कोई व्यक्ति किसको सही माने, और कोई यदि करोड़ वर्ष की उम्र पाकर भी, इन सब को याद भी कर लें तब भी पागल होने के अलावा कोई चारा नहीं
16.49 तो इस स्थिति में क्या करें ; उत्तर यह है कि महापुरुष के पास जाओ और उनसे समझो और बस केवल तीन साधना करते रहो - श्रोतव्यं, कीर्तनम, स्मरणं
17.55 सब का सार : श्री कृष्ण की भक्ति ही मनुष्य का "पर" धर्म है
18.34 दो ही मार्ग हैं, 1. DIVINE GODLY श्रेय / पर धर्म / स्वाभाविक धर्म / दिव्य धर्म / गुणातीत धर्म और 2. WORLDLY: एक प्रेय / अपर धर्म / परिवर्तनीय धर्म / मायिक (माया) धर्म / त्रिगुण धर्म - These are all different names for same धर्म (our duty / responsibility to be followed by human beings) -
CHOICE IS OURS - ONE PATH (DIVINE GODLY) LEADS TO ETERNAL BLISS FOREVER IN GODLY ABODE & OTHER (WORLDLY) KEEPS YOU TRAPPED IN THE CYCLE OF 84 LAKH YONIS - TO BE BORN, TO SUFFER ALL SORTS OF MISERIES & TO DIE